जजिया कर तथा जकात कर पर संक्षिप्त टिप्पणी

 जजिया (jizya)

जजिया कर तथा जकात कर पर संक्षिप्त टिप्पणी
जजिया कर

भारत में जजिया का इतिहास सर्वप्रथम 1712 ईस्वी में मोहम्मद बिन कासिम की सिंह विजय की पश्चात मिलता है। जजिया कर राज्य में संपूर्ण जनता पर न लगाकर केवल गैर मुसलमान से वसूल किया जाता था, ताकि बदले में उनकी संपत्ति एवं सम्मान की रक्षा की जाए। इस कर से महिलाएं, बच्चे, साधु एवं भिक्षुक मुक्त किए गए थे। ब्राह्मण वर्ग भी इस कर से मुक्त था। यह कर निर्धन लोगों से 12 टंके, मध्यम वर्ग से 24 टंके और धनी वर्ग से 48 टंके प्रतिवर्ष के हिसाब से वसूला जाता था। लेकिन फिरोज तुगलक ने ब्राह्मणों पर भी जजिया कर लागू किया था। बाबर तथा हुमायूं के काल में दिल्ली सल्तनत से जारी जजिया कर की प्रथा को बनाए रखा गया। 

  सन् 1564 में अकबर ने यह कर समाप्त कर दिया। सन 1679 में औरंगजेब ने जजिया कर को पुनः लागू कर दिया। उसने इस्लामी धर्मशास्त्र के अनुसार कर का निर्धारण किया तथा उसके लिए दिरहम नाम के एक विशेष सिक्के का प्रचलन किया। एक दिरहम 550 ग्रेन चांदी के मूल्य का माना जाता था। 34 वर्ष पश्चात फर्रुखशियार ने अपने शासनकाल के प्रथम वर्ष में ही जजिया कर को समाप्त कर दिया। लेकिन सन 1717 में जजिया कर पुनः लगा दिया गया। सन् 1719 में उसे फोटो हटा दिया गया। अंत में मोहम्मद शाह के शासनकाल में सन 1720 में उसे समाप्त कर दिया गया। 

जकात  (zakat)

जजिया कर तथा जकात कर पर संक्षिप्त टिप्पणी
 जकात कर

कुरान के अनुसार इस्लाम धर्म के मानने वाले धन्यवाद के लोगों के लिए जकात देना आवश्यक है। हनीफी सिद्धांत में विश्वास करने वाले को धार्मिक कर के रूप में जकात देना आवश्यक है। जकात की वसूली में बल प्रयोग करना धर्म विरुद्ध था। जगत एवं सदका दोनों ही धार्मिक कर हैं। जकात वास्तव में सदका ही है। जकात के अंतर्गत संपत्ति को पुनः दो भागों में बांटा जा सकता है— प्रत्यक्ष एवं परोक्ष। प्रत्यक्ष करूं के अंतर्गत पशु तथा कृषि से प्राप्त उपज और अप्रत्यक्ष में व्यापार की वस्तुएं सोना, चांदी इत्यादि आते थे। संपत्ति के विषय में दो शर्तों पर ही जकात देना पड़ता था। 

पहली शर्त के अनुसार संबंधित व्यक्ति द्वारा पूरे 1 वर्ष तक संपत्ति का उपभोग करने पर ही वर्ष के अंत में जकात देना होता था।

   दूसरी शर्त के अंतर्गत एक निश्चित मात्रा से अधिक संपत्ति का स्वामी होने पर जकात कर देना होता था। उसे संपत्ति की न्यूनतम मात्रा को निसाब कहते थे। आवश्यकता की वस्तुओं पर जकात नहीं देना होता था। इस श्रेणी में निवास, गृह, व्यवहार के वस्त्र, पठन-पाठन में उपयोग की जाने वाली पुस्तक अन्य सेवा कार्य के लिए रखे गए दास आदि आते थे।

सभी वस्तुओं के मूल्य का 1/2 प्रतिशत आयात निर्यात करके रूप में वसूल किया जाता था, परंतु घोड़े के ऊपर 4% कर लिया जाता था। उल सदका नमक का राजस्व का एक अन्य स्रोत था। उल भूमि की उपज के ऊपर लगाए जाने वाला कर था। इस उल कर से वक्फ, मकतब, नाबालिग तथा दसों की संपत्ति भी मुक्त नहीं हो सकती थी। उल वसूल करने के लिए बल प्रयोग करने की व्यवस्था थी। जकात का अर्थ है— शुद्धिकरण। इसका लक्षिता धनी मुसलमान की आयु से निर्धन स्वधर्मियों को सहायता प्रदान करना। यह कर तभी वसूला जाता था जब संपत्ति कर डाटा के पास काम से कम 1 साल तक रही हो, और उससे आय‌ का मूल्य निश्चित समय से अधिक हो। यह कर 2.5 प्रतिशत की दर तक वसूल किया जाता था।

Post a Comment

और नया पुराने
Join WhatsApp