व्यवस्थापिका अथवा विधायिका
सरकार की सभी अंगों में व्यवस्थापिका सर्वाधिक महत्वपूर्ण होती है। वास्तव में व्यवस्थापिका यदि अपने कार्यों को संपादित ना करें तो कार्यपालिका और न्यायपालिका भी अपना दायित्व पूरा नहीं कर सकती हैं। व्यवस्थापिका केवल कानून का निर्माण ही नहीं करती है बल्कि प्रशासन से संबंधित नीतियों का निर्धारण करती है तथा कार्यपालिका की शक्ति पर भी नियंत्रण स्थापित करती है। सांसद आत्मक शासन प्रणाली में व्यवस्थापिका के कार्यों में अधिक वृद्धि हो जाती है। गार्नर के अनुसार, “राज्य की इच्छा जिन अंगों द्वारा व्यक्त होती है, उनमें व्यवस्थापिका का स्थान सर्वोच्च है।” इसी प्रकार गिलक्राइस्ट का कथन है, “व्यवस्थापिका शक्ति का अधिक भाग है।”
व्यवस्थापिका के कार्य
व्यवस्थापिका का प्रमुख कार्य ; विभिन्न देशों की व्यवस्थापिकाएँ भिन्न-भिन्न कार्य करती हैं, यद्यपि कुछ कार्य ऐसे भी हैं जिनका संपादन सभी देशों की व्यवस्थापिकाएं करती हैं। और इन कार्यों में कुछ कार्य महत्वपूर्ण है जो कुछ इस प्रकार है—
(1) कानूनों का निर्माण
व्यवस्थापिका का सर्वाधिक महत्वपूर्ण कार्य कानून का निर्माण करना है। यह आवश्यकता के अनुसार नए कानून बनाती है, पुराने कानून में संशोधन करती है और अनावश्यक कानून को रद्द कर देती है। व्यवस्थापिका के द्वारा कानून का निर्माण विभिन्न कार्यों और क्षेत्र के लिए आवश्यक होता है। यह कानून समाज, अर्थव्यवस्था, सुरक्षा, स्वतंत्रता और अन्य विभिन्न पहलुओं को नियंत्रित करने के लिए बनाए जाते हैं। यह कानून लोगों के अधिकार और कर्तव्यों को स्पष्ट करते हैं और समाज के अच्छे नेतृत्व और व्यवस्था को बनाए रखने का कार्य करते हैं।
(2) संविधान में संशोधन करना
व्यवस्थापिका को संविधान में संशोधन करने का अधिकार भी प्राप्त होता है। संविधान में संशोधन करने की प्रक्रिया भिन्न-भिन्न देशों में भिन्न-भिन्न प्रकार की है। इंग्लैंड (यानी ब्रिटिश संसद) में व्यवस्थापिका को ही सर्वोपरि माना है। वह साधारण कानून के समान ही संविधान में संशोधन कर सकती है। परंतु संयुक्त राज्य अमेरिका और भारत में संशोधन की विशेष प्रक्रिया अपनाई जाती है।
(3) व्यवस्थापिका के वित्तीय कार्य
व्यवस्थापिका देश की संपूर्ण वित्त व्यवस्था पर नियंत्रण रखती है। वह नए कर लगती है और निरर्थक करों को समाप्त करती है। इसकी अतिरिक्त वह रेणु की व्यवस्था करती है और राजकीय व्ययों को स्वीकृति प्रदान करती है।
(4) कार्यपालिका पर नियंत्रण रखना
विश्व के सभी देशों में व्यवस्थापिका किसी न किसी रूप से कार्यपालिका पर नियंत्रण स्थापित करती है। संसदीय शासन प्रणाली में तो कार्यपालिका व्यवस्थापिका की नियंत्रण में ही रहकर कार्य करती है। इसके साथ ही साथ प्रश्न पूछ कर, काम रोको प्रस्ताव रखकर भी व्यवस्थापिका कार्यपालिका पर नियंत्रण रखती है। इसकी अतिरिक्त सांसदात्मक शासन प्रणाली वाले देशों में व्यवस्थापिका कार्यपालिका अविश्वास प्रस्ताव द्वारा भी कार्यपालिका को पदच्युत कर सकती है। इंग्लैंड, फ्रांस और भारत आदि देशों में व्यवस्थापिका के सदस्य ही कार्यपालिका के सदस्य बनते हैं। यदि किसी ऐसे व्यक्ति को कार्यपालिका का सदस्य बना लिया जाता है, जो व्यवस्थापिका का सदस्य ना हो, तो उसे किसी न किसी रूप में निर्धारित अवधि के अंतर्गत व्यवस्थापिका की सदस्यता ग्रहण करनी होती है।
(5) निर्वाचन संबंधी कार्य करना
व्यवस्थापिका निर्वाचन संबंधी कार्यों का भी संपादन करती है। हमारे देश में संसद के दोनों सदनों के सदस्य राज्यों के विधान मंडलों के साथ मिलकर राष्ट्रपति तथा उपराष्ट्रपति के निर्वाचन के लिए निर्वाचन मंडल का निर्माण करते हैं।
(6) वैदेशिक नीति संबंधी कार्य
राज्य की विदेश नीति पर भी व्यवस्थापिका का नियंत्रण होता है। वह युद्ध, शान्ति, संन्धि तथा अंतरराष्ट्रीय संबंधों के विषय में निर्णय लेने का अधिकार रखते हैं। व्यवस्थापिका को अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन और घटनाओं में भाग लेने और राष्ट्रीय हितों की रक्षा के लिए विभिन्न विषयों पर विचार करने की जिम्मेदारी होती है। और व्यवस्थापिका को राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए विभिन्न वैदेशिक नीतियों का निर्धारण करना होता है। यह राष्ट्र की सुरक्षा और रक्षा के लिए आवश्यक नीतियों को तैयार करने का कार्य करती है।
(7) राज्य के नीति संबंधी कार्य
व्यवस्थापिका ही राज्य की गृह नीति का निर्धारण करती है और उसके द्वारा स्वीकृत नीति ही कार्यपालिका द्वारा क्रियान्वित की जाती है। व्यवस्थापिका को राज्य के लिए विभिन्न क्षेत्रों में नीतियों और योजनाओं का निर्धारण करना होता है। यह नीतियां आर्थिक, सामाजिक, शिक्षा, स्वास्थ्य और अन्य क्षेत्र से संबंधित होती।
(8) लोकमत का निर्माण करना
लोकमत का निर्माण करने वाली प्रमुख संस्थाओं में व्यवस्थापिका को महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है। व्यवस्थापिका के सदनों में राष्ट्रीय हित के मामलों पर वाद विवाद होता है। इन वाद विवादों पर आधारित विचारों का ज्ञान जनता टेलीविजन, रेडियो तथा समाचार पत्रों द्वारा प्राप्त करते हैं। इसके परिणाम स्वरुप ही देश में स्वस्थ लोकमत का निर्माण होता है।
(9) समिति और आयोगों की नियुक्ति
विधानमंडल समय-समय पर किन्हीं विशेष कार्यों की जांच करने के लिए उन समितियां और अयोगी की नियुक्ति करता है जिनके माध्यम से शासन के कार्यों की जांच की जाती है।
(10) न्याय संबंधी कार्य
अनेक देशों में व्यवस्था दिखा न्याय संबंधी कार्य भी करते हैं। उदाहरण के तौर पर—अमेरिका की ‘कांग्रेस’ और भारत की ‘संसद’ आवश्यकता के समय उच्च कार्यपालिका के पदाधिकारीयों पर महाभियोग लगती है और इस संदर्भ में निर्णय करती है। इंग्लैंड में तो लॉर्ड सभा अपील के उच्चतम न्यायालय के रूप में भी कार्य करती हैं।
महत्वपूर्ण अति लघु उत्तरीय प्रश्न उत्तर
भारत की व्यवस्थापिका का नाम बताइए?
भारत की व्यवस्थापिका का नाम- संघ की विधायिका को संसद कहा जाता है।
भारतीय संसद के कितने अंग है?
भारतीय संसद में कुल मिलाकर दो अंग होते हैं- लोक सभा और राज्य सभा।
व्यवस्थापिका किसे कहते हैं?
सरकार की सभी अंगों में व्यवस्थापिका सर्वाधिक महत्वपूर्ण होती है। वास्तव में व्यवस्थापिका यदि अपने कार्यों को संपादित ना करें तो कार्यपालिका और न्यायपालिका भी अपना दायित्व पूरा नहीं कर सकती हैं।
व्यवस्थापिका के कार्य बताइए?
व्यवस्थापिका का प्रमुख कार्य ; विभिन्न देशों की व्यवस्थापिकाएँ भिन्न-भिन्न कार्य करती हैं, यद्यपि कुछ कार्य ऐसे भी हैं जिनका संपादन सभी देशों की व्यवस्थापिकाएं करती हैं। और इन कार्यों में कुछ कार्य महत्वपूर्ण है जो कुछ इस प्रकार है— (1) कानूनों का निर्माण, (2) संविधान में संशोधन करना जैसे आदि।
व्यवस्थापिका के न्याय संबंधी कार्य क्या है?
अनेक देशों में व्यवस्था दिखा न्याय संबंधी कार्य भी करते हैं। उदाहरण के तौर पर—अमेरिका की ‘कांग्रेस’ और भारत की ‘संसद’ आवश्यकता के समय उच्च कार्यपालिका के पदाधिकारीयों पर महाभियोग लगती है और इस संदर्भ में निर्णय करती है।
व्यवस्थापिका के तीन प्रमुख कार्य लिखिए?
व्यवस्थापिका के तीन प्रमुख कार्य - (1) कानूनों का निर्माण, (2) संविधान में संशोधन करना, (3) राज्य के नीति संबंधी कार्य।
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