राजतंत्र शासन-प्रणाली का अर्थ, परिभाषा तथा गुण एवं दोष - monarchy

राजतंत्र शासन-प्रणाली

राजतंत्र का अर्थ ; राजतंत्र पर आधारित शासन प्रणाली के अंतर्गत शासन की संपूर्ण शक्तियां एक ही व्यक्ति के हाथों में केंद्रित होती है। यह व्यक्ति राजा कहलाता है, जो की वंशानुगत (वंश परंपरा से प्राप्त) होता है। राजतंत्र शासन प्रणाली प्राचीन काल से ही विभिन्न देशों में प्रचलित रही है। इसके संबंध में बोसांके का कथन है, कि “राजतंत्र प्राचीनतम सबसे अधिक प्रचलित सर्वोत्तम तथा सबसे अधिक स्वाभाविक शासन का प्रकार है।”  बदलते हुए परिवेश में राजेंद्र को सर्वोत्तम एवं प्रचलित शासन कहना तर्कसंगत प्रतीत नहीं होता है। 

राजतंत्र शासन-प्रणाली का अर्थ, परिभाषा तथा गुण एवं दोष - monarchy

राजतंत्र की परिभाषाएं‌

राजतंत्र के संबंध में बहुत से विद्वानों ने अनेक परिभाषाएं दी हैं जिनमें कुछ मुख्य परिभाषाएं यह है—

(1) गैटिल के अनुसार — “यह ऐसा शासन जिसमें सर्वोपरि तथा अंतिम सत्ता जो होती है एक ही व्यक्ति के हाथ में निहित होती है, ‘राजतंत्र’ कहलाता है।” 

(2) लॉर्ड ब्राइस अपने राजतंत्र की परिभाषा देते हुए यह कहा है, “राजतंत्र का तात्पर्य किसी नाम से नहीं अपितु उसे राज्य से होता है जिसमें राजा की व्यक्तिगत इच्छा स्थाई रूप से प्रभावशाली रहती है और शासन में अंतिम रूप से निर्णायक तत्व का कार्य करती है।” 

राजतंत्र शासन-प्रणाली के गुण 

राजतंत्र शासन-प्रणाली के गुण के अनेक गुना में से कुछ प्रमुख गुणों का उल्लेख नीचे कर रहे हैं— 

(1) प्राचीन काल का सर्वश्रेष्ठ शासन 

प्राचीन काल में शासन का स्वरूप अधिकांशतः राजतंत्रात्मक ही रहता था। प्राचीन काल में कबीले के मुखिया अपनी शक्ति बढ़ाकर आस-पास के क्षेत्र पर अधिकार करके शासन करते थे। और उस युग में निरंकुश राजतंत्र पर आधारित शासन प्रणाली ही उपयुक्त शासन प्रणाली समझी जाती थी।

(2) समस्याओं का बड़ी सफलता से समाधान

राजतंत्र शासन-प्रणाली में शासन की संपूर्ण सट्टा एक ही व्यक्ति के हाथों में निहित होती है। अतः इस प्रकार की शासन प्रणाली में शासन तथा नागरिकों से संबंधित सभी समस्याओं का समाधान सफलतापूर्वक एवं बिना किसी बात विवाद के ही हो जाता है।

(3) राजनीतिक दलों के संघर्ष से मुक्ति

राजतंत्र पर आधारित शासन प्रणाली में किसी भी राजनीतिक दल का प्रभाव नहीं होता है। इसलिए राजनीतिक दलों से संबंधित किसी भी प्रकार का संघर्ष राजतंत्र शासन प्रणाली में देखने को नहीं मिलता है। 

(4) असभ्य लोगों के लिए निरंकुश राजतंत्र उपयुक्त शासन है 

राजतंत्र शासन-प्रणाली प्राचीन काल से ही असभ्य तथा बर्बर लोगों के लिए उपयुक्त शासन प्रणाली रही है। प्राचीन काल में लोग असभ्य होते थे तथा उन पर नियंत्रण रखने के लिए शक्तिशाली राजा की आवश्यकता होती थी इसलिए यह शासन प्रणाली उत्तम समझी आई थी। इसी दिशा में जी० एस० मिल ने लिखा है, “अशभ्य और बर्बर जातियों के लिए निरंकुश राजतंत्र ही सर्वोच्च शासन का प्रकार है।” 

(5) आंतरिक व बाह्य सुरक्षा 

जो राजतंत्र पर आधारित शासन प्रणाली में संपूर्ण सत्ता होती है वह राजा के हाथों में ही होती है, इसलिए राजा अपनी प्रजा का पुत्रवत पालन करता है। वह अपने राज्य में किसी भी प्रकार की अराजकता को सहन नहीं करता है और संगठित सी द्वारा बाह्य आक्रमणों से देश की सुरक्षा करता है। इस प्रकार राजतंत्र शासन प्रणाली में कुशल शासन द्वारा आंतरिक वह बाह्य क्षेत्र में सुरक्षा की व्यवस्था अच्छी संभव होती है।

(6) कानूनों के पालन में निष्पक्षता

राजतंत्र पर आधारित शासन प्रणाली में कानून का निर्माण तथा पालन कराने का उत्तरदायित्व राजा पर ही होता है। इन कानूनों का राजा निष्पक्ष भाव से पालन करता है। सभी को समान रूप से कानून का पालन करना पड़ता है। राजा राजनीति की दलदल से ऊपर होता है, अतः वह निष्पक्ष रूप से शासन कार्यों का संचालन करता है। राजतंत्र में राजा का अनुभव भी बहुत अधिक होता है, इसलिए प्रशासनिक समस्याओं को भली-भांति समझ सकता है।

(7) सुनिश्चित तथा स्पष्ट नीति का निर्धारण करना

राजतंत्र पर आधारित शासन प्रणाली में समस्त शक्तियां शासन में ही नियत होती हैं अर्थात राजा में। शासन ही विभिन्न नीतियों का निर्धारण और उनका पालन करता है। इसलिए राजतंत्र शासन प्रणाली में सुनिश्चित तथा राष्ट्र नीति का पालन किया जाता है तथा प्रशासन की कार्य क्षमता में वृद्धि होती है। ह्यूमन के शब्दों में, “राजतंत्रो में व्यवस्था तथा स्थिरता की सुविधा रहती है।” 

(8) सामाजिक परिवर्तन को प्रोत्साहन

विश्व के प्रत्येक देश में रूढ़िवादिता तथा संकीर्णता को समाप्त करने का श्री बड़े-बड़े राजाओं को ही रहा है। पीटर महान (रुस) तथा  फ्रेड्रिक महान (प्रसा) आदि ने अपने देश का आधुनिकीकरण किया। इस प्रकार, कमाल पाशा ने तुर्की को तथा हिटलर ने जर्मनी को युगांतरकारी परिवर्तनों की ओर अग्रसित किया। लॉर्ड ब्राइस ने स्पष्ट रूप से लिखा है, “17वीं तथा 18वीं शताब्दी में यूरोप के विविध राज्यों में अनेक ऐसे सुधार हुए हैं, जिन्हें कि एक शक्तिशाली राजतंत्र की अतिरिक्त अन्य कोई भी शक्ति संपन्न नहीं कर सकती थी।” 

(9) संकट काल के लिए उपयुक्त शासन

संकट काल के समय में राजतंत्र विशेष रूप से शक्तिशाली सिद्ध होता है, क्योंकि ऐसी स्थिति में निर्णयन शक्ति एक है व्यक्ति के पास होने से जनहित में अविलंबन निर्णय लिया जा सकते हैं।

(10) जनकल्याण से संबंधित कार्यों की व्यवस्था

इस प्रकार की शासन प्रणाली में लोकगीत के कार्यों में कोई विलंब नहीं होता है, क्योंकि सभी कार्य राजा की स्वीकृति से ही अभिलंब हो जाते हैं। डेविड ह्यूम का मत है, “इन शासनों में संपत्ति सुरक्षित रहती है, व्यवसायों को परेशान मिलता है, कलाकृति फलती है तथा राजा अपनी प्रजा के बीच इस प्रकार रहता है, जैसे पिता अपने बच्चों में। 

राजतंत्र शासन-प्रणाली के दोष 

राजतंत्र शासन-प्रणाली के दोष में अनेक गुण निहित है परंतु यह प्रणाली दोषों से भी पूर्णतया मुक्त नहीं है। इसके प्रमुख देशों का उल्लेख नीचे कर रहे हैं— 

(1) राजा की स्वेछा प्रजा की विवशता

राजतंत्र शासन प्रणाली में शासन की पूजा होती है। राजा अपनी प्रजा पर अपने विचारों तथा इच्छाओं को ठोकने का प्रयास करता है और प्रजा उसकी आज्ञा का पालन बिना किसी विरोध के करती है। इस प्रकार राजतंत्र पर आधारित शासन प्रणाली में शासन की पूजा का भी विधान है। इस प्रकार की स्थिति और योग्य शासको के विरुद्ध भी क्रांति होने से रोक देती है और प्रजा उनके शासन में घोर कष्टों से पीड़ित रहती है।

(2) अराजकता की स्थिति

राजतंत्र शासन-प्रणाली में अयोग्य राजाओं के शासनकाल में अराजकता का भय रहता है, क्योंकि वह अपनी बुध्दिहीनता के कारण जन विरोधी कार्यो को करने में भी संकोच नहीं करते हैं। 

(3) वंशानुगत शासको की प्रतिभा में संदिग्ध

राजतंत्र पर आधारित शासन प्रणाली में राजा का पुत्र ही राजा की मृत्यु के बाद शासन पर बैठता है, किंतु यह ठोस रूप से नहीं कहा जा सकता है कि योग्य राजा का पुत्र भी अपने पिता के समान योग्य ही होगा। कभी-कभी कुशल शासको के पुत्र प्रतिभाहीन सिद्ध हो जाते हैं और वह राज्य की सुरक्षा कर पाने में भी असमर्थ सिद्ध होते हैं। इसी संबंध में लीकांक के अनुसार, “वंशानुगत राजा की कल्पना उतनी ही बेहूदा है जीतने की वंशानुगत गणितज्ञ वंशानुगत कवि की कल्पना।” 

(4) शासक के निरंकुश्ता 

राजतंत्र पर आधारित शासन प्रणाली में शासक पर कोई भी प्रतिबंध नहीं होता है। वह मनमानी ढंग से कार्य कर सकता है। और इस शासन प्रणाली में शासन की निरंकुश्ता का भय निरंतर बना रहता है।

(5) कुशल शासन का अभाव

राजतंत्र शासन प्रणाली में कुशल शासन का अभाव रहता है। क्योंकि राजा अपने प्रभाव को स्थापित करने में ही अपनी संपूर्ण शक्ति को लगा देता है और प्रशासन की कुशलता को समाप्त कर देता है, इसलिए राजतंत्र शासन या सरकार का आदर्श स्वरूप नहीं हो सकता है। 

(6) आधुनिक युग के लिए अनुपयुक्त

आधुनिक युग लोकतंत्र का युग है। आधुनिक समय में राज्य का स्वरूप लोक कल्याणकारी हो गया है। अतः राजतंत्र आधुनिक युग के लिए अनुपयुक्त है।

निष्कर्ष

आधुनिक युग में व्यक्ति की स्वतंत्रता और समानता पर विशेष बल दिया जा रहा है, अतएव वर्तमान समय में राजतंत्र पर आधारित शासन प्रणाली के निरंकुश स्वरूप को सहन नहीं किया जाता है। आधुनिक काल में निरंकुश राजतंत्र के स्थान पर सीमित अथवा वैधानिक राजतंत्र को किसी सीमा तक मान्यता दी जाती है। वर्तमान समय में केवल उन्हीं राज्यों में राजतंत्र आत्मक शासन प्रणाली का अस्तित्व का आयाम है जिनमें राजतंत्र ने अपने आप को लोकतंत्र के हाथों भेज दिया है अर्थात राजतंत्र का स्वरूप संवैधानिक अथवा औपचारिक है। राज्य निर्वाचित प्रतिनिधियों के परामर्श पर शासन व्यवस्था का संचालन करता है।

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