नागरिकता प्राप्त करने की विधियां अथवा सिद्धांत

नागरिकता प्राप्त करने की विधियां अथवा सिद्धांत

विभिन्न देशों में नागरिकता प्राप्त करने की विभिन्न विधियां अथवा सिद्धांत हैं। नागरिकता प्राप्त करने की समस्त वीडियो को हम दो भागों में विभक्त कर सकते हैं—

(1) जन्मजात नागरिकता अथवा जन्म द्वारा नागरिकता

(2) देशीयकरण द्वारा नागरिकता 

(1) जन्मजात नागरिकता अथवा जन्म द्वारा नागरिकता

जन्मदाता अथवा जन्म द्वारा नागरिकता प्राप्त करने के तीन सिद्धांत हैं—

(1) रक्त अथवा वंश का सिद्धांत

इस सिद्धांत के अनुसार नागरिकता का निर्धारण व्यक्तित्व नवजात शिशु के वंश के आधार पर होता है। बालक को इस देश की नागरिकता प्राप्त होती है, जिस देश का नागरिक उसका पिता होता है। प्राचीन काल में इस सिद्धांत के आधार पर ही यूरोप तथा एशिया में नागरिकता का निर्धारण होता था। ऑस्ट्रिया और इटली में यह नियम है कि उसके नागरिकों का जन्म चाहे किसी भी देश में हुआ हो, उसको अपने ही देश की नागरिकता प्राप्त होती है। आज भी फ्रांस, स्वीडन, स्विट्जरलैंड आदि देशों में यही सिद्धांत प्रचलित है। भारत में भी राष्ट्रीय तत्व वंश के आधार पर नागरिक प्राप्त होती है।

समीक्षा - यह सिद्धांत तर्कपूर्ण और न्याय संगत है। एक पुत्र का माता-पिता के साथ घनिष्ठ संबंध होता है; आता है यह आवश्यक है कि उत्तराधिकारी के रूप में बालक अपने पिता की नागरिकता प्राप्त करें। फिर भी इस दांत में एक दोषियों है कि जब माता एक देश की हो और पिता दूसरे देश का हो तो यह वाली लड़ाई करना कठिन हो जाता है कि बालक किस देश की नागरिकता प्राप्त करें। अवैध बच्चों के संबंध में यह प्रश्न और भी जटिल हो जाता है।

(2) जन्म स्थान का सिद्धांत

इस सिद्धांत के अंतर्गत बालक की नागरिकता उसके जन्म स्थान के आधार पर निश्चित की जाती है। बालक का जन्म जिस देश की भूमि पर होता है, इस देश की नागरिकता उसको प्राप्त होती जाती है, चाहे उसके माता-पिता किसी अन्य देश के ही नागरिक क्यों ना हो। यह सिद्धांत संयुक्त राज्य अमेरिका, इंग्लैंड, अर्जेंटीना तथा भारत में प्रचलित है।

समीक्षा - यह सिद्धांत बहुत सरल है, क्योंकि किसी बच्चे को इस देश की नागरिकता प्राप्त हो जाती है, जिस देश की भूमि पर वह जन्म लेता है। प्रदेश का एक अपवादी यह है कि फ्रांसीसी माता-पिता से किसी बालक का जन्म चाहे किसी दूसरे देश में ही क्यों ना हो, उसको फ्रांस का ही नागरिक माना जाएगा। अतः यह सिद्धांत भी दोषपूर्ण है। इसे डांडिया योजना करते हुए प्रोफेसर गिलक्रास्ट ने लिखा है, “इसका प्रमुख गुण सरलता है, परंतु इसमें केवल स्थान से ही नागरिकता का निर्धारण उचित नहीं है; क्योंकि सहयोग वर्ष जन्म किसी भी स्थान पर हो सकता है। माता-पिता के देशाटन के समय में भी बच्चा पैदा हो सकता है। स्पष्ट है कि बच्चों को उसे राज्य की नागरिकता स्वीकार करने के लिए बात करना न्यासंगत नहीं, जहां उसका जन्म हुआ है।” 

(3) दोहरा या मिश्रित सिद्धांत 

कुछ देशों में उपर्युक्त दोनों सिद्धांत प्रचलित है, उदाहरण के तौर पर— संयुक्त आज अमेरिका और इंग्लैंड में दोहरा सिद्धांत प्रचलित है। इस डंडी के अनुसार अमेरिकी तथा अंग्रेज माता-पिता से उत्पन्न बच्चों को, चाहे उनका जन्म इस देश में हुआ हो अथवा किसी अन्य देश में, अपने माता-पिता के देश की ही नागरिकता प्राप्त होगी।

समीक्षा - सिद्धांत में सबसे गंभीर दोषी हो है कि इस सिद्धांत से कभी-कभी बड़ी विवादास्पद स्थिति उत्पन्न हो जाती है; उदाहरण के तौर पर— फ्रांसीसी माता पिता कुछ समय के लिए इंग्लैंड में निवास करने लगे और वहां उनसे कोई बच्चा उत्पन्न हो जाए, तो उसको फ्रांस का इंग्लैंड दोनों ही देश के नागरिकता प्राप्त हो जाएगी। वंश सिद्धांत के अनुसार वह बच्चा फ्रांस का नागरिक होगा तथा दोहरी सिद्धांत के अनुसार वह इंग्लैंड का नागरिक माना जाएगा; क्योंकि इंग्लैंड में दोहरा सिद्धांत प्रचलित है और वह बच्चा वहां पैदा हुआ है। अतः युवा होने पर बच्चों के समक्ष यह समस्या उत्पन्न हो जाएगी कि वह किस देश की नागरिकता ग्रहण करें और किस देश की नागरिकता का परित्याग किया करें।

(2) देशीयकरण द्वारा नागरिकता 

नागरिकता प्राप्त करने का दूसरा तरीका देशीयकरण है। देशीयकरण एक वैधानिक प्रक्रिया है, जिसके अंतर्गत कुछ निश्चित शर्तें पूरी कर लेने पर व्यक्ति को उसे देश-विदेश की नागरिकता प्राप्त हो जाती है। देशीयकरण का अर्थ स्पष्ट करते हुए गार्नर लिखा है, “देशीयकरण काव्यप्रार्इ विदेशी को नागरिकता प्रदान करने की किसी भी पद्धति से है।” देशीयकरण की विधि द्वारा प्रार्थी को प्रार्थना पत्र के माध्यम से नागरिकता प्राप्त होती है।

विधिक अतिरिक्त देशीयकरण द्वारा नागरिकता प्राप्त करने की अन्य विधियों कुछ इस प्रकार हैं— 

(1) विवाह द्वारा

यदि एक देश की महिला किसी दूसरे देश के पुरुष के साथ विवाह कर लेती है, तो उसको उसे देश की नागरिकता स्वत: ही प्राप्त हो जाती है। 

(2) संपत्ति खरीदने पर

दक्षिण अमेरिका के कुछ राज्यों—पेरू व मेक्सिको आदि- में यह नियम है कि यदि वहां कोई विदेशी कोई संपत्ति कर लेता है तो वह वहां का नागरिक बन जाता है।

(3) विजय द्वारा

यदि कोई देश किसी अन्य राज्य को जीतकर उसका अपने राज्य में विलय कर लेता है, तब उसे पराजित राज्य के नागरिक स्वत: ही विजेता राज्य की नागरिक बन जाते हैं। 

(4) निश्चित अवधि के निवास से

कुछ देशों में यह नियम है कि यदि कोई व्यक्ति वहां निश्चित अवधि तक निवास करें, तो वह वहां का नागरिक मान लिया जाता है।

निष्कर्ष

यहां ध्यान देने योग्य बात ही है कि उपर्युक्त शर्तें प्रत्येक देश के लिए लागू नहीं होती है। प्रत्येक देश की परिस्थितियों को वातावरण संबंधी स्थिति को दृष्टि में रखते हुए इन शर्तों का औचित्य पूर्ण निर्धारण किया गया है।

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