राष्ट्रपति के संकटकालीन अधिकारों का वर्णन

 राष्ट्रपति के संकटकालीन अधिकार

राष्ट्रपति के संकटकालीन अधिकार का मतलब होता है कि एक देश में राष्ट्रपति को विशेष परिस्थितियों या संकटों के समय में कुछ विशेष और समर्थनात्मक अधिकार होते हैं। ये अधिकार उन्हें संविधान या अन्य कानूनी उपायों के तहत प्रदान किए जा सकते हैं ताकि वे समय के दौरान ठीक तरीके से और प्रभावी रूप से कार्रवाई कर सकें।

राष्ट्रपति की संकटकालीन अधिकारों का वर्णन निम्नलिखित है—

(1) युद्ध या बाह्य आक्रमण अथवा सशस्त्र विद्रोह के कारण उत्पन्न संकटकालीन अवस्था तथा संकटकाल की घोषणा अनुच्छेद (352) 

यदि राष्ट्र पर कोई बाह्य आक्रमण अथवा देश के अंदर सशस्त्र विद्रोह हो जाए, तू राष्ट्रपति संकटकाल की घोषणा करके संपूर्ण देश या संकटग्रस्त क्षेत्र का शासन भारत अपने हाथ में ले सकता है। संकटकालीन घोषणा के लिए राष्ट्रपति स्वतंत्र नहीं है। राष्ट्रपति संकटकाल की घोषणा उसे समय करेगा जबकि मंत्री परिषद लिखित रूप में राष्ट्रपति को ऐसा परामर्श दे। इस प्रकार की घोषणा भारत में तीन बार हो चुकी है— (1) भारत चीन युद्ध (1962), (2) भारत-पाक युद्ध (1971), (3) अंतरिक्ष अशांति के कारण (1975)।

संकटकालीन घोषणा राष्ट्रपति तभी कर सकता है जबकि मंत्री परिषद द्वारा पारित लिखित प्रस्ताव राष्ट्रपति के पास भेजा जाता है। संकटकालीन घोषणा की स्वीकृति 1 महीने के अंदर ही संसद से स्वीकृत होनी आवश्यक होती है। संकटकालीन घोषणा की प्रस्ताव का संसद के द्वारा 2/3बहुमत से पारित होना आवश्यक है। यदि एक माह के अंदर संसद द्वारा घोषणा स्वीकृत हो जाती है तो यह घोषणा जारी रहेगी।

घोषणा की संवैधानिक प्रभाव 

घोषणा की संवैधानिक प्रभाव इस प्रकार है— इस संकटकालीन स्थिति में हमारे संविधान एकात्मक शासन का रूप धारण कर लेता है। राजू को अपनी शिकार शक्ति का उपयोग केंद्र सरकार के निर्देश के अनुसार करना पड़ता है। नागरिकों को मूल अधिकारों से कुछ समय के लिए वंचित किया जा सकता है, परंतु 44 से संवैधानिक संशोधन के आधार पर यह व्यवस्था की गई है कि आपातकाल में भी जीवन और शारीरिक स्वाधीनता (अनुच्छेद 21) के अधिकार को समाप्त या सीमित नहीं किया जा सकेगा।

(2) राज्यों में संवैधानिक तंत्र के असफल हो जाने से उत्पन्न स्थिति में संकट काल की घोषणा (अनुच्छेद 356) 

भारत एक संघात्मक राज्य है; किंतु संघ के सभी राज्यों के लिए एक जैसी शासन व्यवस्था एवं इकहरा संविधान है। आता हो यदि किसी राज्य में संविधान के अनुसार शासन का संचालन कर पाना संभव हो जाए तो राष्ट्रपति राज्यपाल की रिपोर्ट के आधार पर आपातकाल की घोषणा करके शासन व्यवस्था अपने हाथ में ले लेता है तथा राज्यपाल केंद्र के अभिकर्ता के रूप में कार्य करता है।

  राष्ट्रपति की यह घोषणा 2 महीने तक लागू रह सकती है। यदि संकट काल की घोषणा ऐसे समय में की गई है जबकि लोकसभा भंग हो गई हो, तू राज्यपाल की स्वीकृति मिलने पर घोषणा लोकसभा की नवीन अधिवेशन से 30 दिन तक लागू रहेगी। यदि दोनों सदन (उच्च एवं निम्न) इसके लिए अपनी सहमति दे दें तो यह घोषणा 6 महीने तक जारी रहेगी; किंतु 42वें संवैधानिक संशोधन 1976 के आधार पर इस अवधि को 6 महीने से बढ़कर 1 वर्ष कर दिया गया है और यह अवधि एक-एक वर्ष करके तीन वर्ष तक बढ़ाई जा सकती है।

इस घोषणा का प्रभाव केवल संबंधित राज्यों पर ही पड़ता है। जिस राज्य में संकटकाल की घोषणा की गई है, उसे राज्य विशेष का मंत्रिमंडल भंग हो जाता है और राज्य की कार्यपालिका शक्ति राष्ट्रपति के हाथ में आ जाती है। राज्यपाल अपनी प्रशासनिक शक्तियों का प्रयोग केंद्र सरकार के आदेशों तथा निर्देशों के अनुरूप ही करता है। सांसद संबंधित राज्य के लिए स्वयं भी कानून बना सकती है। इस प्रकार संकट काल की घोषणा से प्रभावित राज्य की शासन व्यवस्था पूर्ण रूप से केंद्र सरकार के अधीन हो जाती है। जब लोकसभा का सत्र न चल रहा हो, उसे स्थिति में राष्ट्रपति राज्य की संचित निधि से व्यय के लिए आदेश भी दे सकता है।

(3) वित्तीय संकट काल की घोषणा (अनुच्छेद 360) 

 यदि राष्ट्रपति को विश्वस्त सूत्रों से ज्ञात हो जाए की संपूर्ण देश या देश के किसी भाग विशेष की आर्थिक स्थिति या सह खतरे में है तो संविधान के अनुच्छेद 360 के अनुसार वह आर्थिक संकट की घोषणा कर सकता है।

निष्कर्ष 

आर्थिक संकटकालीन स्थिति में राष्ट्रपति को अनेक महत्वपूर्ण अधिकार प्राप्त हो जाते हैं। वह केंद्रीय एवं राज्य कर्मचारियों के वेतन में कमी कर सकता है, राज्य सरकारों को उनकी आर्थिक नीति को अपने निर्देश के अनुसार निर्धारित करने को बाध्य कर सकता है। इस प्रकार आर्थिक संकट की स्थिति में राज्यों की आर्थिक नीति पर केंद्रीय का पूर्ण नियंत्रण स्थापित हो जाता है।


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