सामाजिक आंदोलन के 10 मुख्य कारण - social movement

सामाजिक आंदोलन के प्रमुख कारण

सामाजिक आंदोलन प्रत्येक समाज में समय-समय पर होते रहते हैं। इसके लिए जो उत्तरदाई कारक है उनका वर्णन निम्नलिखित रूप से किया जा सकता है— 

सामाजिक आंदोलन के 10 मुख्य कारण - social movement
सामाजिक आंदोलन के 10 मुख्य कारण 

 (1) रीति रिवाजों की प्राचीनता

प्रतीक समाज में रीति रिवाज प्रचलित रहते हैं, किंतु समाज गतिशील होता है। रीति रिवाज समाज के अनुसार गतिशील नहीं हो और प्राचीनता से ही चिपटे रहे तो वे समाज की आवश्यकताओं की पूर्ति नहीं करते हैं, इसलिए स्मार्ट का कोई ना कोई वर्ग उनके विरुद्ध आंदोलन करने का प्रयास करता है ताकि उन रीति-रिवाज को परिवर्तित करके समाज के अनुकूल बनाया जा सके और समाज प्रकृति सील बन सके।

(2) सांस्कृत विलंबना 

संस्कृति के भौतिक तथा और अभौतिक दो तत्व होते हैं। भौतिक तत्व से आर्थिक आविष्कारों तथा भौतिक उपलब्धियां से लिया जाता है और अभौतिक तत्वों में रीति-रिवाजों, सामाजिक, आदर्श, प्रथाओं तथा सामाजिक मूल्यों को सम्मिलित किया जाता है। प्रायः हमारे भौतिक आविष्कार तीव्र गति से विकसित होते हैं, जबकि समाज के रीति-रिवाज में इतनी तीव्र गति से परिवर्तन नहीं होता है। इस प्रकार संस्कृत का एक पक्ष (भौतिक पक्ष) तथा दूसरा पक्ष (अभौतिक पक्ष) से आगे बढ़ जाता है। 

(3) आर्थिक क्षेत्र में असंतोष 

आपके क्षेत्र में असंतोष की भारतीय हो जाने से निर्धन वर्ग असंतुष्ट होता है और आर्थिक दशा में परिवर्तन लाने के लिए आंदोलन करता है। आर्थिक असंतोष जीवन के अन्य सभी पहलुओं को प्रभावित करता है। भारत में श्रमिकों तथा स्त्रियों की आर्थिक दशा खराब थी अतएव उन्होंने अपनी स्थिति में सुधार लाने के लिए विभिन्न प्रकार के आंदोलन किया।

(4) शिक्षा द्वारा भौतिकवाद 

आंदोलन की गति उन्हीं स्थानों पर तीव्र होगी जिन स्थानों पर शिक्षित समाज होगा। शिक्षा समाज के व्यक्ति ही लोगों में जागृति पैदा कर सकते हैं, क्योंकि वह स्वयं भी जागृत होते हैं। अतएव शिक्षा द्वारा भौतिकवाद का प्रसार सामाजिक आंदोलन का वास्तविक कारक है। अर्थात यदि शिक्षित व्यक्ति बेरोजगार है अथवा किसी सरकारी नीति के विरोध में उठ खड़े हुए हैं तो ऐसी स्थिति में आंदोलन काफी भयानक हो सकते हैं।

(5) सामाजिक वर्गों में असंतोष 

समाज में विभिन्न वर्ग पाए जाते हैं। इन वर्गों को आयु, स्थिति, लिंग, धर्म, शिक्षा आदि के आधार पर विभाजित किया जाता है। सभी आधार पर निर्मित वर्गों में असंतोष की भावना पनपने लगती है। स्त्रियों को पुरुष आगे नहीं बढ़ने देते, नवयुवकों को वयोवृद्धों द्वारा रोका जाता है, धनी वर्ग के द्वारा निर्धनों को सताया जाता है। इस प्रकाश सामाजिक वर्गों में भी असंतोष विकसित होता है। इस‌ असंतोष से भी आंदोलन को प्रोत्साहन मिलता है।

(6) स्थिति व कार्य में असंतुलन 

प्रत्येक व्यक्ति अपनी योग्यता को क्षमता के अनुसार ही समझ में अपना स्थान चाहता है और उसी के अनुरूप अपना कार्य करता है, किंतु जब पद अथवा स्थिति और कार्य में असंतुलन पैदा हो जाती है तो समझ में असंतोष की भावना की उत्पत्ति होती है और उसका परिणाम सामाजिक आंदोलन होता है। परंपरा से आधुनिकता की ओर समाजों में अक्सर ऐसा होता है।

(7) जातीय आधार पर संगठनों का निर्माण 

समाज में जाति के आधार पर अनेक संगठनों का निर्माण हो जाने से सामाजिक आंदोलन की गति तीव्र हो जाती है, क्योंकि यह संगठन अपने-अपने क्षेत्र का ही विकास करने का प्रयास करते हैं और उसी के परिणाम स्वरुप विभिन्न आंदोलनों को संगठित किया जाता है। भारतीय समाज में जातीय संघर्ष के अनेक उदाहरण मिलते हैं। पिछड़ी जातियों में हुए आंदोलन में जातीय संगठनों का महत्वपूर्ण स्थान रहा है।

(8) विभिन्न संस्कृतियों से संपर्क 

जब एक संस्कृति के लोग दूसरी संस्कृति के लोगों के संपर्क में आते हैं, तो दोनों में संस्कृति के आदान-प्रदान की प्रक्रिया प्रारंभ हो जाती है। सांस्कृतिक आदान-प्रदान के कारण नए विचारों का जन्म होता है और यह नए विचार सामाजिक आंदोलन को जन्म देते हैं। अधिकांशतः प्रबल संस्कृति कमजोर संस्कृति को अधिक प्रभावित करती है, जबकि स्वयं इससे काम प्रभावित होती है।

(9) यातायात और संदेश वाहन के साधनों का विकास 

वैज्ञानिक आविष्कारों के कारण यातायात के साधनों का विकास हुआ है। ऐसे यंत्र भी विकसित हुए हैं, जिनके द्वारा एक स्थान से दूसरे स्थान तक समाचार भेजे जा सकते हैं। इसी व्यवस्था के कारण एक समाज की परिस्थितियों का दूसरे समाज पर प्रभाव पड़ता है। इसलिए भारत की एक कोने में छात्रों का आंदोलन होने पर दूसरे कोने तक आंदोलन फैलने से रोक नहीं जा सकता है।

(10) स्त्री जगत के प्रति उदासीनता

जिन समाजों में स्त्रियों की स्वतंत्रता पर प्रतिबंध लगाए जाते हैं, उन समाजों में स्त्रियों में उदासीनता के भाव पाए जाते हैं। स्त्री समाज में उदासीनता का एक कारण यह भी होता है कि उनको पुरुषों के समान अधिक अवसर प्रदान नहीं किए जाते हैं। इन परिस्थितियों में स्त्री समाज को अपने अधिकारों के लिए आंदोलन करना पड़ता है। भारत में हुए अनेक महिला आंदोलन इसके उदाहरण है।

निष्कर्ष (conclusion)

इन सभी उपयुक्त की विवेचनाओं के आधार पर यह कहा जा सकता है कि समाज में सामाजिक तथा सांस्कृतिक आंदोलन के अनेक कारण होते हैं।


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