भारत में सामाजिक परिवर्तन लाने में पंचायत राज संस्थाओं की भूमिका (कार्य)

भारत में सामाजिक परिवर्तन लाने में पंचायत राज संस्थाओं की भूमिका

हमारे देश में पंचायती राज की शुरुआत को एक ऐतिहासिक घटना कहा गया है। पंचायती राज संस्थाओं से अधिक प्रशंसा बहुत ही कम संस्थाओं को प्राप्त हुई है। प्रोफेसर रजनी कोठारी के अनुसार— “इन संस्थाओं ने नए स्थानीय नेताओं को जन्म दिया है जो आगे चलकर राज्य और केंद्रीय सभाओं के निर्वाचित प्रतिनिधियों से अधिक शक्तिशाली हो सकते हैं। कांग्रेस और अन्य दलों के राजनीतिज्ञ इन संस्थाओं को समझने लगे हैं। अब वे राज्य विधानमंडल के स्थान पर पंचायत समिति और जिला परिषदों को प्रमुखता देने लगे हैं। वस्तुत: इन संस्थाओं ने देश के राजनीतिक, आधुनिकीकरण और सामाजिक परिवर्तन में महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह किया है और हमारी राजनीतिक व्यवस्था में जान साझेदारी (हिस्सेदारी) में वृद्धि करके गांव में जागरूकता उत्पन्न कर दी है।” 

भारत में पंचायती राज की भूमिका

फिर भी यह तो कहना ही पड़ेगा कि विगत दशकों का अनुभव विशेष उत्साहवर्धक नहीं रहा। यह संस्थाएं ग्रामीण जनता में नहीं आशा और विश्वास पैदा करने में असफल रही है। वस्तुत: जब तक ग्रामीणों में चेतना नहीं आती तब तक ये संस्थाएं सफल नहीं हो सकती। किंतु इसका यह तात्पर्य खराबी नहीं की पंचायती राज व्यवस्था असफल हो गई है। कुछ राज्यों में तथा कुछ विशिष्ट क्षेत्रों में इन संस्थाओं ने सामाजिक परिवर्तन की दिशा में सराहनीय कार्य किया है। यह कार्य मुख्यतः नागरिक सुविधाओं के ही संबंध में हुआ है। पंचायती राज संस्थाओं के समक्ष कुछ नहीं समझते उत्पन्न हो गई है; कुछ पहले ही थी, जिनका निराकरण करना आवश्यक है, यह समस्याएं कुछ इस प्रकार है—

(1) सामाजिक परिवर्तन की दृष्टि से लोकतांत्रिक विकेंद्रीकरण की सफलता पहली शर्त है इसके लिए सत्ता का स्थानीय संस्थाओं को हस्तांतरण करना जरूरी है; पंचायती राज संस्थाओं को स्वायत्त शासन की शक्तिशाली इकाईयां बनाना चाहिए। यह तभी संभव है जब प्रेरणा नीचे के स्तरों से शुरू हो और उच्च स्तर केवल मार्ग निर्देशन करें। राज्य सरकारों इन संस्थाओं को अपने आदेशों का पालन करने वाला प्रतिनिधि मात्रा ना समझे, इसके लिए नौकरशाही की मनोवृत्ति में परिवर्तन की आवश्यकता है। फिर भी आज इसी दृष्टि से प्रभावशाली परिवर्तन दिखाई देता है।

(2) अशिक्षा और ग्रामीणों की निर्धनता की विकास समस्या है। इसके कारण ग्रामीण नेतृत्व का विकास नहीं हो रहा है और वह अपने संकीर्ण दायरे से ऊपर नहीं उठ पाते हैं। किंतु वर्तमान में पंचायती राज समस्याओं के माध्यम से शिक्षा की दिशा में शासन द्वारा किए गए कार्यों से हमारे उत्साह में वृद्धि हो रही है। यह एक बड़ा सामाजिक परिवर्तन है।

(3) सामाजिक परिवर्तन के मार्ग में सबसे बड़ी बाधा दलगत राजनीति है। पंचायती राजनीति का अखाड़ा बनती जा रही है। पंचायत में छोटी-छोटी बातों को लेकर झगड़ा हुआ करते हैं, दल-बंदी होती है और बहुत सा समय लड़ने झगड़ने में निकल जाता है। यदि हमारे राजनीतिक दल पंचायत के चुनाव में हस्तक्षेप करना बंद कर दे तो पंचायत को गंदी राजनीति के दलदल से निकल जा सकता है और स्वतंत्र रूप से पंचायती राज संस्थाएं सामाजिक परिवर्तन की दिशा में विधिक कार्य करने में सक्षम रहेगी।

(4) सामाजिक परिवर्तन की दृष्टि से पंचायती राज संस्थाओं को निम्नलिखित कार्य सौंपे गए है जो कुछ इस प्रकार हैं— 

पंचायत के प्रमुख कार्य

(1) कृषि तथा कृषि संबंधी विस्तार।

(2) मछली पालन का कार्य।

(3) पशुपालन, डेयरी तथा मुर्गी पालन।

(4) लघु सिंचाई, जल प्रबंधन तथा जल विभाग विकास।

(5) भूमि सुधार, भूमि सुधारो का क्रियान्वयन तथा चकबंदी।

(6) ईंधन वह चारे की उचित तथा समय अनुसार व्यवस्था।

(7) पेयजल के लिए नल व कुएं हुए तैयार करना।

(8) लघु उद्योग — खाद्य प्रक्रिया उद्योग सहित।

(9) लघु वन्य उत्पादन।

(10) सामाजिक वानिकी तथा कृषि वानिकी।

(11) ग्रामीण आवास।

(12) खादी, ग्रामिया तथा कुटीर उद्योग।

(13) सार्वजनिक वितरण प्रणाली।

(14) सामुदायिक संपत्ति का अनुरक्षण।

(15) कमजोर वर्गों का कल्याण।

(16) महिला व बाल विकास।

(17) समाज कल्याण  (परिवार नियोजन)।

(18) स्वास्थ्य व स्वच्छता की पूर्ण व्यवस्था।

(19) बाजार व मेलों की व्यवस्था।

(20) संस्कृतिक कार्यों की व्यवस्था।

(21) पुस्तकालय खोलने।

(22) प्रौढ़ शिक्षा की व्यवस्था करना।

(23) तकनीकी परीक्षण तथा व्यावसायिक शिक्षा।

(24) शिक्षा— प्राथमिक एवं माध्यमिक विद्यालयों सहित।

(28) निर्धन प्रशमन कार्यक्रम।

(29) गैर परंपरागत ऊर्जा स्रोत।

(30) विद्युत वितरण।

(31) ग्रामीण विद्युतीकरण।

(32) सड़के, पुलिया, पुल, नौकाएं, जल मार्ग एवं संचार के साधन।

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