भारतीय शिक्षा का प्रारंभिक इतिहास तथा विशेषताएं (सन् 1773-1853 ई०)

 भारतीय शिक्षा का प्रारंभिक इतिहास 
(Early History of Indian Education)

प्राचीन काल में विद्या का अध्ययन करना और विद्यार्थियों को शिक्षा देना ब्राह्मणों का कर्तव्य माना जाता था। ब्राह्मण विद्वानों द्वारा ही भारत के संसार प्रसिद्ध नालंदा, तक्षशिला तथा विक्रमशिला जैसे विश्वविद्यालय की स्थापना की थी, परंतु सल्तनत कालीन सुल्ताने तथा मुगलकालीन मुगल सम्राटों द्वारा तथा ब्राह्मणों द्वारा आर्थिक अभाव के कारण शिक्षा की अपेक्षा की जाती रही थी। मुगल शासन के पतन के पक्ष तथा ईस्ट इंडिया कंपनी की भारत में अंग्रेजी साम्राज्य की स्थापना के समय भारत में शिक्षा की गति मंद (धीमी) पड़ गई थी। भारतीय शिक्षा की वास्तविक स्थिति का ज्ञान करने के उद्देश्य से कंपनी के संचालकों ने 18वीं शताब्दी में कुछ नहीं किया। जिससे भारतीय शिक्षा की स्थिति और अधिक बिगड़ गई। कंपनी के संचालकों का प्रधान उद्देश्य भारतीय प्रजा की कल्याण कामना ना होकर यहां से धन एकत्रित करके अपने देश इंग्लैंड भेजना था। परंतु इंग्लैंड की संसद के आदेश देने पर ईस्ट इंडिया कंपनी को भारतीय शिक्षा की उन्नति के लिए प्रयास आरंभ करने पड़े। 

भारतीय शिक्षा का प्रारंभिक इतिहास तथा विशेषताएं (सन् 1773-1853 ई०)
भारतीय शिक्षा का प्रारंभिक इतिहास तथा विशेषताएं 

ईसाई मिशनरियों द्वारा शिक्षा की उन्नति 

18 वीं शताब्दी के प्रारंभिक वर्षों में सन् 1707 ई० में मुगल सम्राट औरंगजेब की मृत्यु हो जाने से भारत में सर्वत्र अररिकता और व्यवस्था का प्रसार शुरू हो गया, जिसके कारण भारतीय शिक्षा की प्रगति कुंठित (रुक) हो गई। इससे पूर्व 17वीं शताब्दी के अंतर्गत पुर्तगाली, फ्रांसीसी, हॉलैंड के डच, डेनमार्क की डच तथा इंग्लैंड के अंग्रेजी व्यापारी अपनी-अपनी व्यापारिक कंपनियां बनाकर भारत के साथ व्यापार करने लगे थे। इसे कुछ वर्षों के पश्चात यूरोप के उपरोक्त देश की ईसाई मिशनरियां (Christian Missionaries) भी भारत निवासियों को अपने धर्म में दीक्षित करने तथा उनमें अपनी शिक्षा का प्रसार करने के उद्देश्य में भारत आई। इन मिशनरियों द्वारा गोवा, दमन, लंका, कोचीन, चटगांव और हुंगली आदि में प्रारंभिक पाठशालाओं की स्थापना की गई। 

  सन् 1857 ई० में पुर्तगालियों द्वारा चाल (Chaal) में सर्वप्रथम जेसुइट कॉलेज की स्थापना की गई। इसकी पश्चात मुंबई की समीप बांद्रा (Bandra) में संत एनी (Saint) के नाम से दूसरे कॉलेज का शिलान्यास किया गया। इसके उपरांत गोवा और बेसिन में भी कॉलेज खोले गए जिनसे लैटिन भाषा, ईसाई धर्म, तर्कशास्त्र, संगीत तथा व्याकरण की शिक्षा दी जाती थी। पुर्तगालियों का अनुसरण करते हुए फ्रांसीसी, डच और अंग्रेज मिशनरियों ने भी अपने प्रारंभिक विद्यालयों तथा उच्च शिक्षा के लिए कॉलेज की स्थापना की।

शिक्षा की उन्नति के लिए कंपनी सरकार का प्रयत्न 

ईस्ट इंडिया कंपनी के गवर्नर जनरल श्री वारेन हेस्टिंग्स ने सन् 1781 ई० में कोलकाता में एक स्कूल की स्थापना की जिसमें मुस्लिम छात्रों की शिक्षा की व्यवस्था की गई। इसके 20 वर्ष पश्चात बनारस की अंग्रेज रेजिडेंट डंकन द्वारा बनारस में एक संस्कृत कॉलेज का शिलान्यास किया गया। अंग्रेजी शिक्षा की प्रचार के लिए कोलकाता सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश श्री विलियम जॉन्स द्वारा कोलकाता में बंगाल एशियाटिक सोसाइटी का शुभारंभ किया गया। इस सोसाइटी को आरंभ करने में गवर्नर जनरल वारेन हेस्टिंग्स द्वारा श्री विलियम जॉन्स को प्राप्त सहयोग प्रदान किया गया था।

भारतीयों के व्यक्तिगत प्रयत्न 

शिक्षा की प्रकृति के लिए कुछ प्रमुख भारतीयों द्वारा भी कठोर प्रश्न किया गया था। इस कार्य में जिन व्यक्तियों द्वारा भारी प्रयास किए गए थे, उनमें राजा राधाकांत देव, श्री जय नारायण धूधल तथा राजा राममोहन राय के नाम विशेष रूप से उल्लेखनीय है। राजा राधाकांत देव तथा राधा राम मोहन राय ने सन् 1816 ई० में कोलकाता सुप्रीम कोर्ट के प्रधान न्यायाधीश हाइट ईस्ट के सहयोग से कोलकाता में हिंदू कॉलेज का शिलान्यास किया, जो उन्नति करते-करते कोलकाता के प्रसिद्ध प्रेसिडेंटसी कॉलेज के रूप में परिणत हो गया था। सन् 1817 ई० में राजा राममोहन राय द्वारा बंगाली छात्रों की शिक्षा के लिए कलकत्ता में एक अंग्रेजी कॉलेज की स्थापना की गई। 

सन् 1835 ई० तक शिक्षा की दिशा का उल्लेख

सन् 1827 ई० में मुंबई के गवर्नर माउंट स्टुअर्ट एल्फिन्सटन द्वारा मुंबई में शिक्षा संबंधी अन्वेषण कराया गया जिसकी रिपोर्ट का सारांश यह था — “मुंबई में उसे कल में कोई ऐसा स्कूल न था जिसके पास अपनी निजी इमारत या बिल्डिंग हो। वहां झोपड़ियां, मंदिरों और घरों में एक ही ब्राह्मण अध्यापक द्वारा छात्रों को शिक्षा दी जाती थी। अध्यापक छात्रों से तीन रुपए से ₹5 तक मासिक फीस लेता था तथा उसे दीपावली, दशहरा आदि त्योहारो होने पर अथवा अपने शिष्य के विवाह के अवसर पर भी कुछ आए होती रहती थी। छात्रों को छपी हुई पुस्तक प्राप्त नहीं थी। लड़कियों की शिक्षा के लिए कोई व्यवस्था नहीं थी। मुसलमान बालकों को मौलवी लोग मस्जिदों में फारसी, हिंदुस्तानी और कुरान के सिपहरे पढ़ाते थे। मुंबई की जनसंख्या इस समय 46 लाख 21 हजार के आसपास थी जबकि वहां बालकों के लिए विद्यालयों की कुल संख्या केवल 1700 के आसपास थी तथा उनमें 35000 छात्र विद्या प्राप्त करते थे।”

  अंग्रेज सरकार ने सन् 1813 में कंपनी सरकार को दे दिए गए आज्ञा पत्र में व्यक्त कर दिया था कि भारत में शिक्षा प्रसार का कार्य कंपनी सरकार का प्रमुख कर्तव्य है तथा उसे कम से कम एक लाख रुपया वार्षिक भारत के कंपनी राज्य के छात्रों में शिक्षा के प्रसार में खर्च करना चाहिए। कंपनी सरकार ने सन् 1823 में यह धनराशि अनुदान के रूप में कलकत्ते की स्कूल सोसायटी तथा बुक समिति को प्रदान की। इसके उपरांत सन् 1824 से 25 ई० में दिल्ली तथा कोलकाता में एक-एक संस्कृत कॉलेज की स्थापना कराई गई। इसके पश्चात कंपनी ने सरकार द्वारा कोलकाता में हिंदू कॉलेज तथा अंग्रेजी कॉलेज को 30 सहस्त्र रुपए वार्षिक अनुदान के रूप में दिए जाने का निर्णय किया। उसे समय ईस्ट इंडिया कंपनी के भारतीय प्रति में तीन प्रकार के विद्यालय से जो ईसाई मिशनरी स्कूल, वर्नाकुलर पाठशालाएं तथा कंपनी सरकार द्वारा संचालित राज की पाठशालाओं के नाम से प्रसिद्ध थे। राजा राममोहन राय भारतीयों में अंग्रेजी शिक्षक के प्रसार के लिए कठोर प्रश्न कर रहे थे। 

मिशन स्कूलों की विशेषताएं 
(Feathers of Mission School)

मिशन स्कूलों में से अधिकांश स्कूल प्रारंभिक पाठशालाओं के रूप में थे जिनकी प्रमुख विशेषताएं कुछ इस प्रकार थी— 

(1) शिक्षा को धर्म पर आधारित किया गया था। अथो स्कूल में शिक्षा प्राप्त करने वाले प्रत्येक छात्रों को बाइबल तथा ईसाई धर्म के सिद्धांतों को अनिवार्य रूप से पढ़ना पड़ता था। 

(2) छात्रों के पाठ्यक्रम में पांच विषय रखे गए थे जो इतिहास, भूगोल, अंग्रेजी, व्याकरण और स्थानीय भाषाओं के नाम से प्रसिद्ध थे। 

(3) प्रत्येक छात्र के लिए अंग्रेजी भाषा पढ़ना अनिवार्य था।

(4) छात्रों को पाठ्य पुस्तक प्रकाशित कर दी जाने लगी थी। अथवा शिक्षा के मौखिक रूप के स्थान पर लिखित रूप का आरंभ हो गया था। 

(5) प्रत्येक स्कूल में छात्रों की संख्या के आधार पर ही शिक्षकों की नियुक्ति की।

(6) छात्रों को शिक्षा स्थानीय भाषा में दी जाती थी।

(7) स्कूलों में कक्षा प्रणाली के आधार पर शिक्षा दी जाती थी।

(8) स्कूलों में प्रत्येक दिवस को निश्चित घंटे में व्यक्त किया गया था तथा रविवार को छात्रों के लिए अवकाश दिवस बना दिया गया। 

(9) विभिन्न कक्षाओं में छात्रों को भिन्न-भिन्न अध्यापकों द्वारा समय चक्र के अनुसार शिक्षा प्रदान की आती थी।

(10) वर्ष की समाप्ति पर लिखित रूप में वार्षिक परीक्षा ली जाती थी तथा छात्रों की योग्यता की जांच करके उन्हें उच्च कक्षा में भेज दिया जाता था।


महत्वपूर्ण अति लघु उत्तरीय प्रश्न उत्तर 

भारत में शिक्षा की शुरुआत किसने की?

भारत में शिक्षा की शुरुआत ब्रिटिश उपनिवेशों द्वारा1830 ई० में की।

भारत में अंग्रेजी शिक्षा की शुरुआत किसने की थी?

भारत में अंग्रेजी शिक्षा की शुरुआत अंग्रेजी शिक्षा के संस्थापक लॉर्ड मैकाले ने की थी।

मैकाले शिक्षा पद्धति का मुख्य उद्देश्य क्या था?

मैकाले शिक्षा पद्धति का मुख्य उद्देश्य यह था कि भारत के उच्च वर्ग से लेकर निम्न वर्ग तक के हर व्यक्ति को शिक्षा का लाभ मिल सके।

शिक्षा का निस्पंदन सिद्धांत किसने दिया?

शिक्षा का निस्पंदन सिद्धांत चार्ल्स वुड ने दिया।

भारतीय शिक्षा का प्रारंभिक इतिहास की विशेषताएं क्या है?

भारतीय शिक्षा का प्रारंभिक इतिहास की विशेषताएं - (1) शिक्षा को धर्म पर आधारित किया गया था। अथो स्कूल में शिक्षा प्राप्त करने वाले प्रत्येक छात्रों को बाइबल तथा ईसाई धर्म के सिद्धांतों को अनिवार्य रूप से पढ़ना पड़ता था। (2) छात्रों के पाठ्यक्रम में पांच विषय रखे गए थे जो इतिहास, भूगोल, अंग्रेजी, व्याकरण और स्थानीय भाषाओं के नाम से प्रसिद्ध थे। (3) प्रत्येक छात्र के लिए अंग्रेजी भाषा पढ़ना अनिवार्य था।

भारतीय शिक्षा का प्रारंभिक इतिहास क्या है?

प्राचीन काल में विद्या का अध्ययन करना और विद्यार्थियों को शिक्षा देना ब्राह्मणों का कर्तव्य माना जाता था। ब्राह्मण विद्वानों द्वारा ही भारत के संसार प्रसिद्ध नालंदा, तक्षशिला तथा विक्रमशिला जैसे विश्वविद्यालय की स्थापना की थी, परंतु सल्तनत कालीन सुल्ताने तथा मुगलकालीन मुगल सम्राटों द्वारा तथा ब्राह्मणों द्वारा आर्थिक अभाव के कारण शिक्षा की अपेक्षा की जाती रही थी।

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