दुग्ध क्रांति तथा दुग्ध उद्योग (ऑपरेशन फ्लड) से संबंधित कुछ महत्वपूर्ण बिंदुओं पर चर्चा करेंगे जैसे —
1- दुग्ध क्रांति तथा दुग्ध उद्योग
2- भारत में श्वेत क्रांति की भूमिका
3- ऑपरेशन फ्लड के बारे में जानकारी
4- टेक्नोलॉजी मिशन ऑन डेरी डेवलपमेंट
5- श्वेत क्रांति अथवा ऑपरेशन फ्लड के प्रभाव
दुग्ध क्रांति तथा दुग्ध उद्योग
वर्तमान में विश्व में भारत का दुग्ध उत्पादन में प्रथम स्थान है। भारतीय जीवन शैली में दूध से बनी वस्तुओं का विशेष स्थान है। यह देश दुधारू पशुओं की दृष्टि से प्राचीन काल से ही समृद्ध रहा है। कृषि की प्रधानता के साथ-साथ भारत में आज दुग्ध क्रांति का दौर है।
भारत में दुग्ध क्रांति (milk revolution in india)
भारत में श्वेत क्रांति की भूमिका 1964-65 में तब बनी जब देश में सघन पशु विकास कार्यक्रम की शुरुआत की गई। इस कार्यक्रम का उद्देश्य दूध देने वाले तथा किसानों के लिए लाभकारी अन्य पशुओं की नसों में सुधार तथा उनकी वंस वृद्धि करना था। दूध उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए 1965 में राष्ट्रीय डेयरी निगम की स्थापना की गई। पशु नचले सुधार के लिए 1970 में कृत्रिम गर्भाधान कार्यक्रम की शुरुआत की गई। 1970 में ही राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड तथा भारतीय डेयरी निगम की स्थापना की गई। इन दोनों संस्थाओं की जिम्मेदारी डॉक्टर वर्गीज कुरियन को सौंप गई। वर्गीज कुरियन के ही नेतृत्व में देश में दुग्ध उत्पादन में क्रांति लाने के लिए ऑपरेशन फ्लड की शुरुआत की गई। तीन चरणों में चलाई गई ऑपरेशन फ्लड का एकमात्र उद्देश्य दुग्ध उत्पादन बढ़ता ही नहीं था अभी तो इस कार्यक्रम का उद्देश्य दुग्ध उत्पादन के क्षेत्र में सहकारिता की स्थापना, दूध विपणन की उचित व्यवस्था करना तथा इसके माध्यम से ग्रामीणों की आय में वृद्धि करना था।
ऑपरेशन फ्लड- (1970-1981)
ऑपरेशन फ्लड के प्रथम चरण में विश्व खाद्य कार्यक्रम के अंतर्गत यूरोपीय देशों द्वारा भारत को उपहार स्वरूप प्राप्त वसा रहित स्कीम मिल्क पाउडर तथा मक्खन की बिक्री द्वारा पूंजी जुटाना पर विशेष ध्यान दिया गया। सरकारी डेयरी विकास केंद्र के संस्थापक अध्यक्ष डॉक्टर वर्गीज कुरियन ने यूरोपीय आर्थिक समुदाय द्वारा प्राप्त इस सहायता को ऑपरेशन फ्लड के लिए लाभकारी स्वरूप देने की रूपरेखा तैयार की गई है। भारतीय डेयरी निगम की स्थापना स्कीमेमेड मिल्क पाउडर के उचित भंडारण हेतु की गई। डॉक्टर कूरियन के ही प्रयास से पाउडर को तरल दुग्ध में परिवर्तित कर संगठित डेयरी के माध्यम से बचने का अभियान चलाया गया।
ऑपरेशन फ्लड-2 (1991-1985)
ऑपरेशन फ्लड-2 की अवधि में ग्रामीण दुग्ध शालाओं को उपभोक्ता केदो से जोड़ने के लिए एक राष्ट्रीय दुग्ध डिग्री की स्थापना की गई है। इसके अंतर्गत 136 दुग्ध उत्पादक क्षेत्र को 290 शहरी क्षेत्र से जोड़ने का लक्ष्य निर्धारित किया गया। इस अभियान के अंतर्गत देश में 45000 ग्राम सहकारिताओं का एक आत्मनिर्भर तंत्र स्थापित किया गया। इसमें 42.5 लाख को दुग्ध उत्पादक किसान सम्मिलित थे।
ऑपरेशन फ्लड-3 (1985-1996)
ऑपरेशन फ्लड की तृतीय चरण में दुग्ध उत्पादन को बढ़ाने की प्रयास के साथ-साथ दुग्ध विपणन, इसकी रखरखाव इत्यादि पर अतिरिक्त ध्यान दिया गया। प्रयाग जो था कि सहकारिता के आधार पर काम कर रही ढेरियां अपने आधारभूत ढांचे को इतना सुदृढ़ कर ले कि भविष्य में किसी प्रकार की कठिनाई का सामना नहीं करना पड़े। सऊदी में दुग्ध उत्पादन में भारी वृद्धि भी दर्ज की गई।
टेक्नोलॉजी मिशन ऑन डेरी डेवलपमेंट
डेरी विकास की गति को और तीव्र करने तथा इसके लिए आवश्यक तकनीकी सहयोग उपलब्ध कराने के प्रयास के लिए अगस्त 1988 में TMDD कार्यक्रम की शुरुआत की गई। इस मिशन के अंतर्गत डेरी विकास संबंधी अनुसंधान, तकनीक के विकास तथा प्रोद्योगिकीयों के आयात पर विशेष ध्यान दिया गया है। देश के अनेक वैज्ञानिक अनुसंधान केंद्रो, कृषि विश्वविद्यालय, राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड इत्यादि के माध्यम से इस दिशा में लगातार शोध और अनुसंधान चल रहा है। इस मिशन के अंतर्गत दुग्ध उत्पादन में वृद्धि के लिए कृत्रिम गर्भाधान, पशु स्वास्थ्य रक्षा, चिकित्सा सेवा, पौष्टिक चार, संतुलित आहार आदि के लिए प्रौद्योगिकीय विकास का कार्य किया जा रहा है।
एकीकृत डेरी विकास परियोजना
यहां परियोजना उन परवर्ती एवं पिछले क्षेत्र हेतु 1993-94 में शुरू की गई है, जहां ऑपरेशन फ्लड का लाभ नहीं पहुंच सका है। दूसरे शब्दों में, यह योजना उन क्षेत्रों के लिए है, जो अभी तक ऑपरेशन फ्लैट के अंतर्गत आच्छादित नहीं थे। इसे गैर ऑपरेशन फ्लड योजना भी कहा जाता है। वर्तमान में यह योजना देश के 22 राज्यों एवं केंद्र शासित प्रदेशों में चल रही है। इसके अंतर्गत केंद्र सरकार द्वारा 100% अनुदान दिया जाता है। इस परियोजना का उद्देश्य तकनीकी सेवा प्रदान करके दुग्ध उत्पादन में वृद्धि करना, दुग्ध उत्पादकों को लाभकारी मूल्य दिलाना, अतिरिक्त रोजगार के अवसर छूना तथा पिछड़े क्षेत्र के लोगों का सामाजिक, आर्थिक सुधार करना है। मार्च 2005 में इस योजना में संशोधन कर इसे गहन डेरी विकास कार्यक्रम (IDDP) नाम दिया गया है। यह योजना उन जिलों में क्रियान्वित की जा रही है जिन्हें ऑप्शन फ्लैट के अंतर्गत डेरी विकास हेतु 50 लख रुपए से काम की धनराशि मिली थी।
श्वेत क्रांति अथवा ऑपरेशन फ्लड के प्रभाव
1970 से 1996 की अवधि में देश में ऑपरेशन फ्लैट के अंतर्गत विभिन्न प्रकार के कार्यक्रम चलाई गए। दुग्ध उत्पादन से लेकर दुग्ध विपणन तक में इस क्रांति ने अपनी भूमिका निभाई है। श्वेत क्रांति के माध्यम से ही आज देश दुग्ध उत्पादन में शिखर पर पहुंचा है। 1998 में भारत 72.1 मिलियन तन दुग्ध उत्पादन के आंकड़े को छूने के साथ ही विश्व में प्रथम स्थान पर आ गया था। आज 10 वर्ष बाद भारत में दुग्ध उत्पादन 100.2 मिलियन टन हो गया है। दुग्ध उत्पादन में अमेरिका और चीन क्रमशः दूसरे और तीसरे स्थान पर है। संतुलित आहार के अंतर्गत एक व्यक्ति को प्रतिदिन 226 ग्राम दूध की आवश्यकता होती है। भारत में प्रति व्यक्ति दुग्ध उत्पादन 246 ग्राम प्रतिदिन है। वर्ष 2001-02 में भारत में 225 ग्राम प्रति व्यक्ति प्रतिदिन दूध उपलब्धता का स्तर पहली बार स्पर्श किया था। दुग्ध उपलब्धता का विश्व औसत 265 ग्राम प्रतिदिन है। भारत जल्द ही इस स्तर को प्राप्त कर लेगा।
★देश में उत्पादित कल दूध का 80% असंगठित क्षेत्र तथा 20% सहकारी और निजी डेरियों से आता है। देश में 265 जिलों में फैली 1.2 लाख ग्राम स्तरीय सहकारी दुग्ध समिता प्रतिदिन 2.5 करोड़ लीटर दूध का संग्रह करती हैं। इन समितियां से 1.24 करोड़ किसान सीधे जुड़े हुए हैं। यह समितियां राष्ट्रीय दूध ग्रिड का अंग है। जो देश भर के दुग्ध उत्पादकों को 800 से अधिक शहर और कासो की उपभोक्ताओं से जोड़ती है। इसमें संदेह नहीं कि श्वेत क्रांति के कारण ही आज भारत दुग्ध उत्पादन में शिखर पर है। किंतु अभी इस क्षेत्र में बहुत कुछ किए जाने की गुंजाइश है।
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