भारतीय संविधान के प्रमुख स्रोत
भारतीय संविधान के निर्माताओं ने एक व्यवहारिक संविधान के निर्माण पर बल दिया था, मौलिकता पर नहीं दिया। उन्होंने विश्व के विभिन्न देशों के संविधान में से अपने देश के लिए अनुकूल संवैधानिक प्रावधानों को ही ग्रहण किया है, उन्होंने विश्व के अलग-अलग देशों से काम आने वाली अपने देश के लिए संविधान का निर्माण किया। दूसरे शब्दों में कहे तो, संविधान निर्माता ने मौलिक संविधान की रचना को महत्व देने के स्थान पर विश्व के विभिन्न संविधानों की अच्छी-अच्छी बातों को ग्रहण करके एक व्यवहारिक संविधान की रचना की है।
इसी संबंध में डॉक्टर भीमराव अंबेडकर ने कहा है, “हमारे संविधान में यदि कोई नवीन बात हो सकती है तो यही कि उसमें प्राचीन प्रचलित संविधानों के देशों को दूर कर दिया जाए और उसे देश की आवश्यकताओं के अनुसार ढाला जाए। उधार लेने में कोई साहित्यिक चोरी नहीं है। शासन व विधान के आधारभूत सिद्धांतों पर किसी का एक अधिकार नहीं होता है।” भारतीय संविधान पर विदेशी संविधानों के प्रभाव के कारण ही भारतीय संविधान को ‘उधर की थैली’ ‘विविध संविधान की खिचड़ी’ तथा ‘कैंची और गोंद का खिलवाड़’ आदि कहा गया है।
भारतीय संविधान के स्रोत
(1) 1935 भारत शासन अधिनियम
भारतीय संविधान का मुख्य आधार सन 1935 ई० का भारत शासन अधिनियम रहा है। भारत के संविधान में 1935 के अधिनियम की 200 धाराओं का प्रयोग किया गया है। इसलिए डॉक्टर जिनिक्स ने कहा है, “भारतीय संविधान पर 1935 के अधिनियम का इतना गहरा प्रभाव है कि इसकी अधिकांश धाराओं को जैसे हैं वैसे ही संविधान में रख दिया गया है।” इस अधिनियम के प्रभाव को देखते हुए भारतीय संविधान को 1935 ई के अधिनियम की कार्बन कॉपी कहा गया है।
वर्तमान संविधान के राज्यों की कार्यपालिका शक्ति का संगठन, राष्ट्रपति के संकटकालीन, अधिकार तथा शक्तियां, केंद्र सूची, राज्य सूची तथा समवर्ती सूची में शक्तियों का विभाजन आदि सभी बातें 1935 के अधिनियम से ली गई हैं। इस संविधान के अनेक बातें ऐसी हैं जो 1935 के अधिनियम से भिन्न है। यह संविधान 1935 के अधिनियम से निम्नलिखित बातें में भिन्न है—
- 1935 ई० का अधिनियम भारतीयों को प्रभुसत्ता से वंचित करता था, किंतु वर्तमान संविधान के अनुसार प्रभु सत्ता जनता में निहित कर दी गई है।
- 1935 ई० के अधिनियम का संशोधन ब्रिटिश संसद ही कर सकती थी, किंतु वर्तमान संविधान का संशोधन भारत की संसद तथा राज्यों की विधानमंडल करते हैं।
- 1935 ई० के अधिनियम में नागरिकों को मौलिक अधिकारों से वंचित किया गया था, परंतु वर्तमान संविधान में नागरिकों को मौलिक अधिकार भी प्रदान किए गए हैं।
- 1935 ई० के अधिनियम में लोक कल्याणकारी राज्य का उल्लेख नहीं था, परंतु वर्तमान संविधान में लोक कल्याणकारी हितकारी राज्य का विशेष रूप से वर्णन है।
(2) अमेरिका का संविधान से
भारत के संविधान के निर्माण में अमेरिका के संविधान का भी महत्वपूर्ण योगदान है। संविधान की प्रस्तावना, नागरिकों के मूल अधिकार, सर्वोच्च न्यायालय की स्थापना एवं एक स्वतंत्र न्यायपालिका की व्यवस्था आदि सभी बातों में भारत का संविधान अमेरिका के संविधान का विशेष रूप से श्रेणी है। न्यायिक पुनरावलोकन भी भारत ने अमेरिका संविधान से ही ग्रहण किया है।
(3) आयरलैंड का संविधान से
भारत की संविधान में दिए गए राज्य के नीति निर्देशक तत्व, राष्ट्रपति का निर्वाचन मंडल द्वारा निर्वाचन, राज्यसभा में योग्यतम व्यक्तियों को राष्ट्रपति द्वारा मनोनीत करना आदि बातें आयरलैंड के संविधान की देन है।
(4) ब्रिटेन का संविधान से लिया
भारत के संविधान का निर्माण करने की दृष्टि से ग्रेट ब्रिटेन के संविधान का भी महत्वपूर्ण योगदान है। इस बात की पुष्टि इन आधार पर कर सकते हैं—
(१) भारत में संसदीय शासन प्रणाली को इंग्लैंड के संविधान से ही लिया गया है।
(२) भारत में अभी ब्रिटेन के समान कानून के शासन को अपनाया गया है। दीर्घकाल तक भारत अंग्रेजों की अधीन रहा इसलिए भारतीय नेता व जनता संसदीय शासन प्रणाली के अभ्यास रत हो गए थे तथा संविधान निर्माता पर ब्रिटेन के संविधान का प्रभाव होना स्वाभाविक ही था।
(5) कनाडा का संविधान
कनाडा के संविधान में संघात्मक शासन व्यवस्था को अपनाया गया है तथा अवशिष्ट शक्तियां इकाइयों के स्थान पर केंद्र में निहित है। इसी प्रकार की व्यवस्था भारत के संविधान में भी है। तथा इसके अतिरिक्त कनाडा संघ के लिए यूनियन शब्द का प्रयोग किया गया है, और इसीलिए भारतीय संघ के लिए भी यूनियन शब्द का प्रयोग किया गया है।
(6) ऑस्ट्रेलिया का संविधान
भारतीय संविधान की प्रस्तावना की भाषा, समवर्ती सूची तथा केंद्र व राज्यों के मध्य उत्पन्न होने वाले पारस्परिक विवादों का समाधान करने की प्रणाली ऑस्ट्रेलिया के संविधान से मिलती-जुलती है, इसलिए हम यहां कह सकते हैं कि भारत का संविधान थोड़ा बहुत ऑस्ट्रेलिया से भी मिलता-जुलता है।
(7) नेहरू रिपोर्ट का प्रभाव
भारत के वर्तमान संविधान पर नेहरू रिपोर्ट का भी पर्याप्त प्रभाव है, क्योंकि नेहरू रिपोर्ट से संबंधित कुछ मुख्य बातें भारत के संविधान में भी हैं।
(8) पूर्व का सोवियत संघ का संविधान
संविधान में 42 में संविधान संशोधन के द्वारा सम्मिलित किए गए 10 मूल कर्तव्यों को सोवियत संघ के संविधान से लिया गया है, इसलिए भारत का संविधान सोवियत संघ के संविधान का भी थोड़ा श्रेणी है।
(9) दक्षिण अफ्रीका का संविधान
भारतीय संविधान की संशोधन प्रणाली दक्षिण अफ्रीका के संविधान के संशोधन प्रणाली पर आधारित है।
(10) जापान का संविधान
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 में वर्णित ‘कानून द्वारा स्थापित प्रक्रिया’ शब्द को जापान के संविधान से लिया गया है।
समीक्षा (निष्कर्ष)
भारतीय संविधान के निर्माण हेतु प्रयुक्त विभिन्न स्रोतों के अध्ययन के आधार पर कुछ आलोचकों का मत है कि भारत का संविधान ‘भानुमति के पिटारे की भांति’ है तथा कुछ आलोचकों ने इसको ‘उधार का थैला’ कहा है। कुछ आलोचकों का विचार है कि यह विभिन्न विधानों की नकल मात्र है, जिससे इस संविधान की मौलिकता समाप्त हो गई है। किंतु यह सब कुछ होते हुए भी हम कह सकते हैं कि भारत का संविधान दूसरे देशों के संविधान की नकल मात्रा नहीं है। यह अनेक दृष्टियों से बने एक मौलिक संविधान भी है। इस संविधान को भारतीय परिस्थितियों के अनुकूल डाला गया है तथा यह बात अलग है कि वर्तमान में बदलती हुई परिस्थितियों के कारण ऐसे अनेक संशोधन करने पड़े हैं। लेकिन जो भी कहीं भारत का संविधान भारत के लिए तो अच्छा ही है।
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