भारत में धर्मनिरपेक्षतावाद में सहायक कारण
भारत में धर्मनिरपेक्षतावाद के परिणाम स्वरुप धर्म का प्रभाव पहले की अपेक्षा काफी कम हो रहा है। इस प्रभाव के काम हो जाने के भारत में निम्नलिखित प्रमुख कारण है—
भारत में धर्मनिरपेक्षतावाद में सहायक कारण
(1) आधुनिक शिक्षा प्रणाली
भारत में अंग्रेजी शिक्षा का प्रचलन हो जाने से पश्चिमीकरण की प्रवृत्ति आरंभ हो गई। पश्चिमी शिक्षा के कारण ही सामानतावादी मूल्यों को प्रोत्साहन मिला है। पश्चिमीकरण के कारण भारत में धार्मिक सिद्धांतों का प्रभाव कम हो रहा है। भारतवासियों ने पश्चिमी सभ्यता का ज्ञान आधुनिक शिक्षा से ही प्राप्त किया है।
(2) नगरीकरण व औद्योगीकरण
अन्य देशों की भांति भारत में भी उद्योग धंधों का विकास हुआ है । इन उद्योग धंधों के विकास के कारण भारत में नगरों का विकास हुआ है। उद्योग धंधों तथा नगरों के विकास के कारण जाति के बंधन टूट गए हैं। इसी से धर्म का प्रभाव कम होता जा रहा है। नगरों तथा कारखाने में धर्म का कोई महत्व नहीं है क्योंकि इन स्थानों पर धार्मिक एवं जातीय दूरी रखना एक कठिन कार्य है।
(3) यातायात के साधनों का प्रभाव
यातायात के साधन अब अधिक बढ़ गए हैं। इन साधनों की वृद्धि के कारण एक संस्कृति के लोग दूसरी संस्कृति के लोगों से मिलने लगे हैं। संस्कृति के इस लेनदेन से धर्म का प्रभाव कम हो रहा है। इन साधनों का प्रयोग करते समय कोई जातिय दूरी रखना कठिन है।
(4) विभिन्न समाज सुधारक आंदोलन
भारतीय समाज में हिंदुओं का उत्थान करने वाले अनेक समाज सुधारक आंदोलन हुए हैं। इन समाज सुधारकों नहीं भारत में जाति पार्टी का खंडन किया है इससे धार्मिक सिद्धांतों का प्रभाव कम हुआ है।
(5) विभिन्न सामाजिक अधिनियम
सरकार ने विभिन्न सामाजिक अधिनियमों को पारित किया है। उनके परिणाम स्वरुप धर्म तथा जाति का प्रभाव कम हो गया है। अंतर्जातीय विवाह, विवाह विच्छेद, बाल विवाह निषेध आदि अधिनियमों को पारित करके जाती वह धर्म का प्रभाव कम हो रहा है
(6) पाश्चात्य संस्कृति का प्रभाव
भारत में अंग्रेजी शिक्षा के कारण पश्चिमी सभ्यता का प्रभाव बड़ा है। पश्चिमी सभ्यता के प्रभाव के कारण भारत में प्राचीन रीति-रिवाज प्रभावहीन हो गए हैं। स्त्रियों को पूर्ण स्वतंत्रता मिल गई है। खाने-पीने तथा रहन-सहन के तरीकों में भारी परिवर्तन हो गया है। व्यक्तिवाद को भौतिकवाद का प्रभाव बढ़ गया है। धर्म का स्थान धन ले लिया है। इन सभी परिवर्तनों से भारत में लौकिक आदर्शों को प्रोत्साहन मिला है।
(7) राष्ट्रीय आंदोलन
राष्ट्रीय आंदोलन में हिंदुओं, मुसलमान तथा सिखों आदि सभी धर्म के लोगों एवं विभिन्न जातियों के लोगों ने आंदोलन में भाग लिया था। इससे धार्मिक सिद्धांतों का पालन नहीं हो पाया। विश्व बंधुत्व की भावना को प्रोत्साहन मिला है। राष्ट्रीय आंदोलन के कारण धार्मिक अंधविश्वासों का अंत होने लगा है।
(8) विभिन्न राजनीतिक दल
भारत में राष्ट्रीय आंदोलन के कारण भारत को स्वतंत्रता मिली। स्वतंत्र भारत में प्रजातंत्र शासन प्रणाली का आरंभ हुआ है। इस शासन प्रणाली में राजनीतिक दलों का जन्म हुआ है। इन राजनीतिक दलों में लोगों को सदस्य बनने का अवसर मिला है। इस सदस्यता में धर्म का कोई स्थान नहीं है। धर्म, जाती वह लिंग के भेदभाव को मतकर सभी लोगों को राजनीतिक दल का सदस्य बनाया जाता है। वास्तव में, राजनीतिक दल सभी धर्मों के लोगों से समर्थन प्राप्त करने का प्रयास करते हैं। इस प्रकार, राजनीतिक दलों के कारण धार्मिक भेदभाव काम हो गए हैं।
(9) हिंदू धर्म में संगठन का अभाव
हिंदू धर्म में अनेक मत मतांतर पाए जाते हैं। विभिन्न संप्रदायों के कारण हिंदू धर्म का संगठन ढीला हो गया है। वास्तव में, हिंदू धर्म अन्य धर्म की तरह कभी भी अधिक संगठित नहीं रहा है। कुछ लोग तो इसे धर्म न मानकर जीवन का ही एक प्रकार मानते हैं। एक ढीले संगठन के कारण धर्म के सिद्धांत भी प्रभावहीन होते जा रहे हैं। इसीलिए भारत में धर्म का प्रभाव कम हो रहा है और धर्मेंद्र निरपेक्षता को महत्व प्रदान किया जा रहा है।
(10) धार्मिक व्याख्या का खण्डन
भारत में ब्राह्मणों ने कर्मकांड पर विशेष बल दिया है। धार्मिक आडंबरों के कारण समाज में धर्म की प्राचीन व्याख्या का खंडन किया गया। ब्रह्म समाज वह आर्य समाज के प्रवर्तकों ने धर्म की नवीन व्याख्या प्रस्तुत की है। इस व्याख्या की परिणाम स्वरुप मानव धर्म को जन्म दिया गया। मानव धर्म के कारण प्राचीन धार्मिक मान्यताएं समाप्त होने लगी और नैतिक सिद्धांतों को ही धर्म माना जाने लगा। इस प्रकार, धार्मिक व्याख्या के खण्डन से धर्म का प्रभाव कम हो गया।
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