भारत में संघवाद पर नियोजन के प्रभाव तथा सुधार के सुझाव

 भारत में संघवाद पर नियोजन के प्रभाव

भारत राज्यों का एक संघ है। भारत के सामाजिक तथा आर्थिक विकास के लिए नियोजन की विधि को अपनाया गया है। भारतीय संघवाद पर नियोजन के प्रभाव को कुछ निम्नलिखित रूपों से देखा जा सकता है जो कुछ इस प्रकार है—

(1) नियोजन की विषय वस्तु पर प्रभाव 

एक संघात्मक व्यवस्था में केंद्र और राज्यों के मध्य विषयों का बंटवारा होता है। किन-किन नियोजन का संबंध शासन के सभी विषयों से होने के कारण योजना आयोग शासन के सभी विषयों पर यहां तक की राज्य सूची के विषयों पर भी योजना बनाता है। इस प्रकार नियोजन अपने आप में केंद्रीय कारण की प्रवृत्ति लिए होता है तथा योजना आयोग के माध्यम से एकात्मकता की प्रवृत्ति का विषय होता है।

(2) योजना का निर्माण

योजना आयोग संपूर्ण देश के लिए आधारभूत विषय और प्राथमिकता निश्चित करता है। प्रत्येक राज्य की अपनी अलग-अलग समस्याएं होती हैं, अतः उनकी मूल समस्याओं का निराकरण संभव नहीं हो पता है।

(3) केंद्रीय संसद द्वारा योजना प्रारूप के अंतिम स्वीकृति

भारत की केंद्रीय संसद के द्वारा ही योजना प्रारूप को अंतिम स्वीकृति प्रदान की जाती है तथा राज्यों व कार्यपालिकाओं को उसके निर्णय को कार्यान्वित करना ही पड़ता है। चूंकि राज्यों के पास अपनी योजना बोर्ड नहीं है। अतः केंद्र द्वारा स्थापित और शासित योजना आयोग का राज्य सरकारों पर व्यापक प्रभाव होता है।

(4) धन संबंधी प्रभाव

राज्य सरकारों के द्वारा यह आक्षेप लगाया जाता है कि धन संबंधी अपनी विशिष्ट स्थिति के कारण नियोजन के क्षेत्र में केंद्रीय सरकार का प्रभाव बहुत अधिक रहा है। केंद्र के द्वारा योजना सहायता की राशि को पक्षपात पूर्ण ढंग से बाटा जाता है। केंद्र की योजना धनराशि सभी राज्यों की सम्मिलित योजना धनराशि से कहीं अधिक तेजी से बढ़ रही है। केंद्र के द्वारा राज्य को यह आदेश भी दिए जाते हैं कि वह अपने विकास कार्यों को किस प्रकार व्यवस्थित करें और केंद्र के पास अपने विकास कार्यक्रम है, किंतु वित्तीय साधन राज्यों की तुलना में बहुत अधिक तथा लचीले हैं। इसके अतिरिक्त उसे विदेशों से भी आर्थिक सहायता भी प्राप्त होती है। इसलिए केंद्र ऐसी स्थिति में है कि वह वित्तीय सहायता के माध्यम से राज्यों की नीतियों और योजनाओं पर अपनी इच्छा थोप सकता है। इससे संविधान में प्रस्तावित संघ व्यवस्था की आत्मा का हनन हुआ है तथा राज्यों से संबंधित वित्तीय साधनों और स्रोतों का भी समुचित विकास नहीं हो सका है।

(5) केंद्रीय मंत्रियों का योजना आयोग में वर्चस्व

क्योंकि योजना आयोग का अध्यक्ष प्रधानमंत्री होता है और केंद्रीय वित्त, आयोजन रक्षा मंत्रियों को भी इसका सदस्य बना दिया जाता है। इससे योजना आयोग में केंद्रीय मंत्रियों का वर्चस्व स्थापित हो जाता है। अतः योजना आयोग की रचना भारतीय संघवाद को केंद्र के अनुकूल प्रभावित करने की क्षमता रखती है।

(6) योजना के कार्यान्वयन

राज्यों के केंद्र की योजना संबंधित निर्देशों को क्रियान्वित करना पड़ता है। राज्यों को योजनाओं को लागू करने वाले अभिकरण मात्र समझा जाता है।

(7) जनता की सहभागिता की समस्याएं

भारतीय संविधान तथा राजनेताओं के द्वारा व्यवस्था में जन सामान्य के सहभागिता को आवश्यक माना गया है। जबकि आर्थिक नियोजन पंचवर्षीय योजनाओं को जनता के ऊपर थोपने की एक प्रक्रिया बन गई है। योजनाओं के क्रियान्वयन में जन सहभागिता को विकसित करना एक चुनौती पूर्ण कार्य है।

(8) आर्थिक नियोजन तथा केंद्रीयकरण एवं विकेंद्रीकरण की समस्याएं

भारतीय संविधान विकेंद्रीकरण पर बोल देता है और पंचायती राज की स्थापना के प्रयास किऐ जाते रहे हैं। किंतु योजना आयोग की भूमिका केंद्रीकरण पर बोल देती है। अतः आर्थिक नियोजन के फल स्वरुप भारत में राजनीतिक तथा आर्थिक केंद्रीकरण में वृद्धि हुई है।

नियोजन के संबंध में सुधार के सुझाव

(1) योजना आयोग का अध्यक्ष प्रधानमंत्री को ही नहीं बनाना चाहिए, किंतु आयोग की बैठकों में विचार विमर्श के लिए प्रस्तुत विषयों से प्रधानमंत्री को सूचित किया जाना चाहिए।

(2) योजना आयोग में अन्य कृषि मंत्री को भी सदस्य नहीं बनाया जाएगा।

(3) वित्त मंत्री को योजना आयोग का सदस्य नहीं बनाया जाएगा किंतु यदि वह चाहे उसके बैठक में उपस्थित हो सकता है, किंतु उसे योजना आयोग की बैठकों में विचाराधीन विषयों से सूचित रखा जाएगा।

(4) योजना आयोग के सदस्यों की नियुक्ति 5 वर्ष की निश्चित कार्यकाल के लिए की जाए। एक या दो सदस्यों का कार्यकाल एक या अधिक वर्षों के लिए बढ़ाया जा सकता है।

(5) योजना आयोग में सात से अधिक सदस्य नहीं होने चाहिए। इनका चयन अनुभव और विशेषज्ञता के आधार पर किया जाना चाहिए, एक पूर्णकालिक सदस्य को इस आयोग का अध्यक्ष बनाया जाए तथा इसके सदस्यों को राज्य मंत्री तथा अध्यक्ष को कैबिनेट मंत्री का दर्जा प्रदान किया जाना चाहिए।

(6) आयोग के सदस्यों की विशेषज्ञता एवं ज्ञान के आधार पर ही उनको कार्यों का आवंटन करना चाहिए।

(7) सभी राज्य में योजना बनाने तथा उसका मूल्यांकन करने के लिए पृथक योजना मंडल होनी चाहिए, जिसमें पांच सदस्य हो।

(8) योजना आयोग के सचिवालय में एक उच्च योजना प्राप्त व्यक्ति को आयोग का सचिव बनाना चाहिए। इसके कर्मचारी तकनीकी एवं प्रशासनिक ज्ञान रखने वाला हो।

(9) योजना आयोग की वरिष्ठ पदों पर नियुक्ति राष्ट्रीय स्तर पर एक विशेष समिति द्वारा की जाए, जिसमें योजना आयोग का अध्यक्ष, विश्वविद्यालय अनुदान आयोग का अध्यक्ष तथा योजना आयोग का उपाध्यक्ष सदस्य हो। शीघ्र स्तर पर सभी नियुक्तियां निश्चित समय के लिए अनुबंध के आधार पर की जानी चाहिए। इसमें सरकारी और गैर सरकारी उपक्रमों तथा सार्वजनिक जीवन अन्य क्षेत्रों से भी अधिकारी लिए जा सकते हैं। गैर सरकारी अधिकारियों को उच्च वेतन तथा भत्ते देने चाहिए। इनका स्टार अधिकारियों के अनुरूप नहीं होना चाहिए।

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