भूमंडलीकरण क्या है? इसके अन्तर्निहित तत्व कौन-कौन‌ से है?

भूमंडलीकरण से संबंधित कुछ महत्वपूर्ण बिंदुओं पर चर्चा करेंगे जैसे — 

1. भूमंडलीकरण किसे कहते हैं

2. भूमंडलीकरण की संकल्पना स्पष्ट कीजिए। इसके अन्तर्निहित तत्व कौन-कौन‌ से है? विवेचना कीजिए।

3. भूमंडलीकरण क्या है? 

भूमंडलीकरण क्या है? इसके अन्तर्निहित तत्व कौन-कौन‌ से है?

भूमंडलीकरण (globalization) 

प्रत्येक देश की अपनी एक अर्थव्यवस्था होती है। पिछले कुछ दशकों में सभी देशों का यह प्रयास रहा है कि पूरे विश्व को ही एक अर्थव्यवस्था एवं एक विश्व का रूप दिया जाए। विभिन्न देशों द्वारा भूमंडलीकरण एवं उदारीकरण की प्रतिक्रियाएं इन्हीं लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए प्रारंभ की गई है। यह दोनों जुड़वा प्रक्रियाएं मानी जाती हैं तथा इन प्रक्रियाओं का प्रत्येक देश की अर्थव्यवस्था एवं सामाजिक व्यवस्था पर दूरगामी प्रभाव पड़ता है।

भूमंडलीकरण का अर्थ 
(meaning of globalization)

एक प्रक्रिया के रूप में भूमंडलीकरण को राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था के विश्व अर्थव्यवस्था से अंतर्गरथन के रूप में परिभाषित किया जा सकता है। द्विपक्षीय या बहुपक्षीय है व्यापार व वित्तीय समझौते से भिन्न यह वह प्रक्रिया है जिसमें राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था के द्वारा विश्व स्तर पर उपलब्ध आर्थिक अवसरों से लाभान्वित होने का विचार अंतर्निहित है। द्विपक्षीय या बहुपक्षीय समझौता या अंतरराष्ट्रीय व्यापार का विचार इसलिए एक सीमित अवधारणा है क्योंकि इसके अंतर्गत दो या दो से अधिक राष्ट्र किसी निश्चित अवधि या उद्देश्य के लिए परस्पर सहयोग करते हैं। भूमंडलीकरण एक व्यापक अवधारणा है जिसका मौलिक मंतव्य यह है कि प्रत्येक राष्ट्र को विश्व स्तर पर उपलब्धता अवसर, संसाधन, ज्ञान और तकनीक शुगम रूप से उपलब्ध होने चाहिए। इसमें एक अन्य आधारभूत मानता ही होगी है कि विश्व स्तर पर उपलब्ध सुविधाओं तक प्रत्येक राष्ट्र की पहुंचे तभी संभव है जबकि विभिन्न राष्ट्रों के मध्य पूंजी, तकनीक, मानव संसाधन, कच्चे माल तथा निर्मित वस्तुओं का आवागमन निर्बाध रूप से हो।

  विश्व स्तर पर प्रायः यह देखने में आया है कि संरक्षणवाद अंतरराष्ट्रीय स्तर पर व्यापारिक प्रतिस्पर्धाओं को राजनीतिक व सैनिक तनावों और युद्धों में बदल देता है। इसीलिए द्वितीय विश्व युद्ध के पश्चात विश्व समुदाय ने इस स्थिति से बचने के लिए ‘अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष’ (IMF), ‘विश्व बैंक’ (IBRD) तथा ‘प्रशुल्क एवं व्यापार पर सामान्य समझौता’ (GATT) जैसी संस्थाएँ सृजित की हैं जिनका उद्देश्य अंतरराष्ट्रीय स्तर पर स्वतंत्र प्रतियोगी वातावरण तैयार करना है। इन संस्थाओं ने पूंजी, तकनीक व वस्तुओं के स्वतंत्र प्रवाह के लिए जितने भी उपाय किए उनमें सबसे अधिक महत्वपूर्ण 15 अप्रैल, 1994 ई को मोरक्को के मराकश नगर में गैट के आठवें राउंड पर हुई संधि है जिसके द्वारा ‘विश्व व्यापार संगठन’ (WTO) की स्थापना की गई है।


            भूमंडलीकरण में अन्तनिर्हित तत्व

भूमंडलीकरण की प्रक्रिया में मुख्य रूप से निम्नलिखित तत्व निहित है—

(1) आंतरिक व अन्तर्राष्ट्रीय बाजार में सरकार का हस्तक्षेप अवांछनीय है। दोनों बाजारों में सरकारों का प्रत्यक्ष उत्पाद, वितरण में हस्तक्षेप नहीं होना चाहिए। अनुदानों और करों के द्वारा उद्यमों और उद्योगों को राष्ट्रीय व अन्तर्राष्ट्रीय बाजार में संरक्षित करना अदक्षता को बढ़ावा देता है जो कि अंततः उपभोक्ताओं के हितों में प्रतिकूल है।

(2) अन्तर्राष्ट्रीय बाजार में मुद्रा की विनिमय दरें, बाजार के द्वारा निर्धारित होनी चाहिए। ऐसा होने पर ही पूँजी आधिक्य-क्षेत्र से अल्पता-क्षेत्र की ओर प्रवाहित होगी।

(3) अन्तर्राष्ट्रीय बाजार में सीमा शुल्क, कोटा व अन्य प्रतिबंधों के द्वारा अदक्षता को प्रोत्साहन मिलता है।अन्तर्राष्ट्रीय विशिष्टीकरण में इन वाधक तत्वों को शनै: शनै: समाप्त किया जाना चाहिए।

(4) विश्व स्तर पर बौद्धिक संपदा संरक्षण के लिए समान कानून होने चाहिए। इसलिए प्रत्येक राष्ट्र को अन्य राष्ट्रों में हुए तकनीकी ज्ञान के संवर्धन को समान महत्व व  संरक्षण देना चाहिए।

(5) विश्व स्तर पर पूँजी का आवागमन निर्बाध होना चाहिए। प्रत्येक राष्ट्र को दूसरे राष्ट्र के नागरिकों द्वारा अपनी अर्थव्यवस्था में निवेश करने व अर्जित लाभ को ले जाने की स्वतंत्रता प्रदान की जानी चाहिए।

(6) विश्व स्तर पर तकनीकी के निर्बाध आवागमन की भाँति मानव संसाधनों का भी आवागमन स्वतंत्र होना चाहिए।

         

   यह तथ्य उल्लेखनीय है की भूमण्डलीकरण की प्रक्रिया में विकासशील राष्ट्र हिचकिचाते हुए सम्मिलित हुए हैं। उनका विचार है की पूर्णतया स्वतंत्र बाजार-आधारित विश्व अर्थव्यवस्था में वे अपने तकनीकी पिछड़ेपन, मानवीय संसाधनों के निम्न स्तर व पूँजी की कमी के कारण यथोचित रूप से समायोजित नहीं हो पा रहे हैं। उनका यह भी विचार है कि वस्तुओं, पूँजी तथा तकनीक के विनिमय को निर्बाधित करने में विकसित देश अत्यधिक सक्रियता दिखाते हैं क्योंकि इन क्षेत्रों में उनका वर्चस्व है। आव्रजन कानूनों को अत्यधिक कठोर बनाकर विकसित राष्ट्र विकासशील राष्ट्रों की श्रम शक्ति को अपने यहाँ नहीं आने देना चाहते। इसके अतिरिक्त बाल श्रमिक, पर्यावरण संरक्षण आदि मुद्दों को विश्व स्तर से संबंध करने के विकसित राष्ट्रों के प्रयास भी विकासशील राष्ट्रों के व्यापार को हतोत्साहित करने के उपाय हैं। विकासशील राष्ट्रों को ये भी आशंका है कि विकसित राष्ट्र पिछड़ी अर्थव्यवस्थाओं में निवेश कर तथा निरंतर विस्तृत होते जा रहे बाजारों का उपभोग कर भारी मात्रा में लाभ अर्जित करते हैं। वे इस लाभ को विकासशील राष्ट्रों में निवेश नहीं करते बल्कि अपने देशों में ले जाते हैं। यह स्थिति एक प्रकार से औपनिवेशिक विदोहन (Colonial exploitation) की भाँति ही है। इसी प्रकार विकसित राष्ट्रों की बड़ी-बड़ी बहुराष्ट्रीय व्यापारिक कंपनियाँ विकासशील राष्ट्रों में उपलब्ध अवसरों का लाभ उठाने को तत्पर रहती है परंतु इन राष्ट्रों की चिरकालिकता चिरकालिक बेरोजगारी की समस्या व तकनीकी पिछड़ेपन का कोई उपचार प्रस्तुत नहीं करतीं। उनके विद्वान् यह भी मानते हैं कि पश्चिमी जीवन शैली का अन्धानुकरण भूमण्डलीकरण का ही एक परिणाम है जो कि विकासशील राष्ट्रों में विकास लक्ष्यों की प्राप्ति में बहुत बड़ी बाधा उत्पन्न करता है।


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