जनहित याचिकाएं
(public interest litigation)
संवैधानिक प्रावधान— संविधान के द्वारा भारत में नागरिकों को यह अधिकार प्रदान किया गया है कि यदि नागरिकों को राज्य के कानून द्वारा कोई हानि पहुंचती है तो वे सर्वोच्च न्यायालय तथा उच्च न्यायालय में अनेक प्रकार की याचिकाएं प्रस्तुत कर सकते हैं। जनहित याचिका का तात्पर्य है कि लोक संधि (हित) के किसी भी विषय में कोई भी व्यक्ति या समूह जिसने व्यक्तिगत अथवा सामूहिक रूप से सरकार के हाथों किसी भी प्रकार से हानि उठानी हो, अनुच्छेद 21 तथा 32 के अंतर्गत सर्वोच्च न्यायालय तथा अनुच्छेद 226 के अनुसार उच्च न्यायालय की शरण ले सकता है।
जनहित याचिकाओं का औचित्य
जनहित याचिका तथा न्यायिक सक्रियता एक दूसरे के साथ गहन रूप से जुड़ी हुई है। सर्वोच्च न्यायालय ने यह स्पष्ट कर दिया है कि गरीब, अपंग अथवा सामाजिक एवं आर्थिक दृष्टि से दलित लोगों के मामले में आम जनता का कोई व्यक्ति न्यायालय के समश्र ‘वाद’ प्रस्तुत कर सकता है। न्यायाधीश कृष्णा अय्यर के अनुसार ‘वाद कारण’ तथा पीड़ित व्यक्ति की संकुचित धरना का स्थान अब वर्ग कार्यवाही तथा लोकहित में ‘कार्यवाही’ ने ले लिया है। जनहित याचिका की विशेष बात यह है कि न्यायालय अपने समस्त तकनीकी तथा कार्य विधि संबंधी नियमों की परवाह किए बिना एक सामान्य पत्र के आधार पर ही कार्यवाही करता है।
जनहित याचिकाओं से संबंधित कुछ व्यावहारिक प्रयोग
जनहित याचिकाओं (अभियोग) का प्रारंभ संयुक्त राज्य अमेरिका के सर्वोच्च न्यायालय ने किया था। भारत में इसका प्रारंभ भागलपुर जेल में विचाराधीन बंदी रखे गए कैदियों से हुआ था। राजगढ़ केंद्र सरकार के द्वारा विगत कुछ वर्षों में अनेक ऐसे कार्य किए गए जिसे जनता के सामान्य हितों को काफी हानि का सामना करना पड़ा। इस स्थिति से निपटने के लिए समाज में बुद्धिजीवियों, वकीलों तथा अनेक प्रगतिशील शैक्षिक संस्थानों के द्वारा सर्वोच्च न्यायालय में जनहित याचिकाएं प्रस्तुत की गई जिनके आधार पर न्यायालय ने नागरिकों को अनेक गंभीर विषयों में सहायता पहुंचाने का कार्य किया।
जनहित याचिकाओं का महत्व (लाभ)
जनहित याचिकाओं के लाभों को देखते हुए जनता में इसके प्रति काफी रुचि बड़ी है। अब न्यायालय में जनहित याचिकाओं की बाढ़ सी आ गई है। जनहित याचिकाओं के कुछ लाभ इस प्रकार हैं—
(1) सामान्य जनता की आसान पहुंच
जल्दी ताजी गांव के द्वारा एक आम नागरिक व्यक्तिगत अथवा सामूहिक रूप से न्याय के लिए न्यायालय के दरवाजे खटखटा सकता है। जनहित याचिकाओं के लिए किन्हीं विशेष कानूनी प्रावधानों में नहीं उलझना पड़ता है। व्यक्ति सीधे उच्च न्यायालय अथवा सर्वोच्च न्यायालय में अपना वाद अथवा बात प्रस्तुत कर सकता है।
(2) शीघ्र निर्णय
जनहित याचिकाओं पर न्यायालय तुरंत न्यायिक प्रक्रिया को प्रारंभ कर देता है तथा उन पर शीघ्र ही सुनवाई होती है। सर्वोच्च न्यायालय ने अनुच्छेद 21 तथा 32 की राज्य द्वारा अवज्ञा के मामलों को बहुत ही गंभीरता से लिया है। जनहित याचिकाओं पर तुरंत सुनवाई के कारण अति शीघ्र निर्णय लिया जाता है।
(3) कम व्यय
जनहित याचिकाओं में याचिका प्रस्तुत करने वाले व्यक्ति का खर्चा बहुत कम होता है क्योंकि इसमें सामान्य न्यायिक प्रक्रिया से गुजरा नहीं पड़ता है। यदि न्यायालय याचिका को मिलने के लिए स्वीकार कर लेता है तो उसे पर तुरंत कार्यवाही के कारण शीघ्र निर्णय हो जाता है।
(4) प्रभावी रहता
अधिकांश जनहित याचिकाओं में यह देखने को मिलता है कि इनमें पीड़ित पक्ष को पर्याप्त राहत मिल जाती है तथा प्रतिवादी को दंड देने का भी प्रावधान है।
जनहित याचिकाओं की आलोचनाएं
और जाने क्या चीज का की अवधारणा की निम्नलिखित बिंदुओं के आधार पर आलोचना की गई है—
(1) सामान्य पत्र के आधार पर यदि मूल अधिकारों की उलझन से संबंधित अभियोग दायर किए गए तो विचाराधीन मुकदमोनों की संख्या बहुत अधिक बढ़ जाएगी तथा इसे महत्वपूर्ण मामलों की सुनवाई में अनावश्यक विलंब होगा।
(2) जनहित अभियोगो के संबंध में न्यायालय द्वारा दिए गए निर्णय वस्तुतः लागू होंगे, व्यवहार में इस बात की कोई गारंटी नहीं है।
(3) इसी से सरकार के तीनों अंकों में अनावश्यक विवाद तथा तनाव की स्थिति उत्पन्न हो जाएगी।
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