उत्तर वैदिक कालीन सामाजिक दशा या परवर्ती वैदिक युग की सामाजिक दशा से संबंधित कुछ महत्वपूर्ण बिंदुओं को स्पष्ट करेंगे जैसे-
1- उत्तर वैदिक काल का सामाजिक जीवन
2- उत्तर वैदिक कालीन आर्यों की सामाजिक दशा का निरूपण कीजिए।
3- उत्तर वैदिक समाज
4- उत्तर वैदिक कालीन सामाजिक दशा या स्थिति
5- उत्तर वैदिक काल में महिलाओं की स्थिति
उत्तर वैदिक कालीन सामाजिक दशा या स्थिति
ऋग्वैदिक समाज उत्तर वैदिक काल में विकास के पद पर काफी आगे बढ़ चुका था। इस युग में आर्यों का सामाजिक जीवन स्थिरता प्राप्त करने लगा था। इस कल की सामाजिक दशा कुछ इस प्रकार थी—
उत्तर वैदिक काल का सामाजिक जीवन
(1) कुटुंब अथवा परिवार
आर्यों की सामाजिक व्यवस्था की आधारशिला परिवार थी। पितृसत्तात्मक परिवार का कर्ताधर्ता, पलक तथा स्वामी पिता होता था। पत्नी गृह स्वामिनी होती थी। सास-ससुर, देवर-ननद, चाचा-भतीजा आदि उसका बड़ा आदर करते थे। पैतृक सम्पत्ति परिवार की निधि होती थी। इस युग में परिवार में अतिथि सत्कार को भी बहुत महत्व दिया गया।
(2) ग्रामीण जीवन
आर्यों का पारिवारिक जीवन ग्रामों में सुसंगठित था। उनके पारस्परिक संबंध सुखद, शांतिपूर्ण तथा प्रेम पूर्ण थे। पारस्परिक सहयोग उनके अटूट बंधन का आधार था।
(3) वैदिक कालीन भोजन
आर्यों का भजन साधारण, रुचिकर, पौष्टिक तथा विविधता पूर्ण था। वे लोग गेहूं और जौ की रोटी खाते थे तथा शाक-सब्जियों और फलों का प्रयोग करते थे। खाद्य पदार्थों में दुग्ध पदार्थ, क्षीरोदन (खीर), मुदगोदन (लड्डू), घृतोदन, कर्म, सक्छु (सत्तू), गुड़ आदि मुख्य थे। मद्धपान निन्दनीय और घृणित था। शहर का प्रयोग भी करते थे। विशेष अवसरों पर सोमरस का पान किया जाता था।
(4) वस्त्र आभूषण (पहनावा)
ऋग्वैदिक काल में प्रयुक्त तीन प्रकार के वस्तुओं के अतिरिक्त इस काल ऊ चीर, चीवर तथा चेल नामक वस्तु का प्रयोग प्रचलन में रहता था। अब आर्य नीची धोतियों, गमछों, सांलों तथा कंबलों का भी प्रयोग करते थे। स्त्रियां किनारे दर बहुरंगी कपड़ों तथा कढी हुई साड़ियां पहने लगी थी। पुरुष प्रयोग लंबे बाल रखते थे और दाढ़ी मूछ मुड़ने तथा रखने की प्रथम समान रूप से प्रचलित थी। स्त्रियां विभिन्न प्रकार के केसों को सजती थी तथा वेणी के अलंकरण को विशेष महत्व देती थी। निस्क, प्रबर्न, प्रकाश तथा नियुक्ता आदि स्त्रियों के प्रिय आभूषण थे। आभूषण स्वर्ण, माणिक्य तथा बहुमूल्य पत्थरों से बनाए जाते थे।
(5) मनोरंजन के साधन
उत्तर वैदिक काल में रथ दौड़, चौपड़, आखेट, जुआ जैसे आदि मनोरंजन के साधनों में प्रवीणता आने लगी थी। कंठ संगीत तथा वाद्य संगीत की इस युग में बहुत उन्नति हुई थी। संपूर्ण संविधि तत्कालीन संगीत कुशलता एवं मौलिकता का प्रमाण है। वीणा, मृदंग, बांसुरी, शंख, आडाटि आदि अनेक वाद्य यंत्र बजाए जाते थे।
(6) स्त्रियों की दशा या स्थिति
उत्तर वैदिक काल में महिलाओं की स्थिति ; ऋग्वैदिक में इस बात की साक्ष्य मिले हैं कि पुत्री जन्म के लिए कामना की गई है और पुत्री को सौभाग्य तथा समृद्धता का सूचक कहा गया है। वैदिक संहिताओं तथा ब्राह्मणों के कथनों से यह पता चलता है कि पूर्व वैदिक काल में स्त्रियों को बड़ा आदर्श सम्मान मिलता था। अनेक स्त्रियों ने तत्वज्ञान के वाद-विवाद में पुरुषों से प्रतिस्पर्धा की थी। ऐतरेय ब्राह्मण तथा कौषतिकी में अनेक विदुषी महिलाओं का उल्लेख मिलता है। वृहदारण्यक उपनिषद् में स्त्री शिक्षकों का उल्लेख मिलता है।
उत्तर वैदिक काल में नारी की स्थिति में क्रमिक परिवर्तन हुए और उसका स्थान क्रमश: निरंतर होने लगा। स्त्री और पुरुष की समानता के भाव और समान अधिकार के विचारधारा भी इस समाज में क्रमशः क्षीण पड़ने लगी थी। स्त्रियों में भी शिक्षा का प्रचार प्रसार रहा। किंतु गुरुकुल में भेजने की अपेक्षा घर पर ही उनकी शिक्षा का प्रबंध होता था। स्त्रियों में पर्दा प्रथा तो नहीं हुई थी किंतु वैदिक युग की भांति स्वतंत्रता पूर्वक विचरण करना काम हो गया। स्त्रियों के धार्मिक अधिकारों में भी न्यूनता आ गयी थी। पुत्री का जन्म दुःख का कारण माना जाने लगा था। किंतु फिर भी इस युग में पुत्री हत्या का कोई उदाहरण नहीं मिलता है।
(7) वर्ण व्यवस्था
वैदिक साहित्य में वर्ण व्यवस्था की उत्पत्ति ईश्वर से मानी गई है। इस प्रथा का अंकुरण ऋग्वैदिक काल में ही हो गया था, परंतु वर्ण व्यवस्था का पूर्ण विकास उत्तर वैदिक काल में ही हुआ था। इस काल में वर्ण भेद का आधार कर्मगत था, जन्मगत नहीं।
(8) विवाह स्थिति
वैदिक कालीन समाज में विवाह संस्कार पर उत्सवों का आयोजन होता था। ऋग्वेद में दहेज प्रथा का वर्णन नहीं है, परंतु उत्तर वैदिक काल में दामाद द्वारा ससुर को धन देने का उल्लेख मिलता है। अथर्ववेद में प्रेम प्रयासों में सफलता के लिए मंत्र, जादू-टोने के प्रयोग का वर्णन मिलता है। इस बात से प्रेम विवाह की पुष्टि होती है। उत्तर वैदिक काल में अंतर्जातीय विवाहों का प्रचलन था। क्षत्रिय राजा शर्यात की पुत्री सुकन्या का विवाह ब्राह्मण च्यवन ऋषि के साथ हुआ था। इस काल में बहु विवाह का भी प्रचलित था। मैत्रायिणी संहिता में मनु की 10 पत्तियों का उल्लेख मिलता है। उत्तर वैदिक काल में विधवा विवाहों की भी सूचना मिलती है। अथर्ववेद में ‘दिधूषू’ शब्द का उल्लेख स्पष्ट करता है की विधवा अपने देवर से विवाह कर लेते थे।
(9) आश्रम व्यवस्था
गृह सूत्र ग्रंथ में आर्य द्वारा प्रचलित आश्रम व्यवस्था पर पूर्ण प्रकाश डाला हुआ है। आर्य मनीषियों ने 4— (1) ब्रह्मचर्य, (2) गृहस्थ, (3) वानप्रस्थ तथा (4) सन्यास आश्रम का विधान किया था। मनुष्य की औषधि 100 वर्ष निश्चित की गई थी और इस 100 वर्ष के कल को निम्नलिखित चार भागों अथवा आश्रमों में विभक्त किया गया था।
(10) शिक्षा अध्ययन
यज्ञ के विकास एवं विस्तार के साथ कर्मकांडीय व्याख्या का जो एक विस्तृत साहित्य निर्मित हुआ, उसको सुरक्षित रख सकता कष्टसाध्य हो गया। इसलिए वेद —ब्राह्मण —आरण्यक —सभी को श्रुति कहकर वेद अध्ययन में सम्मिलित कर लिया गया। तत्कालीन शिक्षा का प्रमुख उद्देश्य भी वेदिध्ययन था, और वेदाध्ययन ही शिक्षा का अंग भी। शिक्षण प्रक्रिया मौखिक थी। शिक्षा प्राप्ति के लिए ब्राह्मण, क्षत्रिय तथा वैश्या का उपनयन किया जाता था। परवर्ती ग्रह्मसूत्रों में उपनयन का जो विस्तृत रूप प्राप्त होता है, उसका मूल रूप शतपथ ब्राह्मण से ही प्राप्त होता है। उस समय गणित, व्याकरण, छंद तथा भाषा का विशेष शिक्षक होता था।
महत्वपूर्ण अति लघु उत्तरीय प्रश्न उत्तर
उत्तर वैदिक काल कब शुरू हुआ?
उत्तर वैदिक काल 1000-600 ईसा पूर्व ० शुरू हुआ।
उत्तर वैदिक काल क्या है?
उत्तर वैदिक काल, जिसे उपनिषदी काल भी कहते हैं, वेदों के बाद का काल है। ऋग्वैदिक समाज उत्तर वैदिक काल में विकास के पद पर काफी आगे बढ़ चुका था। इस युग में आर्यों का सामाजिक जीवन स्थिरता प्राप्त करने लगा था।
उत्तर वैदिक काल में महिलाओं की स्थिति कैसी थी?
ऋग्वैदिक में इस बात की साक्ष्य मिले हैं कि पुत्री जन्म के लिए कामना की गई है और पुत्री को सौभाग्य तथा समृद्धता का सूचक कहा गया है। वैदिक संहिताओं तथा ब्राह्मणों के कथनों से यह पता चलता है कि पूर्व वैदिक काल में स्त्रियों को बड़ा आदर्श सम्मान मिलता था।
वैदिक काल में महिलाओं को माना जाता था?
वैदिक काल में महिलाओं को गृहणी माना जाता था। और पुत्री को सौभाग्य तथा समृद्धता का सूचक कहा गया है।
वैदिक काल में स्त्रियों से संबंधित कौन सी प्रथा प्रचलित नहीं थी?
स्त्रियों में पर्दा प्रथा तो नहीं हुई थी किंतु वैदिक युग की भांति स्वतंत्रता पूर्वक विचरण करना काम हो गया। स्त्रियों के धार्मिक अधिकारों में भी न्यूनता आ गयी थी। पुत्री का जन्म दुःख का कारण माना जाने लगा था। किंतु फिर भी इस युग में पुत्री हत्या का कोई उदाहरण नहीं मिलता है।
उत्तर वैदिक काल में संग्रहित्री का अर्थ?
‘संग्रहित्री’ शब्द का अर्थ उत्तर वैदिक काल में 'संरक्षिका' या 'संग्रहण करनेवाला' होता था। इस काल में यह शब्द विशेष रूप से यज्ञों और अन्य धार्मिक कार्यों के लिए उपयोग होता था, जिसमें भिक्षुक या ब्राह्मण पुराणे वेदों को संग्रहित करते थे।
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