नियोजन क्या है? अर्थ, परिभाषा, उद्देश्य एवं आवश्यकता

नियोजन से संबंधित कुछ महत्वपूर्ण बिंदुओं पर चर्चा करेंगे जैसे -

1- नियोजन का अर्थ और परिभाषा

2- niyojan se kya aashay hai

3- नियोजन के उद्देश्य

4- नियोजन की आवश्यकता 

नियोजन का अर्थ और परिभाषा

niyojan se kya aashay hai ; नियोजन को कार्यवाही अथवा कार्य करने के लिए तैयारी के रूप में उचित प्रकार से परिभाषित किया जाता है। यह इच्छित लक्षणों को प्राप्त करने का सचेत प्रयास होता है। नियोजित अर्थव्यवस्था को एक ऐसी अर्थव्यवस्था के रूप में लिया जाता है जिसके द्वारा सरकार उद्देश्यों और विकास की नीतियों पर निर्णयों के माध्यम द्वारा उत्पादन, वितरण, मूल्य आदि को पहले से ही नियंत्रित और संचालित करती है। (किसी कार्य को करने से पहले बनाई गई योजना अथवा नीति को ही नियोजन कहते हैं)

Niyojan kya hai ; साधारण शब्दों में कहा जा सकता है कि नियोजन से अभिप्राय है कि यह निर्धारण करना कि क्या किया जाना है और किस प्रकार किया जाना चाहिए? यह वास्तव में वैज्ञानिक ढंग से लक्षण को निर्धारित करने और इनको सचेत और निश्चित उपाय के माध्यम से प्राप्त करने की तैयारी की एक प्रक्रिया है। जिसे नियोजन कहते हैं।

नियोजन की परिभाषा

अतः उचित रीति से सोच विचार कर पग उठाने तथा किसी कार्य के लिए पूर्व तैयारी ही नियोजन कहलाती है।

फेयोल के अनुसार— “प्रतीक वह क्रिया नियोजित क्रिया कहलाती है, जो दूरदर्शिता, विचार विमर्श तथा उद्देश्यों एवं उनकी प्राप्ति हेतु प्रयुक्त होने वाले साधनों की स्पष्ट पर आधारित होती हो।

भारतीय योजना आयोग के अनुसार— “नियोजन साधनों के संगठन की एक विधि है जिसके माध्यम से साधनों का अधिकतम लाभप्रद उपयोग निश्चित सामाजिक उद्देश्य की पूर्ति हेतु किया जाता है।”

बी० विट्ठल बाबू के अनुसार — “देश में विद्यमान भौतिक, मानसिक एवं आर्थिक साधन संसाधन ऑन को जनता की अधिकतम लाभ के लिए विवेकपूर्ण उपयोग की तकनीक को ही नियोजन कहते हैं।

प्रोफेसर वॉटसन के अनुसार— “नियोजन विशिष्ट लक्षण की प्राप्ति के लिए किए गए श्रेष्ठतम उपलब्ध विकल्प का संगठित, सुविचारित एवं सतत् प्रयास है।”

नियोजन के उद्देश्य

(1) सामाजिक उद्देश्य

वर्ग रहित समाज की स्थापना करना नियोजन का सामाजिक उद्देश्य है। उद्योगपति व श्रमिक दोनों को उत्पत्ति का उचित अंश मिलना आवश्यक है। पिछड़ी जातियों को शिक्षा में सुविधा देना, सरकारी सेवाओं में प्राथमिकता प्रदान करना तथा अन्य पिछली जातियों को समान स्तर पर लाना भी नियोजन का प्रमुख उद्देश्य होता है।

(2) आर्थिक उद्देश्य

देश में आर्थिक समानता, अवसर की समानता, अधिकतम उत्पादन, पूर्व रोजगार तथा अविक्षित क्षेत्र का विकास नियोजन के आर्थिक उद्देश्य हैं। देश के सभी नागरिकों को जीविका के समान अवसर प्रदान करके आर्थिक समानता की स्थापना की जा सकती है। आय की समानता, धन्यवाद के अधिक कार्य लेकर प्राप्त आय को निर्धन वर्ग को सस्ती सेवाएं चिकित्सा, शिक्षा, सामाजिक बीमा, सस्ते मकान आदि सुविधाएं उपलब्ध कराने का उपाय करके ही की जा सकती है। नियोजन के द्वारा राष्ट्र के समस्त कार्यशील योग्य नागरिकों के लिए रोजगार का प्रबंध करना भी आवश्यक है। लोगों के जीवन स्तर को ऊंचा उठने के लिए उत्पादन के समस्त क्षेत्रों जैसे— कृषि, उद्योग, खनिज आदि में वृद्धि की जा सकती है। देश के  अविकसित तथा अर्द्धविकसित तथा अर्द्धविकसित क्षेत्रों को राष्ट्र के अन्य उन्नत क्षेत्र के समान करना भी नियोजन का एक प्रमुख उद्देश्य होता है।

(3) राजनीतिक उद्देश्य

राष्ट्र की राजनीतिक सत्ता की रक्षा, शक्ति तथा सम्मान में वृद्धि करना नियोजन का एक प्रमुख राजनीतिक उद्देश्य है। क्योंकि देश की आर्थिक व्यवस्था में स्थिरता राजनीतिक स्थिरता होने पर ही संभव है।

भारत में नियोजन की आवश्यकता

niyojan ki avashyakta bataiye ; आधुनिक युग की नवीन प्रकृति नियोजन है। वर्तमान युग नियोजन का योग है तथा विश्व के लगभग सभी देशों के द्वारा अपने विकास व उन्नति के लिए नियोजन को अपनाया गया है। विश्व की सभी देशों द्वारा नियोजित अर्थव्यवस्था को अपनाया गया है। भारत में नियोजन की आवश्यकता कुछ निम्नलिखित कर्म से अनुभव की गई है जो कुछ प्रकार है—

(1) विभाजन से उत्पन्न आर्थिक संतुलन तथा अन्य समस्याएं।

(2) औद्योगीकरण की आवश्यकता।

(3) सामाजिक तथा आर्थिक विषमताएं।

(4) विस्फोट जनसंख्या।

(5) देश में बेरोजगारी की समस्या।

(6) देश में गरीबी की समस्या।

(7) देश का पिछडा़पन व धीमी गति से विकास।

इन सभी उपर्युक्त समस्याओं एक दूसरे से सम्मिलित है। इसलिए इसका निवारण करने के लिए देश के समुचित आर्थिक विकास के लिए नियोजन ही एकमात्र उपयुक्त विकल्प है।

भारत में नियोजन (planning in india)

सुप्रसिद्ध इंजीनियर एम० विश्वेश्वरैया ने सन् 1934 में अपनी प्रसिद्ध पुस्तक प्लाण्ड इकोनामी फॉर इंडिया में एक ऐसी योजना प्रस्तुत की, किसी से 10 वर्ष में देश में एक राष्ट्रीय योजना समिति का गठन किया। प्रो० के० टी० शाह को इसका अवैतनिक मंत्री चुना गया। इस समिति ने अपना पूरा काम करने के लिए 26 उप समितियां बनाई। किंतु विदेशी सरकार व कांग्रेस में संघर्ष होने तथा द्वितीय महायुद्ध के कारण यह समिति अपना कार्य पूरा नहीं कर सकी। भारत सरकार ने 1944 ईस्वी में एक नियोजन एवं विकास विभाग का गठन किया तथा सन् 1996 में एक ‘परामर्शदाता नियोजन बोर्ड’ का गठन किया गया। सन् 1946 में नियोगी समिति ने एक सिफारिश की कि आर्थिक नियोजन के कार्य की प्रकृति  ही ऐसी है कि ऐसे एकीकृत शक्तिशाली तथा मंत्री परिषद के प्रति प्रत्यक्ष रूप से उत्तरदाई संगठन की केंद्र में स्थापना आवश्यक है, जो भारत के आर्थिक पुनर्निर्माण के संपूर्ण क्षेत्र पर दत्तचित्त होकर स्थाई रूप से कार्य कर सके।

  स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात भारत में आर्थिक विकास के लिए आर्थिक नियोजन की अवधारणा को स्वीकार किया गया। फलस्वरूप योजना आयोग तथा राष्ट्रीय विकास परिषद् जैसे संगठन बने। योजना आयोग और राष्ट्रीय विकास परिषद ने संविधान की अन्य व्यवस्थाओं जैसे— संघवाद, लोकतंत्र तथा वित्त आयोग को बहुत प्रभावित किया है।

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