वर्धा प्रस्ताव 1942 क्या है? | Wardha Proposal

वर्धा प्रस्ताव 1942 क्या है? | Wardha Proposal

 वर्धा प्रस्ताव 1942 (Wardha Proposal 1942)

  जुलाई 1942 के मध्य में कांग्रेस कार्य समिति की बैठक वर्धा में हुई जिसने महात्मा गांधी के विचारों का समर्थन किया। 14 जुलाई को कार्य समिति ने एक प्रस्ताव पास किया जिसमें कहा गया कि, “जो घटनाएं प्रतिदिन घट रही हैं और भारतवासियों को जो अनुभव हो रहे हैं उनसे कांग्रेसी कार्यकर्ताओं की यह धारणा पुष्ट होती जा रही है कि भारत में ब्रिटिश शासन का अंत अति शीघ्र होना चाहिए।” दासत्व श्रृंखला में जकड़ा हुआ भारत अपनी ही रक्षा ने काम में, और मानवता का विध्वंस करने वाले युद्ध के भाग्य-चक्र को प्रभावित करने में, पूरा-पूरा भाग नहीं ले सकता। इस प्रकार भारत की रक्षा ने केवल भारत के हित में आवश्यक है, वरन् संसार की सुरक्षा के लिए और नाजीवाद, फासिस्टवाद, सैनिकवाद और अन्य प्रकार के साम्राज्यवादी एवं एक राष्ट्र पर दूसरे राष्ट्र के आक्रमण का अंत करने के लिए भी। समिति की धारणा है कि सब प्रकार के आक्रमणों का प्रतिरोध होना ही चाहिए; क्योंकि इसके आगे झुक जाने का अर्थ आवश्यक ही भारतीयों का पतन और उनकी परतंत्रता का जारी रहना होगा। कांग्रेस नहीं चाहती थी कि मलाया, सिंगापुर और बर्मा पर जो बीती है वहीं भारत पर भी बीते।

     कांग्रेस की हार्दिक इच्छा है कि वह..... जनता को सम्मिलित इच्छा और शक्ति के बल पर भारत को आक्रमण का सफल प्रतिरोध करने के योग्य बनाये। भारत में ब्रिटिश सत्ता के उठा लिए जाने का प्रस्ताव पेश करने में कांग्रेस की यह इच्छा नहीं है कि इससे ब्रिटिश अथवा मित्र-राष्ट्र को भारत पर आक्रमण करने या पर दबाव बढ़ाने को प्रोत्साहन मिले और न कांग्रेस मित्र-राष्ट्रों की रक्षा शक्ति को हानि पहुंचाने का इरादा करती है। इसलिए जापानियों के या किसी और के आक्रमण को दूर रखने या उनका प्रतिरूप करने के लिए या चीन की रक्षा और सहायता के लिए कांग्रेस भारत में मित्र-राष्ट्रों की सशस्त्र सेनाओं को टिकाने के लिए यदि उनकी इच्छा हो, राजी है। भारत से ब्रिटिश सत्ता के हटा लिए जाने के प्रस्ताव का उद्देश्य और कभी नहीं था कि भारत के सारे अंग्रेज और निश्चित ही वे अंग्रेज विदा हो जाए जो भारत में अपना घर बनाकर वहाँ दूसरों के साथ नागरिक और समानाधिकार बनाकर रहना चाहते हैं। एतएव यदि वह अपील व्यर्थ गई, तो कांग्रेस वर्तमान स्थिति के स्थायित्व को जिससे परिस्थिति का धीरे-धीरे बिगड़ना और भारत की आक्रमण विरोधी शक्ति और इच्छा का दुर्बल होना स्वाभाविक है, घोर आशंका की दृष्टि से देखेगी। उस स्थिति में कांग्रेस का अपनी समस्त अहिंसात्मक शक्ति का— जो सन् 1920— जबकि इसने राजनीतिक अधिकारों एवं स्वाधीनता के समर्थन के लिए अहिंसा को अपनी नीति के एक अंग के रूप में स्वीकार किया था— के बाद संचित की गई है, अनिच्छापूर्वक उपभोग करने को बाध्य होना पड़ेगा। इस प्रकार की व्यापक संघर्ष का नेतृत्व अनिवार्य रूप से महात्मा गाँधी करें।” 

वर्धा प्रस्ताव के उद्देश्य

वर्धा की बैठक 7 से 15 जुलाई तक चली। इसका उद्देश्य महात्मा गाँधी जी से रूबरू बात करना था। उधर गाँधी जी के मन में पक्का विश्वास हो गया था कि— अंग्रेजों को हर हालत में भारत छोड़ देना चाहिए।

वर्धा कांग्रेस कार्य-समिति के सदस्यों में से जवाहरलाल, मौला आजाद, सैय्यद महमूद,आसफअली और गोविंद बल्लभ पंत के मन में धारणा थी कि इस कठिन समय में अंग्रेजों के विरुद्ध संघर्ष छोड़ना बुद्धिमानी की बात ना होगी। उन्होंने कहा कि चीन, रूस और अमेरिका हमारे प्रयोजनों को गलत समझेंगे और ब्रिटिश प्रचार तंत्र हमें जापानियों का मित्र कहकर बदनाम करेंगे। वे यह भी जानते थे कि ऐसी हालत में अंग्रेज आंदोलन को निर्ममता से कुचल देंगे। मगर गाँधी जी ने एक बार साफ कर दी— “यदि आप मेरे बताये खतरनाक रास्ते पर चलने को तैयार ना हों तो मैं अकेला ही उसे पर चलूंगा।”

अंत में नेहरू जी ने गाँधी जी की बात मान ली और उपर्युक्त प्रस्ताव पारित हो गया।


वर्धा प्रस्ताव के उपरांत
(After the wardha proposal)

वर्धा प्रस्ताव के उपरांत जनता में यह भावना जागृत हुई कि कांग्रेस की ओर से शीघ्र ही जन-आंदोलन की घोषणा की जाएगी, किंतु सोच-विचार कर ऐसी घोषणा नहीं की गई। 1 अगस्त, 1942 ई० को इलाहाबाद में तिलक-दिवस मनाया गया। इस अवसर पर पंडित जवाहरलाल नेहरू ने अपने भाषण के दौरान में कहा कि, “हम आग से खेलने जा रहे हैं, हम दुधारी तलवार का प्रयोग करने जा रहे हैं, जिसकी चोट उल्टी हमारे ऊपर भी बढ़ सकती है, लेकिन हम क्या करें? विवश है।” इसी समय बाबू राजेंद्र प्रसाद ने अपने एक भाषण में व्यक्त किया कि, “ हमको इस बार गोली खाने और तोप का सामना करने को तैयार रहना चाहिए।” सरदार पटेल ने मुंबई में कहा कि, “इस बार का आंदोलन थोड़े दिनों का, किंतु भयानक होगा।” इस प्रकार कांग्रेस के उच्च कोटि के नेताओं द्वारा जनता को आभास होने लगा कि कांग्रेस की ओर से एक भीषण आंदोलन चलने की व्यवस्था की जा रही है। भारत सरकार भी कांग्रेस की इस प्रतिक्रिया से उदासी नहीं थी। उसने सम्भावित जन-आंदोलन को कुचलना का निश्चय कर लिया था।

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