कठोर संविधान किसे कहते हैं? तथा गुण एवं दोष

 कठोर संविधान

कठोर अथवा अनमनीय संविधान वह संविधान है, जिसमें सरलता से संशोधन न किया जा सके और जिसके लिए संशोधन की एक विशेष प्रक्रिया निर्धारित हो। सेट  के अनुसार, “कठोर संविधान साधारण कानून से उच्च तथा अधिक कठिनाई से परिवर्तित होने के कारण एक विशेष तथा उच्च स्थान रखता है।” 

कठोर संविधान के गुण और दोष

कठोर संविधान पर प्रायः लिखित होते हैं। अमेरिका फ्रांस तथा भारत के संविधान कठोर संविधान के ही उदाहरण है।

कठोर संविधान के गुण

(1) स्थायी और निश्चित 

कठोर संविधान स्थाई और निश्चित होता है, जिसमें सफलतापूर्वक संशोधन नहीं किया जा सकता है और यदि इसमें संशोधन की आवश्यकता हो, तो संशोधन के लिए एक विशेष प्रक्रिया अपनाई जाती है। अतः साधारण जनता इस संस्था पूर्वक समझकर अपने अधिकारों का ज्ञान प्राप्त कर सकती है।

(2) अनावश्यक हस्तक्षेप से मुक्ति 

कठोर संविधान में संशोधन के लिए एक विशेष प्रक्रिया होनी निश्चित है, अतः यह हो राजनीतिक दलों के अनावश्यक हस्तक्षेप से मुक्त रहता है। इस प्रकार कठोर संविधान के फलस्वरुप देश के राजनीतिक जीवन में स्थिरता रहती है।

(3) अधिकारों एवं अल्पसंख्यक वर्ग का रक्षक 

कठोर संविधान नागरिकों के मौलिक अधिकारों की सुरक्षा करता है। आसानी से संशोधन न हो पाने के कारण इस संविधान में अल्पसंख्यकों एवं अन्य अपेक्षित वर्गों के हित सुनिश्चित रहते हैं। यह संविधान न्याय, समानता और स्वतंत्रता के मौलिक अधिकारों का समर्थन करना चाहिए, साथ ही समृद्धि में समान भागीदारी की भावना बनाए रखना चाहिए।

(4) संविधान के सम्मान में वृद्धि 

 कठोर संविधान के प्रति नागरिकों में पवित्रता तथा सम्मान का भाव पाया जाता है। यह संविधान समृद्धि, न्याय, और स्वतंत्रता के मौलिक मूल्यों को पुनरारंभित करने के लिए डिज़ाइन किया गया है और उसे समृद्धि की दिशा में बढ़ाने का प्रयास करता है। एक कठोर संविधान का मुख्य गुण होता है समृद्धि के प्रति प्रतिबद्धता। यह संविधान ऐसे निर्माण किया जाता है कि वह राष्ट्र को सामरिक, आर्थिक और सामाजिक विकास की दिशा में प्रेरित करे।

(5) संघात्मक राज्यों के लिए मेरुदंड 

 संघात्मक राज्यों में दोहरी सरकार होती है; अतः उनके लिए कठोर संविधान एक अनिवार्य आवश्यक है। 

(6) अनुशासन

कठोर संविधानों के अंतर्गत व्यक्तियों और समूहों को निर्दिष्ट नियमों और कानूनों का पालन करने के लिए अनुशासन करना पड़ता है, जिससे समूह में आत्म-नियंत्रण बना रहता है।

कठोर संविधान के दोष 

(1) क्रांति का भय 

कठोर संविधान में क्रांति की संभावनाएं बनी रहती है; क्योंकि इसे जनता की इच्छाओं के अनुसार परिवर्तित नहीं किया जा सकता है। लॉर्ड मैकाले ने लिखा है, “क्रांति का एक महान कारण यह है कि राष्ट्र बहुत आगे बढ़ते जाते हैं परंतु संविधान स्थिर रहते हैं।”

(2) प्रगति में बाधक 

 कठोर संविधान का मुख्य प्रमुख दोषियों है कि यह प्रगति के मार्ग में बाधक सिद्ध होता है, क्योंकि इसमें प्रगतिशील परिस्थितियों के अनुकूल सफलता पूरा परिवर्तन नहीं किया जा सकता है। इस प्रकार कठोर संविधान व्यक्तित्व के भाविक विकास में बाधा सिद्ध होता है।

(3) संकट काल में उपयोगी नहीं 

कठोर संविधान संकट काल में अधिक उपयुक्त सिद्ध नहीं हो पता है। कठोर संविधान के दोषों में से एक है कि वे संकट काल में उपयोगी नहीं हो सकते हैं। जब किसी समाज या राष्ट्र में आपत्तिकाल या संकट आता है, तो सामाजिक या राजनीतिक स्थितियों में बदलाव करना आवश्यक हो सकता है, लेकिन एक कठोर संविधान किसी नए या सुधारित प्रणाली को अपनाने में बाधा डाल सकता है।

(4) जटिलता 

 कठोर संविधान की भाषा दुरुह और जटिल होती है, जिसके कारण साधारण जनता संविधान के नियमों को समझने में असमर्थ रहती है और इस प्रकार का संविधान वकीलों के हाथ का खिलौना बअसमर्थ हैं।

(5) राजनीतिक जीवन के विकास में बाधक 

कुछ विचारकों का मानना है कि कठोर संविधान व्यक्ति के राजनीतिक जीवन के विकास में भी बाधक सिद्ध होता है।  

कठोर संविधान के दोषों में एक बड़ा पहलु यह होता है कि यह राजनीतिक जीवन के विकास में बाधक बन सकता है। यह विकास निगरानी, समर्थन और बदलाव को स्थिर रूप से कमजोर कर देता है। और राजनीतिक स्वतंत्रता की कमी, कठोर संविधानों में राजनीतिक स्वतंत्रता की कमी हो सकती है, क्योंकि इसमें सुरक्षा और अनुशासन के लिए ज्यादा बढ़ावा होता है। इससे लोगों को खुले विचार और राजनीतिक सक्रियता के लिए कम स्थान मिलता है।

(6) सूधारशीलता की कमी

बदलते समय और परिस्थितियों के हिसाब से समय-समय पर नए और सुधारित विचारों का समर्थन करने में कठोर संविधान चुनौती प्रदान कर सकता है।

निष्कर्ष 

उपयुक्त सभी विवेचनाओं से यह स्पष्ट है कि विभिन्न देशों में वहां की सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक तथा राजनीतिक परिस्थितियों के अनुरूप संविधान के लचील अथवा कठोर स्वरूप को अपनाया गया है। दोनों ही संविधानों के अपने-अपने गुण तथा दोष है। परंतु विश्व के अधिकांश देशों ने कठोर संविधान के गुणों को देखते हुए इसे अपनाया है। भारत के संविधान में कठोर तथा लचीले का मिश्रण पाया जाता है।

Post a Comment

और नया पुराने
Join WhatsApp