अंतर्राष्ट्रीयता किसे कहते है? अर्थ, परिभाषा तथा सहायक तत्व | internationalism

अंतर्राष्ट्रीयता (internationalism)

अंतर्राष्ट्रीयता का अर्थ एवं परिभाषा

अंतर्राष्ट्रीयता का अर्थ ; अंतर्राष्ट्रीयता का तात्पर्य विश्व प्रेम, विश्व बंधुत्व एवं वसुदेव कुटुंबकम की भावना से ओतप्रोत होना है। अंतरराष्ट्रीय तथा वह भावात्मक स्थित है, जिसके द्वारा व्यक्ति अपने को विश्व का नागरिक मानता है। यद्यपि अनेक निकृष्ट भावनाएं— संकुचित राष्ट्रीयता, राष्ट्रो की स्वार्थ पूर्ण नीति, विभिन्न राजनीतिक विचारधाराएं, देश के प्रति मोह आदि अंतर्राष्ट्रीयता की भावना के मार्ग में अवरोध उत्पन्न करती है, परंतु फिर भी आज के बदलते परिवेश और विभिन्न प्रकार के विकासों के प्रति अन्योन्याश्रियता की दृष्टि से अंतरराष्ट्रीय था कि महत्व पर पर्याप्त बल दिया जा रहा है। 

अंतर्राष्ट्रीयता की परिभाषा

(1) गोल्ड स्मिथ के अनुसार, अंतर्राष्ट्रीय का एक भावना है, जिसके अनुसार व्यक्ति केवल अपने राज्य का ही सदस्य नहीं बल्कि समस्त विश्व का नागरिक है।” 

(2) विलियम लॉयड गैरिसन के अनुसार, “हमारा देश विश्व है, हमारे देशवासी संपूर्ण मानव जाति के हैं, हम अपनी जन्मभूमि को इस प्रकार प्यार करते हैं, जिस प्रकार हम अन्य देशों से प्रेम करते हैं।” 

(3) प्रो० जिमर्न के अनुसार, “अंतर्राष्ट्रीय का राष्ट्रों के मध्य उनके सर्वोच्च और सर्वोच्कृष्ट तथा विशिष्ट प्रतिनिधियों तथा रूपों के मध्य सहयोग है।” 

उपर्युक्त परिभाषाओं के आधार पर हमें यह स्पष्ट होता है कि अंतरराष्ट्रीय का एक ऐसा विचार या कार्य प्रणाली है जिसके फल स्वरुप हमें कुछ यह ज्ञात होता है — 

  1. विश्व के राज्यों के बीच शांतिपूर्ण सहयोग की वृद्धि होती है।
  2. विश्व के विभिन्न राष्ट्रों की पारस्परिक द्वेष तथा वैमनस्य का अंत होता है।
  3. अंतराष्ट्रीयता का लक्ष्य आत्मसम्मान और सुशांत पूर्ण राष्ट्रों का एक ऐसा परिवार बनाना है, जो सामान्य शांति और पारस्परिक सहयोग के माध्यम से एकता के सूत्र में बधा हो। भारतीय संस्कृति की वसुदेव कुटुंबकम की धारणा अंतरराष्ट्रीय का ही रूप है। यह भावना विश्व बंधुत्व एवं विश्व मानवता के सिद्धांतों पर आधारित है। 

अंतर्राष्ट्रीयता की भावना के निर्माण में सहायक तत्व

वर्तमान समय में अंतरराष्ट्रीयता की भावना लोकप्रियता एवं व्यापकता के शिखर पर पहुंच रही है। इस भावना के निर्माण में अनेक तत्व महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। यह तत्व इस प्रकार है—

(1) आर्थिक निर्भरता

आधुनिक युग में प्रत्येक विकासशील देश के लिए अंतर्राष्ट्रीय व्यापार का बहुत महत्व होता है, क्योंकि प्रत्येक देश की प्राकृतिक संपदा सीमित मात्रा में होती है। औद्योगिक दृष्टि से उन्नति शील देशों को अपने उद्योगों को चलाने के लिए पर्याप्त मात्रा में कच्चे माल की आवश्यकता पड़ती है। इसके अतिरिक्त देश में आवश्यकता से अधिक माल का निर्माण हो जाने पर उसकी बिक्री के लिए भी अन्य देश विपणन केंद्र के रूप में भी सहायक सिद्ध होते हैं।

(2) यातायात के साधनों में प्रगति

यातायात के साधनों में क्रांतिकारी परिवर्तन के फलस्वरूप विभिन्न देशों के मध्य दूरी समाप्त हो गई है। आज व्यक्ति वायुयान द्वारा कुछ ही घंटे में अपने देश से दूसरे देश में पहुंच सकता है। इस प्रकार, अंतर्राष्ट्रीय ताकि भावना के विकास में यातायात के साधनों ने बहुत योगदान दिया है।

(3) सांस्कृतिक एकता

किसी देश की संस्कृति संपूर्ण विश्व को प्रभावित करती है, उदाहरणस्वरूप—एक देश के साहित्य, रहन-सहन, खान-पान आदि का प्रचलन अन्य देशों में बहुत जल्दी प्रारंभ हो जाता है। इस प्रकार प्रत्येक देश का नागरिक राष्ट्रीयता की भावना के साथ-साथ अंतरराष्ट्रीयता की भावना से भी किसी न किसी रूप में जुड़ा है।

(4) युद्धों का भय

विश्व के लोग इस शताब्दी में दो विश्व युद्धों के भयानक परिणाम देख चुके हैं और तीसरे युद्ध के भय से सशंकित है। इसीलिए प्रत्येक देश अंतरराष्ट्रीय तक को पर्याप्त महत्व दे रहा है। वस्तुत: कोई भी देश अपने देश की सभ्यता एवं संस्कृति का विनाश नहीं देखना चाहता है। इसीलिए प्रत्येक देश अंतरराष्ट्रीय संबंधों को काफी महत्व दे रहा है। 

(5) अंतरराष्ट्रीय कानून

विभिन्न राज्यों के पारस्परिक संबंधों एवं व्यवहार के संबंध में अन्य प्रकार के अंतरराष्ट्रीय कानूनों का प्रादुर्भाव हुआ है। इन कानून का पालन करना प्रत्येक देश का आवश्यक कर्तव्य हो गया है। विशेष स्थिति में विभिन्न राष्ट्रों के मध्य उत्पन्न विवादों का निर्णय संयुक्त राष्ट्र संघ के घटक अंतरराष्ट्रीय न्यायालय के द्वारा किया जाता है।

(6) अंतरराष्ट्रीय संगठन

अंतरराष्ट्रीयता के पोषक तत्वों में अंतरराष्ट्रीय संगठनों की भी पर्याप्त महत्वपूर्ण भूमिका है। विश्व की समस्याओं को सुलझाने वाले सम्मेलन अंतरराष्ट्रीयता की वृद्धि में सहायक होते हैं। इसके अतिरिक्त अंतर्राष्ट्रीय श्रमिक संघ (ILO) तथा संयुक्त राष्ट्र संघ (UNO) आदि संगठन अंतर्राष्ट्रीयता के आधार पर ही घटित किए गए हैं।

(7) विश्वबंधुत्व की धारणा

सभी धर्मों के आधारभूत सिद्धांत मानवता तथा विश्वबंधुत्व की धारणा पर आधारित है। इस विश्वबंधुत्व की धारणा ने अंतरराष्ट्रीयता के विकास में बहुत योगदान दिया है।

(8) समाचार पत्र, रेडियो एवं साहित्य

अंतर्राष्ट्रीयता के विकास में समाचार पत्र, रेडियो एवं अंतर्राष्ट्रीय साहित्य ने भी बड़ा महत्वपूर्ण योगदान किया है। माडरियागा का कथन है, 

“विचारों और समाचारों की दृष्टि से आज के विश्व ने एक संयुक्त इकाई का रूप धारण कर लिया है।”

(9) अंतर्राष्ट्रीय क्रिडा़ प्रतियोगिताएं

वर्तमान युग में ओलंपिक खेल, विश्व खेल एवं एशियाई खेल प्रतियोगिताओं ने ने अंतरराष्ट्रीयता की भावना के प्रसार में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। इन खेलों में विश्व भर के सभी देशों के खिलाड़ी भाग लेते हैं, जिसके परिणाम स्वरुप विश्व में अंतरराष्ट्रीयता की भावना विकसित होती है।

(10) मानवाधिकार

लोकतांत्रिक युग में प्रत्येक देश में व्यक्तित्व के विकास के लिए अन्य प्रकार के अधिकार प्रदान किए गए हैं। इनमें से कुछ अधिकार विश्व के प्रत्येक भाग में मान्य हो जाते हैं। संयुक्त राष्ट्र संघ ने भी इसी प्रकार के विश्वव्यापी मानवाधिकारों की घोषणा की है। इससे भी अंतर्राष्ट्रीयता के विकास में सहायता मिली है। इस अवधारणा को विश्वव्यापी बनाने की दृष्टि से विभिन्न देशों ने मानवाधिकार आयोग की स्थापना की है।

निष्कर्ष

आज प्रत्येक देश का नागरिक यह अनुभव कर रहा है कि जब तक लोग अंतरराष्ट्रीयता की भावना को महत्व नहीं देंगे, तब तक प्रत्येक देश का भविष्य अंधकारमय है। आज पर्याप्त सीमा तक सभी राष्ट्र परस्पर विश्वास, सद्भावना तथा सहयोग का महत्व समझाने लगे हैं। राष्ट्रों के बीच इन्हीं संबंधों को मैत्रीपूर्ण बनाने के उद्देश्य से संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थापना हुई है। सन 1945 ईस्वी में निरंतर यह संघ अपने विभिन्न घटकों के माध्यम से अंतरराष्ट्रीय शांति एवं सद्भावना की दिशा में सार्थक प्रयास कर रहा है।

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