समुदाय (community)
समाजशास्त्रीय अवधारणाओं में समुदाय की अवधारणा का महत्वपूर्ण स्थान है। व्यक्ति के जीवन में समुदाय का विशेष महत्व है। प्रत्येक व्यक्ति किसी न किसी समुदाय का सदस्य होता है। समुदाय ऐसा मानव समूह है जिसे औपचारिक रूप से संगठित नहीं किया जाता, बल्कि वह स्वभावत: स्वयं ही उत्पन्न होता है। वास्तव में यह मनुष्य का वह समूह है जो साथ-साथ रहता है और साथ-साथ रहकर जीवन यापन करता है तथा जिसका कोई विशेष उद्देश्य न होकर समान हित होता है। समुदाय में व्यक्ति एक छोटे से भौगोलिक क्षेत्र में सामान्य जीवन व्यतीत करने के लिए निवास करते हैं। उनकी समस्त जैविकीय और मानसिक आवश्यकता है इस सामुदायिक जीवन में पूरी होती हैं। गांव इतना सुंदर उदाहरण है। गांव का जीवन पूर्णतया सामुदायिक होता है। यहां के निवासी रक्त और व्यवसाय के बंधनों से परस्पर सम्मिलित रहते हैं। गांव में ही ग्राम वासियों का सामान्य जीवन व्यतीत होता है। उनमें परस्पर एकता तथा एक दूसरे पर निर्भरता की भावना पाई जाती है।
समुदाय का अर्थ एवं परिभाषा
समुदाय का अर्थ; समुदाय शब्द को अंग्रेजी में ‘community’ कहते हैं। community शब्द का निर्माण दो शब्दों से मिलकर हुआ है— ‘Com’ का अर्थ है ‘एक साथ’ (Together) तथा ‘Munis’ का अर्थ है ‘सेवा करना’। इस प्रकार कम्युनिटी शब्द का शाब्दिक अर्थ एक साथ सेवा करना है। अन्य शब्दों में हम यह कह सकते हैं कि व्यक्तियों का ऐसा समूह जिसमें परस्पर मिलकर रहने की भावना रहती है तथा परस्पर सहयोग द्वारा जो अपने अधिकारों का उपभोग करता है, समुदाय कहलाता है। इसमें सदस्यों का सामान्य जीवन व्यतीत होता है।
समुदाय की परिभाषा
(1) जींसबर्ग के अनुसार— "समुदाय का अर्थ सामाजिक प्राणियों का वह समूह समझना चाहिए जो एक सामान्य जीवन व्यतीत करता हो। उस सामान्य जीवन में अनेक निर्माण करने वाले तथा उसके परिणाम स्वरुप अनेक विभिन्न और जटिल संबंध समाविष्ट होते हैं।"
(2) बोगार्डस के अनुसार— "समुदाय एक ऐसा सामाजिक समूह है जिसमें 'हम' की भावना का कुछ ना कुछ अंश पाया जाता है और जो एक निश्चित क्षेत्र में निवास करता है।"
(3) डेविस के अनुसार — "समुदाय एक सबसे छोटा छेत्री समूह है जिसके अंतर्गत सामाजिक जीवन की समस्त पहलुओं का समावेश हो सकता है।”
उपर्युक्त परिभाषाओं के आधार पर हम कह सकते हैं कि समुदाय किसी निश्चित स्थान पर रहने वाले व्यक्तियों का एक समूह है, जिसमें उनका सामान्य जीवन व्यतीत होता है तथा जिसकी सदस्यों में सामुदायिक भावना पाई जाती है। इसी सामुदायिक भावना के कारण हुए आपस में घनिष्ठ रूप से जुड़े हुए होते हैं।
समुदाय की विशेषताएं
समुदाय की परिभाषाओं से इसकी अनेक विशेषताएंँ स्पष्ट होती हैं जिनमें से प्रमुख विशेषताएँ कुछ इस प्रकार हैं—
(1) स्थानीयता या निश्चित भू-भाग
स्थानीयता समुदाय का प्रमुख और आवश्यक तत्व है। स्थानीयता का तात्पर्य है निश्चित भू-भाग। निश्चित भू-भाग के अभाव में समुदाय की कल्पना भी नहीं की जा सकती। समुदाय का निर्माण मनुष्यों से होता है परंतु मनुष्य बिना भू-भाग के नहीं रह सकते। एक निश्चित भू-भाग के कारण ही समुदाय के सदस्य एक - दूसरे से दूसरे के निकट आते हैं तथा शारीरिक और मानसिक संबंध स्थापित करने में समर्थ हो पाते हैं । यह हो सकता है कि किसी समुदाय के पास स्थायी भू-भाग न हो परंतु हर समय किसी न किसी भू-भाग पर उसका अधिकार अवश्य रहेगा। भू-भाग पर रहने से ही ‘हम ' की भावना उत्पन्न होती है । सभी सदस्य जानते हैं कि उसके समुदाय की सीमाएँ कहाँ से आरंभ होती हैं तथा कहां समाप्त होती है ।
(2) सामुदायिक भावना
समुदाय में ‘हम’ की भावना होना परम आवश्यक है। ‘हम’ की भावना के अभाव में ‘समुदाय’ शब्द का संबोधन ही भ्रमपूर्ण हो जाता है। ‘हम' की भावना ही व्यक्तियों को एक-दूसरे के निकट लाती है। यह ‘हम' की भावना ही सामुदायिक भावना कहलाती हैं। समुदाय के लिए इस भावना का होना परम आवश्यक है। सामुदायिक भावना में ‘हम' की भावना के अतिरिक्त परस्पर दायित्व वह आश्रितता की भावना भी सम्मिलित है।
(3) जन समूह
समुदाय का स्वरूप मूर्त होता है।जन-समूह के द्वारा इसकी का आभास होता है। बिना जन-समूह के समुदाय की कल्पना ही नहीं की जा सकती ।जब जन-समूह किसी निश्चित भू-भाग पर निवास करने लगता है तो उसे समुदाय कहा जाता है।
(4) सामान्य जीवन
समुदाय की सदस्यों का कोई विशिष्ट उद्देश्य नहीं होता वरन् वे सामान्य जीवन व्यतीत करने के लिए ही समुदाय में निवास करते हैं। साथ-साथ निवास करने के कारण सामान्य गुण , व्यवहार, परंपराओं आदि का भी विकास हो जाता है। इसका जन्म सामान्य जीवन व्यतीत करने के कारण होता है।
(5) स्वत: जन्म
समुदाय किसी निश्चित उद्देश्य के लिए निर्मित नहीं होता वरन् उसका स्वत: जन्म होता है। किसी कारणवश जब व्यक्तियों का समूह एक स्थान पर रहने लगता है तो धीरे-धीरे उनमें ‘हम' की भावना आ जाती है। यह भावना ही समुदाय को स्वत: जन्म देती है।
(6) विशेष नाम
प्रत्येक समुदाय का कोई- न- कोई नाम अवश्य होता है।इस नाम के कारण ही सामुदायिक भावना में स्थायित्व आता है । नाम के कारण ही सदस्यों में सामुदायिक भावना तथा अपने समुदाय के प्रति विशेष आकर्षण होता है। विशेष नामों के आधार पर ही समुदायों को एक दूसरे से भिन्न किया जा सकता है। समुदाय के नाम के महत्व पर प्रकाश डालते हुए लुम्ले का कहना है— “यह साम्यरूपता को इंगित, वास्तविकता को प्रदर्शित, व्यक्तित्व को प्रमाणित करता है और प्रत्येक समुदाय किसी- न- किसी अंश में एक व्यक्तित्व है।”
(7) स्थायित्व की भावना
सामुदाय भीड़ के समान अस्थायी नहीं होता वरन वह चिरस्थायी होता है। यह एक प्रकार का दीर्घकालीन संगठन है जिसकी जड़ें धरती में जमी होती हैं। यद्यपि मृत्यु के साथ समुदाय के सदस्य कम हो जाते हैं परंतु जन्म के कारण इसमें नहीं सदस्य आते रहते हैं। इस प्रकार व्यक्तियों के आने- जाने से समुदाय के अस्तित्व पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है।
(8) आत्मनिर्भरता
समुदाय के सदस्य एक दूसरे के परस्पर सहयोग पर निर्भर रहते हैं ,परंतु एक समुदाय दूसरे पर निर्भर न होकर स्वतंत्र होता है। समुदाय आत्मनिर्भर होते हैं, अर्थात समुदाय के सदस्यों की अधिकांश आवश्यकताएँ समुदाय में ही पूरी हो जाती हैं।
(9) अनिवार्य सदस्यता
एक व्यक्ति जिस समुदाय में जन्म लेता है वह उसका स्वत: ही सदस्य बन जाता है। अन्य शब्दों में , समुदाय के सदस्यता अनिवार्य होती है। साथ ही व्यक्ति जिस समुदाय में जन्म लेता है उसके प्रति उसमें प्रेम भावना उत्पन्न हो जाती है।
(10) समानताओं का क्षेत्र
प्रत्येक समुदाय में अनेक प्रकार की समानताएँ रहती हैं । जैसे— रूढियों, परंपराओं, रीति- रिवाजों, भाषा और समारोह मनाने आदि के ढंगों में समानता होती है। इसे सजातीयता कहा जाता है। परंतु आधुनिक समाजों में हो रहे परिवर्तनों के कारण समुदायों में पायी जाने वाली समानताएँ कम होती जा रही हैं तथा इसका स्थान विजातीयता लेती जा रही है।
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