भारतीय राजनीति में उग्रवाद के (प्रादुर्भाव) उदय के कारण - letest education

 उग्रवाद से संबंधित कुछ महत्वपूर्ण बिंदुओं पर चर्चा करेंगे जैसे — 

उग्रवाद के उदय के कारण 

या भारतीय राजनीति में उग्रवाद विचारधारा के उदय के कारण

या 20वीं शताब्दी के प्रारंभिक वर्षों में भारतीय राजनीति में उग्रवाद और क्रांतिकारी आंदोलन के उदय के कारणों का वर्णन।

या राष्ट्रीयता के विकास में उग्रवाद विचारधारा ने क्या सहयोग प्रदान


उग्रवाद विचारधारा के प्रादुर्भाव (उदय) के कारण

उग्रवाद का प्रभाव कांग्रेस की नीति तथा विचारधारा पर बहुत अधिक बड़ा। इस प्रकार से उसने उसकी नीति में विशेष परिवर्तन कर दिया। अतः यह आवश्यक हो जाता है कि उन समस्त कर्म का अध्ययन पर्याप्त विस्तार पूर्वक किया जाना चाहिए जिनके कारण उग्रवाद का रजुर्भाव भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन में हुआ। 

राजनीतिक कारण (political reasons) 

उग्रवाद के प्रादुर्भाव में राजनीतिक कारणों का महत्व बहुत अधिक है। सन् 1802 ई० से 1905 ई० तक इंग्लैंड की राजनीतिक तथा शासन पर अनुदार दल का अधिकार था जिसकी नीति उग्र साम्राज्यवादिता की थी। वे भारतीय जनता को किसी भी प्रकार के अधिकार देना नहीं चाहते थे। इस काल में भारत में तीन वायसराय हुए जिनमें प्रथम लॉर्ड लैंसडाउन, लॉर्ड एल्गिन द्वितीय और लॉर्ड कर्जन थे। यह तीनों ही वायसराय साम्राज्यवाद के पोषक थे जिसके कारण इन्होंने भारतीय मांगों की ओर पूर्ण उदासीनता का प्रदर्शन किया। इनका जनता के प्रति कठोर दृष्टिकोण था जिसको भारतीय जनता सहन करने के लिए तत्पर नहीं थी। उनकी नीति के कारण भारतीय जनता तथा नवयुवकों का अंग्रेजों की न्याय प्रियता पर से विश्वास उठ गया और वह इस परिणाम पर पहुंचे कि उसे समय तक उनकी मांगे स्वीकृत नहीं होगी जिस समय तक स्वयं हुए अपने पैरों पर खड़ा होना नहीं सीखेंगे। उदारवादी नेता भी सरकार की नीति के प्रति अपना असंतोष खुलकर प्रकट करने लगे थे। 1892 में गोखले ने लैंसडाउन की नीति कब विरोध करते हुए स्पष्ट रूप से यह कह दिया था कि, सरकार जिस प्रतिगामी नीति का अनुसरण कर रही है जिसका संबंध शिक्षा, स्थानीय स्वशासन तथा राजकीय सेवाओं से है, उसका परिणाम सरकार के लिए भयानक सिद्ध हो सकती है।

(1) लॉर्ड एल्गिन का दमन चक्र — लॉर्ड एल्गिन के शासनकाल में अंग्रेज सरकार ने बड़ी कठोर नीति का अनुसरण किया। इस नीति के कारण राजनीतिक क्षितिज पर असंतोष की भावना का तीव्र गति से विस्तार हुआ। इस समय महाराष्ट्र में सरकार की नीति का घोर विरोध बाल गंगाधर तिलक के नेतृत्व में हो रहा था। सरकार ने देशभक्ति के साथ बड़ी कठोर नीति को अपनाया।

(2) लॉर्ड कर्जन की शासन नीति— लॉर्ड एल्गिन के उपरांत जब लॉर्ड कर्जन भारत के वायसराय हुए तब राजनीतिक दशा भीषण रूप धारण कर रही थी। लॉर्ड कर्जन साम्राज्य के दृढ़ स्तंभ थे और वह भारत के राजनीतिक आंदोलन को समूल रूप से नष्ट करना चाहते थे। उन्होंने ऐसे कार्य किए जिनके द्वारा जनता में सरकार के प्रति पूर्व से भी अधिक विश्वास उत्पन्न हो गया और नवयुवक विचारने लगे कि इस प्रकार के अन्याय पूर्ण नीति को सहन करना अब असंभव है। उन्होंने शासन को उन्नत करने की अभिप्राय से कुछ आवश्यक सुधार किया, और जो उन्नत कार्य किये उनमें यह मुख्य है— 

(1) केंद्रीकरण की नीति 

 उन्होंने केंद्रीकरण की नीति को अपनाया। उनका विश्वास था कि भारतीयों में योग्यता का सर्वथा अभाव है, किंतु वह इस ओर से पूर्णतया उदासीन रहा की उन्नत करने से राजनीतिक एवं राष्ट्रीय संतोष उत्पन्न किया जाता नितांत असंभव है। उन्होंने अपने उद्देश्य की पूर्ति के लिए जिन साधनों का प्रयोग किया था उनको भारतीय नेताओं ने यह समझा कि “इनके द्वारा लौट कर्जन भारत में साम्राज्यवाद की जड़ों को और अधिक गहराई तक पहुंचा रहा है।” लॉर्ड कर्जन यह नहीं समझ पाए कि “भारत में न केवल उच्च कोटि की राजनीतिक समस्याएं ही है, बल्कि मनोवैज्ञानिक समस्याएं भी उतना ही महत्व रखती है और लॉर्ड कर्जन में बुद्धिमानी तथा योग्यता होते हुए भी उसमें आत्मिक भावना की दृष्टि का अभाव था जो एक सफल राजनीतिज्ञ में होने अनिवार्य है। उसकी शासन काल के मुख्य कार्य निम्नांकित है, जिनके द्वारा उग्रवादी भावना को विशेष प्रोत्साहन प्राप्त हुआ।” 

(2) कलकत्ता कॉरपोरेशन एक्ट

लॉर्ड कर्जन किस साम्राज्यवादी नीति का प्रथम प्रहार स्थानीय संस्थाओं के ऊपर हुआ, जिनका आरंभ लॉर्ड रिपन के उदार शासन काल में हुआ और जो उसे समय से बराबर उन्नति के पथ पर अग्रसर हो रही थी। लॉर्ड कर्जन को भारत वासियों को स्वशासन की शिक्षा देने में विश्वास नहीं था। भविष्य में कुशलता और स्वतंत्रता के लिए वह वर्तमान में कुशलता का बलिदान करने को तैयार नहीं था। 1899 ई० कलकत्ता कॉरपोरेशन एक्ट पास किया गया जिसके द्वारा कॉरपोरेशन की सदस्यों की संख्या 75 से घटाकर 50 कर दी। 25 सदस्यों की संख्या कम करने से जो जनता के प्रतिनिधि थे, सरकार का नियंत्रण कॉरपोरेशन पर पूर्णतया स्थापित हो गया। सरकार द्वारा ऐसा करने का कारण यह घोषित किया गया कि अधिक संख्या होने के कारण व्यर्थ के बाद विवाद में बहुत अधिक समय व्यतीत हो जाता है और काम सुचारू रूप से नहीं चल पाता। वस्तावनी इस एक्टर का उद्देश्य था कि कलकत्ता कॉरपोरेशन पर सरकार का नियंत्रण हो और सरकार द्वारा मनोनीत सदस्य मनमानी ढंग से सरकार के आदेशों का पालन करते रहे और भारतीयों को राजनीतिक शिक्षा प्राप्त करने का अवसर प्राप्त नहीं हो पाए। उसके इस कार्य से जनता में विशेष असंतोष उत्पन्न हुआ। जनता ने इसका विरोध किया और कारपोरेशन के 28 भारतीय सदस्यों ने त्यागपत्र दे दिया, किंतु लॉर्ड कर्जन की सरकार पर इसका कोई प्रभाव नहीं पड़ा।

(3) भारतीय विश्वविद्यालय एक्ट

कॉरपोरेशन के सरकारीकरण करने के उपरांत लॉर्ड कर्जन का ध्यान भारतीय विश्वविद्यालय का सरकारीकरण करने की ओर आकर्षित हुआ। इसका तात्पर्य यह है कि लॉर्ड कर्जन भारतीय विश्वविद्यालय पर भी सरकार का पूर्ण नियंत्रण स्थापित करना चाहता था। सन 1904 भारत विश्वविद्यालय एक्ट पास हुआ। इसके संबंध में रोनाल्डस का कथन है कि “इस एक्ट द्वारा लॉर्ड कर्जन विश्वविद्यालय की सीनेट और शासन समिति का यूरोपीयकरण करना चाहता था और इनको यह सरकारी विश्वविद्यालय में परिणत करना चाहता था।” इस एक्ट के द्वारा सीनेट के सदस्यों की संख्या कम कर दी गई, विश्वविद्यालय की सिंडिकेट तथा शासन समिति के संगठन में संशोधन किया गया था तथा शान समिति के संगठन में संशोधन किया गया तथा कॉलेजों पर विश्वविद्यालय का पूर्ण नियंत्रण रखा गया, जिससे उन पर सरकारी नियंत्रण बहुत अधिक हो गया। उसके इस कार्य से शिक्षित वर्ग में बड़ा संतोष तथा क्षोभ फैला और इसके इस कार्य की उनके द्वारा व्यापक तथा कटु आलोचना की गई।


अति लघु उत्तरीय प्रश्न उत्तर 

उग्रवाद क्या है?

उग्रवाद एक सामाजिक अथवा राजनीतिक विचारधारा है जो अत्यधिक विशेष वादी और आक्रमण विचारों को अपनाती है। यह विचारधारा सामाजिक या राजनीतिक परिवर्तन को अधिक उत्कृष्ट रूप से चाहती है और कठोर, आक्रमणकारी या संवेदनशील तरीकों से इसे प्राप्त करने का प्रयास करती है। उग्रवादी सम ऊ का उद्देश्य अक्सर समाज सरकार के साथ विरोधी रूप से संघर्ष करना होता है।

वामपंथी उग्रवाद क्या है?

वामपंथी उग्रवाद एक सामाजिक तथा राजनीतिक आंदोलन का हिस्सा है जो वामी विचारधारा के आधार पर आक्रमणकारी और उत्कृष्ट रूप से सामाजिक अथवा राजनीतिक परिवर्तन का प्रयास करता है। वामपंथी उग्रवाद सामाजिक न्याय, असमानता और विशेष वाद के खिलाफ होता है।

भारतीय राजनीति में उग्रवाद विचारधारा के उदय के कारण क्या है?

उग्रवाद का प्रभाव कांग्रेस की नीति तथा विचारधारा पर बहुत अधिक बड़ा। इस प्रकार से उसने उसकी नीति में विशेष परिवर्तन कर दिया। अतः यह आवश्यक हो जाता है कि उन समस्त कर्म का अध्ययन पर्याप्त विस्तार पूर्वक किया जाना चाहिए जिनके कारण उग्रवाद का रजुर्भाव भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन में हुआ।

उग्रवाद की शुरुआत कब हुई थी?

भारत में उग्रवाद की शुरुआत लगभग 1967 में हुई थी, जोकि पश्चिम बंगाल की साइट को हुई थी।

उग्रवाद के राजनीतिक कारण क्या है?

उग्रवाद के प्रादुर्भाव में राजनीतिक कारणों का महत्व बहुत अधिक है। सन् 1802 ई० से 1905 ई० तक इंग्लैंड की राजनीतिक तथा शासन पर अनुदार दल का अधिकार था जिसकी नीति उग्र साम्राज्यवादिता की थी।

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