गौतम (महात्मा) बुद्ध का जीवन परिचय | इतिहास - Gautam buddha

 गौतम बुद्ध का जीवन परिचय 

या महात्मा बुद्ध का जीवन परिचय

गौतम बुद्ध के जीवन की घटनाओं का वर्णन संस्कृत एवं पाली भाषा के ‘ललित विस्तार’ , महावस्तु बुद्धचरित (अश्वघोष) तथा अभिनिष्क्रमक सूत्र (चीनी) आदि ग्रन्थों में मिलता है। गौतम बुद्ध का जीवन परिचय हम अलग-अलग भागों में विस्तृत ढंग से पढ़ेंगे— 

गौतम (महात्मा) बुद्ध का जीवन परिचय | इतिहास - Gautam buddha

गौतम (महात्मा) बुद्ध का जीवन परिचय

(1) प्रारंभिक जीवन 

शुरुआत करते हैं गौतम बुद्ध के जन्म से, जो लगभग 563 ईसा पूर्व शाक्य गणराज्य की राजधानी कपिलवस्तु के पास लुंबिनी नामक वन में हुआ था। इनके जन्मतिथि के विषय में विद्वानों में पर्याप्त मतभेद हैं। इनका बचपन का नाम सिद्धार्थ था। इनके पिताजी का नाम राजा शुद्धोधन था, तथा इनके माता का नाम महामाया देवी था। बुद्ध के जन्म के साथ दिन पश्चात महामाया देवी का निधन हो गया था। इनकी विमाता माता प्रजापति गोतमी ने इनका पालन पोषण किया। गौतम बुद्ध प्रारंभ से ही एकांत प्रिय मननशील एवं दयावान थे। सिद्धार्थ के इस स्वभाव से उनके पिता को बहुत चिंता हुई। इसीलिए उन्होंने भोग विलास की समस्त वस्तुएं उनके चारों ओर एकत्र कर दीं, किंतु इनका मन सांसारिक भोगों की ओर आकर्षित न हो सका। 


(2) वैवाहिक जीवन (ग्रहस्त जीवन) 

सांसारिक सुखों के प्रति उदासीनता के कारण इनके पिता ने 16 वर्ष की अल्पायु में ही इनका विवाह ‘यशोधरा’ नाम का एक सुंदर राजकुमारी से कर दिया। कुछ समय पश्चात इन्हें एक पुत्र रत्न प्राप्त हुआ। उसका नाम राहुल रखा गया। संपूर्ण राजमहल में खुशियां मनाई गई किंतु इन्हें कोई विशेष प्रश्न उत्तर नहीं हुई और उनके मुंह से यह शब्द निकले — “आज मेरे बंधन की श्रृंखला की एक कड़ी और बढ़ गई है।” पुत्र जन्म के उपरांत बुद्ध अपने इन संख्याओं को तोड़ने के लिए और भी अधिक प्रयत्नशील हो गए। कुछ समय के उपरांत बुद्ध ने एक वृद्ध व्यक्ति को, एक बीमार व्यक्ति को तथा  एक शव को ले जाते देखा जिससे उनके मन में और भी अधिक तीव्र वैराग्य उत्पन्न हो। 


(3) गृह का प्रत्याग 

कुछ दिनों पश्चात एक दिन रात्रि के समय ऐसा प्रतीत हुआ कि मानो कोई उनसे यह कह रहा है कि “यही समय है उठो संसार का त्याग कर कर अपने लक्ष्य को ढूंढने के लिए चल पढ़ो।” गौतम इस आवाज की अवधारणा ना कर सके। वह अपनी श्रृंखलाओं को तोड़कर 29 वर्ष की अवस्था में घर त्याग कर चल दिए। बौद्ध धर्म में बुद्ध के गृह त्याग की इस घटना को «महाभिनिष्क्रमण» कहते हैं। इसके पश्चात उन्होंने अपना मुंडन कराया, गेरुए वस्त्र धारण किया तथा ज्ञान की खोज में निकल पड़े।


(4) बुद्धत्व या ज्ञान की प्राप्ति

सत्य की खोज में भ्रमण करते हुए सिद्धार्थ की अनेक महापुरुषों, साधुओं और सन्यासियों से भेंट हुई। मगध की राजधानी में सांख्ययोग के आचार्य आलार-कलाम और 250 शिष्यों के गुरु आचार्य उद्रक नामक दो प्रसिद्ध ब्राह्मणों से इनका परिचय हुआ, किंतु इनसे सिद्धार्थ संतुष्ट न हूए। तब उन्होंने कठोर तपस्या द्वारा ज्ञान प्राप्ति का निर्णय किया। अतः उन्होंने उरुवेला की एक पहाड़ी पर अपने पांच ब्राह्मण मित्रों सहित घोर तपस्या प्रारंभ कर दी। इश्क हो तपस्या से भी जब उन्हें अपने उद्देश्य की प्राप्ति होती दिखाई नहीं पड़ी तो उन्होंने तब तथा व्रत को त्याग दिया तथा अल्पाहार प्रारंभ कर दिया। उनके साथियों ने सोचा कि, “गौतम भोगवादी है, उसने शरीर के लिए व्रत का परित्याग किया है।” ऐसा मानकर उन्होंने बुद्ध का साथ छोड़ दिया। एक दिन उन्होंने गया के निकट वटवृक्ष के नीचे ध्यानस्त होने से पूर्व सुजाता नमक कन्या से पायस (खीर) ग्रहण की, फिर वे ध्यान लगा कर बैठ गए। 7 दिन और 7 रात्रि बेचने पर भी उनकी अखंड समाधि भंग नहीं हुई। आठवें दिन वैशाख पूर्णिमा को उन्हें अकस्मात अपने हृदय में परम प्रकाश की अनुभव हुआ। यह प्रकाश ही बुद्धत्व (ज्ञान की प्राप्ति) था। इसी दिन से वे ‘तथागत’ हो गए। इस समय उनके आयु 35 वर्ष थी। जिस वटवृक्ष के नीचे गौतम बुद्ध ने ज्ञान प्राप्त किया था, वह कालांतर में बोधि वृक्ष कहलाया।


(5) धर्म का प्रचार-प्रसार 

महात्मा बुद्ध ने अपना प्रथम उपदेश सारनाथ (जो कि वर्तमान में वाराणसी है) में दिया। वहां उनके वही पांचो पुराने मित्र थे जिन्होंने उन्हें पथ भ्रष्ट कहकर उनका साथ छोड़ दिया था। यह पांचो बुद्ध के उपदेशों से बहुत प्रभावित हुए और अपने किए व्यवहार की क्षमा मांगी। बुद्ध ने उन्हें क्षमा कर दिया और उन्हें अपना शिष्य बना दिया। भारतीय इतिहास में बौद्ध धर्म के प्रचार से संबंधित यह घटना ‘धर्म-चक्र प्रवर्तन’ (धर्म के चक्र का चलाना) के नाम से विख्यात हुई। 

  सारनाथ से चलकर बुद्ध काशी (वर्तमान में वाराणसी) पहुंचे। यहां दो धनी पुरुष उनके शिष्य बने। यहां से वे उरूवेला पहुंचे जहां तीन ब्राह्मणों को अपना शिष्य बनाया। इसके बाद वे मगध गए, जहां राजा बिंबिसार ने उनका भव्य स्वागत किया। इस प्रकार उनका धर्म चक्र निर्वाण दिवस तक चलता रहा। 


(6) निर्वाण की प्राप्ति 

अंत में बुद्ध अनेक स्थानों पर उपदेश देते हुए पावापुरी पहुंचे। यहां उनको अतिसार का भयंकर रोग हो गया। इसी स्थिति में हुए वहां से फिर  कुशीनारा (कुशीनगर) गए, जहां उदर पीड़ा के कारण उन्होंने अपना शरीर त्याग दिया और मोक्ष प्राप्त किया। 483 इसा पूर्व  की यह घटना ‘महापरिनिर्वाण’ के नाम से प्रसिद्ध है।

गौतम बुद्ध ने अपने उपदेशों के माध्यम से मार्गदर्शन किया कि कैसे दुख को दूर किया जा सकता है और कैसे व्यक्ति अनंत मुक्ति प्राप्त कर सकता है। उन्होंने चार निर्वाण मार्गों को बताया— धर्म, ज्ञान, विराग और योग जिन्हें अनुसरण करके व्यक्ति दुख से मुक्त हो सकता है।

  गौतम बुद्ध का व्यक्तित्व अलौकिक था। जन्म के समय की आश्चर्य कार्य घटनाओं तथा तथा रहस्यमई वातावरण में उत्पन्न बालक सिद्धार्थ के शैशवाकाल से निर्वाणप्रयत्न की तथागत की जीवन गाथा उनके महान् विभूति होने की सार्थकता सिद्ध करती है। 


महत्वपूर्ण अति लघु उत्तरीय प्रश्न उत्तर 

गौतम बुद्ध का जन्म कहाँ हुआ था?

गौतम बुद्ध का जन्म नेपाल में लुंबिनी नामक नगर में हुआ था।

गौतम बुद्ध कौन थे उनका जन्म कब हुआ था?

गौतम बुद्ध, बौद्ध धर्म के संस्थापक थे और उन्होंने बौद्ध धर्म का प्रचार प्रसार किया। तथा उनका जन्म 563 ईसा पूर्व में हुआ था।

गौतम बुद्ध को ज्ञान की प्राप्ति कहां हुई?

गौतम बुद्ध को ज्ञान की प्राप्ति बोधगया में एक वट वृक्ष के नीचे हुई थी।

बुद्ध किस भगवान को मानते थे?

महात्मा बुद्ध ने किसी को अपने भगवान नहीं माना था। क्योंकि उन्होंने खुद एक धर्म की स्थापना की थी जिसे बौद्ध धर्म कहा गया है। उन्होंने अपने उपदेशों में दुखों के कर्म का विश्लेषण किया और जीवन में सुख और शांति के लिए उचित मार्ग प्रशस्त किए।

गौतम बुद्ध ने अपना प्रथम उपदेश कहां दिया था?

महात्मा बुद्ध ने अपना प्रथम उपदेश सारनाथ (जो कि वर्तमान में वाराणसी है) में दिया। वहां उनके वही पांचो पुराने मित्र थे जिन्होंने उन्हें पथ भ्रष्ट कहकर उनका साथ छोड़ दिया था।

गौतम बुद्ध ने अपना अंतिम उपदेश कहां दिया?

गौतम बुद्ध ने अपना अंतिम उपदेश कुशीनारा (कुशीनगर) में दिया।

गौतम बुद्ध की मृत्यु कब और कैसे हुई?

कुशीनारा (कुशीनगर) गए, जहां उदर पीड़ा के कारण उन्होंने अपना शरीर त्याग दिया और मोक्ष प्राप्त किया। 483 इसा पूर्व की यह घटना ‘महापरिनिर्वाण’ के नाम से प्रसिद्ध है।

गौतम बुद्ध किसके अवतार थे?

बौद्ध धर्म के अनुयाई विश्वास करते हैं कि गौतम बुद्ध भगवान विष्णु के 10वें अवतार थे। और बौद्ध धर्म के अनुसार गौतम बुद्ध भगवान बुद्ध के अवतार थे। वे बुद्धिमान, शांति प्रिय और सर्व सामान्य के प्रतीक माने जाते हैं और उन्होंने बोधिचित्त को प्राप्त किया था।

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