क्रांतिकारी दल (revolutionary party)
क्रांतिकारी दल एक राजनीतिक समूह या कुछ व्यक्तियों का समूह होता है, जो सामाजिक, आर्थिक, या राजनीतिक परिवर्तन के लिए संघर्ष करता है। ये समूह अक्सर उपेक्षित या अन्याय का विरोध करता है, और समाज में सुधार की कठिनाईयों का सामना करता है। उनका उद्देश्य समाजिक न्याय और समृद्धि होता है।
(1) बंगाल में क्रांतिकारी दल
इस दल के नेता वारिद्र कुमार घोष और भूपेंद्र नाथ दत्त थे। यह डाल अपना प्रचार ‘युगांतर’ तथा ‘संध्या’ नामक पत्रों द्वारा करता था। सरकार की घर दमन नीति के कारण बंगाल के नवयुवकों ने बाध्य होकर क्रांतिकारी मार्ग को अपनाया और उन्होंने अपनी समितियां का संगठन पाश्चात्य देशों की क्रांतिकारी समितियां के आधार पर किया।
क्रांतिकारी दल के प्रमुख कार्य
सन 1960 के क्रांतिकारियों ने बहुत आतंक पूर्ण कार्य किया, जिनमें से मुख्य इस प्रकार है —
(1) सितंबर 1960 को मिदनापुर के समीप उप गवर्नर की गाड़ी को बस द्वारा उड़ने का प्रयास किया था।
(2) 13 दिसंबर को ढाका के एक भूतपूर्व जिला मजिस्ट्रेट को गोली मारी गई जो घातक सिद्ध नहीं हुई।
(3) और इसके उपरांत क्रांतिकारियों ने मुजफ्फरपुर के जज किंग्सफोर्ड की हत्या करने का प्रयास किया। 30 अप्रैल 1908 को किंग्सफोर्ड के बंगले की ओर से एक गाड़ी आ रही थी। क्रांतिकारियों ने बस पर बम फेंका, गाड़ी में किंग्सफोर्ड के स्थान पर दो अंग्रेज महिलाएं थी, जिनकी मृत्यु हो गई। खुदीराम बोस को इस अपराध में फांसी दी गई। इस संबंध में कर वैलेंटाइन शिरोल यह लिखते हैं, “इस प्रकार वह बंगाल के राष्ट्रवादियों के लिए राष्ट्रीय वीर व अमर शहीद हो गया। विद्यार्थियों और अन्य व्यक्तियों ने उसके लिए शोक के वस्त्र धारण किए, दो-तीन दिन के लिए स्कूल बंद कर दिए गए और उनकी स्मृति में श्रद्धांजलि अर्पित की गई। बहुत से लोगों ने उनके चित्र विक्रय किया तथा बहू से लोगों ने ऐसी द्वितीय पहनी जिनके किनारे पर खुदीराम बोस का नाम अंकित था।”
(4) फिर इसके उपरांत सरकार को एक क्रांतिकारी षड्यंत्र का बोध हुआ। सरकार को कुछ बम, डायनामाइट और कारतूस प्राप्त हुए। सरकार ने 39 व्यक्तियों को बंदी किया। वह अलीपुर केस के नाम से विख्यात है। अन्य क्रांतिकारियों के साथ अरविंद घोष भी बंद किए गए थे, किंतु उनका कुछ अन्य व्यक्तियों के साथ छोड़ दिया गया। इसका अंतिम निर्णय 12 फरवरी, 1901 को प्राप्त हुआ। क्रांतिकारियों को कठोर डंडे दिया गया था।
(5) क्रांतिकारियों की ओर से कुछ अन्य हत्याएं भी की गई जिनका संबंध मुजफ्फरपुर तथा अलीपुर केस में था। यह जान लेना आवश्यक है कि इस समय क्रांतिकारियों की शाखाओं की संख्या 500 से ऊपर थी।
(2) पंजाब में क्रांतिकारी दल
पंजाब भी क्रांतिकारी आंदोलन से न बच सका। पंजाब का आंदोलन बंगाल के आंदोलन के समान क्रांतिकारी नहीं था और ना वहां क्रांतिकारी संस्थाएं ही स्थापित हो पाई थी। यद्यपि सरकार की दमन नीति के कारण लाहौर और रावलपिंडी में सरकार के विरुद्ध कुछ उपग्रह अवश्य हुए थे। 1907-1908 ईस्वी में पंजाब की स्थिति में परिवर्तन हुआ।
(1) पंजाब की सरकार ने जिस भूमि संबंधी नीति को अपनाया उसके कारणों से किसानों में बड़ा असंतोष हुआ।
(2) मई1960 में पंजाब के ही नहीं बल्कि भारत के नेता लाला लाजपत राय पर क्रांतिकारी होने का दूसरा रोपण कर उनका देश से निर्वासित किया गया था। सरकार किस कार्य ने जनता में बड़ी भारी उत्तेजना फैला दी थी।
(3) और इसी समय भारतीय समाचार पत्रों के संपादकों आदि के साथ अन्य पूर्ण विहार किया गया। जनता में इससे भी बड़ा असंतोष फैला। भूमि संबंध के कारण यह आंदोलन हुआ, जिसका नेतृत्व सरदार अजीत सिंह ने किया। लायलपुर में एक सभा की गई। लाला लाजपत राय और अजीत सिंह दोनों ने सरकार की नीति की कटुनिंदा की, जिसके कारण उनका देश से निकाल दिया गया था। बाद में सरकार ने अपनी भूमि व्यवस्था नीति में परिवर्तन कर योग्यता और समझदारी का परिचय दिया, फिर इसके उपरांत पंजाब में शांति की स्थापना की गई।
(3) चेन्नई में क्रांतिकारी दल
अप्रैल, 1960 ई० में विपिन चंद्र ने चेन्नई का दौरा कर वहां अपने विचारों का प्रचार प्रसार किया, जिसका वहां की नवयुवकों पर विशेष प्रभाव पड़ा। अक्टूबर 1960 में विभिन्न चंद्रपाल बंदी बनाए गए और उनको 6 मास का कारावास दिया गया। उनके जेल से मुक्त होने पर एक सभा का आयोजन करने वालों को भी बंदी बनाया गया, जिसके कारण टिनेवली में उपद्रव हुआ। इसके उपरांत सरकार ने आंदोलन का दमन करने की अभिप्राय से पत्र संपादकों और आंदोलन के नेताओं को बंदी कर उन पर अभियोग चलाए। नवयुवकों में उत्तेजना जागृत हुई और उन्होंने अपने को संगठित करना आरंभ कर दिया। 17 जून, 1911 को क्रांतिकारी ने टिलेवली की मजिस्ट्रेट को गोली से मार डाला।
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