गुप्त काल के इतिहास के स्रोतों का वर्णन - UPSC

गुप्तकाल से संबंधित कुछ महत्वपूर्ण बिंदुओं पर चर्चा करेंगे जैसे —

1. गुप्तकाल के इतिहास पर प्रकाश डालने वाले प्रमुख स्रोतों का वर्णन कीजिए।

2. गुप्तकालीन इतिहास के स्रोतों का उल्लेख कीजिए?

3. गुप्तकाल के इतिहास के स्रोत 

गुप्त काल के इतिहास के स्रोतों का वर्णन - UPSC

गुप्तकाल के इतिहास के स्रोत

गुप्त वंश के इतिहास के स्रोत - गुप्त वंश को जानने के लिए निम्न सामग्री उपलब्ध है— 

(1) पुरातत्व सामग्री (2) साहित्यिक सामग्री (3) विदेशियों के विवरण 

(1) पुरातत्व सामग्री 

पुरातत्व सामग्री को तीन भागों में बांटा गया है— 

(१) सिक्के 

गुप्तकालीन सिखों से भी गुप्त वंश के इतिहास के निर्माण में बड़ी सहायता मिलती है। गुप्त शासको ने सोने, चांदी तथा तांबे के सिक्के प्रचलित किए थे। इन सिक्कों से गुप्त सम्राटों के नाम, उपाधि, धर्म, चरित्र और उनके साम्राज्य की सीमाओं आदि के बारे में जानकारी मिलती है। समुद्रगुप्त के एक सिक्के पर अश्वमेध घोड़े का चित्र उत्पीड़न है जिससे यह ज्ञात होता है कि उसने अश्वमेध यज्ञ भी संपन्न किया था। समुद्रगुप्त के कुछ सिक्के पर उसे वीणा बजाते हुए तथा शिकार खेलते हुए दिखाया गया। इससे यह स्पष्ट होता है कि यह संगीत प्रेमी तथा शिकार खेलने का शौकीन भी था। गुप्त काल के सिक्कों पर विष्णु तथा गरुड़ के चित्रों का अंकित होना इस बात का परिचायक है कि गुप्त शासक वैष्णव धर्मावलंबी थे। इसके अतिरिक्त गुप्त काल के सिक्कों से तत्कालीन कला, भाषा एवं आर्थिक स्थिति के बारे में भी जानकारी मिलती है।

(२) अभिलेख 

गुप्त काल के अनेक उत्कीर्ण लेख, शिलाओं, स्तंभों, चट्टानों, लौह स्तंभों, ताम्रपत्रों एवं गुफाओं पर मिले हैं। हरिषेण द्वारा रचित प्रयाग स्तंभ लेख'से हमें समुद्रगुप्त की विजयों एवं उसके जीवन चरित्र के बारे में जानकारी प्राप्त होती है। महरौली अभिलेख से हमें चंद्रगुप्त द्वितीय के विषयों के बारे में जानकारी मिलती है। स्कंद गुप्त के भीतरी अभिलेख से उसके पुष्यमित्रों के विरुद्ध युद्ध का विवरण प्राप्त होता है, जिससे हमें गुप्त काल के बारे में और अधिक जानने को मिलता है।

(३) भवन तथा कलाकृतियां

गुप्त शासको ने भूमरा, तिगवा, देवगढ़ आदि स्थानों पर कई मंदिर बनवाए थे। इन मंदिरों से हमें गुप्तकालीन धार्मिक अवस्था तथा वास्तुकला के बारे में ज्ञान प्राप्त होता है। गुप्तकालीन महरौली लौह स्तंभ तत्कालीन कला का श्रेष्ठ नमूना है। इससे यह भी पता चलता है कि उसे समय धातु विज्ञान के क्षेत्र में बहुत उन्नति हो चुकी थी। सारनाथ, सांची एवं मथुरा आदि स्थानों से गुप्त काल की मूर्तियां प्राप्त हुई है जिनसे उसे समय की मूर्ति कला की उन्नति के बारे में जानकारी मिलती है। गुप्त काल में हिंदू देवी देवताओं, बौद्ध एवं जैन तीर्थवारों की मूर्तियां प्राप्त हुई है। जिससे इस बात का पता चलता है कि गुप्त शासक धर्म सहिष्णु थे और सभी धर्मों का आदर करते थे। इसी प्रकार एलोरा तथा अजंता की गुफाओं के चित्र उसे कल की चित्रकला तथा सामाजिक अवस्था पर भी प्रकाश डालते हैं।

(2) साहित्यिक सामग्री

साहित्यिक सामग्री भी दो तरह की होती हैं—

(१) धार्मिक साहित्य

धार्मिक साहित्य के अंतर्गत निम्नलिखित ग्रंथों से इतिहास के विषय में जानकारी प्राप्त होती है—

(1) स्मृतियां

विद्वानों का मत है कि अधिकांश स्मृतियों की रचना गुप्त काल में ही हुई थी। स्मृतियों से गुप्तकालीन, राजनीतिक, सांस्कृतिक एवं आर्थिक अवस्थाओं के बारे में बहुमूल्य ज्ञान प्राप्त होता है।

(2) पुराण

ऐसा माना जाता है कि 18 पुराणों में से अधिकतर गुप्त काल में ही लिखे गए। पुराणों से हमें गुप्त सम्राटों के राज्य विस्तार, उनके शासन व्यवस्था आदि के बारे में जानकारी मिलती है। इसके अतिरिक्त इनसे गुप्तकालीन, सामाजिक, धार्मिक एवं आर्थिक अवस्था के बारे में भी बहुमूल्य जानकारी मिलती है।

(२) ऐतिहासिक तथा अर्ध ऐतिहासिक साहित्य

उनकी जानकारी भी पांच स्रोतों द्वारा की जा सकती है—

(1) कालिदास की कृतियां

कालिदास गुप्त काल का एक महान कवि तथा नाटककार था। उसने रघुवंश नमक महाकाव्य की रचना की जिसमें पूर्ववर्ती गुप्तों की वीरता का उल्लेख है। उसकी अन्य रचनाओं (मेघदूतम, कुमारसंभव, अभिज्ञान शाकुन्तलम) आदि से भी गुप्तकालीन राजनीति, शासन प्रबंध, सामाजिक रीति-रीवा जो आदि के बारे में जानकारी मिलती है। मेघदूत से गुप्त काल के प्रसिद्ध नगर उज्जैन के सौंदर्य, उसकी धन संपन्नता आदि का पता चलता है।

(2) कामन्दक नीतिसार

इस ग्रंथ से गुप्तकालीन राजनीतिक इतिहास के बारे में पता चलता है।

(3) देवी चंद्रगुप्तम

विशाखा दत्त द्वारा रचित देवी चंद्रगुप्तम नामक नाटक से पता चलता है कि चंद्रगुप्त द्वितीय ने अपने भाई राम गुप्त का वध करके उसकी पत्नी ध्रुवस्वामिनी के साथ विवाह किया था, इस ग्रंथ में चंद्रगुप्त द्वितीय के गद्दी पर बैठने का भी उल्लेख मिलता है।

(4) मंजूश्री मूलकल्प 

इस ग्रंथ में गुप्त राजाओं का क्रमबद्ध इतिहास मिलता। 

(5) मृच्छकटिकम 

शूद्र द्वारा रचित ‘मृच्छकटिकम’ नामक नाटक से गुप्त कालीन शासन पद्धति, न्याय व्यवस्था, सामाजिक अवस्था, राजनीतिक अवस्था आदि के बारे में जानकारी मिलती है।


(3) विदेशियों के विवरण 

चीनी यात्रियों की यात्रा वृतांतों से भी गुप्तकालीन इतिहास के बारे में पता चलता है, यह तीन चीनी यात्री कुछ इस प्रकार थे— 

(१) ह्वेनसांग 

 ह्वेनसांग यह एक चीनी यात्री था जो हर्षवर्धन के साथ में भारत आया था। वैसे इसका कार्य मुख्यतः हर्षवर्धन के शासनकाल से संबंधित है, परंतु प्रसंग वश उसके विवरण से गुप्त शासको के बारे में भी जानकारी होती है। उसने अनेक गुप्त सम्राटों का उल्लेख किया है और उसे समय के नगरों का उल्लेख भी किया है।

(२) इत्सिंग 

यह भी एक चीनी यात्री था जो सातवीं शताब्दी में भारत आया था। उसकी विवरण से यह पता चलता है कि गुप्तों द्वारा स्थापित नालंदा विश्वविद्यालय का भवन बड़ा विशाल था और वह एक अंतर्राष्ट्रीय शिक्षा केंद्र के रूप में विख्यात था।

(३) फाहयान 

 प्रसिद्ध चीनी यात्री फाह्यान चंद्रगुप्त द्वितीय के शासनकाल में भारत आया हुआ था। उसके विवरण से गुप्तकालीन इतिहास पर पर्याप्त प्रकाश पड़ता है। उसने चंद्रगुप्त द्वितीय के राजा प्रासाद एवं उसकी राजधानी तथा तत्कालीन सामाजिक धार्मिक एवं राजनीतिक अवस्था का बड़ा सुंदर वर्णन किया है।

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