राज्य विधानसभा की शक्तियां अथवा अधिकार

राष्ट्रीय विधानसभा (state assembly)

राज्य विधानसभा भारत में एक निर्वाचनी निकाय है जो राज्य स्तर पर संघ के संविधान के अनुसार स्थापित किया गया है। यह विधानसभा से भिन्न होता है जो केंद्र सरकार के लिए होता है। राज्य विधानसभा का प्रमुख कार्य राज्य में क़ानूनी और सामाजिक मुद्दों पर निर्णय करना है। यह विधायिका सदस्यों के चयन के माध्यम से बनता है और इसमें विभिन्न प्रतिष्ठानों के प्रतिनिधियों का समावेश होता है।

राज्य विधानसभा की शक्तियां अथवा अधिकार

(क)  विधायिनी शक्ति 

विधानसभा को अनेक प्रकार के कानून निर्माण करने संबंधी शक्तियां प्राप्त है। यह राज्य सूची पर कानून बना सकती है। इस सूची में दिए गए विषयों की संख्या अब 62 है।  राज्य सूची के अतिरिक्त यह समवर्ती सूची के विषयों पर भी कानून बना सकती है, परंतु समवर्ती सूची के जिस विषय पर संसद कानूनी निर्माण कर देती है उस पर विधानसभा कानून नहीं बन सकती है। राज्य की विधानसभा अथवा विधानमंडल की कानून निर्माण की शक्ति पर कुछ प्रतिबंध भी है, जो कुछ इस प्रकार हैं— 

(1) अनुच्छेद 352, 356 एवं 360 के अंतर्गत संकट काल की स्थिति में राज्य सूची के सभी विषयों पर संसद कानून बना सकती है।

(2) जब राज्यसभा, उपस्थित तथा मत देने वाले सदस्यों के 2/3 बहुमत से इस आशय का प्रस्ताव पारित कर दे कि राज्य सूची के किसी विषय पर राष्ट्रीय हित में संसद को कानून बनना चाहिए तब संसद उस पर कानून बनाती है।

(3) कुछ विधेयक राष्ट्रपति की स्वीकृति के लिए रखे जाते।

(4) कुछ विधेयकों पर विधान मंडल के प्रस्तावित किए जाने के पूर्व राष्ट्रपति की स्वीकृति आवश्यक है।

(5) भारतीय संसद अंतरराष्ट्रीय संधियों और समझौता का पालन करने के लिए भी राज्य सूची के विषय पर कानून बना सकती है।

साधारण विधेयकों के विषय में विधानसभा को विधान परिषद से बहुत अधिक अधिकार प्राप्त हैं। जब विधानसभा किसी विधायक को पारित कर देती है तो वह विधान परिषद के पास भेजा जाता है। विधान परिषद उसे समय निम्नलिखित तीन कार्यवाहियां कर सकती हैं—(1) उसे विधायक को स्वीकृत करें या अस्वीकृत कर दे,(2) 3 मास तक उसे पर कोई कार्यवाही ना करें,(3) उसमें ऐसे संशोधन प्रस्तुत करें, जिनसे विधानसभा सहमत ना हो।

    इसके पश्चात विधानसभा उस विधायक को संशोधनों सहित अथवा संशोधन के बिना पुनः पारित करके विधान परिषद के पास भेजेगी। उसे समय यदि विधान परिषद उसे और स्वीकार कर दे या उसे पर एक माह तक कोई कार्यवाही ना करें अथवा ऐसे संशोधन प्रस्तुत करें जो विधानसभा को स्वीकार्य ना हो, तो यह विधेयक भी दोनों सदनों द्वारा पारित समझा जाएगा। इस प्रकार स्पष्ट है कि विधान परिषद किसी साधारण विधेयक को अधिक से अधिक चार माह तक ही रोक सकती है। व्यवहार में वह किसी विधेयक पर अपने द्वारा किए गए संशोधनों या पूर्ण अस्वीकृति के विषय में अत्यंत दुर्बल सदन है। दोनों सदनों के द्वारा पारित होने के पश्चात राज्यपाल उस पर अपनी स्वीकृति प्रदान कर देता है।

(ख) वित्तीय शक्तियां

विधानसभा को अनेक प्रकार के वित्तीय अधिकार प्राप्त हैं। वित्त विधेयक केवल विधानसभा में ही प्रस्तुत किए जाते हैं, विधान- परिषद में नहीं। बजट पर उसका पूर्ण नियंत्रण है। विधान परिषद किसी धन विधेयक को केवल 14 दिन के लिए रोक सकती है। वित्तीय वर्ष प्रारंभ होने से पूर्व वित्त मंत्री विधानसभा के सामने बजट प्रस्तुत करता है। विधानसभा की स्वीकृति के बिना ने कर नहीं लगाए जा सकते हैं।

(ग) कार्यपालिका पर नियंत्रण

विधानसभा का मंत्री परिषद पर भी पूर्ण नियंत्रण रहता है। मंत्री परिषद विधानसभा के प्रति उत्तरदाई है। इसका अर्थ यह है कि मंत्रिपरिषद अपनी पद पर तभी तक रह सकती है, जब तक इस विधानसभा में बहुमत प्राप्त हो। विधानसभा अविश्वास प्रस्ताव, काम रोको प्रस्ताव, निंदा प्रस्ताव, मंत्रियों के वेतन में कटौती द्वारा अथवा किसी महत्वपूर्ण विधायक को पारित न करके मंत्री परिषद में अपने विश्वास की कमी प्रकट कर सकती है। ऐसी स्थिति में मंत्रिपरिषद अपना त्यागपत्र दे देती है। विधानसभा के सदस्य मंत्रियों से प्रश्न तथा पूरक प्रश्न पूछ सकते हैं। जहां विधानसभा का मंत्री परिषद पर इतना नियंत्रण है, वहां मंत्रिपरिषद का भी विधानसभा पर बहुत प्रभाव होता है।

(घ) संविधान में संशोधन की शक्ति

भारतीय संविधान में कुछ ऐसी धाराएं हैं जिनके संशोधन में संसद के साथ भारतीय संघ के कम-से-कम आधे राज्यों की विधानसभाओं की स्वीकृति भी आवश्यक है। इस प्रकार राज्य की विधानसभा संविधान संशोधन संबंधी कार्यों में भी भाग लेती है।

(ड़) निर्वाचन संबंधी शक्ति

विधानसभा के निर्वाचित सदस्य राष्ट्रपति के चुनाव में भाग लेते हैं। यदि राज्य में विधान परिषद होती है तो उसकी एक तिहाई सदस्यों का निर्वाचन विधानसभा के सदस्यों द्वारा किया जाता है। इसके अतिरिक्त विधानसभा के निर्वाचित सदस्य राज्यसभा की सदस्यों का निर्वाचन भी करते हैं।

   निष्कर्ष

विधानसभा की उपर्युक्त शक्तियों के विवेचन के आधार पर यह स्पष्ट होता है कि वह एक शक्तिशाली सदन है। विधि निर्माण के क्षेत्र में वह सर्वोपरि है। वित्त पर उसका पूर्ण नियंत्रण है तथा मंत्री परिषद उसके विश्वासपर्यन्त ही अपने पद पर रह सकती है।

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