लोक निगम का अर्थ परिभाषा एवं विशेषताएं - public corporation

लोक निगम (public corporation)

सरकारी संस्थाओं के क्षेत्र में लोक निगम की खोज 20वीं शताब्दी की खोज का ही परिणाम है। वर्तमान समय में विश्व के लगभग सभी देशों में लोग निगम विद्यमान है। हेन्सन का कहना है, कि विकसित एवं अविकसित राष्ट्रों में लोग उपक्रमों के समस्त अविभागीय प्रारूपों में लोक निगम को सर्वाधिक महत्वपूर्ण स्थान दिया गया है। 1870 की बात का समय निगम क्रांति के युग के नाम से जाना जाता है। सरकारी निगमन ने अमेरिकी कांग्रेस की कठिनाइयों तथा समस्याओं का पर्याप्त सीमा तक समाधान कर दिया है।

लोक निगम का अर्थ परिभाषा एवं विशेषताएं - public corporation

लोक निगम का अर्थ एवं परिभाषा

 निगम का शाब्दिक अर्थ निरंतर चलता रहने वाला व्यापारिक संगठन है। लोक निगम या सरकारी निगम की विभिन्न विद्वानों ने विभिन्न प्रकार से परिभाषाएं प्रस्तुत की हैं। विभिन्न विद्वानों ने इसे कुछ इस प्रकार परिभाषाओं से परिभाषित किया है—

(1) डिमांक — “सरकारी निगम वह सरकारी उद्यम है जिसकी स्थापना किसी निश्चित व्यापार को चलाने अथवा वित्तीय उद्देश्यों की प्राप्त करने के लिए संघीय राज्य अथवा स्थानीय कानून के द्वारा की गई है।”

(2) फिनर — “निगम एक ऐसा निकाय है जिसे अनेक व्यक्तियों के एक व्यक्ति के रूप में कार्य करने के लिए स्थापित किया जाता है।” 

(3) अर्नेस्ट डेविस — “निश्चित शक्तियों तथा कार्यों और वित्तीय स्वतंत्रता सहित सार्वजनिक शक्ति द्वारा उत्पन्न निगम संयुक्त मंडल है।”

परिभाषाओं का सार

इन सभी उपर्युक्त विद्वानों की परिभाषाओं से यह स्पष्ट होता है कि सरकारी निगम निजी उद्यम के लाभों को सरकारी उद्यम के क्षेत्र में लाने के प्रयास का परिणाम है। सरकारी निगमन में वाणिज्य स्वतंत्रता तथा सरकारी नियंत्रण का उचित एवं न्यायपूर्ण सम्मिश्रण पाया जाता है।

लोक निगम की विशेषताएं

निगम का निर्माण विशेष प्रक्रिया के द्वारा एवं विशेष कार्यों को पूरा करने के लिए होता है अथवा किया जाता है। प्रोफेसर शुक्ला के अनुसार, “लोक निगम विधान मंडल द्वारा स्थापित सामूहिक संस्था है जिसकी शक्तियों तथा कार्यों की व्याख्या हो चुकी है तथा जो वित्तीय दृष्टिकोण से स्वतंत्र है और इसके कार्य क्षेत्र के अंतर्गत एक निश्चित परिधि अथवा एक निश्चित प्रकार का व्यापारिक क्रिया आती है। सरकारी निगम की विशेषताओं को हम निम्न रूप से जान सकते हैं— 

(1) वित्त व्यवस्था की स्वतंत्रता 

लोक निगम वित्तीय व्यवस्था में पूर्ण रूप से स्वतंत्र होते हैं। विभागीय उपक्रमों की भांति इनकी वित्त व्यवस्था विभागीय बजट से संबंध नहीं रखती। इन निर्गमन की आयु तथा व्यय की राशियों भी सरकार के वार्षिक बजट में नहीं दिखाई जाती है। 

(2) विशेष अधिनियम द्वारा निर्मित 

लोक निगम का निर्माण संसद द्वारा किया जाता है। सांसद विशेष अधिनियम पारित करके लोक निगम का निर्माण करती है। लोक निगम के संपूर्ण अधिकारों, कर्तव्य एवं उनके कार्य क्षेत्र को भी सांसद इन्हीं विशेष अधिनियमों द्वारा ही निश्चित करती है।

(3) पृथक वैधानिक अस्तित्व 

लोक निगमन का वैधानिक अस्तित्व अन्य संस्थाओं से अलग होता है।

(4) प्रबंधकीय व्यवस्था प्रबंध मंडल द्वारा 

लोक निगम का प्रबंध एक प्रबंध मंडल द्वारा किया जाता है। इस मंडल की नियुक्ति संबंधित मंत्री द्वारा होती है। मंडल को दैनिक कार्यों में स्वतंत्रता प्रदान की जाती है। इसमें मंत्री कोई हस्तक्षेप से नहीं कर सकता है। यह मंडल उसे विशेष अधिनियम जिसके अधीन निगम का निर्माण किया गया है में दी गई सीमाओं के भीतर प्रबंधन व संचालन संबंधी नियम उप-नियम बनाते हैं।

(5) राजकीय नियंत्रण 

लोक निगमन पर सरकार का पूर्ण स्वामित्व होता है। क्योंकि इन निगमन पर पूंजी पूर्ण रूप से सरकार लगाती है।

(6) प्रशासनिक स्वायत्ता 

लोक निगम वित्तीय मामलों के साथ-साथ प्रशासनिक मामलों में भी स्वायत्त रहता है। यह आवश्यक होता है क्योंकि उसे व्यापार के सिद्धांत पर कार्य करना पड़ता है। उसे प्रशासनिक मानकों की बजाय व्यापारिक मिनिकों का अधिक ध्यान रखना पड़ता है। सरकार व्यापारिक मामलों में काफी हद तक निगमन को स्वतंत्रता पूर्वक आचरण करने देती है क्योंकि बाजार में भाव तेजी से बदलते रहते हैं और अनेक मामलों में निगम को तुरंत निर्णय लेने पड़ते हैं।

(7) उद्देश्यों की पूर्ति

लोक निगम की स्थापना विशिष्ट उद्देश्यों की पूर्ति हेतु की जाती है। इस उद्देश्य का वर्णन संसद के अधिनियम में कर दिया जाता है। निश्चित उद्देश्य से अलग यह निगम किसी अन्य उद्देश्य में रुचि नहीं लेता है।

(8) संसद व कार्यपालिका से स्वतंत्रता 

नीति संबंधी विषयों के अतिरिक्त निगमन का आंतरिक प्रबंध संसदीय व कार्यपालिका के नियंत्रण में एक बड़ी सीमा तक स्वतंत्र रहता है।

(9) सार्वजनिक एकाधिकार की विशेषता 

लोक निगम को जो उद्योग अथवा वाणिज्य छापा जाता है उसमें उसका एक अधिकार होता है और किसी निजी उद्योग से उसकी प्रतिस्पर्धा का सामना नहीं करना पड़ता है।

(10) भारती में स्वतंत्रता की विशेषता 

निगम की व्यवस्था इस प्रकार से की जाती है कि वह अपने कर्मचारियों की भर्ती पदोन्नति एवं पदानवती में पूर्ण रूप से स्वतंत्र होता है। उसे किसी भी प्रकार की विभागीय नियम को मानना नहीं पड़ता है। लोक निगम में कर्मचारियों का चयन निगम की आवश्यकता को देखकर किया जाता है। जिससे गतिशीलता बनी रहती है।


important short questions and answers 

लोक निगम की शुरुआत सर्वप्रथम किस देश में हुई?

लोक निगम की शुरुआत सर्वप्रथम ब्रिटिश (ईस्ट इंडिया कंपनी) देश में हुई।

लोक निगम की शुरुआत सर्वप्रथम कब हुई?

लोक निगम की शुरुआत सर्वप्रथम 1688 में हुई।

वास्तविक रूप में लोक निगम का जन्म किस संस्था की स्थापना से माना जाता है?

वास्तविक रूप में लोक निगम का जन्म ब्रिटिश संस्था की स्थापना से माना जाता है।

लोक निगम की विशेषताएं लिखिए?

लोक निगम की विशेषताएं - (1) वित्त व्यवस्था की स्वतंत्रता (2) विशेष अधिनियम द्वारा निर्मित (3) पृथक वैधानिक अस्तित्व (4) प्रबंधकीय व्यवस्था प्रबंध मंडल द्वारा (5) राजकीय नियंत्रण (6) प्रशासनिक स्वायत्ता (7) उद्देश्यों की पूर्ति।

लोक निगम क्या है?

विकसित एवं अविकसित राष्ट्रों में लोग उपक्रमों के समस्त अविभागीय प्रारूपों में लोक निगम को सर्वाधिक महत्वपूर्ण स्थान दिया गया है। 1870 की बात का समय निगम क्रांति के युग के नाम से जाना जाता है।

लोक निगम की परिभाषा क्या है?

सरकारी निगम निजी उद्यम के लाभों को सरकारी उद्यम के क्षेत्र में लाने के प्रयास का परिणाम है। सरकारी निगमन में वाणिज्य स्वतंत्रता तथा सरकारी नियंत्रण का उचित एवं न्यायपूर्ण सम्मिश्रण पाया जाता है।

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