राज्य मंत्रिपरिषद् के गठन, कार्य एवं शक्तियां
भारतीय संविधान द्वारा संघ की भांति इकाई राज्यों में भी सांसद आत्मक शासन व्यवस्था स्थापित की गई है। इस प्रकार राज्यों में भी वास्तविक कार्यपालिका शक्ति मंत्री परिषद् में ही नहीं होती है।
संविधान के अनुच्छेद 163 के अनुसार, “उन बातों को छोड़कर जिम राज्यपाल स्वयं विवेक से कार्य करता है, अधिकारियों को करने में उसकी सहायता एवं परामर्श के लिए एक मंत्री परिषद् होगी, जिसका अध्यक्ष मुख्यमंत्री होगा।” यह उल्लेखनीय है कि मंत्री परिषद् भी परामर्श से राज्यपाल को देती है, उसकी जांच करने का अधिकार किसी भी न्यायालय को नहीं होता है।
(1) मंत्रियों की नियुक्ति
राज्यपाल विधानसभा के बहुमत प्राप्त दल के नेता को मुख्यमंत्री नियुक्ति करता। यदि किसी भी डाल को स्पष्ट बहुमत प्राप्त नहीं होता है तो राज्यपाल ऐसे दल के व्यक्ति को मुख्यमंत्री नियुक्त करता है, जो बहुमत प्राप्त करने में सक्षम हो सके। तत्पश्चात उसके परामर्श से वह मंत्री परिषद् के अन्य मंत्रियों की नियुक्ति करता है।
(2) मंत्री परिषद् की कार्य विधि
संविधान के अनुसार मंत्री परिषद अपने पद पर उसे समय तक ही कार्यरत रहेगी, जब तक राज्यपाल की इच्छा होगी; किंतु व्यवहार में मंत्री परिषद उसे समय तक कार्यरत रहती है जब तक विधानसभा में उसका बहुमत और विश्वास बना रहता है। सामान्य रूप से मंत्री परिषद् का कार्यकाल विधानसभा के कार्यकाल के सामानों 5 वर्ष है।
(3) मंत्रियों की योग्यताएं
मंत्रियों के लिए किसी विशेष योग्यता का उल्लेख नहीं है, उन्हें मंत्री बनने के लिए केवल विधानमंडल के किसी सदन का सदस्य होना आवश्यक है। यदि किसी मंत्री को मुख्यमंत्री के परामर्श से राज्यपाल ने मंत्री नियुक्त किया है और वह किसी भी दल का सदस्य नहीं है तो उसे 6 माह की अवधि के अंतर्गत किसी भी सदन की सदस्यता ग्रहण करनी होती है अन्यथा उसे अपना पद त्यागना पड़ेगा।
(4) शपथ ग्रहण
प्रत्येक मंत्री को मंत्री पद ग्रहण करने से पूर्व राज्यपाल के समक्ष अपने पद के प्रति निष्ठा एवं मध्य परिषद् के कार्यों को गुप्त रखने की शपथ लेनी पड़ती है।
(5) मंत्रियों की संख्या एवं उनके मध्य कार्यों की विभाजनता
संविधान ने मंत्रियों की संख्या निश्चित करने का अधिकार राज्य के मुख्यमंत्री को दिया है। ऐसा इसलिए किया गया है कि विभिन्न राज्यों में विभिन्न समय में आवश्यक कार्य कम या अधिक हो सकते हैं। इसके अतिरिक्त राज्य की जनसंख्या एवं भू-भाग का भी राज्य के मंत्री परिषद् की संख्या निर्धारण पर प्रभाव पड़ता है। अतः राज्य के मुख्यमंत्री को आवश्यकता के अनुसार मंत्रियों की संख्या घटा अथवा बढ़कर उनके मध्य कार्यों का विभाजन करने का अधिकार होता है। राज्य के मंत्रिमंडल में भी तीन स्तर के मंत्री होते हैं— कैबिनेट स्तर के मंत्री, राज्य मंत्री और उपमंत्री।
राज्य मन्त्रिपरिषद् के कार्य
मन्त्रिपरिषद् राज्य के शासन का प्रमुख रूप से संचालन करती है इसके कार्य निम्न प्रकार हैं—
(1) प्रशासन संबंधी कार्य
राज्य के प्रशासन का उत्तरदायित्व राज्य की मन्त्रिपरिषद् पर होता है। राज्य के प्रशासन को सुचारू रूप से संचालित करने के लिए मंत्रियों के मध्य विभागों का विभाजन किया जाता है। सभी मंत्री अपने-अपने विभाग को संचालित करते हैं और विभाग के प्रशासन का समस्त उत्तरदायित्व संबंधित मंत्री पर होता है। मन्त्रिपरिषद् सामूहिक रूप से कार्य करती है। साथ ही मन्त्रिपरिषद् विधानसभा के प्रति भी सामूहिक रूप से उत्तरदाई होती है। वस्तुत: राज्य का संपूर्ण प्रशासन राज्य मंत्री परिषद द्वारा ही संचालित किया जाता है।
(2) कानून-निर्माण संबंधी कार्य
मन्त्रिपरिषद् ही राज्य के शासन से संबंधित समस्त कानूनों के प्रस्तावों (विधेयकों) की रचना करती है। इसके अतिरिक्त विधानमंडल के विधेयक प्रस्तुत करना तथा विधानमंडल से उसे पारित करवाना मन्त्रिपरिषद् का महत्वपूर्ण कार्य है।
(3) विधानमण्डल में पूछे गए प्रश्नों का उत्तर
विधानमण्डल में पूछे गए प्रश्नों एवं पूरक प्रश्नों का उत्तर देने का दायित्व मन्त्रिपरिषद् का ही होता है।
(4) नीति-निर्धारण संबंधी कार्य
राज्य सरकार की नीति का निर्धारण करना और उसे विधानमंडल से स्वीकृत करवाने का उत्तरदायित्व भी मन्त्रिपरिषद् का ही होता है।
(5) वार्षिक आय-व्यय का वितरण तैयार करना
वित्त मंत्री राज्य सरकार की आय -व्यय के विभिन्न स्रोतों का निर्धारण करता है तथा वार्षिक बजट तैयार करके विधानसभा में प्रस्तुत करता है। उल्लेखनीय है कि किसी भी राज्य के बजट पर केंद्र की आर्थिक स्थिति का प्रत्यक्ष या परोक्ष प्रभाव पड़ता है।
(6) राज्यपाल को उच्च पदों पर नियुक्ति के संबंध में परामर्श देने का कार्य
सुविधानुसार राज्यपाल को उसके कार्यों के संदर्भ में परामर्श देने और उसकी सहायता करने हेतु भी मंत्री परिषद का प्रावधान किया गया है। संविधान के अनुसार राज्यपाल महाधिवक्ता, राज्य लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष और सदस्यों तथा अन्य उच्च अधिकारियों की नियुक्ति करता है। व्यवहार में ये सभी नियुक्तियाँ मन्त्रिपरिषद् के परामर्श के आधार पर ही की जाती हैं।
(7) राज्यपाल को अपने निर्णयों से अवगत कराना
मन्त्रिपरिषद् का एक महत्वपूर्ण कार्य यह भी होता है कि वह कानून आदि बनाने की सूचना राज्यपाल को अवश्य देता रहे, जिससे कि राज्यपाल समस्त स्थितियों से अवगत रहे और शासन संबंधी अपेक्षित निर्णय ले सके।
राज्य प्रशासन में मन्त्रिपरिषद् की स्थिति बहुत महत्वपूर्ण होती है। जब तक मन्त्रिपरिषद् का विधान- परिषद में पूर्ण बहुमत होता है, शासन संबंधी समस्त निर्णय लेने का अधिकार मन्त्रिपरिषद् में ही निहित होता है। राज्यपाल मंत्रिपरिषद् के परामर्श के आधार पर ही शासन से संबंधित समस्त गतिविधियों का संचालन करता है। मन्त्रिपरिषद् ही राज्य की वास्तविक कार्यपालिका है।
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