राजनीतिक दलों के गुण एवं दोष
राजनीतिक दलों के गुण
(characteristics of political parties)
राजनीतिक दलों के प्रमुख गुण निम्नलिखित हैं —
(1) प्रशासकीय कुशलता
राजनीतिक दल जटिल समस्याओं का अध्ययन करते हैं और सर्वसाधारण को सरल भाषा में उन्हें समझते हैं, सरकार को समय-समय पर अनेक महत्वपूर्ण सुझाव देते हैं, जिससे शासन में कार्यकुशलता तथा उत्तरदायित्व के भाव में वृद्धि हो सके।
(2) सर्वसाधारण में जागृति
राजनीतिक दल निर्वाचनों में अपने प्रतिनिधियों को खड़ा करते हैं और निर्वाचन के समय विभिन्न राजनीतिक समस्याओं को जनता के समक्ष प्रस्तुत करते हैं। इस कार्य के द्वारा राजनीतिक दल जनता में पूर्ण रूप से राजनीतिक जागृति उत्पन्न कर देते हैं, जिससे सर्वसाधारण को राजनीतिक समस्याओं का संपूर्ण ज्ञान हो जाता है।
(3) राजनीतिक शिक्षा
राजनीतिक दल नागरिकों को निर्वाचन में भाग लेने, मतों का उचित रूप से प्रयोग करने तथा मतदान की प्रक्रिया आदि से संबंधित बातों का ज्ञान प्रदान करते हैं, इस प्रकार राजनीतिक दल जनता के राजनीतिक ज्ञान में वृद्धि करते हैं।
(4) शक्तिशाली सरकार का संगठन
राजनीतिक दल अपने प्रतिनिधियों को चुनाव में सफल बनाकर शक्तिशाली सरकार का निर्माण करते हैं। यह शक्तिशाली सरकार जनता के हितों का ध्यान रखती है और अपने पक्ष में लोकमत का निर्माण करती है। इस प्रकार राजनीतिक दल सुसंगठित सरकार का निर्माण करके लोक–कल्याण की भावना को प्रोत्साहित करते हैं।
(5) दलीय अत्याचारों से मुक्ति
निर्वाचन में विजयी दल सरकार का निर्माण करता है और अन्य विरोधी दल संगठित होकर सरकार के अनुचित कार्यों की आलोचना करते रहते हैं। इस आलोचना के भय से सत्तारूढ़ दल की निरंकुशता उत्पन्न नहीं होती है। इसलिए कहा जाता है कि राजनीतिक दलों के कारण नागरिक को दलीय अत्याचारों से मुक्ति मिल जाती है। लावेल के शब्दों में — “दलों के द्वारा जनता को सरकार पर नियंत्रण लगाने का अवसर मिला है।”
(6) सरकार का स्थायित्व
विरोधी दलों की आलोचना के भय से सत्तारूढ़ दल लोक–कल्याण के कार्यों को पूर्ण करने में निरंतर संलग्न रहता है और अपने पक्ष में कुशल जनमत का निर्माण करके अपने दल की सरकार को स्थायी बनाने का प्रयास करता है। वस्तुतः राजनीतिक दलों से शासन में सुदृढता बनी रहती है। डॉ० फाइनर के शब्दों में– “बिना संगठित राजनीतिक दलों के निर्वाचक गण या तो पंगु हो जाएंगे या विनाशकारी और ऐसी नीतियाँ ग्रहण करेंगे की समस्त शासन व्यवस्था ही अस्त–व्यस्त हो जाएगी।”
(7) योग्यतम व्यक्तियों का चयन
राजनीतिक दलों का उद्देश्य निर्वाचन में विजयी होकर शासन- सत्ता को अपने हाथों में लेना होता है। इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए राजनीतिक दल ऐसे योग्यतम व्यक्ति का चयन करते हैं जो विजयी होकर दल की सरकार को स्थायित्व प्रदान कर सकें। इस प्रकार राजनीतिक दलों द्वारा योग्यतम व्यक्तियों को प्रोत्साहन दिया जाता है।
(8) सरकार तथा नागरिकों में सहयोग
राजनीतिक दल विधानमंण्लों में अपने प्रतिनिधियों को निर्वाचित कराकर भेजते हैं और विजयी प्रतिनिधियों का निर्वाचकों से परिचय करते हैं। इस प्रकार राजनीतिक दलों के माध्यम से सरकार और नागरिक के बीच संबंध स्थापित हो जाते हैं और सरकार को नागरिकों का सहयोग प्राप्त होने लगता है।
(9) लोकतंत्र का संचालन संभव
राजनीतिक दलों के द्वारा ही लोकतंत्र का संचालन संभव होता है। वस्तुतः लोकतंत्र राजनीतिक दलों के बिना संभव नहीं हो सकता। बर्क के अनुसार – “दल प्रणाली, चाहे पूर्ण रूप से भले के लिए हो अथवा बुरे के लिए, पर स्वाधीन शासन के लिए अपरिहार्य है।” इसी प्रकार ब्राइस का मत है, “राजनीतिक दल अनिवार्य हैं। कोई भी बड़ा स्वतंत्र देश उसके बिना नहीं रह सकता है। ”
(10) शासन में लचीलापन उत्पन्न करना
राजनीतिक दल संविधान और सरकार में लचीलापन उत्पन्न करते हैं। राजनीतिक दल शासन के विभिन्न अंगों में समन्वय और सामंजस्य उत्पन्न करते हैं।
राजनीतिक दलों के दोष(faults of political parties)
राजनीतिक दलों में जहां गुण अधिक हैं, वहीं दूसरी और उनमें अनेक प्रकार के अवगुण भी हैं। अमेरिका के संविधान निर्माता ने दलीय व्यवस्था के देशों को दृष्टिगत रखते हुए ही संविधान में दलीय व्यवस्था को कोई स्थान प्रदान नहीं किया था।
(1) जनमत का विभाजन
विभिन्न राजनीतिक दल अपनी-अपनी पक्ष में जनमत निर्माण का प्रयास करते हैं, इसलिए इन दलों के द्वारा जनमत विभाजन हो जाता है।
(2) राष्ट्रीय हितों की क्षति
राजनीतिक दलों के कारण जनता विभिन्न गुटों में विभाजित हो जाती है, जिसके कारण राष्ट्रीय हितों पर विपरीत प्रभाव पड़ता है। राजनीतिक दल वोट बैंक की राजनीति के कारण संकीर्ण मनोवृतियों जैसे जातिवाद, संप्रदायवाद, क्षेत्रवाद तथा भाषावाद आदि को भी प्रोत्साहित करने का प्रयास करते हैं।
(3) व्यक्ति पूजा को प्रोत्साहन
राजनीतिक दलों के कारण नेताओं की चारों तरफ चापलूसी की जाती है, इसलिए राजनीतिक दल आयोग के व्यक्तियों की पूजा को प्रोत्साहन देता है तथा श्रेष्ठ व्यक्तियों की सेवाओं से राष्ट्र वंचित हो जाता है।
(4) व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अतिक्रमण
अनुशासन पद्धता के कारण राजनीतिक दलों में व्यक्ति अपनी व्यक्तिगत स्वतंत्रता का परित्याग करके राजनीतिक दलों की आदेशों तथा निर्देशों के अनुसार आचरण करता है। इस प्रकार राजनीतिक दलों के कारण व्यक्तिगत स्वतंत्रता का बलिदान होता है।
(5) विचारों का मिथ्या प्रचार
राजनीतिक दल अपने उद्देश्यों की पूर्ति के लिए तथा अपने हितों की सुरक्षा के लिए नागरिकों में मिथ्या प्रचार करने लगते हैं, जिससे समाज में भ्रष्टाचार फैलता है।
(6) सत्तारूढ़ दल की तानाशाही
व्यवस्थापिका में सत्तारूढ़ दल का बहुमत होता है तथा विरोधी दल प्रभावशाली नहीं होता है, बताओ दल अपनी मनमानी करने लगता है। इस प्रकार दल की तानाशाह स्थापित हो जाती है।
(7) राजनीतिक दल का पूर्ण वर्चस्व
राजनीतिक दल व्यक्ति के स्वतंत्र व्यक्तित्व को डाल के अनुशासन से संबंध करके उसके औचित्य को समाप्त कर देते हैं। मतदाता जब व्यक्ति के गुण दोष को न देखकर राजनीतिक दलों के आधार पर मतदान करते हैं।
(8) समय तथा धन का अपव्यय
दलीय व्यवस्था के कारण समय और धन का अपव्यय होता है।
(9) विवादों की उत्पत्ति
राजनीतिक दल के कारण देश में अनेक प्रकार के विवाद एवं संघर्ष उत्पन्न हो जाते हैं, परिणाम स्वरूप विद्वान एवं बुद्धिजीवी वर्ग राजनीतिक कार्यों से उदासीन रहने लगते हैं। धार्मिक रुढ़िवादिता पर आधारित राजनीतिक दल समाज में साम्प्रदायिक संघर्षों को प्रोत्साहित करने में अपनी सक्रिय भूमिका का निर्वाह करते हैं।
निष्कर्ष conclusion
यद्यपि राजनीतिक दलों में अनेक दोष निहित है, परन्तु यह भी सत्य है कि राजनीतिक दलों के अभाव में लोकतंत्रात्मक शासन व्यवस्था सफल नहीं हो सकती है। वस्तुत: किसी देश के निर्माण तथा विकास में राजनीतिक दलों का योगदान महत्वपूर्ण है। इसी संदर्भ में ब्राइस का कथन है कि “राजनीतिक दल राष्ट्र के मस्तिष्क को ठीक उसी प्रकार क्रियाशील बनाए रखता जिस प्रकार ज्वार-भाटा समुद्र तल को ताजा रखता है।” इसी कारण से दलीय व्यवस्था को लोकतंत्रात्मक शासन प्रणाली का प्राण कहा जाता है।
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