भारत में हरित क्रांति (green revolution in india)
Bharat mein harit Kranti ke parinaam ;ग्रामीण भारत का प्रमुख व्यवसाय कृषि रहा है। यह कृषि भी जीवन यापन के रूप में की जाती रही है। परंतु नवीन ज्ञान वह तकनीकी के द्वारा खेती एक व्यवसाय के रूप में विकसित होने लगी है। उन्नत बीज, उन्नत खाद और सिंचाई की उपलब्ध नहीं सदनों ने भारतीय ग्रामों में हरित क्रांति का श्री गणेश किया है। पंजाब, हरियाणा, पश्चिमी उत्तर प्रदेश, तटीय आंध्र प्रदेश तथा तमिलनाडु के कुछ हिस्से इस दिशा में अग्रणी है। वैज्ञानिक दृष्टि से आधुनिक कृषि यंत्रों का प्रयोग किया जाने लगा है और ज्यादातर नकद फसल बोने का प्रयास किया जाता है। साल में फसलों की अदला-बदली से कई फसल प्राप्त कर ली जाती है। नई-नई किस्म के बीजों का निरंतर आविष्कार किया जा रहा है।
हरित क्रांति (कृषि का आधुनिकीकरण)
हरित क्रांति कृषि के आधुनिकीकरण का एक सरकारी कार्यक्रम था जिसके लिए अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं द्वारा आर्थिक सहायता उपलब्ध कराई गई। यह सरकारी योजना अधिक उत्पादकता वाले अथवा संकर बीजों के साथ कीटनाशकों, खादो तथा किसानों के लिए अन्य निवेश देने पर केंद्रित थी। हरित क्रांति को केवल उन्हीं क्षेत्रों में लागू किया गया था जहां सिंचाई का समुचित प्रबंध था क्योंकि नहीं भेजे तथा कृषि पद्धति हेतु समुचित जल की व्यवस्था थी। साथ ही, इस कार्यक्रम को मुख्यतः गेहूं तथा चावल उत्पादन करने वाले क्षेत्रों तक ही सीमित रखा गया। वर्तमान में हरित क्रांति का द्वितीय चरण भारत के शोकन तथा आशिक शिक्षित क्षेत्र में लागू किया जा रहा है।
हरित क्रांति की सामाजिक एवं आर्थिक परिणाम
हरित क्रांति सरकार तथा इसमें योगदान देने वाले वैज्ञानिकों की एक महत्वपूर्ण उपलब्धि मानी जाती है। इसके परिणाम स्वरुप कृषि उत्पादकता में अधिक वृद्धि हुई तथा भारत पहली बार खाद्यान्न उत्पादन में स्वावलंबी बनने में सक्षम हुआ। यद्यपि इसके कुछ नकारात्मक सामाजिक आर्थिक प्रभाव भी रहे हैं, यद्यपि इसका भारत के विकास में महत्वपूर्ण योगदान रहा है। इसमें निम्नलिखित शीर्षकों के अंतर्गत स्पष्ट किया जा सकता है—
(1) ग्रामीण समाज में असमानताओं में वृद्धि
1960 एवं 1970 के दशक में हरित क्रांति के परिणाम स्वरुप ग्रामीण समाज में और असमानताएं बढ़ गई। हरित क्रांति की फैसले अधिक लाभ वाली थीं। इसलिए इनका लाभ अच्छी आर्थिक स्थिति वाले ऐसे किसानों को हुआ जिनके पास जमीन, पूंजी, तकनीक तथा बीजों एवं करो के बारे में आवश्यक जानकारी थी। अनेक भू स्वामियों ने पत्तेदार कृषकों से अपनी भूमि वापस ले ली तथा इससे धनी किसान और अधिक संपन्न हो गए। भूमिहीन तथा सीमांत बुधवार को की दशा हरित क्रांति के परिणाम स्वरूप और अधिक बिगड़ गई।
(2) ग्रामीण क्षेत्र से नगरीय क्षेत्रों में प्रवशन में वृद्धि
कृषि उपकरणों जैसे टिलर, ट्रेक्टर, थ्रेसर व हार्वेस्टर के प्रयोग ने सेवा प्रदान करने वाली जातियों के उन समूहों को बेदखल कर दिया जो कृषि संबंधी क्रियाकलापों को करते थे। उनके पास गांव में काम करने के लिए कुछ भी नहीं था। इसलिए इससे ग्रामीण क्षेत्र से नगरीय क्षेत्र की ओर प्रवसन की गति बढ़ गई।
(3) ग्रामीण मजदूरों की दुर्दशा
यह हरित क्रांति की परिणति ही मानी जाती है कि इससे धनी अधिक धनी हो गई तथा निर्धन किसान पूर्वयत् रहे या अधिक गरीब हो गए। यह सही है कि अनेक क्षेत्रों में मजदूरों की मांग बढ़ने से कृषि मजदूरों का रोजगार तथा उनकी ध्याडि में भी वृद्धि हुई। कीमतों में वृद्धि तथा कृषि मजदूरों के भुगतान की तरीकों में बदलाव, खाद्यान्न के स्थान पर नगर भुगतान से अधिकतर ग्रामीण मजदूरों की आर्थिक स्थिति खराब हो गई।
(4) बाजार के लिए अतिरिक्त उत्पादन करने वाले मध्यम एवं बड़े किसानों के लिए लाभकारी सिद्ध
कृषि में निवेश महंगा होने के कारण छोटे तथा सीमांत किसान इसका लाभ उठाने में सक्षम नहीं थे। वह जीवन निर्वाही कृषि ही बने रहे। इसलिए हरित क्रांति और इसके बाद होने वाले कृषि व्यापरीकरण का मुख्य लाभ उन मध्यम एवं बड़े किसानों को मिला जो अपने परिवार की आवश्यकता से कहीं अधिक उत्पादन करने वाले थे।
निष्कर्ष (Conclusion)
मस० एस० ए० राव (M. S. A. Rao) ने हरित क्रांति के परिणाम का अध्ययन किया है। उन्होंने बताया है कि यादवपुर गांव में परंपरागत रूप से धान की खेती की जगह साग सब्जी की खेती की जाने लगी है क्योंकि उसमें शीघ्र तुम कहीं फैसले ले ली जाती है और दिल्ली की बढ़ती हुई मांग वाली मार्केट में उसके ऊंचे दाम भी मिल जाते हैं। इसी भांति, गांव में दूध अब माथे या घी के लिए नहीं बल्कि समीप की नगरों में सप्लाई के लिए प्रयोग किया जाता है। इस हरित क्रांति से किसानों की हालत में सुधार हुआ है। उनकी आज आकांक्षाएं जागी हैं और वह समाज की प्रतिष्ठा, शक्ति व समृद्धि के पदों में अपना हिस्सा पाने के लिए आवाज उठाने लगे हैं। परिणाम स्वरुप परंपरागत सामाजिक संरचना में तनाव, दरार और टूटन की स्थिति पैदा होने लगी।
important short questions and answers
भारत में हरित क्रांति कब शुरू हुई थी?
भारत में हरित क्रांति 1968 ई० में शुरू हुई थी।
भारत में हरित क्रांति की शुरुआत किस दशक में हुई थी?
भारत में हरित क्रांति की शुरुआत 1960 एवं 1970 के दशक में हुई थी।
हरित क्रांति की शुरुआत किस देश से हुई?
हरित क्रांति की शुरुआत अमेरिका देश से हुई।
भारत में द्वितीय हरित क्रांति की शुरुआत कब हुई?
भारत में द्वितीय हरित क्रांति की शुरुआत 1983-84 में हुई।
दूसरी हरित क्रांति का नारा किसने दिया?
दूसरी हरित क्रांति का नारा डरोपशंकी ने दिया।
भारत में हरित क्रांति के सामाजिक एवं आर्थिक परिणाम क्या थे?
हरित क्रांति सरकार तथा इसमें योगदान देने वाले वैज्ञानिकों की एक महत्वपूर्ण उपलब्धि मानी जाती है। इसके परिणाम स्वरुप कृषि उत्पादकता में अधिक वृद्धि हुई तथा भारत पहली बार खाद्यान्न उत्पादन में स्वावलंबी बनने में सक्षम हुआ।
हरित क्रांति के नकारात्मक प्रभाव क्या रहे?
इसके परिणाम स्वरुप कृषि उत्पादकता में अधिक वृद्धि हुई तथा भारत पहली बार खाद्यान्न उत्पादन में स्वावलंबी बनने में सक्षम हुआ। यद्यपि इसके कुछ नकारात्मक सामाजिक आर्थिक प्रभाव भी रहे हैं, यद्यपि इसका भारत के विकास में महत्वपूर्ण योगदान रहा है।
हरित क्रांति किससे संबंधित है?
हरित क्रांति कृषि फसल से संबंधित है।
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