अवध के अंग्रेजों के साथ संबंध - letest education

अवध के अंग्रेजों के साथ संबंध

अंग्रेजों के साम्राज्य विस्तार के दो ही तरीके थे— (1) युद्ध और कूटनीति या राजनीतिज्ञ (Diplomacy)। यह द्वारा द्वारा वे कर्नाटक, बंगाल, मैसूर, पंजाब के सिंध में जम गए, युद्ध द्वारा ही उन्होंने मराठा राज्य पर प्रभुत्व पाया। सीमा पावर ब्रह्मा पर कब्जा जमाने के लिए 1857 तक उस पर (बर्मा पर) दो युद्ध थोपे और बिना युद्ध के कूटनीति के अंतर्गत सहायक संधि सम्मेलन या पेंशनों एवं पदों की समाप्ति Mediatization) कुशासन के आरोप, कर्ज की राशि बकाया होने के आरोप और व्यक्तिगत या बेदखली के सिद्धांत (Doctrine of lapse) के द्वारा अन्य राज्यों को हड़पा। अवध हड़प इसी कूटनीति या राजनीतिक चाल (विशेषकर सहायक संधि और कुशासन के बैनर) के अंतर्गत हुई। 

अवध के राज्य की स्थापना

बुरहान-उल-मुल्क ने अवध की स्वायत्त राज्य की स्थापना की। उसके बाद शहादत खान हुआ। उसने धीरे-धीरे अपनी शक्ति का विस्तार किया। नवाब सफदरजंग के समय में आवत की शक्ति और प्रतिष्ठा में भी वृद्धि हो हुई और वह उत्तरी भारत की एक प्रमुख शक्ति के रूप में उभरा।

अंग्रेजों से संघर्ष की शुरुआत

अवध के नवाब और अंग्रेजो में संघर्ष की शुरुआत बक्सर युद्ध के साथ हुई। अंग्रेजों से पराजित होकर मर काशी एम ने अवध के नवाब शुजाउद्दौला के दरबार में शरण ली एवं उसे सहायता की मांग की। बताओ उसने मीर कासिम की सहायता की, परंतु बक्सर के युद्ध में मीर्घसिम और मुगल सम्राट के साथ ही शुजाउद्दौला की भी पराजय हुई।

क्लाइव और शुजाउद्दौला तथा अवध

बक्सर के युद्ध के पश्चात 1765 में लॉर्ड क्लाइव बंगाल का गवर्नर बनाकर दूसरी बार भारत आया। भारत आते ही उसने पराजित शक्तियों पर नियंत्रण करने के उद्देश्य से उनके साथ अपने संबंध निश्चित किए। 16 अगस्त, 1965 को नवाब शुजाउद्दौला के साथ क्लाइव ने इलाहाबाद की संधि की। इस संधि के द्वारा नवाब ने इलाहाबाद और कड़ा कंपनी को सौंप दिए। युद्ध की क्षतिपूर्ति के लिए उसे 50 लख रुपए भी दिए। अवध में व्यापार करने का अधिकार भी कंपनी को मिला। गाजीपुर और बनारस की जागीर अंग्रेजों के हितैषी बलवंत सिंह को सौंप दी गई सबसे बड़ी बात थी कि नवाब ने अपनी रक्षा के लिए कंपनी की सहायता लेने का आश्वासन दिया। इसे अंग्रेजों को अवध पर शिकंजा करने का सुनहरा मौका प्राप्त हो गया है जिसका लाभ अंग्रेजों ने उठाया। अवध अब अंग्रेजी प्रभाव में आ गया, वह कंपनी का आश्रित बन गया।

वारेन हेस्टिंग्स और अवध

क्लाइव ने अवध के नवाब से कड़ा और इलाहाबाद के जिले लेकर मुगल सम्राट को इस उद्देश्य से दे दिए थे कि वह अंग्रेजों का मित्र रहेगा परंतु उसके मैराथन के संरक्षण में चले जाने से उन्हें अवध के साथ नए सिरे से संधि करनी पड़ी (बनारस की संधि 1973)। हेस्टिंग्स ने ₹50 लाख के बदले इन जिलों को पुनः अवध के नवाब को हटा दिया। उसने नवाब को रोहिलखंड पर विजय प्राप्त करने में सहायता दी तथा बदले में 40 लख रुपए प्राप्त किया। नवाब शुजाउद्दौला की मृत्यु के पश्चात जनवरी, 1775 में कंपनी ने नए नवाब आसफुद्दौला के साथ फैजाबाद की संधि की। इस संधि के द्वारा कंपनी को बनारस एवं गाजीपुर पर अधिकार मिल गया। अवध को अंग्रेजी सेवा के खर्चे के लिए भी पहले से अधिकतर रकम देनी पड़ी।

कार्नवालिस और अवध

कार्नवालिस की भारत पर आगमन के समय तक अवध पर कंपनी का पूरा नियंत्रण हो चुका था। लेकिन इसी के साथ अवध की प्रशासनिक व्यवस्था भी ढीली पड़ चुकी थी तथा सर्वत्र भ्रष्टाचार का बोलबाला था। अवध की आर्थिक स्थिति भी अत्यंत खराब हो चुकी थी। इसके बावजूद कंपनी के लिए अवध का सामरिक महत्व बहुत ज्यादा था। अत: कार्नवालिसने हस्तक्षेप की नीति के बावजूद अवध की तरफ अपना ध्यान दिया। उसने नवाब के प्रधान हैदरबेग से स्थिति की जानकारी प्राप्त की तथा उसके अनुरोध पर सेवा के खर्च के लिए दी जाने वाली रकम 74 लाख से घाट का 50 लाख रुपए से नियमित रूप से कर अदा करने की आश्वासन पर कर दी लेकिन इस अनुरोध को स्वीकार नहीं किया कि कानपुर और फतेहगढ़ से अंग्रेजी सेना हटा ली जाए। कार्नवालिस के प्रयासों के बावजूद अवध की स्थिति में कोई अंतर नहीं आया।

सर जॉन शोर और अवध

सर्च ऑन शोर के समय में आवाज और कंपनी के संबंध पूर्ण हो गए परंतु नवाब अंग्रेजों की मनमानी को रोकने में सर्वथा असमर्थ रहा। अब गानों में संभावित आक्रमण से रक्षा का बहाना कर सर जॉन शोर ने अवध में अंग्रेजी सेना बढ़ाने का प्रस्ताव रखा तथा इसके लिए साढे 5 लाख रूपों की मांग नवाब से की तथा उन्हें वसूलने के लिए स्वयं लखनऊ जा पहुंचा। नवाब आसफउद्दौला का वास्तविक पुत्र नहीं था। इसलिए सर जॉन शोर ने उसे गाड़ी से हटकर मृत्यु नवाब के भाई सआदत अली को नवाब बनाया। दोनों के बीच एक संधि हुई जिसके अनुसार अब कंपनी को 74 लख रुपए सालाना कर मिलना क्या हुआ। इलाहाबाद का किला और उसकी मरम्मत का खर्च 8 लाख भी कंपनी को मिला। वजीर अली को पेंशन देकर बनारस भेज दिया गया। इस नई संधि की अवध पर कंपनी का नियंत्रण और अधिक बढ़ गया और उसकी आर्थिक स्थिति दयनीय हो गई।

लार्ड वेलेजली और अवध

लार्ड वेलेजली साम्राज्यवादी प्रवृत्ति का गवर्नर जनरल था। वह भारत में ब्रिटिश सत्ता का तेजी से विस्तार करना चाहता था। इसके लिए उसकी एक अनूठा अस्त्र निकला जो इतिहास में ‘सहायक संधि’ के नाम से विख्यात है। अवध की आंतरिक दुर्बलता का लाभ उठाकर उसने अवध पर भी सहायक संधि जबरदस्ती ठोप दी। इसी समय अफ़गानों, मराठों एवं सिक्खों के संभावित आक्रमण को ध्यान में रखते हुए भी अवध के साथ सहायक संधि करना आवश्यक हो गया। लार्ड वेलेजली ने नवाब के समक्ष अंग्रेजी सेना में वृद्धि करने का प्रस्ताव रखा जिसे नवाब ने ठुकरा दिया। दबाव डाले जाने पर पहले नवाब ने गाड़ी प्राप्त करने का प्रस्ताव रखा जिसे नवाब ने ठुकरा दिया। दबाव डाले जाने पर पहले नवाब ने त्यागने की इच्छा प्रकट की परंतु बाद में लॉर्ड वेलेजली के रूख को देखते हुए बाध्य होकर उसने 10 नवंबर 1801 को लॉर्ड वेलेजली से संधि कर ली। इसके अनुसार रोहेलखंड और दोआब पर कंपनी का अधिकार हो गया। नवाब की सेना घटकर कंपनी की सेना बढ़ा दी गई। नवाब की बाह्य नीति पर कंपनी का नियंत्रण कायम हो गया। आंतरिक प्रशासन से सहायता देने के लिए अंग्रेज रेजिडेंट बहाल किया गया। यद्यपि लॉर्ड वेलेजली का यह कार्य नैतिक दृष्टिकोण से अनुचित था परंतु इससे कंपनी को लाभ हुआ।

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