जनसंख्या वृद्धि के प्रमुख सिद्धांत | jansankhya vriddhi ke Siddhant

जनसंख्या वृद्धि से संबंधित जिन महत्वपूर्ण बिंदुओं को कवर करेंगे वह कुछ इस प्रकार है —

1- जनसंख्या वृद्धि के प्रमुख सिद्धांत

2- जनसंख्या के आकार में वृद्धि के सिद्धांत

3- माल्थस की जनसंख्या वृद्धि का सिद्धांत 

4- सैडलर का जनसंख्या वृद्धि सिद्धांत

5- अनुकूलतम अथवा आदर्श जनसंख्या का सिद्धांत

जनसंख्या वृद्धि के प्रमुख सिद्धांत | jansankhya vriddhi ke Siddhant

जनसंख्या वृद्धि के सिद्धांत

जनसंख्या समाज का सर्वाधिक महत्वपूर्ण एवं अनिवार्य तत्व है। जनसंख्या क्या भाव में समाज की कल्पना ही नहीं की जा सकती। परंतु किसी राष्ट्र की जनसंख्या कितनी होनी चाहिए, यह एक सापेक्ष प्रश्न है। कुछ राष्ट्रो की जनसंख्या सामान्य से कम है तथा कुछ राष्ट्र अति जनसंख्या की समस्या का सामना कर रहे हैं। वास्तव में इस जनसंख्या को संतुलित जनसंख्या कहा जाता है जी जनसंख्या की सभी अनिवार्य आवश्यकताएं समान रूप से पूरी हो रही है; अर्थात उसे रोटी, कपड़ा और मकान की समस्या का सामना नहीं करना पड़ता। 

जनसंख्या के आकार में वृद्धि के सिद्धांत

जनसंख्या में अत्यधिक वृद्धि अथवा जनसंख्या के आकार में वृद्धि मुख्य रूप से दो सिद्धांतों पर आधारित होती है— (अ) जन्म दर तथा मृत्यु दर तथा (ब) आप्रवास तथा उत्प्रवास। इन दोनों सिद्धांतों का संक्षिप्त परिचय निम्न प्रकार है।

(अ) जन्म दर तथा मृत्यु दर 

जनसंख्या के आकार के विषय में अनुमान लगाने वाला मुख्य सिद्धांत जन्म दर तथा मृत्यु दर है। यदि किसी समाज में मृत्यु दर की अपेक्षा जन्म दर अधिक होती है तो निश्चित रूप से उसे समाज में जनसंख्या की वृद्धि होती है। इसके विपरीत, यदि जन्म दर की अपेक्षा मृत्यु दर अधिक होती है तो निश्चित रूप से जनसंख्या घटने लगती है। अब प्रश्न उठता है कि— जन्म दर में वृद्धि किन कर्म से होती है? इसके मुख्य कारण है— प्रजनन क्षमता में वृद्धि, शारीरिक रोगों से मुक्ति, विवाह की काम आयु, प्रकृति से अनुकूलन करने की क्षमता में वृद्धि आदि। इसके विपरीत, मृत्यु दर विभिन्न कर्म से बढ़ जाती है। महामारी, युद्ध, पौष्टिक भोजन का अभाव तथा प्रतिकूल जलवायु आदि कर्म से मृत्यु दर बढ़ जाती है। भिन्न-भिन्न कर्म के सक्रिय होने से भिन्न-भिन्न वर्ग के व्यक्तियों की मृत्यु दर में वृद्धि होती है। सामान्य रूप से युद्ध के कारण युवकों एवं स्वस्थ पुरुषों की मृत्यु अधिक होती है। इस प्रकार मृत्यु डर के बढ़ने से जहां एक ओर जनसंख्या घटती है, वही साथ ही साथ समाज में विभिन्न आयु वाले व्यक्तियों का अनुपात भी बदल जाता है। वास्तव में आदर्श जनसंख्या उसे कहा जाता है, जब जन्म दर एवं मृत्यु दर लगभग समान होती।

(ब) आप्रवास तथा उत्प्रवास 

जनसंख्या में परिवर्तन एक अन्य सिद्धांत आप्रवास तथा उत्प्रवास के आधार पर भी होता है। आप्रवास का अर्थ है—अन्य देशों या समझो से व्यक्तियों का आकर हमारे समाज या देश में बस जाना। इससे निश्चित रूप से हमारे देश की जनसंख्या में वृद्धि होती है। इससे भिन्न, उत्प्रवास के अंतर्गत हमारे देश समाज के व्यक्ति अन्य देश या समाज में जाकर बस जाते हैं। इसके परिणाम स्वरुप हमारे देश की जनसंख्या निश्चित रूप से घटती है। वैसे तो प्रत्येक समाज में सदैव ही आप्रवास तथा उत्प्रवास की क्रियाएं चलती रहती हैं, परंतु जब इनके अनुपात में अंतर आ जाता है तब जनसंख्या में संबंधित परिवर्तन स्पष्ट रूप से दिखाई देने लगते हैं। 

जनसंख्या वृद्धि के प्रमुख सिद्धांत

जनसंख्या वृद्धि के मुख्य रूप से निम्नलिखित तीन सिद्धांत प्रतिपादित किए गए हैं, जो कुछ इस प्रकार है—

(1) माल्थस का जनसंख्या का सिद्धांत

माल्थस का जनसंख्या सिद्धांत बताइए ; माल्थस ने 1798 भी में अपनी पुस्तक ‘ऐस्से ऑन दि प्रिंसिपल ऑफ़ पापुलेशन’ में जनसंख्या वृद्धि की एक सिद्धांत का प्रतिपादन किया जो की अत्यंत वाद विवाद का विषय रहा है। माल्थस एक सुप्रसिद्ध विचारक एवं महान गणितज्ञ था। वह यूरोप में पादरी भी था तथा अपने पिता की आशावादी विचारों की विपरीत एक निराशावादी सोच वाला चिंतक था। सिद्धांत को कण्डोर्सेण्ट तथा गोडविन के विचारों के प्रति एक प्रतिक्रिया माना जाता है। इन दोनों विद्वानों ने मानव के उज्जवल भविष्य की कल्पना करते हुए इस बात पर बोल दिया था कि यद्यपि मानव अमर तत्व को तो प्राप्त नहीं कर पाएगा तथापि उसकी जीवन अवधि बढ़ जाएगी। इसकी विपरीत, मलताज का कहना है कि अत्यंत जनसंख्या निर्धनता एवं मुसीबत की मां है और यह अनेक बुराइयों का ही दूसरा नाम है।

(2) सैडलर का जनसंख्या का सिद्धांत 

सैडलर में जनसंख्या के घनत्व तथा सुख एवं समृद्धि के आधार पर माल्थस से भिन्न अपना सिद्धांत प्रतिपादित किया है। सिद्धांत के अनुसार जनसंख्या के घनत्व में वृद्धि के परिणाम स्वरुप मानवीय सुख सुविधाओं में वृद्धि हो जाती है। इस प्रजनन दर कम हो जाती है। एकांत की सुविधाओं के अभाव में प्रजनन दर कम होती है। कम जनसंख्या घनत्व एवं सुख सुविधाओं के अभाव वाले समाजों में प्रजनन दर अधिक होती है। इसके आधार पर सैंडलर ने यह प्रतिपादित करने का प्रयास किया है कि जैसे-जैसे हम शिकारी अवस्था से आज की औद्योगिक अवस्था के विकास की ओर बढ़ते हैं, तो पाते हैं कि मानव संपन्नता तो बढ़ गई है परंतु प्रजनन क्षमता कम हो गई है। सैंडलर का सिद्धांत भारत एवं चीन सहित अनेक देशों पर लागू नहीं होता जिसमें जनसंख्या का घनत्व भी अधिक है तथा प्रजनन दर भी काफी ऊंची है।

(3) अनुकूलतम अथवा आदर्श जनसंख्या का सिद्धांत

माताजी के सिद्धांत की विपरीत कुछ विद्वानों ने अनुकूलतम जनसंख्या का सिद्धांत प्रतिपादित किया है। इस सिद्धांत के अनुसार आदर्श जनसंख्या इतनी होनी चाहिए जैसे सभी को रोजगार प्राप्त हो तथा प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि हो। इस सिद्धांत के प्रतिपादकों में कैनन साउंडर्स, सिजविक, डाल्टन, रॉबिंस, वेस्ट इत्यादि प्रमुख। डाल्टन के अनुसार, “आदर्श जनसंख्या वह है जो प्रति व्यक्ति अधिकतम आयु प्रदान करती है।” इसी प्रकार रॉबिंस ने कहा है, ‌“आदर्श जनसंख्या उसे कहते हैं जिसे अधिकतम उत्पादन संभव होता है।” आज इस आदर्श जनसंख्या के सिद्धांत को ही अधिक मान्यता प्राप्त है। भिन्न- भिन्न देशों के लिए आदर्श जनसंख्या भिन्न-भिन्न हो सकती है। साथ ही, यह कभी स्थिर नहीं रहती, अपितु निरंतर परिवर्तित होती रहती है।

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