निरंकुश या राष्ट्रीय राज्यों का उदय
rashtriy rajyon ke Uday Ke Karan ; पुनर्जागरण के फल स्वरुप बौद्धिक, सामाजिक और आर्थिक कर्म से सामंतो की शक्ति क्षीण हो गई। पुनर्जागरण ने चर्च की सत्ता को भी दुर्लभ कर दिया। इन बढ़ाओ के हंसने से यूरोप में राजतंत्र को दृढ़ होने का अवसर प्राप्त हुआ। 16वीं शताब्दी के आरंभ में यूरोप में जिन राष्ट्रीय राज्यों की स्थापना हुई, उनमें राजा की सत्ता निरंकुश थी। निरंकुश राजतंत्र के अंतर्गत राजा ईश्वर का प्रतिनिधि माना जाता था। वह स्वेच्छा से प्रजा प्रशासन करता था। राजा की इच्छा ही कानून थी। इस प्रकार का निरंकुश जो दैवी आधार पर स्वेच्छाचारी था, यूरोप के राष्ट्रीय राज्यों में स्थापित हुआ। प्रजा ने ऐसी असीमित सत्ता का समर्थन किया, क्योंकि उसका विचार था कि शक्तिशाली राजतंत्र ही शांति और व्यवस्था स्थापित कर सकता है।
निरंकुश या राष्ट्रीय राज्यों का उदय के कारण
16वीं शताब्दी के आरंभ में पश्चिमी यूरोप में निरंकुश राष्ट्रीय राज्यों के उदय के ये निम्नलिखित कारण थे—
(1) सामंतवादी व्यवस्था का पतन होना
मध्ययुगीन यूरोप की सबसे प्रमुख विशेषता सामंतवादी व्यवस्था थी। सामंतो ने धीरे-धीरे अपनी शक्ति में वृद्धि कर छोटे-छोटे राज्यों के समान राज्य करना आरंभ कर दिया था। रेनर ने लिखा है, “वास्तव में सामंत लोग ही छोटे-छोटे राजा थे, जो परस्पर युद्ध किया करते थे। यही नहीं, वे राजा से भी युद्ध ठान लेते।” सामंतो का प्रभाव इतना अधिक बढ़ गया था कि इंग्लैंड में गुलाबों के युद्ध के 30 वर्षों तक चलने का प्रमुख कारण सामंतवादी व्यवस्था ही थी। सामंतो के शोषण और अत्याचार से कृषक, व्यापारी सभी पीड़ित थे।
(2) राजनीतिक विचारों का योगदान
पुनरुत्थान एवं धर्म सुधार कल के कुछ विद्वान लेखकों ने भी राजाओं के हाथों को सुदृढ़ करने में सहयोग दिया। इटालियन लेखक में मैकियावली फ्रांसीसी लेखक बोंदा और अंग्रेज लेखक हॉब्स ने क्रमशः ‘the Prince’, ‘the state’ और ‘Leviathan’ नामक पुस्तक नहीं। इन लेखकों ने शक्तिशाली निरंकुश राजतंत्र का पूर्ण समर्थन किया। मैकियावली ने शासन को एक निरंकुश व्यक्ति के रूप में चित्रित किया और उसका मानना था कि अच्छे कार्यों के लिए शासन को निर्दयता और छलका पाठ से भी नहीं घबराना चाहिए। बोंदा कतर कथा की संप्रभु सभी नियंत्रण से मुक्त रहना चाहिए और वह ही समस्त कानून का स्रोत होता है। वह केवल ईश्वर के प्रति उत्तरदायित्व था।
(3) मध्यम वर्ग का उत्थान
सामंतवादी व्यवस्था का पतन मध्यम वर्ग के उत्थान की दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण सिद्ध हुआ। 16वीं शताब्दी के आरंभ में मध्यम वर्ग की सामाजिक एवं आर्थिक स्थिति अत्यंत सुदृढ़ हो गई। मध्यम वर्ग ने अपने व्यापार एवं वाणिज्य के विकास तथा सुरक्षा की दृष्टि से राजतंत्र का समर्थन किया। राजाओं ने भी व्यापार एवं वाणिज्य को संरक्षण प्रदान कर मध्यम वर्ग की सहानुभूति प्राप्त कर ली। हेज ने लिखा है,"मध्यम वर्ग का विकास और राजतंत्र से उसका निकटता का संबंध संभवत: मध्य युग से आधुनिक युग के परिवर्तन का सबसे अधिक महत्वपूर्ण तथ्य था।"
(4) धर्म युद्धों का प्रभाव
धर्म युद्धों के कारण यूरोप के शासक पश्चिम एशिया के मुस्लिम और विजेण्टाइन साम्राज्य के संपर्क में आए। पश्चिम एशिया के इन राज्यों में निरंकुश राजतंत्र स्थापित था और उन्हें इन राजतंत्र से ही निरंकुश सत्ता स्थापित करने की प्रेरणा मिली। 1453 ईस्वी में जब तुर्को ने विजेण्टाइन साम्राज्य पर अधिकार कर लिया और उन्होंने मध्य यूरोप की ओर बढ़ना आरंभ किया, तब पश्चिमी यूरोप के राज्यों के लिए संकट उत्पन्न हो गया। अब यह राज्य अपनी सुरक्षा के लिए चिंतित हो उठे। ऐसी स्थिति में इन राज्यों में निरंकुश राजतंत्रों का उदय हुआ।
(5) आग्नेयास्त्रों का आविष्कार
निरंकुश राजतंत्र के उत्थान में अाग्नेयास्त्रों के आविष्कार ने महत्वपूर्ण योगदान दिया। बारूद और बंदूकन के सामने सामंतों के दुर्ग और उनकी अश्वारोही सेना न टिक सकी। राजाओं ने बारूद और बंदूकों पर एकाधिकार रखा। उन्होंने स्थाई सेना का गठन किया और सामंतों की सेनाओं पर प्रतिबंध लगा दिया। इन कार्यों से सामंत अत्यंत दुर्बल हो गए और उन्होंने शक्तिशाली राजाओं की अधीनता स्वीकार कर ली।
(6) पोपशाही की अवनति
मध्यकाल में चर्च अत्यधिक शक्तिशाली था। पोप की आज्ञा सर्वोपरी होती थी। इसकी स्वीकृति से ही राजा गद्दी पर बैठता था। पुनर्जागरण के फल स्वरुप जब अंधविश्वासों का स्थान तर्क ने ले लिया, तो पोप की स्थिति दुर्बल हो गई। इससे राजा पोप के नियंत्रण से मुक्त हो गए। जनसाधारण ने भी पोप का विरोध करके राजाओं को शक्तिशाली बनाया।पोप और चर्च के अधिकारियों के विलासिता पूर्ण जीवन व्यतीत करने से चर्च की नैतिक स्थिति दुर्बल हो गई। इधर पश्चिमी यूरोप के शासकों, जो राजनीतिक मामलों में पोप की सत्ता के विरोधी थे, ने जनसाधारण की भावनाओं का लाभ उठाया और पोप की सत्ता का विरोध किया। धर्म सुधार आंदोलन के फल स्वरुप चर्च पूर्णतया राजा के अधीन हो गया। इसे राजा के सम्मान एवं पद की प्रतिष्ठा में वृद्धि हुई। इस प्रकार निरंकुश राजतंत्रों के विकास में पोपशाही की अवनति एक महत्वपूर्ण कारक सिद्ध हुई।
(7) राष्ट्रीयता की भावना
धर्म युद्ध, स्वदेशी साहित्य तथा अंतर्राष्ट्रीय युद्धों ने राष्ट्रीयता की भावना को सुदृढ़ बनाया। इस प्रकार की देशभक्ति की भावना मुख्य रूप से मध्यम वर्ग में फैली। इस भावना ने राष्ट्रीय राजतंत्रों को शक्ति प्रदान की। राष्ट्रीय गौरव और सम्मान की भावना के कारण जनता ने राजा को शक्तिशाली बनाया। समुद्र पार सुदूर क्षेत्रों में व्यापार तथा उपनिवेशों की स्थापना के लिए कुशल नविको तथा सैन्य शक्ति की आवश्यकता थी, जो एक शक्तिशाली राजतंत्र ही प्रदान कर सकता था। व्यापार और उपनिवेश भी राष्ट्रीय गौरव के प्रतीक बन गए थे और उनके कारण भी निरंकुश राजतंत्रों की स्थापना को प्रोत्साहन मिला।
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