अनुसूचित जातियां क्या है? अर्थ एवं समस्याएं

अनुसूचित जाति (scheduled caste)

scheduled caste ; भारत एक कल्याणकारी राज्य है जो समाज के कमजोर वर्गों के लोगों के विकास के लिए वचनबद्ध है। कमजोर वर्गों में मुख्य रूप से अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों एवं अन्य पिछड़े वर्गों को सम्मिलित किया जाता है । 2001 ई० की जनगणना के अनुसार अनुसूचित जातियों के लोगों की संख्या देश की कुल 102.64 करोड़ आबादी में से 16.66 करोड़ है जो की कुल जनसंख्या का 16.23 प्रतिशत है। अनुसूचित जातियाँ सामाजिक , शैक्षिक और आर्थिक रूप से पिछड़ी हुई है । इसलिए सरकार अनुसूचित जातियों के उत्थान हेतु निरंतर प्रयास कर रही है।

अनूसूचित जातियों का अर्थ

भारतीय समाज जाति पर आधारित ऊँच-नीच वाला समाज है। इस ऊँच-नीच अथवा संस्तरण में सबसे निम्न स्थान अस्पृश्य जातियों का रहा है। इन पर अनेक प्रकार की सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक व धार्मिक निर्योग्यताएँ लगी हुई थीं। उन्हें अछूत कहा जाता था क्योंकि इनके छूने से उच्च जातियों की व्यक्ति अपने को भी अपवित्र मानने लगाते थे। और पुनः पवित्र होने के लिए सांस्कारिक शुद्धि करते थे। कुछ अछूत अस्पर्श थे तो कुछ अदर्शनीय थे अर्थात जिनको देखने मात्र से व्यक्ति अपने को कलुषित मानने लगता था और कुछ अप्रवेश्य थे, जिन्हें कुछ निश्चित स्थानों पर प्रवेश की मनाही थी। इन्हें ‘बहिष्कृत जाति’ भी कहा जाता रहा है। गांधी जी के प्रयासों से परिणाम स्वरुप इन्हें “हरिजन” कहा जाने लगा, परंतु बाद में उनके लिए संविधान में  ‘अनुसूचित जाति’ शब्द का प्रचलन हो गया। अनुसूचित जातियों से आशय उन जातियों से है जो संविधान की अनुसूची में विशेष सुविधाएँ प्रदान करने के लिए सूचीबद्ध की गई हैं। अनुच्छेद 341 के द्वितीय खण्ड में संसद को इस बात का अधिकार दिया गया है कि वह राष्ट्रपति द्वारा विज्ञापित इस सूची में किसी जाति ,प्रजाति या जनजाति या उसके किसी भाग या उसके अंतर्गत समूह को सम्मिलित करने या उससे पृथक करने के कानून पारित करें।

अनुसूचित जातियों की प्रमुख समस्याएँ

अनुसूचित जातियों की सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक एवं धार्मिक स्थिति अन्य जातियों से कहीं निम्न है। इसका प्रमुख कारण भारतीय समाज में प्रचलित अस्पृश्यता की भावना रही है, जिसके कारण इन जातियों पर अनेक निर्योग्यताएँ लगी हुई थी तथा इन्हें जीवन की अधिकांश सुविधाओं से वंचित रखा गया था। अतः इन जातियों की सबसे प्रमुख समस्या आज भी अस्पृश्यता है, जिसे 1950 ईस्वी में ‘अस्पृश्यता (अपराध )अधिनियम’ द्वारा प्रतिबंधित तो कर दिया गया था , परंतु जो व्यवहार में आज भी ग्रामीण भारत में विद्यमान है। संक्षेप में अनुसूचित जातियों की प्रमुख समस्याएँ अग्रांकित है—

1- अस्पृश्यता की समस्या

अनुसूचित जातियों की सबसे बड़ी प्रमुख समस्या अस्पृश्यता की रही है, जो पर्याप्त सीमा तक ग्रामीण भारत में आज भी विद्यमान है। के० एन० शर्मा के अनुसार, “ स्पर्श जातियाँ वह है जिनके स्पर्श से व्यक्ति अपवित्र हो जाए और उसे पवित्र होने के लिए कुछ क्रियाएँ करनी पड़े। जी० एस० घुरिये के अनुसार , “में अस्पर्श जातियों की परिभाषा उस समूह के रूप में कर सकता हू जो कुछ समय के लिए अनुसूचित जातियों के अंतर्गत रखे गए हैं।”

   अतः अस्पृश्य जातियों से अभिप्राय सामाजिक, धार्मिक, आर्थिक व राजनीतिक योग्यताओं से ग्रस्त व्यक्तियों से रहा है। इन्हीं अयोग्यताओं से इन जातियों को अन्य जातियों से अलग किया जाता रहा है। इन जातियों की प्रमुख निर्योग्यता निम्नलिखित रही हैं —सार्वजनिक पूजा के स्थानों जैसे मंदिरों में प्रवेश नहीं कर सकना,

  1. धार्मिक क्रियाओं का संपादन नहीं कर पाना,
  2. सार्वजनिक को कुँओं व तालाबों का प्रयोग नहीं कर पाना,
  3. सार्वजनिक स्थलों जैसे- होटल, जलपान ग्रहों, मनोरंजन के स्थान पर प्रवेश नहीं कर पाना तथा
  4. उनके यहाँ ब्राह्मण ना तो पुरोहिताई कर सकते हैं थे और ना अन्य कोई जाति अपनी सेवा इन्हें उपलब्ध करा सकती थी।
  5. इसके अतिरिक्त आर्थिक दृष्टि से अस्पर्श जातियों को व्यवसाय के चयन की भी स्वतंत्रता नहीं थी।
  6. राजनीतिक दृष्टि से अस्पर्श जातियों के लोग राजनीतिक अधिकारों से वंचित थे। वह किसी उच्च पद पर नियुक्त नहीं हो सकते थे। इन्हें मताधिकार से भी वंचित रखा गया था।

2- अन्य समस्याएं

अस्पृश्यता के अतिरिक्त अनुसूचित जातियों की अन्य अनेक समस्याएँ भी थी, जिनमें से प्रमुख समस्याएँ निम्नांकित है—

(1) आर्थिक उन्नति की समस्या

सदियों से आर्थिक दृष्टि से निम्नतम कार्यों में लगी जातियों की आर्थिक स्थिति एकाएक परिवर्तित नहीं हो सकती है। इसीलिए सरकारी प्रयासों के बावजूद आज भी अनुसूचित जातियों की आर्थिक स्थिति अधिक अच्छी नहीं है। बहुत से व्यक्तित तो सरकार द्वारा दी जाने वाली सुविधाओं से परिचित ही नहीं है। और ना हीं इनका कोई विशेष लाभ उठा पाए हैं।

(2) शिक्षा के विकास की समस्या

यद्यपि अनुसूचित जातियों को शिक्षा के क्षेत्र में अनेक सुविधाएं प्रदान की गई हैं, फिर भी इनमें शिक्षा का विकास संतोषजनक रूप से नहीं हो पाया है। गाँवों में इन जातियों के लोगों में शिक्षा के लाभों के प्रति चेतना ही कम है तथा इन्हें सरकार द्वारा प्रदान की जा रही सुविधाओं का भी ज्ञान नहीं है। इस दिशा में विशेष कदम उठाए जाने की आवश्यकता है।

(3) राजनीतिक उत्पीड़न की समस्या

यद्यपि राजनीतिक प्रभावों द्वारा अनुसूचित जातियों को समान मताधिकार प्राप्त हो गया है तथा लोकसभा, राज्य- विधानसभाओं तथा स्थानीय निकायों में इनके लिए सुरक्षित स्थान रखे गए हैं, तथापि इन पर अत्याचारों में कमी नहीं हुई है। आज भी चुनावों में इन जातियों के लोगों के मताधिकार को बलपूर्वक रोकने की खबरें सुनने को मिलती हैं।

(4) शोषण एवं अत्याचार की समस्या

यद्यपि अनुसूचित जातियों को कानूनी रूप से अन्य लोगों के समान अधिकार प्राप्त हैं, तथापि इनके शोषण एवं अत्याचार की घटनाएँ प्रतिदिन होती रहती हैं।जातीय संघर्ष में आज भी उच्च जातियों के रोष का इन्हें सामना करना पड़ रहा है तथा व्यवहार में किसी न किसी प्रकार से इनका शोषण आज भी हो रहा है। बिहार व अन्य राज्यों में होने वाले जातीय संघर्ष इन अत्याचारों के द्योतक हैं।


महत्वपूर्ण अति लघु उत्तरीय प्रश्न उत्तर 

भारत में अनुसूचित जातियों की संख्या कितनी है?

2001 ई० की जनगणना के अनुसार अनुसूचित जातियों के लोगों की संख्या देश की कुल 102.64 करोड़ आबादी में से 16.66 करोड़ है जो की कुल जनसंख्या का 16.23 प्रतिशत है।

अनूसूचित जातियों का अर्थ बताइए?

भारतीय समाज जाति पर आधारित ऊँच-नीच वाला समाज है। इस ऊँच-नीच अथवा संस्तरण में सबसे निम्न स्थान अस्पृश्य जातियों का रहा है। इन पर अनेक प्रकार की सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक व धार्मिक निर्योग्यताएँ लगी हुई थीं। उन्हें अछूत कहा जाता था क्योंकि इनके छूने से उच्च जातियों की व्यक्ति अपने को भी अपवित्र मानने लगाते थे।

अनुसूचित जाति का अर्थ in English?

अनुसूचित जाति का अर्थ in English - scheduled caste।

भारतीय समाज किस प्रकार का समाज है?

भारतीय समाज पितृसत्तात्मक समाज है।

अस्पृश्यता अपराध अधिनियम का पारित किया गया था?

हॉस्पिटल का अपराध अधिनियम 1955 ई० में पारित किया गया था।

अनुसूचित जातियों की समस्याएं क्या है?

अनुसूचित जातियों की सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक एवं धार्मिक स्थिति अन्य जातियों से कहीं निम्न है। इसका प्रमुख कारण भारतीय समाज में प्रचलित अस्पृश्यता की भावना रही है, जिसके कारण इन जातियों पर अनेक निर्योग्यताएँ लगी हुई थी।

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