भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन में बाल गंगाधर तिलक का अमूल्य योगदान - UPSC

   राष्ट्रीय आंदोलन में बाल गंगाधर तिलक

bhartiya rashtriy aandolan mein bal ka yogdan ; बाल गंगाधर तिलक कांग्रेस के उग्रवादी दल के प्रतिभा संपन्न नेता थे। भारत के राष्ट्रीय आंदोलन में उग्रवादी विचारधारा के वे ही जन्मदाता थे। इन्होंने ही सबसे पहले यह नारा लगाया था, “स्वराज मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है और मैं इसे लेकर रहूंगा।” वास्तव में उन्होंने ही देश में चल रहे राष्ट्रीय आंदोलन को तीव्र गति प्रदान की थी तथा राष्ट्रीय कांग्रेस के आंदोलन को जन आंदोलन में परिवर्तित करने का सराहनीय कार्य भी उन्होंने ही किया था।  

भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन में बाल गंगाधर तिलक का अमूल्य योगदान - UPSC

बाल गंगाधर तिलक का परिचय

बाल गंगाधर तिलक का जन्म 12 जुलाई, 1856 ईस्वी में रतन गिरी के एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था। अपना अध्ययन कार्य समाप्त करने के बाद बाल गंगाधर तिलक दक्षिण शिक्षा समिति द्वारा स्थापित पुणे के ‘न्यू इंग्लिश स्कूल’ में गणित के अध्यापक के रूप में नियुक्त हो गए। बाल गंगाधर तिलक जी का स्वभाव से निर्भीक, दृढ़ निश्चायी एवं स्वाभिमानी थे। इन्होंने अपना संपूर्ण जीवन देश की सेवा में समर्पित कर दिया था। 1 अगस्त, 1920 को यह 64 वर्ष की आयु पूरी कर स्वर्गवास हो गए।

भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन में बाल गंगाधर तिलक का योगदान

(1) राजनीतिक सक्रियता में योगदान 

अपने देश में राजनीतिक चेतना जागृत करने के उद्देश्य से इन्होंने दो समाचार पत्रों— केसरी (मराठी), तथा मराठा (अंग्रेजी) का प्रकाशन प्रारंभ किया। इन पत्रों के माध्यम से ये और भारत वासी ब्रिटिश शासन की नीतियों का साहसपूर्वक विरोध करते रहे। 1891 ईस्वी में सरकार के ‘Age of Consent’ का विरोध करके हम भारतीय जनता के प्रिय नेता बन गए। इस अधिनियम द्वारा ब्रिटिश सरकार बाल विवाह पर प्रतिबंध लगाना चाहते थी, इन्होंने इसका विरोध किया। उनका यह कथन था कि हमारी धार्मिक एवं सामाजिक नीतियों में ब्रिटिश सरकार को हस्तक्षेप करने का कोई अधिकार नहीं है। राष्ट्रीय एकता एवं जन जागृति के लिए 1893 ईस्वी में इन्होंने महाराष्ट्र में गणपति उत्सव और शिवाजी उत्सव मनाने की प्रथम प्रारंभ भी की। 1896 ई० में देशव्यापी भीषण अकाल पड़ा। ऐसी स्थिति में उन्होंने अकाल पीड़ित किसानों से मालगुजारी न चुकाने का आह्वान किया। इस समय उन्होंने अपने देशवासियों की बहुत सहायता एवं सेवा की थी। इस प्रकार बाल गंगाधर तिलक दक्षिण में एक अच्छे समाजसेवी एवं नेता के रूप में प्रसिद्ध हो गई।

  1897 ई० के काल के बाद मुंबई में प्लेग का भयानक प्रकोप हो गया। इन्होंने प्लेग प्रसिद्ध लोगों की सेवा के लिए आवश्यक कमेटियों एवं अस्पतालों की व्यवस्था की और अपने समाचार पत्र द्वारा प्लेग कमिश्नर तथा उसके सहयोगीयो की आलोचना की। दुर्भाग्यवस प्लग कमिश्नर की हत्या हो गई। इन्हें ब्रिटिश सरकार से समझ न करने के लिए कहा गया लेकिन बाल गंगाधर तिलक ब्रिटिश सरकार के समक्ष नहीं झुके। परिणाम स्वरुप यह हुआ की इन्हें 18 महीने के लिए जेल भेज दिया गया, किंतु 6 महीने के बाद ही इन्हें छोड़ दिया गया। इस प्रकार बाल गंगाधर तिलक अनेक बार जेल गए। भारतीय नेताओं में से बाल गंगाधर तिलक ही ऐसे नेता थे जो सबसे अधिक बार जेल गए थे। 

(2) एक राजनीतिज्ञ के रूप में योगदान 

प्रारंभ में कांग्रेस समाज के अभिजन वर्ग से संबंधित संस्था थी, किंतु बाल गंगाधर तिलक जी के इसमें संबंधित होने के बाद मध्यम वर्ग के लोग भी कांग्रेस में सम्मिलित होने लगे। परंतु बाल गंगाधर तिलक कांग्रेस की राजनीतिक भिक्षावृत्ति की नीति पसंद नहीं करते थे। बाल गंगाधर तिलक उग्र राष्ट्रवादी थे तथा भारत में उग्र राष्ट्रवाद के जनक थे। वस्तुत: राष्ट्रीय कांग्रेस के नेताओं में स्वराज का नारा देने वाले वही सर्वप्रथम व्यक्ति थे। वे राष्ट्रीय नेता थे तथा राष्ट्र उन्हें प्राणों से भी अधिक प्यार था। डाँ० वी० पी० वर्मा के शब्दों में, “20वीं शताब्दी के प्रारंभिक वर्षों में बाल गंगाधर तिलक एक प्रमुख राजनीतिक विभूति थे। उन्होंने भारतवासियों को स्वराज के अधिकार का प्रथम पाठ पढ़ाया।” उनके प्रमुख साधन स्वदेशी, बहिष्कार, राष्ट्रीय शिक्षा तथा निष्क्रिय प्रतिरोध थे। 1907 ईस्वी में कांग्रेस में फूट पड़ गई और बाल गंगाधर तिलक कांग्रेस से पृथक हो गए। कांग्रेस की इस फूड से सरकार बहुत प्रसन्न हुई और इस फुट का लाभ उठाकर उसने गरम दल के नेताओं पर अपना दमनकारी चक्र और अधिक तेज कर दिया। 1908 में में इन्हें माण्डले जेल भेज दिया गया। 1914 में ओवैस सजा पूरी करके वापस आए तथा भारतीयों ने उनका अपने हृदय से स्वागत किया। 1916 ई० में हुए लखनऊ समझौते में कांग्रेस के दोनों दलों में पुनः मेल हो गया और बाल गंगाधर तिलक जी का कांग्रेस में पुनः वर्चस्व स्थापित हो गया।

 होमरूल लीग आंदोलन की स्थापना (28 अप्रैल 1916)—  1916 में प्रथम विश्व युद्ध के दौरान बाल गंगाधर तिलक ने श्रीमती एनी बेसेंट के सहयोग से होम रूल लीग की स्थापना की। इस समय ब्रिटिश सरकार को भारतीयों के सहयोग की आवश्यकता अनुभव हुई। लोकमान्य तिलक ने इसे उपयुक्त अवसर मानकर अंग्रेजों से होम रूल की मांग की। ब्रिटिश सरकार द्वारा होम रूल का प्रस्ताव स्वीकार न किए जाने पर तिलक ने तुरंत होम रूल आंदोलन प्रारंभ कर दिया और देश के कोने-कोने में स्वराज का संदेश पहुंचा दिया।

(3) तिलक का शिक्षा के क्षेत्र में योगदान

बाल गंगाधर तिलक ने अपने सहयोगियों की सहायता से 1884 ई० में ‘डेकेन एजुकेशन सोसाइटी’ (दक्षिण शिक्षा समाज) की स्थापना की, जो कालांतर में भारत की प्रमुख शिक्षण संस्था बनी। इसी संस्था ने पुना के प्रसिद्ध ‘फर्युसन कॉलेज’ की स्थापना की। इसी कॉलेज में बाल गंगाधर तिलक ने काफी समय तक अध्यापक का भी कार्य किया। वे एक ऐसी राष्ट्रीय शिक्षा पद्धति के प्रतिपादक थे। जो भारतीयों में राष्ट्रीयता तथा राष्ट्र प्रेम की भावना को जाग्रत कर सके हुए राष्ट्रीय शिक्षा के माध्यम से देश में राष्ट्रीय एकता तथा राष्ट्रीय उत्थान चाहते थे। बाल गंगाधर तिलक सामाजिक एवं धार्मिक सुधारक भी थे। 

(4) बाल गंगाधर तिलक के अन्य योगदान

वास्तव में बाल गंगाधर तिलक राष्ट्रीय आंदोलनकारी के लिए एक प्रकाश स्तंभ थे। उन्होंने ऐसा वातावरण तैयार कर दिया, जिससे स्वतंत्रता प्राप्ति का मार्ग बहुत सरल हो गया। डा० वी० पी० वर्मा ने उनका मूल्यांकन अपने शब्दों में किया है, “बाल गंगाधर तिलक का जीवन विविध प्रकार के प्रगतिशील कार्यों की कहानी है। वह शक्तिशाली व्यक्ति तथा नेता थे और जिस काम में उन्होंने अपनी शक्ति लगाई, उस पर अपना गंभीर प्रभाव छोड़ा।” बाल गंगाधर तिलक ने राष्ट्रीय आंदोलन के सभी महत्वपूर्ण पहलुओं को स्पर्श किया। महात्मा गांधी जी ने उन्हें स्वराज का संदेश वाहक बताया। उन्हीं के शब्दों में, “हमारे समय में किसी भी व्यक्ति का जनता पर इतना प्रभाव नहीं पड़ा, जितना बाल गंगाधर तिलक का। स्वराज की संदेश का किसी ने इतनी आग्रह से प्रचार नहीं किया जितना लोकमान्य तिलक ने।” 


महत्वपूर्ण अति लघु उत्तरीय प्रश्न उत्तर 

बाल गंगाधर तिलक को लोकमान्य की उपाधि किसने दी है?

बाल गंगाधर तिलक को लोकमान्य की उपाधि महात्मा गांधीजी ने दी।

भारत के राष्ट्रीय आंदोलन में उग्रवादी दल के नेता कौन थे?

भारत के राष्ट्रीय आंदोलन में उग्रवादी विचारधारा के वे ही जन्मदाता थे।

बाल गंगाधर तिलक का जन्म कब हुआ था?

बाल गंगाधर तिलक का जन्म 23 जुलाई 1856 ईस्वी में हुआ था।

भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन में बाल गंगाधर तिलक का योगदान बताइए?

बाल गंगाधर तिलक कांग्रेस के उग्रवादी दल के प्रतिभा संपन्न नेता थे। भारत के राष्ट्रीय आंदोलन में उग्रवादी विचारधारा के वे ही जन्मदाता थे। इन्होंने ही सबसे पहले यह नारा लगाया था, “स्वराज मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है और मैं इसे लेकर रहूंगा।” वास्तव में उन्होंने ही देश में चल रहे राष्ट्रीय आंदोलन को तीव्र गति प्रदान की थी तथा राष्ट्रीय कांग्रेस के आंदोलन को जन आंदोलन में परिवर्तित करने का सराहनीय कार्य भी उन्होंने ही किया था।

स्वराज मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है यह कथन किसका है?

स्वराज मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है यह कथन लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक का है।

Post a Comment

और नया पुराने
Join WhatsApp