विवाह का अर्थ, परिभाषा, उद्देश्य तथा महत्व

विवाह

मानव समाज में विवाह एक प्राचीन तथा महत्वपूर्ण संस्था है जो कि सार्वभौमिक है; अर्थात सभी समाजों में किसी-न-किसी रूप में विद्यमान पाई जाती है। हिंदू समाज में तो इसे विशेष महत्व प्रदान किया गया है। आश्रम व्यवस्था में ग्रस्त आश्रम में विवाह द्वारा प्रवेश करना एक अनिवार्य कर्म ठहराया गया है। प्रायः विवाह का मुख्य उद्देश्य स्त्री तथा पुरुष के यौन संबंधों को नियंत्रित को तथा नियमित करना माना जाता है। परंतु हिंदू धर्म के अनुसार विवाह के एक नहीं बल्कि अनेक उद्देश्य होते हैं जिनमें धर्म तथा प्रजा (सन्तान) प्रमुख है और यौन संबंधों की संतुष्टि अंतिम उद्देश्य है। 

विवाह किसे कहते है? 

विवाह एक सामाजिक संस्कृति और धार्मिक अथवा कानूनी संबंध है, जिसमें एक पुरुष और एक स्त्री एक दूसरे के साथ अपने जीवन को सजा करने का आदान-प्रदान करते हैं। विवाह समाज में स्थाई और कानूनी संबंध बनाता है जो सामाजिक और आर्थिक सुरक्षा प्रदान करता है। 

विवाह का अर्थ तथा परिभाषा

विवाह समाज द्वारा मान्यता प्राप्त एक सामाजिक संस्था है, जिसमें स्त्री पुरुष को काम इच्छा की संतुष्टि के लिए समाज द्वारा स्वीकृति प्रदान की जाती है। समाज की यह स्वीकृति कुछ संस्कारों को पूरा करने के पश्चात ही प्राप्त होती है। इस अर्थ में विवाह यौन संबंधों के नियंत्रण एवं नियमन का साधन भी है। अन्य शब्दों में, समाज द्वारा अनुमोदित स्त्री पुरुष के सहयोग को विवाह कहते हैं।

बहुत से समाज शास्त्रियों ने विवाह को निम्न प्रकार परिभाषित किया है—

(1) जेम्स के अनुसार — “विवाह मानव समाज में सार्वभौमिक रूप से पाई जाने वाली वह संस्था है जो कि यौन संबंध, ग्रह संबंध, प्रेम तथा मानवीय स्तर पर व्यक्तित्व के जैवकीय, मनोवैज्ञानिक, सामाजिक, नैतिक व आध्यात्मिक विकास की आवश्यकताओं को पूरा करती है।” 

(2) वेस्टमार्क के अनुसार — “विवाह एक अथवा अधिक पुरुषों का एक अथवा अधिक स्त्रियों के साथ होने वाला वह संबंध है जो प्रथम वह कानून द्वारा स्वीकृत होता है और जिसमें संगठन में आने वाले दोनों पक्षों तथा उनसे उत्पन्न बच्चों के अधिकारों वह कर्तव्यों का समावेश होता है।” 

(3) गिलिन के अनुसार — “विवाह एक प्रजनन मूलक परिवार की स्थापना का समाज द्वारा स्वीकृत तरीका है।” 

परिभाषाओं का सार 

 ‌ इन सभी परिभाषाओं के आधार पर यह कहा जा सकता है कि विवाह एक सामाजिक संस्था है, जिसके अंतर्गत स्त्री पुरुष समाज द्वारा मान्यता प्राप्त ढंग से आपस में पति-पत्नी के रूप में यौन संबंध स्थापित करके बच्चों को जन्म देते हैं तथा उनका समुचित पालन पोषण करते हैं। 

विवाह के प्रमुख उद्देश्य 

(1) यौन सुख की संतुष्टि

प्राय: विवाह का उद्देश्य यौन-सुख प्राप्त करना माना जाता है। विवाह व्यक्ति को समाज द्वारा स्वीकृत तरीके से अपनी यौन इच्छा की तृप्ति करने का अवसर प्रदान करता है। विवाह संस्था के अंतर्गत स्थापित हुए यौन संबंधों को ही समाज द्वारा मान्यता प्रदान की आती है। यह एक सामाजिक समाज का हिस्सा है।

(2) संतानोत्पत्ति एवं बच्चों को सामाजिक स्थिति प्रदान करना

विवाह का दूसरा उद्देश्य संतान उत्पन्न करना है क्योंकि प्रत्येक व्यक्ति अपने वंश की निरंतरता को बनाए रखना चाहता है। विवाह द्वारा उत्पन्न संतान ही उसके वंश को चलाती है। विवाह के परिणाम स्वरुप उत्पन्न हुई संतान को सामाजिक एवं वैधानिक मान्यता प्राप्त होती है।

(3) आर्थिक तथा सामाजिक उद्देश्य

कुछ विद्वानों के अनुसार विवाह का उद्देश्य आर्थिक तथा सामाजिक आवश्यकताओं की पूर्ति करना भी है। स्त्री पुरुष विवाह द्वारा गृहस्ती का निर्माण करते हैं तथा गृहस्थी चलाने हेतु आर्थिक व सामाजिक दृष्टि से भी सहयोग देते हैं। यह उद्देश्य अन्य उद्देश्यों की अपेक्षा कम महत्वपूर्ण है।

(4) परिवार का निर्माण करना 

विवाह केवल यौन संतुष्टि का साधन मात्र ही नहीं है, अभी तो इससे स्त्री और पुरुष पत्नी एवं पति के रूप में परिवार का निर्माण करते हैं। विवाह का सर्वप्रथम उद्देश्य है कि एक संजीव और सुसंगत परिवार की रचना करना।

(5) मनोवैज्ञानिक उद्देश्य 

विवाह का उद्देश्य स्त्री पुरुष को मानसिक संतोष प्रदान करना भी है। मानसिक संतोष के करण ही परिवार के सदस्य बड़े से बड़ा दुख सहन करने को तत्पर रहते हैं।

(6) संबंधों में स्थायित्व

विवाह का एक अन्य उद्देश्य स्त्री पुरुष संबंधों में स्थायित्व लाना है। विवाह नामक संस्था क्योंकि समाज द्वारा स्वीकृत होती है इसलिए यह समझ में स्थाई संबंधों की स्थापना और उन्हें स्थायित्व प्रदान करने में सहायक है।

विवाह का महत्व 

(1) विवाह के आधार पर स्त्री पुरुष के यौन संबंध नियमित होते हैं। एक विवाह की अवधारणा इस क्षेत्र में आदर्श है।

(2) विवाह से ही बच्चों को वैधता प्राप्त होती है तथा उनका निश्चित सामाजिक स्थिति प्राप्त होती है।

(3) विवाह की संस्था के अंतर्गत जन्म लेने वाले बच्चों का उत्तम पालन पोषण होता है तथा उन्हें शारीरिक, आर्थिक एवं सामाजिक सुरक्षा प्राप्त होती है।

(4) विवाह के आधार पर गठित परिवार अधिक स्थाई एवं सुसंगठित होता है।

(5) विवाह के बंधन में जुड़े स्त्री पुरुष में हर प्रकार का सहयोग पाया जाता है, जो जीवन को सरल तथा सुविधाजनक बना देता है।

(6) विवाह से विभिन्न संबंधों को स्थायित्व प्राप्त होता है। स्त्री पुरुष तथा माता-पिता एवं संतान के संबंध सुदृढ़ होते हैं तथा स्थाई रहते हैं।

(7) विवाह की संस्था ने समाज में यौन व्यभिचार को नियंत्रित करने में अभूतपूर्व योगदान दिया है।

(8) विवाह एक परिवार की नींव होती है। यह समझ में विभिन्न प्रकार के रिश्तों को स्थापित करता है और एक समृद्धि भरा परिवार बनाने में मदद करता है।

(9) विवाह से व्यक्ति को समझ में उच्च और निम्न वर्ग में स्थिति प्राप्त हो सकती है। यह एक व्यक्ति की सामाजिक पहचान को निर्धारित करने में मदद करती है।

(10) विवाह धार्मिक और सामाजिक मूल्यों का पालन करने में मदद करता है। यह व्यक्तियों को धार्मिक अनुसार जीवन जीने का एक माध्यम प्रदान करता है।

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