सर्वोच्च न्यायालय क्या है? गठन, नियुक्तियां तथा महत्व

सर्वोच्च न्यायालय क्या है? गठन, नियुक्तियां तथा महत्व

सर्वोच्च न्यायालय (Supreme Court)

 स्वतंत्र एवं सभ्य राज्य की प्रथम पहचान स्वतंत्र तथा निष्पक्ष न्यायपालिका है। कोई भी समाज बिना विधान मंडल के रह सकता है, किंतु ऐसे किसी सब्जेक्ट राज्य की कल्पना नहीं की जा सकती है जिसमें न्यायपालिका की कोई व्यवस्था न हो। भारत में संविधान तथा लोकतंत्र की रक्षा का दायित्व सर्वोच्च न्यायालय का ही है। स्वतंत्र भारत में सर्वोच्च न्यायालय का कार्यकरण बहुत गौरवपूर्ण रहा है तथा आम जनता में व्यक्ति के संवैधानिक अधिकारों और स्वाधीनता के प्रहरी के रूप में उसके प्रति अटूट श्रद्धा तथा सम्मान है। 

सर्वोच्च न्यायालय का गठन

भारत का उच्चतम न्यायालय राजधानी दिल्ली में स्थित है। सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की संख्या, सर्वोच्च न्यायालय का क्षेत्राधिकार, न्यायाधीशों के वेतन तथा सेवा शर्तों को निश्चित करने का अधिकार संसद को प्रदान किया गया है। सर्वोच्च न्यायालय ने समय-समय पर न्यायाधीशों की संख्या में वृद्धि की है। 1985 ईस्वी में सांसद ने न्यायाधीशों की संख्या बढ़ाकर 26 कर दी है। अब सर्वोच्च न्यायालय में एक मुख्य न्यायाधीश तथा 25 अन्य न्यायाधीश हैं। उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों की नियुक्ति भारत का राष्ट्रपति करता है। भारत के मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति के संबंध में राष्ट्रपति उच्चतम न्यायालय अथवा उच्च न्यायालय के ऐसे अन्य न्यायाधीशों से परामर्श लेता है, जिसे वह इस संबंध में परामर्श लेना आवश्यक समझता है। 

अन्य न्यायाधीशों की नियुक्ति के संबंध में जुलाई 1998 ई० को राष्ट्रपति द्वारा सर्वोच्च न्यायालय में भेजे गए स्पष्टीकरण प्रस्ताव पर विचार करते हुए 9 सदस्यी खंडपीठ ने सर्व समिति से निर्णय देते हुए स्पष्ट किया है कि सर्वोच्च न्यायालय में किसी न्यायाधीश की नियुक्ति तथा उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश अथवा किसी न्यायाधीश के स्थानांतरण के विषय में अपनी संस्तुतियों प्रेषित करने से पूर्व सर्वोच्च न्यायालय के चार वरिष्ठतम न्यायाधीशों तथा उच्च न्यायालय में नियुक्त करने से पूर्व दो वरिष्ठतम न्यायाधीशों से परामर्श किया जाना आवश्यक है। यदि दो न्यायाधीश भी विपरीत राय देते हैं तो मुख्य न्यायाधीश को सरकार को अपनी सिफारिश नहीं भेजनी चाहिए। 

न्यायाधीश नियुक्तियां (Adhoc Appointments) 

संविधान के अनुच्छेद 112 के अनुसार मुख्य न्यायाधीश राष्ट्रपति की पूर्व संस्कृति से तदर्थ नियुक्तियां भी कर सकता है। ऐसे नहीं आदेशों की नियुक्तियां किसी विशेष उद्देश्य की पूर्ति हेतु की जाती है।

(1) न्यायाधीशों की योग्यताएं 

उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश के लिए निम्नलिखित योग्यताएं होनी आवश्यक है—

(१) वह भारतीय नागरिक हो।

(२) वह किसी उच्च न्यायालय में काम से कम 5 वर्ष तक न्यायाधीश रह चुका हो, अथवा 10 वर्ष तक अधिवक्ता रहा हो।

 राष्ट्रपति की दृष्टि में कानून का महान ज्ञाता हो। कानून के महान ज्ञाता से सामान्य तात्पर्य विधि के प्राध्यापक महाधिवक्ता आदि से है।

(2) न्यायाधीशों का कार्यकाल तथा महाभियोग

उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश 65 वर्ष की आयु तक अपने पद पर कार्यरत रह सकते हैं। 65 वर्ष की आयु समाप्ति पर उन्हें सेवानिवृत्ति कर दिया जाता है। यदि कोई न्यायाधीश चाहे तो इससे पूर्वी राष्ट्रपति को त्यागपत्र देकर अपने पदभार से मुक्त हो सकता है। इसके अतिरिक्त उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश को प्रमाणित दुर्व्यवहार की स्थिति में संसद द्वारा महाभियोग की प्रक्रिया के माध्यम से राष्ट्रपति के द्वारा अपदस्थ किया जा सकता है। इसी प्रक्रिया के आधार पर सर्वोच्च न्यायालय की माननीय न्यायाधीश श्री रामास्वामी को हटाने का प्रयास संसद द्वारा किया गया था, परंतु न्यायाधीश रामास्वामी द्वारा पद त्याग दिए जाने के कारण महाभियोग की प्रक्रिया को समाप्त कर दिया गया।

(3) न्यायाधीशों की वेतन 

1998 ई० के एक अधिनियम के द्वारा सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश को 33000 प्रति माह और अन्य न्यायाधीशों को ₹30000 प्रति माह वेतन निर्धारण किया गया है तथा इसके साथ-साथ उन्हें निशुल्क आवास, सवेतन छुट्टियां तथा सेवानिवृत्ति प्राप्त करने पर पेंशन आदि की व्यवस्था की गई है।

सर्वोच्च न्यायालय का महत्व 

 प्रत्येक देश के अच्छे संविधान का मापदंड उसकी न्यायपालिका ही होती है। प्रो० गार्नर के अनुसार, “न्याय विभाग के अभाव में एक शब्द राज्य की कल्पना नहीं की जा सकती है।” वास्तु तो हो जिस देश में न्यायपालिका सशक्त नहीं होगी, उसे देश का शासन तंत्र सुदृढ़ नहीं होगा। एक संघीय प्रशासनिक व्यवस्था में एक सुदृढ़ निष्पक्ष एवं स्वतंत्र न्यायपालिका की व्यवस्था अवश्य होनी चाहिए; क्योंकि संघात्मक व्यवस्था में अनेक ऐसे अवसर आते हैं, जबकि राज्यों और संघ के मध्य विवाद उत्पन्न होते हैं। अतः ऐसी स्थिति में एक स्वतंत्र एवं शक्तिशाली न्यायपालिका ही दोनों के मध्य उत्पन्न विवादों का समाधान करके संविधान की रक्षा करती है। न्यायपालिका की इसी महत्व को ध्यान में रखते हुए भारतीय संविधान में पूर्ण शक्ति संपन्न उच्चतम न्यायालय की व्यवस्था की गई है।

एक स्वतंत्र, निष्पक्ष एवं सर्वोच्च न्यायपालिका सरकार की स्वेच्छाचारिता को रोकते हैं, संविधान और नागरिकों के मूल अधिकारों की रक्षा करती है। सर्वोच्च न्यायालय की आवश्यकता की विषय में प्रकाश डालते हुए डॉक्टर एम० वी० पायली ने अपना मठ व्यक्त किया है कि, “सर्वोच्च न्यायालय संघीय व्यवस्था का एक आवश्यक अंग है। यह संविधान की व्याख्या करने वाला उच्चतम अधिकारी है, साथी यह संघ तथा इकाइयों के मध्य उत्पन्न होने वाले विवादों का निर्णय करने वाला अंतिम अभिकरण है। भारत की संघीय प्रणाली में सर्वोच्च न्यायालय का यह सबसे बड़ा तथा महत्वपूर्ण कार्य है।” पुन्श्च:, “अपनी विविध और व्यापक शक्तियों के कारण सर्वोच्च न्यायालय देश के न्याय क्षेत्र में सर्वश्रेष्ठ संस्था है तथा देश के संविधान का रक्षक है।” 

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