पानीपत का प्रथम युद्ध (1526)— कारण घटनाएं तथा परिणाम

पानीपत का प्रथम युद्ध (21 अप्रैल, 1926) से संबंधित कुछ महत्वपूर्ण बिंदुओं पर चर्चा करेंगे जैसे —

1- पानीपत का प्रथम युद्ध।
2- पानीपत की प्रथम युद्ध के कारण।
3- पानीपत की युद्ध के परिणाम।

पानीपत का प्रथम युद्ध (21 अप्रैल, 1926)

panipat kaa pratham yudh; अगर बात करें पानीपत के प्रथम युद्ध के कारण क्या थे, भारत में मुगल साम्राज्य की स्थापना का प्रयास चल रहा था, और यह युद्ध मुगल बादशाह अकबर और लोदी वंश के सुल्तान इब्राहिम लोदी के बीच हुआ था। इसे बाबर का पानीपत युद्ध भी कहा जाता है। और इस युद्ध के मुख्य कारण कुछ इस प्रकार थे— 

पानीपत के प्रथम युद्ध के कारण

(1) धार्मिक और साम्राज्य की रक्षा

बाबर ने अपनी आत्मकथा बाबरनामा में यह दावा किया था कि उसका यह आक्रमण धर्म और साम्राज्य की रक्षा के लिए हुआ था। वह भारत में अपने पूर्वजों के वंशावली और उनके धर्म की रक्षा करने का संकल्प कर रहा था।

(2) ताजपोशी (राज्याभिषेक) का आरोप के कारण 

इब्राहिम लोदी ने भारतीय साम्राज्य की ताजपोशी (ताज धारण करते समय का उत्सव) के आरोप में बाबर की ओर से की जाने वाली आक्रमण की खबर पाकर उन्होंने सेना तैयार की और आक्रमण कर दिया।

(3) तात्कालिक राजनीतिक कारण

पानीपत के प्रथम युद्ध के पहले भारत में तात्कालिक राजनीतिक संघर्ष चल रहा था। लोदी वंश के सुल्तान इब्राहिम लोदी और मुगल बादशाह बाबर के बीच विवाद था, जिसने इस युद्ध की ओर कदम बढ़ाया। इब्राहिम लोदी की विशेषता युद्ध कुशलता में थी, लेकिन बाबर के पास तकनीकी और सेना की बेहतरीन तैयारी थी।

(4) बाबर का आक्रमण 

पानीपत का प्रथम युद्ध उसे समय हुआ, जब मुगल साम्राज्य के संस्थापक बाबर ने भारतीय भूमि पर आक्रमण किया। बाबर ने अपनी दावेदारी को साकार करने के लिए भारत में अधिकांश भूतपूर्व इलाकों पर अधिकार करने की कोशिश की। और यह भी कारण था कि इब्राहिम लोदी और बाबर का युद्ध हुआ।

पानीपत का प्रथम युद्ध की घटनाएं (1526)

बाबर के साथ एक सुगठित एवं विशाल सेना थी। उसकी सेना में 12,000 आश्वारोही, 8,000 पैदल सैनिक और 700 तोपें थीं। वह अपनी सेना सहित काबुल से लाहौर तक बिना किसी बाधा के पहुँच गया। पंजाब का शासक दौलत खाँ लोदी उसे रोकने में असफल रहा। बाबर ने दौलत खाँ लोदी‌ को बंदी बना लिया तथा कुछ दिन पश्चात् बंदी अवस्था में ही उसकी मृत्यु हो गई। दूसरी ओर आलम खाँ लोदी ने स्वयं ही बाबर के समक्ष आत्मसमर्पण कर दिया था । इस प्रकार, बाबर पंजाब पर अपनी विजय पताका फहराकर दिल्ली की ओर अग्रसर हो गया।

       बाबर के आगमन की सूचना पाकर दिल्ली का सुल्तान इब्राहीम लोदी एक विशाल सेना लेकर उसका सामना करने के लिए चल पड़ा। बाबर ने अपनी आत्मकथा ‘तुजुक–ए-बाबरी’ में लिखा है, “इब्राहीम लोदी की सेना में एक लाख सैनिक और एक हजार हाथी थे।” पानीपत के ऐतिहासिक मैदान में दोनों शत्रुओं की सेनाएँ आमने-सामने जाकर खड़ी हो गईं। दोनों पक्षों की सेनाएँ 12 अप्रैल, 1526 ई० को युद्ध स्थल पर पहुँच गई थीं, परंतु आठ दिन तक उनमें युद्ध नहीं हुआ। 21 अप्रैल, 1526 को प्रातः 10:00 बजे युद्ध आरम्भ हुआ। सारे दिन दोनों ओर के योद्धा बड़े जोश के साथ लड़ते रहे। एक बार तो ऐसा लगा कि बाबर पराजित हो जाएगा, परंतु तोपों के बारूदी गोलों की मार से लोदी की सेनाएँ विचलित हो गई। अंत में, इब्राहीम लोदी मारा गया तथा उसकी सेना बुरी तरह पराजित होकर नष्ट हो गई । 27 अप्रैल,1526 ई० को बाबर ने स्वयं को भारत का बादशाह घोषित कर दिया। बाबर ने अपनी आत्मकथा में लिखा है, “अल्लाह के रहम से यह कठिन कार्य मेरे लिए सरल बन गया और आधे दिन के अंदर ही शत्रु की विशाल सेना नष्ट हो गई।”

पानीपत का प्रथम युद्ध के परिणाम

पानीपत का प्रथम युद्ध, भारतीय इतिहास का एक निर्णायक युद्ध सिद्ध हुआ। इस युद्ध के निम्नलिखित परिणाम हुए–

(1) इस युद्ध का सबसे महत्वपूर्ण परिणाम यह हुआ कि इसने भारत में अफ़गानों के लोदी वंश के साम्राज्य का अंत कर दिया और भारत में एक नए राजवंश ‘मुगल वंश’ की स्थापना कर दी। प्रोफेसर जाफर ने लिखा है, “इस युद्ध से भारतीय इतिहास में एक नवीन युग का प्रादुर्भाव हुआ और लोदी वंश के स्थान पर मुगल वंश की स्थापना हुई।” लेनपूल के मतानुसार, “पानीपत का युद्ध दिल्ली के अफ़गानों के लिए विनाशकारी सिद्ध हुआ और उनका राज्य और शक्ति नष्ट हो गई।” इस प्रकार पानीपत के प्रथम युद्ध ने सल्तनत काल का अंत एवं मुगल साम्राज्य का प्रारंभ कर दिया।

(2) इस युद्ध में सैनिक शक्ति का अत्यधिक विनाश हुआ था। बाबर के अधिकारियों की गणना के अनुसार इस युद्ध में 15 से 16000 व्यक्ति मारे गए थे। परंतु भारतीयों का अनुमान था कि 40 से 50000 व्यक्ति इस युद्ध में वीरगति को प्राप्त हुए।

(3) इस युद्ध के परिणामस्वरुप बाबर का दिल्ली व आगरा पर अधिकार हो गया और लूट में बहुमूल्य कोहिनूर हीरा तथा और अपार धन–संपत्ति उसके हाथ लगी।

(4) इस युद्ध के बाद बाबर के इधर-उधर भटकने के दिन समाप्त हो गए। अब उसने अपनी शक्ति को राज्य–विस्तार की ओर लगाना प्रारंभ कर दिया था।

 इस युद्ध के परिणामों के विषय में डॉ० ईश्वरी प्रसाद ने लिखा है, कि “पानीपत के युद्ध ने दिल्ली के साम्राज्य को बाबर के हाथों में सौंप दिया। लोदी वंश की शक्ति चूर-चूर हो गई और भारतवर्ष की सर्वोच्च सत्ता चगताई तुर्कों के हाथों में चली गई।” इस प्रकार, पानीपत का प्रथम युद्ध भारत के भाग्य का निर्णायक युद्ध सिद्ध हुआ।

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