संगठन किसे कहते हैं? अर्थ, परिभाषा एवं विशेषताएं

संगठन

संगठन का अर्थ एवं परिभाषा

संगठन का अर्थ; साधारण शब्दों में संगठन का अर्थ योजना मध्य तरीके से कार्य करना है। “कार्य को आरंभ करने से पूर्व उसकी भली प्रकार से नियोजित कर लिया जाए, इसी को संगठन कहते हैं।” और “संक्षिप्त ऑक्सफोर्ड शब्दकोश में टू ऑर्गेनाइज (To Organise) शब्द का अर्थ तैयार करना तथा चालू अवस्था में रखना” है। संगठन के तीन तत्व हैं— (1) उद्देश्य पूर्ति, (2) सहयोग की भावना एवं (3) अनेक व्यक्तियों द्वारा संपन्न। इस प्रकार से संगठन किसी निश्चित उद्देश्य की प्राप्ति हेतु होता है एवं इसमें कर्मचारियों में सहयोग की भावना निहित होती है। एवं मनीष व्यक्ति द्वारा कार्य को संपन्न किया जाता है।

  अगर संक्षेप में कहीं तो, संगठन का अर्थ उसे प्रकार की कार्य योजना से है जिसमें निर्धारित उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए व्यक्तियों या कर्मचारियों का समूह सहयोग की भावना से अपनी पूरी शक्ति लगा देता है।

संगठन की परिभाषा 

संगठन को परिभाषित करने के लिए विभिन्न विद्वानों ने अपनी अपनी परिभाषा को प्रस्तुत किया है। विभिन्न समाजशास्त्री, मनोवैज्ञानिक, प्रबंध विचारक अपनी-अपनी दृष्टिकोण से संगठन के अर्थ को स्पष्ट करते हैं। अनेक विद्वानों द्वारा संगठन का अर्थ ‘संप्रेषण व्यवस्था से लिया जाता है, तथा कुछ विद्वानों से इसे ‘समस्या निवारण का साधन’ कहां है। यहां हम नीचे कुछ विद्वानों द्वारा संगठन की परिभाषा दे रहे हैं—

(1) फिफनर के अनुसार — “संगठन का अर्थ व्यक्तियों एवं युवतियों के बीच तथा वर्गों और वर्गों के बीच संबंधों से है जो इस प्रकार आयोजित किया जाए की व्यवस्थित श्रम विभाजन किया जा सके।”

(2) ग्लैडन के अनुसार — “संगठन से तात्पर्य यह है कि किसी उद्यम में लगे हुए व्यक्तियों के परस्पर संबंधों की ऐसी प्रतिकृति बनाना जो उद्यम के कार्यों को पूरा कर सके।”

(3) एम० मार्क्स के अनुसार — “संगठन उच्च ढांचे का नाम है जो शासन के प्रमुख कार्य वह तथा उसके सहायकों को सौंप गए कार्यों को पूरा करने के लिए बनाया जाता है।”

परिभाषाओं का सार

विभिन्न विधानसभा दी गई संगठन की उपयुक्त परिभाषाओं से ही स्पष्ट होता है कि संगठन एक प्रशासकीय भाषा है एवं मानवीय संबंधों से संबंधित है। डिमांक के अनुसार, “संगठन संरचना तथा मानव जीवन दोनों ही हैं— संगठन को केवल एक भाषा मानना है और जिन लोगों से वह बनता है उनकी उपेक्षा करना पूर्णत हो और अवास्तविक अथवा और अयथार्थवादी बात होगी।” इस प्रकार संक्षेप में संगठन के हमें दो ही तत्व दिखाई देते हैं— (1) प्रशासकीय ढांचा, (2) मानव संबंध। व्यक्तियों के बिना संगठन की और संगठन के बिना व्यक्तियों की कल्पना नहीं की जा सकती है।

संगठन की विशेषताएं

(1) नेतृत्व एवं निर्देशन की विशेषता

संगठन विभिन्न व्यक्तियों के समूह से बनता है तथा यह व्यक्तियों का समूह कार्य करने के नेतृत्व के अधीन रहकर उसके निर्देश के अनुसार उद्देश्यों की प्राप्ति हेतु अपने कार्यों को संपन्न करता है। निर्देशन द्वारा समूह के प्रयासों को नियंत्रित किया जाता है।

(2) नियोजन एवं नियंत्रण

संगठन में व्यक्तियों के समूह में श्रम विभाजन, अधिकारों एवं उत्तरदायित्वों का विभाजन आदि का नियोजन किया जाता है तथा निर्देशन द्वारा उनके कार्यों पर नियंत्रण भी रखा जाता है।

(3) व्यक्तित्व समूह

संगठन विभिन्न व्यक्तियों के समूह को कहते हैं। यह व्यक्तित्व समूह आकार में चाहे छोटा हो या बड़ा। एक संगठन जो व्यक्तित्व समूह को महत्वपूर्ण मानता है, उसमें क्रियाशीलता और सकारात्मकता की भावना होती है जो समूह के सदस्यों को सक्रिय बनाए रखती है। संगठन व्यक्तियों को स्वतंत्रता और स्वाधीनता देता है ताकि वे अपने कार्यों में नए और नवीन विचारों का प्रयोग कर सकें।

(4) उत्तरदायित्व की भावना

संगठन संगठित कर्मचारियों के उत्तरदायित्व को परिभाषित करता है। उनके कर्तव्यों का वर्णन भी करता है। उत्तरदायित्व की भावना सदस्यों के बीच खुले माहौल और सकारात्मक विचार विनिमय को प्रोत्साहित करती है। एक अच्छे उत्तरदाता सदस्यों की बातें सुनता है और उनकी राय को महत्वपूर्णता देता है। उत्तरदायित्व की भावना संगठन को सुरक्षित, समर्थ और सहयोगी बनाए रखने में मदद करती है, जिससे वह अपने उद्देश्यों की प्राप्ति में सफल हो सकता है।

(5) प्रबंधकीय यंत्र

संगठन प्रबंधन संबंधी कार्यों में यंत्र का कार्य करता है। संगठन के अभाव में कार्यों में सफलता प्राप्त करना असंभव माना जाता है। संगठन के बिना प्रबंध अपना कार्य व्यवस्थित और नियोजित ढंग से नहीं कर सकता है।

(6) क्रियात्मक अवधारणा

संगठन का निर्माण निश्चित उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए किया जाता है। अतः कार्यों का संपन्न करने के लिए क्रियाविधि को अपनाया जाता है। अतः यह एक क्रियात्मक अवधारणा है। संगठन को क्रियात्मक बनाए रखने के लिए सभी सदस्यों को कार्यों में सक्रिय भागीदारी देना आवश्यक है। यह सभी को संगठन के उद्देश्यों के प्रति उत्सुक बनाए रखने में मदद करता है।

(7) संप्रेषण जाल 

संगठन में सहयोग की नीति से कार्य किया जाता है। आता है यह एक प्रकार का संप्रेषण जाल है। संगठन में विचारों को संदेशों का आना-जाना चलता रहता है। संगठन की विशेषताओं में संप्रेषण जाल एक महत्वपूर्ण पहलु है, जो संगठन के अंदर सदस्यों के बीच संवाद को सुनिश्चित करने में मदद करता है। संप्रेषण जाल संगठन में जानकारी के प्रवाह को सुनिश्चित करने और नेतृत्व की सुधार करने में सहायक हो सकता है। यह उत्तरदाताओं को उदार और निर्देशित रखने का भी एक माध्यम प्रदान करता है। संप्रेषण जाल संगठन में एक सुदृढ़ संवाद सिरजने का माध्यम होता है और इसे सही रूप से प्रबंधित करके संगठन के कार्यों को सुधार सकता है।

(8) औपचारिक तथा अनौपचारिक संबंध

संगठन से कर्मचारियों और विभिन्न संगठनों के बीच औपचारिक संबंध स्थापित होते हैं। जिसके परिणाम स्वरुप अनौपचारिक संबंधों का भी निर्माण होता है जो लक्ष्य के प्रति के लिए सहायक सिद्ध होते हैं। औपचारिक और अनौपचारिक संबंधों का संगठन में महत्वपूर्ण योगदान होता है, क्योंकि ये व्यक्तियों के बीच सहयोग, समर्थन और सामूहिकता को बढ़ावा देते हैं और कार्यक्षेत्र में सुदृढ़ता बनाए रखने में मदद करते हैं।


महत्वपूर्ण अति लघु उत्तरीय प्रश्न उत्तर 

साधारण शब्दों में संगठन किसे कहते हैं?

किसी कार्य को योजनाबद्ध तरीके से करना ही संगठन है।

ऑक्सफोर्ड शब्दकोश के अनुसार संगठन शब्द का क्या अर्थ है?

किसी वस्तु का व्यवस्थित ढांचा बनाना।

संगठन के दो प्रमुख तत्वों को बताइए?

संगठन के दो प्रमुख तत्व— प्रशासकीय ढांचा और मानव संबंध।

संगठन से संबंधित कौन से दृष्टिकोण प्रचलित है?

संगठन से संबंधित जो दृष्टिकोण में प्रचलित है- यांत्रिक या इंजीनियरिंग अथवा उरविक दृष्टिकोण, और मानवीय दृष्टिकोण।

संगठन कितने प्रकार के होते हैं?

संगठन दो प्रकार के होते हैं— औपचारिक संगठन तथा अनौपचारिक संगठन।

औपचारिक संगठन के दो लक्षण बताइए?

(1) यह अधिकारों के प्रत्यायोजन के सिद्धांत पर आधारित होता है। (2) यह पूर्णतः अव्यैक्तित्क होता है।

अनौपचारिक संगठन के लक्षण बताइए?

अनौपचारिक संगठन के लक्षण - (1) अनौपचारिक संगठन स्वाभाविक होते हैं। (2) व्यक्तिगत व्यवहार संगठन का आधार होते हैं।

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