उपनिवेशवाद किसे कहते हैं? अर्थ तथा राष्ट्रवाद का उदय

 उपनिवेशवाद (colonialism)

 19वीं शताब्दी का साम्राज्यवाद, जो की छल कपट, चलाकी, बर्बरता, शोषण तथा खूनी संघर्षों से परिपूर्ण था, के परिणाम स्वरुप विश्व के साम्राज्यवादी देशों ने अनेक देशों पर विजय प्राप्त कर उपनिवेशवाद स्थापित करने प्रारंभ कर दिए। साम्राज्यवादी देशों ने उपनिवेशवादी देश की जनता को सभ्यता एवं प्रगतिशील बनाने का दावा करके उनका बूरी तरह राजनीतिक और आर्थिक शोषण किया। उपनिवेशवादी देश में इसी क्षण के परिणाम स्वरुप राष्ट्रवाद का उदय हुआ जिससे 20वीं शताब्दी में पराधीन देश स्वतंत्रता संग्राम के माध्यम से धीरे-धीरे स्वतंत्र होने लगे।

उपनिवेशवाद किसे कहते हैं? अर्थ तथा राष्ट्रवाद का उदय

उपनिवेशवाद का अर्थ 

(meaning of colonialism)

  उपनिवेशवाद का अर्थ किसी साम्राज्यवादी देश द्वारा किसी अन्य देश पर अपना प्रभुत्व स्थापित कर उसे पराधीन बनाना है। 16वीं शताब्दी में एशिया, अफ्रीका तथा अमेरिकी उपमहाद्वीप पर साम्राज्यवादी नियंत्रण स्थापित करने तथा उनका उपनिवेश बनाने का पहला चरण प्रारंभ हुआ। 16वीं शताब्दी और 18वीं शताब्दियों के बीच के काल में यूरोपियों द्वारा भौगोलिक खोजो के बाद पुर्तगाल, स्पेन, इंग्लैंड तथा फ्रांस ने बड़े-बड़े औपनिवेशिक साम्राज्य स्थापित किए। यूरोप के इन देशों के अनेक लोग स्थाई रूप से बने के लिए इन उपनिवेशों में चले गए। 16वीं से 18वीं शताब्दी तक का काल यूरोपीय उपनिवेशवादी शक्तियों द्वारा खुली लुट का काल था। 18 वीं शताब्दी के अंत तक ‘नव साम्राज्यवाद का चरण प्रारंभ हुआ जो कि उसे आर्थिक प्रणाली की दिन थी जो औद्योगिक क्रांति के फलस्वरूप उभरी थी। इस चरण में कुछ औद्योगिक कृत पूंजीवादी देशों ने दुनिया के लगभग पूरे भाग पर अपना राजनीतिक और आर्थिक नियंत्रण एवं प्रभु स्थापित कर लिया था।

उपनिवेशवाद में राष्ट्रवाद का उदय 

उपनिवेशवाद में राष्ट्रवाद का उदय को हम कुछ स्तरों (Steps) मैं पढ़ने की कोशिश करेंगे जो कुछ इस प्रकार होंगे—

STEP - 1

उपनिवेशवादी काल में साम्राज्यवादी देशों के द्वारा होने वाले शोषण तथा उत्पीड़न के परिणाम स्वरुप विभिन्न पराधीन देश में स्वतंत्रता हेतु संघर्ष प्रारंभ हुए। राष्ट्रवाद का उदय इसी का परिणाम माना जाता है। राष्ट्रवाद से अभिप्राय अपने राष्ट्र के प्रतिष्ठा की भावना है जो उसे राष्ट्र के नागरिकों को अन्य राष्ट्रों की नागरिकों से पृथक करती है। एक प्रकार से नागरिकों की अपने राष्ट्र के प्रति वह प्राथमिक निष्ठा है जो क्षेत्र प्रजाति संप्रदाय अथवा भाषा जैसी निम्र्तर निष्ठाओं से ऊपर होती है। इसे एक ऐसी विचारधारा भी माना जाता है जिसमें राष्ट्र के सर्वांगीण विकास की भावना निहित होती है।

 STEP - 2

  भारत में भी राष्ट्रवाद का उदय साम्राज्यवादी शक्तियों द्वारा सामाजिक अन्याय, आर्थिक राजनीतिक, सामाजिक एवं धार्मिक शोषण से मुक्ति के रूप में हुआ। पाश्चात्य शिक्षा एवं साहित्य के प्रभाव से राष्ट्रवादी शक्तियों को बल मिला तथा लगभग सभी उपनिवेशवादी देश में महान एवं क्रांतिकारी नेताओं का अभ्युदय हुआ जिन्होंने प्रतिदिन देश की जनता में राष्ट्रवाद के बीजों का रोपण किया तथा साम्राज्यवादी देश के विरुद्ध संघर्ष करने की प्रेरणा प्रदान की।

STEP - 3

भारत में राष्ट्रवाद का उद्भव अंग्रेजी शासन काल में पश्चिमीकरण के परिणाम स्वरुप हुआ तथा स्वतंत्रता संग्राम के साथ-साथ इसका विकास होना प्रारंभ हुआ। बुद्धिजीवियों, समाज सुधारकों तथा राष्ट्रीय नेताओं ने राष्ट्रवाद के विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। अंग्रेजों की आर्थिक नीतियों के प्रति असंतोष, अंग्रेजों की प्रजाति भेदभाव एवं ‘फूट डालो व राज करो’ की नीति भी राष्ट्रवाद के विकास में सहायक रही है। राष्ट्रवाद के विकास में पश्चिमी शिक्षा, आवागमन एवं संचार साधनों के विकास, स्वतंत्रता संग्राम, भारतीय समाचार पत्रों, शिक्षित मध्यम वर्ग के विकास तथा धार्मिक पुनर्जागरण आंदोलन की भी बहुत महत्वपूर्ण भूमिका रही है।

STEP- 4

भारतीय संदर्भ में उपनिवेशवादी युग का एक विरोधाभासक सच्च यह भी है कि ‘उपनिवेशवाद’ में ही अपने शत्रु ‘राष्ट्रवाद’ को जन्म दिया। ऐतिहासिक दृष्टि से भारतीय राष्ट्रवाद ने ब्रिटिश उपनिवेशवाद के अंतर्गत जाकर लिया। राष्ट्रवाद के रूप में विकसित विशिष्ट चेतन ने पूरे भारत को एकीकृत किया तथा पूंजीवादी आर्थिक परिवर्तन एवं आधुनिकीकरण की प्रक्रियाओं से भारत का परिचय कराया। औपनिवेशिक शासन के अंतर्गत भारत के आर्थिक राजनीतिक एवं प्रशासनिक एकीकरण की उपलब्धि भारी कीमत चुकाकर हासिल की गई। औपनिवेशिक शोषण एवं प्रभुत्व द्वारा किए गए अनेक प्रकार के घावों के निशान भारतीय समाज पर आज भी विद्यमान है।

उपनिवेशवाद में विभिन्न वर्गों एवं समुदायों का उदय तथा इसके प्रभाव

उपनिवेश काल के साझे अनुभवों ने समुदाय के विभिन्न भागों को एकीकृत करने एवं बल प्रदान करने में सहायता दी। पाश्चात्य शैली की शिक्षा के परिणाम स्वरूप भारत में मध्यम वर्ग का विकास हुआ जिसने उपनिवेशवाद को उसकी अपनी मान्यताओं के आधार पर ही चुनौती दी। हमारे इतिहास की वीडियो बना है कि उपनिवेशवाद एवं पाश्चात्य शिक्षा ने ही परंपरा की पुनः खोज को प्रोत्साहन दिया। इससे अनेक प्रकार की सांस्कृतिक एवं सामाजिक गतिविधियों विकसित हुई जिससे राष्ट्रीय एवं क्षेत्रीय स्तरों पर समुदाय के नवोदित रूप सुदृढ़ हुए।

  इस प्रकार, उपनिवेशवाद ने भारत में नए वर्गों एवं समुदायों को जन्म दिया जिन्होंने बाद के इतिहास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। नगरी मध्य वर्ग राष्ट्रवाद के प्रमुख विहक थे तथा उन्होंने स्वतंत्रता प्राप्ति के अभियान को नेतृत्व प्रदान किया। इतना ही नहीं, धर्म एवं जाति पर आधारित समुदायों को निश्चित रूप देने के पीछे भी औपनिवेशिक हस्तशील ही रहा है। ऐसे समुदायों ने भी राष्ट्रवाद में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।

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