केंद्रीय मंत्री परिषद
(Union Council of Ministers)
kendriya mantri Parishad ke karya AVN shaktiyan ; संविधान के अनुच्छेद 74 में यह प्रावधान किया गया है कि “राष्ट्रपति को उसके कार्यों के संपादन में सहायता एवं मंत्रणा देने के लिए एक मंत्रिपरिषद् होगी, जिसका प्रधान, प्रधानमंत्री होगा।” मंत्रियों द्वारा राष्ट्रपति को जो मंत्रणा एवं सहायता दी जाएगी, उसको किसी न्यायालय के सामने विवादित मामले के रूप में प्रस्तुत न किया जा सकेगा। वस्तुतः मंत्रिमंडल वास्तविक कार्यपालिका होती है और वह राष्ट्रपति के नाम पर देश का शासन चलती है। राष्ट्रपति की स्थिति रबड़ की मोहर (Rubber Stamp) की तरह होती है और कार्यपालिका अर्थात् मंत्री परिषद व्यावहारिक रूप में उसकी शक्तियों एवं अधिकारों का उपयोग कर देश का शासन तंत्र चलाती है।
केंद्रीय मंत्री परिषद के कार्य एवं शक्तियां
(1) विधि निर्माण संबंधी कार्य
प्रत्येक सरकारी विधेयक संसद में किसी न किसी मंत्री द्वारा ही प्रस्तुत किया जाता है। यह विधायक सांसद द्वारा पारित होने पर ही कानून का रूप धारण करते हैं। क्योंकि संसद में मंत्री परिषद् का बहुमत होता है, इसलिए कोई भी विधायक उसे समय तक पारित नहीं होता है, जब तक उसे मंत्रिपरिषद् का समर्थन नहीं मिल जाता है। इस प्रकार विधि निर्माण का समस्या कार्यक्रम मंत्री परिषद ही निश्चित करती है। वस्तुत: भारत में संस्कृत में व्यवस्था होने के कारण मंत्री परिषद कानून निर्माण के क्षेत्र में भी नेतृत्व करती है।
(2) वित्त सम्बन्धी कार्य
देश की आर्थिक नीति निर्धारण करने का उत्तरदायित्व मंत्री परिषद् का ही होता है। अतः वार्षिक बजट तैयार करना, नए कर लगाना, करों की दर निश्चित करना एवं अनावश्यक करों को समाप्त करना अधिकारी मंत्री परिषद् ही करती है।
(3) राष्ट्रीय कार्यपालिका पर सर्वोच्च नियंत्रण
सैद्धांतिक दृष्टि से संघ सरकार की समस्त कार्यपालिका शक्ति राष्ट्रपति में ही निहित है, परंतु व्यवहार में इसका प्रयोग मंत्रिमंडल द्वारा ही किया जाता है। मंत्रिमंडल की आंतरिक प्रशासन का संचालन करता है और देश की समस्त प्रशासनिक व्यवस्था पर नियंत्रण रखता है।
(4) संसद की व्यवस्था
संसद में प्रस्तुत किए जाने वाले समस्या विषयों का निर्णय मंत्री परिषद् ही करता है। मंत्री परिषद योगी निर्णय करती है कि किस विषय को कितना समय दिया जाना चाहिए।
(5) नियुक्ति संबंधी कार्य
राष्ट्रपति सर्वोच्च व न्यायालय के न्यायाधीशों, राज्यों के राज्यपाल, तीनों सेनन की सेनापतियों एवं महान्यायवादी (एटार्नी जनरल), नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (Comptroller and Auditor general) आदि की देश की उच्च पदों पर नियुक्तियां, मंत्री परिषद के परामसी के अनुसार ही करता है। इस प्रकार अप्रत्यक्ष रूप से यह नियुक्तियां मंत्री परिषद द्वारा ही होती है।
(6) नीति निर्धारण का कार्य
सरकार की गृह एवं विदेश नीति का निर्धारण मंत्रिपरिषद द्वारा ही होता है। मंत्रिपरिषद क्यों का प्रत्येक मंत्री अपने विभाग से संबंधित प्रशासन संबंधी नियमों का निर्धारण स्वयं करता है; किंतु नीति से संबंधित सभी प्रश्न उसे मंत्रिमंडल के समक्ष प्रस्तुत करने पड़ते हैं। इस संदर्भ में मंत्रिमंडल का निर्णय अंतिम माना जाता है। मंत्रिमंडल के नीति निर्धारण के संबंध में आंग के विचार भारतीय मंत्रिमंडल के संदर्भ में भी सही रूप में चरितार्थ होते हैं, “कैबिनेट के मंत्री लोग-निर्धारण निर्धारण करते हैं।”
(7) विदोशों से संबंध स्थापित करना
मंत्री परिषद अंतरराष्ट्रीय संबंधों पर आधारित नीति का निर्धारण करती है। इस कार्य रूप से संचालित हेतु विदेश मंत्री की नियुक्ति जाती है। दूसरे देशों के साथ युद्ध व संधियां करने में भी इसका महत्वपूर्ण योगदान है।
(8) राज्यों से संबंधित अधिकार
मंत्री परिषद को राज्यों से संबंधित अधिकार प्राप्त होते हैं। वह राज्यों का निर्माण, वर्तमान राज्यों की सीमा में परिवर्तन एवं भाषा के आधार पर प्रति का निर्माण कर सकती है। उल्लेखनीय है कि राज्यों के निर्माण आदि के संबंध में राज्यसभा को विशेष अधिकार प्राप्त हैं।
(9) संकट कालीन कार्य
संकट काल में जब राष्ट्रपति राज्यों का शासन अपने हाथ में ले लेता है तो मंत्री परिषद को राज्य के कार्यों को संचालित करने का अधिकार प्राप्त हो जाता है।
(10) अन्य कार्य
मंत्री परिषद के कुछ अन्य कार्य इस प्रकार हैं—
1- अपराधियों को समाधान के संबंध में राष्ट्रपति को सिफारिश करना।
2- विभिन्न उपाधियां प्रदान करने के संबंध में राष्ट्रपति को सिफारिश करना।
3- मंत्रिमंडल ही राष्ट्रपति को संसद के छात्रों को आमंत्रित करने का परामर्श देता है।
निष्कर्ष (conclusion)
मंत्रिमंडल के उपायुक्त कार्यों की विवेचनाओं के आधार पर जो स्पष्ट होता है कि वास्तव में मंत्रिमंडल के कार्य एवं उसकी शक्तियां बहुत अधिक व्यापक है और देश की समस्त राजनीतिक तथा प्रशासनिक व्यवस्था पर उसका अधिकार होता है। ग्लैडस्टन के शब्दों में, “कैबिनेट सूर्य पिंड है जिसके चारों ओर अन्य पिंड घूमते हैं।” संक्षेप में, मंत्रिमंडल भारतीय शासन तंत्र का हृदय है।
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