इतिहास का अर्थ, परिभाषा एवं क्षेत्र
इतिहास का अर्थ; इतिहास शब्द की उत्पत्ति ‘इति-ह-आस’ इन तीन शब्दों से मानी गई है, जिसका अर्थ है— निश्चित रूप से ऐसा हुआ। आचार्य दुर्ग ने अपनी ‘निरुक्त भाव्य वृत्ति’ में इसकी व्याख्या करते हुए लिखा है— ‘इति हैवमासीदिति यत् कथ्यते तत् इतिहास:’— अर्थात् ‘यह निश्चित रूप से इस प्रकार हुआ था; यह जो कहा जाता है, वह इतिहास है।’
इतिहास का इतिहास
हेरोडोटस ने इतिहास के लिए पहली बार ‘हिस्ट्री’ शब्द का प्रयोग किया है। ग्रीक भाषा का हिस्तोरे शब्द इतिहासकार के लिए प्रयुक्त है जो वाद-विवाद का निर्णय करने में समर्थ होता था, अर्थात वह विषय का अच्छा ज्ञाता होता है। हेरोडोटस में हिस्ट्री शब्द का गवेक्षण एवं अनुसंधान के सातत्य से प्रतिपादित किया था। रेनियर ने हिस्ट्री को एक स्टोरी के रूप में प्रस्तुत किया है, जिसके अनुसार इतिहास को हिस्ट्री नहीं माना जा सकता। इतिहास वास्तव में अर्थहीन है। इतिहास कार्य कारण संबंधों की विवेचना पर आधृत अर्थों का अन्वेषण करता है और इसके आधार पर एक तर्कसंगत निष्कर्ष प्रदान करता है।
इतिहास की परिभाषा
इतिहास की परिभाषा अलग-अलग विद्वानों ने अलग-अलग दी है जिनमें कुछ मुख्य परिभाषाएं ये है —
(1) हेनरी पिरेन के अनुसार — “इतिहास समाज में रहने वाले मनुष्यों के कार्यों और उपलब्धियां की कहानी है।”
(2) ट्रेवेलियन के अनुसार — “इतिहास अपने परिवर्तनीय अंश में एक कहानी है।”
(3) लार्ड एक्टन के अनुसार — “इतिहास मनुष्यों के व्यक्तिगत कार्यों का सामान्यकृत लेखा-जोखा है, जो कि नहीं सार्वजनिक उद्देश्यों के लिए एक निकाय में एकीकृत होते हैं।”
(4) हुइजिंग के अनुसार — “इतिहास अतीत की घटनाओं का विवरण है।”
(5) डिल्थे के अनुसार — “इतिहास वर्तमान में अतीत कालीन ज्ञान का अध्ययन है।”
इतिहास का क्षेत्र
(1) मानवीय अध्ययन
इतिहास स्वयं के बारे में जानने की मनुष्य की आंतरिक इच्छा की प्रतिक्रिया है। इस कारण एवं मौलिक रूप से एक मानवीय अध्ययन है जो लोगों के महत्व, उनकी व्यक्तिगत पसंद, उनके मूल्यों तथा स्वयं को एवं विश्व को देखने के उनके दृष्टिकोण पर जोर देता है। मानवता में इस रुचि के कारण ही इतिहास तथा अन्य मानवीय अनुशासन के मध्य एक कड़ी बनती है। इनके साथ यह साधनों तथा उद्देश्यों की दृष्टि से सहभागी बनता है। इतिहास द्वारा मानवीय अनुभव को देखने के लिए ऐसे तरीके प्रस्तुत किए जाते हैं जो अन्य मानवीय अनुशासनों में उपलब्ध नहीं होते। इतिहास घटनाओं के विकास पर विचार करता है अतः यह दिखाता है कि कुछ भी स्थिर नहीं है और अनुभव गतिशील एवं निरंतर है। इतिहास यह बताता है कि इस समय जो घटित हो रहा है वह महत्वपूर्ण है लेकिन लोगों के सामने पहले भी समस्याएँ थी जिनका उन्होंने समाधान किया था। इतिहास अपने अध्ययनकर्ता एवं लेखक को जो सर्वाधिक मूल्यवान योगदान करता है वह यह है कि इसके द्वारा वर्तमान को उचित महत्व दिया जाता है।
(2) व्यक्ति और समाज दोनों का अध्ययन
इतिहास का संबंध दोनों से रहता है। अन्य समाज विद्वानों की भाँति इतिहासकारों की रुचि इस बात से रहती है कि स्त्री और पुरुष सामाजिक प्राणी के रूप में साथ-साथ क्यों और कैसे कार्य करते हैं। समाज विद्वानों के साथ अपने संपर्क-सूत्रों के कारण इतिहास समान परिकल्पनाओं और निष्कर्षों का प्रयोग करते हुए यह जानकारी प्राप्त करता है कि लोगों ने अपनी संस्थाओं का विकास किस प्रकार किया। इन संस्थाओं का प्रयोग किस प्रकार किया गया तथा राजनीतिक, सामाजिक एवं सांस्कृतिक संरचना में इन्होंने कैसे कार्य किया। इतिहासकार का उद्देश्य एक उपन्यासकार की भाँति उस वास्तविकता की पून: खोज करना, ग्रहण करना तथा हमारे सामने प्रस्तुत करना है जो समय के कारण हमसे दूर हो चुकी थी अर्थात् इसका उद्देश्य अनुभव के आधार पर कार्यों के पीछे निहित कारणों से खोजना है।
(3) इतिहास मार्ग-दर्शक है
इतिहास की रुचि कारणों में होती है अतः यह सामाजिक प्रक्रिया की हमारे विचारों को बढ़ाता है और स्पष्ट करता है। यह हमारे सम्मुख कुछ सामाजिक समस्याओं के बारे में अधिक अनुशासित दृष्टिकोण प्रस्तुत करता है। सन्तयना का यह प्रसिद्ध कथन है कि “जो लोग इतिहास को नहीं जानते, वे निश्चित रूप से इसे दोहराते हैं।” जब हम यह जान लेते हैं कि अतीतकाल में समाज का संचालन किस प्रकार हुआ था जो हम वर्तमान में अन्तनिर्हित संभावनाओं तथा विकल्पों को भी जान लेते हैं। इतिहास निश्चित रूप से वर्तमान को यह नहीं बता सकता कि क्या करना है लेकिन यह पुरानी गलतियों को दोबारा करने पर रोक लगाने में सहयोग कर सकता है। आज का समाज अतीत में से कुछ ऐसे तत्व खोज सकता है जो इसके निर्देशन के लिए उपयोगी हों।
(4) अनुभवों का अध्ययन
इतिहास व्यक्तिगत एवं सामूहिक दोनों प्रकार के मानवीय अनुभवों की विलक्षणता पर जोर देता है। जब हम इतिहास का अध्ययन करते हैं तो ज्ञान जाते हैं कि जीवन विशिष्ट और परिवर्तनशील है तथा इसके प्रत्येक टुकड़े की अपनी एकाग्रता है। अतीत और वर्तमान के मध्य चाहे कितनी ही आकर्षक एकरूपता क्यों ना विद्यमान हो, हमें शीघ्र ही यह ज्ञात हो जाता है कि अतीत को वास्तव में दोहराया नहीं जा सकता। इतिहास पूर्ण रूप से अपने आप को कभी नहीं दोहराता। इतिहास हमें यह चेतावनी देता है कि हम पुनरावृत्ति पर विश्वास नहीं कर सकते। हम यह नहीं मान सकते कि जो एक बार सफल या सफल रहा वह पुनः भी ऐसा ही रहेगा। इतिहास हमें आत्मविश्वास तथा सरल उत्तरों के प्रति चेतावनी देता है। यह हमें स्मरण करता है कि हम मानवीय हैं। जॉर्ज केनन ने एक बार कहा था कि वैज्ञानिक और तकनीकी परिवर्तन के इस युग में जबकि विभिन्न ग्रह मनुष्यों की पहुँच के क्षेत्र में आ रहे हैं, यह आवश्यक है कि मनुष्य अपनी जाति का स्मरण करें, अपनी सीमाओं का ध्यान रखें तथा अपनी परिस्थितियों के दुखात्मक एवं आशाप्रद मूलभूत तत्वों का ध्यान रखे। इस प्रकार के स्मरण व्यक्ति को इतिहास और केवल इतिहास ही कर सकता है।
(5) अतीत का अध्ययन
अन्य शास्त्रों का कार्य अनुभवों की रक्षा, संचरण एवं व्याख्या करना है लेकिन इतिहास के परिप्रेक्ष्य में हम अतीत का अध्ययन व मनन करते हैं व अतीत की घटनाओं का पुनर्मूल्यांकन कर भविष्य को संवारने के लिए पुनर्व्याख्यायित करते है। यह अतीत को वर्तमान की समझ के योग्य बनाता है तथा इसकी इस प्रकार व्याख्या करता है कि प्रत्येक पीढ़ी प्रयोग कर सके। इतिहासकार वास्तव में यथार्थ अतीत से संबंध रहते हैं। ये वास्तविकता की विशेष योजना से बंधे रहते हैं तथा लिखित तारीख के कठोर नियमों से चिपके होते हैं। यह सच है कि इतिहास तथ्यों को महत्व देता है लेकिन तथ्य स्वयं नहीं बोलते। वे तभी कुछ कहते हैं जब उनका चयन प्रबंधन एवं व्याख्या की जाती है। ऐसी स्थिति में तथ्य नहीं वरन् अनुभव महत्वपूर्ण बन जाता है। तथ्यों के अंतर्दृष्टि के साथ गुण, स्वभाव एवं जीवन के अर्थ से जोड़ा जाता है।
(6) अधिक चयन और निर्णय
साहित्य दर्शन एवं कला की अपेक्षा इतिहास चयन तथा निर्णय अधिक करता है। यह बार-बार मानवीय संस्कृति को बदल देता है। जिस अनुभव को पूर्व संतति ने अस्वीकार कर दिया था उसमें यह नई संतति तलाश करता है। यह उसे अतीत को संजोए रखता है जो वर्तमान में तो अपनी उपयोगिता को चुकी है लेकिन जिसे भावी संतति नया अर्थ दे सकती है। सेमुअल इलियट मोरीसन के शब्दों में इतिहासकार को यह करना चाहिए कि अतीत को रचनात्मक रूप से वर्तमान से संबंधित कर दे। इस प्रकार इतिहासकार का उद्देश्य मानवीय अनुभव के तथ्यों को न केवल तलाश करना तथा समझना है वरन् उनको अपने समय के नए सुझावात्मक तथा प्रेरक मूल्य प्रदान करके बोधगम्य बनाना है। यही कारण है कि इतिहास केवल लिखा नहीं जा सकता वरन् उसका पुनर्लेखन किया जाता है।
(7) कठोर नियतिवादी नहीं
इतिहास कठोर नियतिवादी नहीं होते अर्थात् वे यह नहीं सोचते कि निश्चित कारकों का एक सेट (वर्ग या समूह) मानवीय व्यवहार को निर्धारित करता है तथा उनके कार्यों को संपन्न करता है। ऐसी स्थिति में अतीतकालीन मानव-व्यवहार को पढ़ने का महत्व संदिग्ध हो जाता है क्योंकि तब इसे बदला नहीं जा सकता। लोग अपने अतीत की भूलों से सीखने में असमर्थ रहते हैं। इसके अतिरिक्त इतिहासकार किसी एक व्यक्ति या घटना को अलग-थलग नहीं रख सकते। मानवीय घटनाएँ शुन्य में घटित नहीं होती और इसलिए वे व्यक्तियों को प्रभावित करती हैं तथा इस प्रकार अन्य घटनाओं को प्रभावित करती है। फलत: सभी ऐतिहासिक घटनाएँ व्यापक परिप्रेक्ष्य में देखी जानी चाहिए।
(8) मूल्यात्मक निर्णय
इतिहासकार को अपने विचारणीय ऐतिहासिक विषय के बारे में ठोस मूल्यात्मक निर्णय देने चाहिए अन्यथा किसी घटना के दीर्घकालीन महत्व को निर्धारित करने में असफल रहने तथा मात्रा तत्कालीन घटना पर ही सीमित रहने से वह अपने महत्वपूर्ण कार्यों से वंचित रह जाएँगे।
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