मौलिक अधिकार की 10 मुख्य विशेषताएं - Fundamental Rights

  मौलिक अधिकार

 (Fundamental Rights)

मौलिक अधिकार वह अधिकार हैं जो व्यक्ति को जन्मजात (जन्म से) रूप से प्राप्त होते हैं। और उनकी मानवीय व्यक्तिगतता और गरिमा को सुरक्षित करने के महत्वपूर्ण होते हैं। यह अधिकार सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक स्तर पर सभी व्यक्तियों को समान रूप से उपलब्ध होते हैं। मौलिक अधिकारों का एक महत्वपूर्ण उदाहरण मानवता के अधिकार है, जो मनुष्य के लिए स्थायी, अटूट और अविच्छिन्नत हैं। इनमें जीवन, स्वतंत्रता, न्याय और समानता जैसे अधिकार शामिल है। 

मौलिक अधिकार की 10 मुख्य विशेषताएं - Fundamental Rights

मौलिक अधिकार की विशेषताएं

(1) सबसे विस्तृत अधिकार पत्र

भारत के संविधान की भाग 3 में वर्णित मौलिक अधिकार विश्व के अनेक संविधानों में निहित मौलिक अधिकारों से बहुत अधिक विस्तृत है। अधिकार पत्र के इतने अधिक व्यापक होने का एक प्रमुख कारण यह रहा है कि प्रत्येक अधिकार के साथ प्रतिबंधों की व्यवस्था की गई है साथ ही साथ उनके रक्षोपायों का भी विवरण दिया गया है। 

(2) अविभाज्य और अपरिहार्य

मौलिक अधिकारों की विशेषताओं में अपरिहार्य और अविभाज्य एक महत्वपूर्ण विशेषता है। इसका अर्थ यह है कि यह अधिकार व्यक्ति के साथ जन्मजात रूप से होते हैं और कोई भी उनका हक छीन नहीं सकता है। यह विशेषता अन्य अधिकारों की तुलना में मौलिक अधिकारों की विशेषता को अधिक सुरक्षित और प्राथमिक बनती है। 

(3) व्यवहारिक सिद्धांतों पर आधारित

मौलिक अधिकार व्यावहारिक सिद्धांतों पर आधारित होने के कारण संपूर्ण समाज के लिए बहुत आवश्यक एवं उपयोगी है। मौलिक अधिकारों की व्यवहारिक सिद्धांतों का अर्थ यह है कि यह अधिकार व्यक्तियों को निरंतर और सुरक्षा की शरण में रहने का अधिकार देते हैं, और सरकारों और संगठनों को उनके लिए इन अधिकारों की सुरक्षा और संरक्षण की जिम्मेदारी सौंपती हैं। और यह भी शामिल करता है कि जब कोई व्यक्ति की मौलिक अधिकारों की उल्लंघन किया जाता है, तो उनके खिलाफ कार्रवाई की जरूरत होती है और उन्हें न्याय प्राप्त होता है।

(4) मौलिक अधिकार निरपेक्ष नहीं है 

भारतीय संविधान द्वारा प्रदत्त मौलिक अधिकार निरपेक्ष नहीं है वर्णन संविधान के द्वारा उन पर उचित तथा विवेकपूर्ण प्रतिबंधों की व्यवस्था की गई है। सर्वोच्च न्यायालय ने राज्य को समान हित में मौलिक अधिकारों पर आवश्यक, विवेकपूर्ण एवं तर्कसंगत नियंत्रण लगाने की शक्ति प्रदान की है।

(5) मौलिक अधिकारों की निषेधात्मक प्रकृति 

मौलिक अधिकारों की प्रकृति निषेधात्मक है क्योंकि राज्य से यह आशा की जाती है कि वह मौलिक अधिकारों में किसी प्रकार का कोई हस्तक्षेप ना करें। प्रथम मौलिक अधिकारों को राज्य की नियंत्रण शक्ति से मुक्त रखा गया है।

(6) मौलिक अधिकार न्याय युक्त होते हैं

यदि मौलिक अधिकारों के विरुद्ध केंद्र अथवा राज्य की व्यवस्थापिका के द्वारा कोई कानून पारित किया जाता है तो उसे सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी जा सकती है तथा सर्वोच्च न्यायालय को उसके संदर्भ में न्यायिक सुनवाई करने की शक्ति प्राप्त होती है। यह उन अधिकारों को सम्मिलित करता है जो व्यक्ति की व्यक्तिगत और मानवीय गरिमा को सुरक्षित करते हैं, और उन्हें न्यायपूर्ण व्यवहार की उम्मीद देते हैं। यानी आई तंत्र द्वारा व्यक्त किए जाने वाले निर्णय के माध्यम से उनका पालन किया जाता है। उदाहरण के तौर में, यदि किसी का अधिकार उल्लंघित होता है, तो उसे व्यक्ति को न्यायपूर्ण रूप से सुनवाई और न्याय दिलाने का अधिकार है।

(7) प्राकृतिक अधिकारों की कोई व्यवस्था नहीं

भारतीय संविधान में प्राकृतिक अधिकारों का कोई उल्लेख नहीं किया गया है। संविधान केवल उन्हें अधिकारों को मान्यता प्रदान करता है जिनका वर्णन संविधान के भाग 3 में किया गया है।

(8) समानता की विशेषता

 मौलिक अधिकार से व्यक्तियों को बराबर रूप से प्राप्त होते हैं, और विभिन्न जाति, लिंग, धर्म या अन्य सामाजिक परिवेश में। 

(9) मौलिक अधिकारों की रक्षा की व्यवस्था 

संविधान के द्वारा मौलिक अधिकारों की सुरक्षा का दायित्व न्यायपालिका को सोपा गया है। मौलिक अधिकारों में छठा मौलिक अधिकार (अनु०32) इसी धारणा से संबंधित है। इसे संवैधानिक उपचारों के अधिकार की संज्ञा दी जाती है। 

(10) जीवन और स्वतंत्रता का अधिकार 

यह अधिकार व्यक्ति को जीवन और शरीर की रक्षा का अधिकार देते हैं, साथ ही उन्हें व्यक्तिगत स्वतंत्रता की रक्षा करते हैं।


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