भारत की परमाणु नीति
भारत की परमाणु नीति ; भारत के परमाणु नाभिकीय नीति के संबंध में कुछ महत्वपूर्ण तथ्यों पर विशेष बल दिया गया है जो कुछ इस प्रकार है—
(1) भारत एक न्यूनतम नाभिकीय निवारक बनाए रखेगा।
(2) भारत किसी भी खुली नाभिकीय प्रतियोगिता या शास्त्रों की दौड़ में सम्मिलित नहीं होगा।
(3) भारत सच्चे मन से निशस्त्रीकरण की भावना को मानता है परंतु इसके लिए सभी राष्ट्रों की सहमति आवश्यक है।
(4) भारत नाभिकीय अस्त्रों का पहला प्रयोग न करने और नाभिकीय शास्त्र विहिन राष्ट्रों के विरुद्ध प्रयोग न करने की नीति का समर्थन करता है।
(5) भारत का नाभिकीय शस्त्रागार नागरिक अधिकार तथा नियंत्रण में है।
(6) भारत परमाणु परीक्षण करके किसी भी राष्ट्र को हानि पहुंचाना नहीं चाहता है।
भारत एक परमाणु शक्ति के रूप में
यह सर्वविदिक तथ्य है कि भारत का परमाणु शक्ति के रूप में उदय विश्व के अनेक राष्ट्रों को अच्छा नहीं लगा। अंतर्राष्ट्रीय क्षेत्र में दबाव की राजनीति उभर कर सामने आई तथा कुछ देशों ने भारत के विरुद्ध गठबंधन की राजनीति को जन्म दिया। संयुक्त राज्य अमेरिका ने अप्रसन्नता प्रकट करते हुए यह कहा कि, “भारत के परमाणु विस्फोट से विश्व में शांति एवं स्थायित्व को आघात पहुंचेगा।”
भारत सरकार ने अपनी परमाणु नीति को स्पष्ट करते हुए कहा कि यह उसे कार्यक्रम का अंग है जिसका उद्देश्य परमाणु प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में, विशेष कर खनन और मिट्टी हटाने के कार्य में, परमाणु शक्ति के उपयोग में भारत को अन्य देशों के समक्ष रखना है। भारत सरकार ने इस बात के प्रमाण भी दिए हैं कि वह परमाणु परीक्षणों के सैनिक उपयोग के विरुद्ध है।
भारत के परमाणु ऊर्जा के उद्देश्य
भारत के परमाणु ऊर्जा कार्यक्रम के प्रारंभ से ही दो मुख्य उद्देश्य रहे हैं— (1) ऊर्जा का उत्पादन
(2) उद्योग, चिकित्सा, कृषि, अनुसंधान तथा अन्य क्षेत्रों में रेडियो इस ऑइसोटोप्स का उपयोग और परमाण्विक प्रयासों के लिए कौशल, साज-समाज और तकनीक के मामले में आत्मनिर्भर होना।
1987 में ईस्वी में पाकिस्तान ने परमाणु बम बना लिया है— इस घोषणा से भारत सरकार को परमाणु नीति पर पुनः विचार विमर्श करने की आवश्यकता उत्पन्न हो गई। अब भारत तथा पाकिस्तान दोनों ही राष्ट्र परमाणु बम की तकनीक से पूर्णता संपन्न है।
भारत द्वारा में 1998 के परमाणु परीक्षण— 19 मार्च, 1998 को अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में भाजपा गठबंधन की सरकार सत्ता रुढ हुई। गठबंधन सरकार की नीतियों का राष्ट्रीय एजेंडा प्रकाशित किया गया, जिसमें अटल बिहारी वाजपेयी ने कहा कि उनकी सरकार की नीतियों की प्राथमिकता यह है कि परमाणु नीति की समीक्षा करेगी और सभी विकल्प खुले रखेगी।
भारत में 11 तथा 13 मई 1998 को अंतरराष्ट्रीय दबावों की बावजूद अपनी आणविक क्षमता का प्रमाण दे दिया। राजस्थान के पोखरण क्षेत्र में कुल मिलाकर पांच परमाणु बमों का सफल भूमिगत परीक्षण करके भारत ने अपनी सुरक्षा को स्थायित्व प्रदान कर दिया।
भारत परमाणु परीक्षण के रूप में
भारत में 11 मई, 1998 को तीन प्रकार के परमाणु परीक्षण किए—
(1) थर्मोन्यूक्लियर परीक्षण
(2) फिजन परीक्षण
(3) लो-यील्ड परीक्षण
यह तीनों परीक्षण अत्यधिक नियंत्रित ढंग से तथा रेडियोधर्मी करने के प्रभाव को रोकते हुए किए गए थे। इनके द्वारा भारत ने यह प्रदर्शित कर दिया कि भारत में परमाणु शस्त्र का निर्माण करने की क्षमता है। 13 मई को सब-किलोटन प्रणाली के माध्यम से दो परीक्षण और किए गए। इनके द्वारा भारत ने 500 से 1000 किलोग्राम के परमाणु बम बनाने की क्षमता का प्रदर्शन किया।
प्रधानमंत्री ने यह घोषणा की कि भारत परमाणु शस्त्र संपन्न राष्ट्रों की पंक्ति में आ खड़ा हुआ है। प्रधानमंत्री के तत्कालीन वैज्ञानिक सलाहकार डॉ एपीजे अब्दुल कलाम के अनुसार पोखरण में किए जाने वाले पांच परीक्षणों में भारत ने कंप्यूटर डिजाइनों द्वारा नए परमाणु वस्त्रो का निर्माण करने की क्षमता प्राप्त कर ली है। डॉ एपीजे अब्दुल कलाम ने यह भी कहा है कि तकनीकी दृष्टि से भारत परमाणु क्षमता में आत्मनिर्भर है। पांचो परमाणु परीक्षणों में पूर्णतया स्वदेशी सामग्री का उपयोग किया गया। भारत के अग्नि और पृथ्वी जैसे प्रक्षेपास्त्र वाहक परमाणु स्तरों को सरलता पूर्वक उनके गंतव्य तक छोड़ने में समर्थ हैं।
भारत सरकार ने यह भी घोषणा की कि देश के समक्ष परमाणु खतरा है। भारत के पड़ोसी देश— पाकिस्तान तथा चीन दोनों परमाणु शक्ति संपन्न है। अतः इन परीक्षणों का प्रमुख उद्देश्य यही है कि भारत के नागरिक समझ सके कि वह पूर्ण रूप से सुरक्षित हैं। यदि शत्रु ने अनुचित कार्य किया तो उसी को हानि उठानी पड़ेगी। भारत अपनी सुरक्षा करने में पूर्ण सक्षम है। भारत सरकार ने जनता को यह विश्वास भी दिलाया कि राष्ट्रीय सुरक्षा की संबंध में किसी भी प्रकार का खिलवाड़ नहीं किया जा सकता।
विदेश नीति के मामलों पर सर्व सहमति
भारत में बहुदलीय लोकतंत्र है और आम चुनाव में बहुत से डाल सत्ता प्राप्ति की दौड़ में सम्मिलित है। प्रत्येक दल अपनी नीतियों और कार्यक्रमों के आधार पर मतदाताओं को आकर्षित करने का प्रयत्न करता है। विदेश नीति के संबंध में भी इन दलों के बीच छोटे-मोटे मतभेद हो सकते हैं, परंतु विदेश नीति प्रमुख मुद्दों, राष्ट्रीय अखंडता, सीमा की सुरक्षा, स्वतंत्रता तथा प्रभु सट्टा की सुरक्षा एवं राष्ट्रीय हितों के मामलों पर सभी दलों और वर्गों के बीच सर्व सहमति बनी हुई है। भारत स्वतंत्रता के पक्ष से ही युद्धों का सामना करता आया है। देखा गया है कि सभी दल इस विदेश नीति को अपनाते आए हैं और युद्धों तथा राष्ट्रीय संकट के दौरान भी अपने दलीय मतभेद भुलाकर, सरकार को समर्थन देते हैं और भारत के सभी नागरिक, सभी वर्ग, सभी दल तथा हित एकजुट होकर उस राष्ट्रीय संकट का सामना करते हैं। विदेश नीति के मामलों में भारत में सभी दलों का सर्व-सहमति है।
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