राष्ट्रीयता या राष्ट्रवाद के गुण और दोष
राष्ट्रीयता या राष्ट्रवाद के गुण
(1) देश प्रेम की प्रेरणा
राष्ट्रीयता की भावना लोगों में देश प्रेम का भाव उत्पन्न करती है और उन्हें देश के हित के लिए अपना सर्वस्व बलिदान करने के लिए प्रेरित करती है। यह प्रेरणा राष्ट्रीय पर्वों के आयोजन, राष्ट्रगान तथा राष्ट्रीय गीतों, नाटकों आदि से और अधिक व्यापक होती है।
(2) राजनीतिक एकता की स्थापना में योगदान
राष्ट्रीयता की भावना राजनीतिक एकता की स्थापना में महत्वपूर्ण योगदान देती है। राष्ट्रीयता से प्रेरित होकर ही विभिन्न जातियों व धर्म के लोग एकता के सूत्र में संगठित हो जाते हैं और एक शक्तिशाली राष्ट्र का निर्माण करते हैं।
(3) विश्व बंधुत्व की पोषक
राष्ट्रीयता व्यक्ति की दृष्टिकोण को व्यापक बनाकर अंतरराष्ट्रीय मैत्री और सहयोग को प्रोत्साहित करती है। इस प्रकार राष्ट्रीयता विश्व बंधुत्व की पोशाक भी है, उदाहरण के तौर पर— भारत का पंचशील सिद्धांत ‘वसुदेव कुटुंबकम्’ का पोषक है।
(4) सांस्कृतिक विकास
राष्ट्रीयता देश की सांस्कृतिक विकास को प्रोत्साहित करती है, प्राचीन यूनान के महाकवि होमर, फ्रांस के दान्ते तथा वोल्तेयर, इंग्लैंड के टेनीसन, शैले, टामस पेन, जर्मनी के हीगल और भारत के मैथिलीशरण गुप्त आदि ने राष्ट्रीयता से प्रेरित होकर ही साहित्यिक रचनाएं की है।
(5) राज्यों को स्थायित्व
राष्ट्रीयता राज्यों को स्थायित्व भी प्रदान करती है। राष्ट्रीय चेतना के आधार पर निर्मित राज्य अधिक स्थाई सिद्ध हुए हैं।
(6) आर्थिक विकास में योगदान
राष्ट्रीयता राष्ट्रीय की आर्थिक विकास को भी प्रोत्साहित करते है। राष्ट्रीयता की भावना से प्रेरित होकर ही व्यक्ति अपने राष्ट्र को आर्थिक दृष्टि से संपन्न बनाने के लिए एकजुट होकर कार्य करते हैं।
(7) आत्मसम्मान की भावना
राष्ट्रीयता व्यक्ति में आत्मसम्मान की भावना उत्पन्न करती है और उसे आत्म गौरव की सुरक्षा करने की प्रेरणा देती है।
(8) उदारवाद को प्रोत्साहन
राष्ट्रीयता आत्मनिर्णय के सिद्धांत को मान्यता देती है। इसलिए राष्ट्रीयता मानवीय स्वतंत्रता को स्वीकार कर उदारवादी दृष्टिकोण को बढ़ावा देती है।
राष्ट्रीयता या राष्ट्रवाद के दोष
राष्ट्रवाद के दोष ; राष्ट्रीयता या राष्ट्रवाद की पराकाष्ठा कभी-कभी विश्व शांति के लिए खतरा बन जाती है। इसलिए राष्ट्रीयता में कुछ दोष भी व्याप्त है जो कुछ इस प्रकार हैं—
(1) साम्राज्यवाद का उदय
उग्र राष्ट्रीयता की भावना देशवासियों को अहंकारी तथा स्वार्थी बना देती है और वे अपने राष्ट्र को ही विश्व शक्ति के रूप में देखना चाहते हैं। इस मनोवृत्ति का परिणाम साम्राज्यवादी विस्तार के रूप में प्रकट होता है। 19वीं शताब्दी में साम्राज्यवाद के विकास का एक प्रमुख कारण राष्ट्रवाद भी था।
(2) विश्व शांति के लिए घातक
संकीर्ण और उग्र राष्ट्रीयता विश्व शांति के लिए घातक होती हैं। उग्र राष्ट्रवाद से प्रेरित होकर ही विश्व शताब्दी में जर्मनी ने संपूर्ण मानव जाति को दो-दो विश्व युद्ध की विभीषिकाएं सहन करने को विवश कर दिया था।
(3) सैन्यवाद और युद्ध को प्रोत्साहन
राष्ट्रीयता का उग्र रूप सैन्यवाद और युद्ध को प्रोत्साहन देता है। इतिहास साक्षी है कि उग्र राष्ट्रीयता से प्रेरित होकर ही फ्रांसीसी जर्मनी अनेक बार युद्ध रत हुए और दोनों देशों को जनधन की अपार क्षति (हानि) उठानी पड़ी।
(4) व्यक्ति का नैतिक पतन
संकीर्ण राष्ट्रीयता व्यक्ति को स्वार्थी और अहंकारी बना देती है। वह इतना पतित हो जाता है कि मानव जाति को समूह रूप से नष्ट करने की दिशा में प्रवृत्त हो जाता है। द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान जर्मनी ने संकीर्ण राष्ट्रीयता से प्रेरित होकर यहूदियों पर भयानक अत्याचार किए थे।
(5) छोटे-छोटे राज्यों का गठन
उग्र राष्ट्रीयता की भावना से प्रेरित होकर कभी-कभी छोटे-छोटे राज्य बन जाते हैं और उनमें आपसी द्वेष के कारण देश की एकता को खतरा उत्पन्न हो जाता है। मध्यकाल में यूरोप में अनेक छोटे-छोटे राज्यों की स्थापना उग्र राष्ट्रीयता का ही परिणाम थी।
(6) अंतर्राष्ट्रीयता के विकास में बाधक
राष्ट्रीयता की मान्यता है— ‘एक राष्ट्र एक राज्य’ , लेकिन राष्ट्रीयता का यह सिद्धांत अंतरराष्ट्रीय के प्रतिकूल है। राष्ट्रीयता की भावना के कारण ही विभिन्न रसों का दृष्टिकोण अन्य राष्ट्रों के प्रति संकीर्ण तथा अपेक्षित सा हो जाता है, जिसके परिणाम स्वरुप असहयोग आंदोलन और और अंतर्राष्ट्रीय क्षेत्र में अनेक समस्या उत्पन्न होने लगती है।
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