भारत के राष्ट्रपति के अधिकार और शक्तियां - letest education

भारत का राष्ट्रपति से संबंधित आपके कुछ महत्वपूर्ण प्रश्नो का उत्तर देंगे, और इस आर्टिकल में आपके कुछ प्रश्नों के उत्तर भी कवर होंगे  जैसे— 
1- राष्ट्रपति के कार्यों एवं शक्तियों का वर्णन कीजिए।
2- या भारत के राष्ट्रपति की शक्तियों की विवेचना कीजिए।
3- या भारतीय राष्ट्रपति के संकटकालीन अधिकारों का संक्षेप में वर्णन कीजिए। 
4- या भारतीय राष्ट्रपति के किन्हीं दो कार्यपालिका संबंधी अधिकारों को स्पष्ट कीजिए।  
भारत के राष्ट्रपति के अधिकार और शक्तियां - letest education

भारत का राष्ट्रपति (President of India) 

भारत का राष्ट्रपति देश की संघीय कार्यपालिका का सर्वोच्च वैधानिक प्रधान होता है। संविधान के अनुच्छेद 52 के अनुसार, “भारत का एक राष्ट्रपति होगा” व संविधान के अनुच्छेद 53 के अनुसार, “संघ की कार्यपालिका शक्ति राष्ट्रपति में निहित होगी तथा वह इसका प्रयोग संविधान के अनुसार स्वयं या अपने अधीनस्थ पद अधिकारीयों द्वारा करेगा।” उल्लेखनीय है कि यद्यपि देश की समस्त कार्य राष्ट्रपति के नाम से ही संपन्न होते हैं, किंतु उसका स्वभाव विवेक क्षेत्र अधिकार बहुत कम है तथा वह मंत्री परिषद के परामर्श पर ही अपनी समस्त कार्यपालिका शक्ति का प्रयोग करता है। राष्ट्रपति भारतीय संघ की कार्यपालिका का वैधानिक प्रधान होता है, लेकिन भारतीय संघ में उसकी स्थिति अमेरिकी राष्ट्रपति के स्थान पर ब्रिटिश सम्राट सरीखी होती है। 

भारत के राष्ट्रपति के अधिकार और शक्तियां


राष्ट्रपति को संविधान द्वारा अनेक प्रकार के अधिकार या शक्तियां प्रदान किए गए हैं। वास्तव में संघ की समस्त कार्यपालिका शक्तियां वैधानिक रूप से उसके ही हाथ में रहती है। राष्ट्रपति के अधिकारों अथवा शक्तियों को दो भागों में विभाजित किया जा सकता है — 1- सामान्य कालीन अधिकार, 2- संकटकालीन अधिकार

(1) सामान्य कालीन अधिकार 

(1) कार्यपालिका संबंधी अधिकार - संविधान के अनुच्छेद 53 के अनुसार, “संघ की कार्यपालिका शक्ति राष्ट्रपति में निहित होगी तथा वह इसका प्रयोग संविधान के अनुसार स्वयं या अपने अधीनस्थ पदाधिकारी द्वारा करेगा।” इस प्रकार शासन का समस्त कार्य राष्ट्रपति के नाम से होगा। संक्षेप में कहें तो, राष्ट्रपति के कार्यपालिका संबंधित अधिकारों की व्याख्या कुछ इस प्रकार की जा सकती है— 
1- शासन संचालन संबंधी अधिकार— राष्ट्रपति को शासन संचालन संबंधी महत्वपूर्ण अधिकार प्राप्त होते हैं। संविधान के अनुच्छेद 77 (3) में यह व्यवस्था है, “भारत सरकार के कार्य की अधिक सुचारू संचालन के लिए राष्ट्रपति नियमों का निर्माण करेगा।” 
2- पदाधिकारीयों की नियुक्ति का अधिकार— देश के सभी महत्वपूर्ण एवं उच्च पदाधिकारीयों — भारत के महान्यायवादी (एटार्नी जनरल) नियंत्रक एवं महालेखा निरीक्षक सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों, उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों, लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष तथा सदस्यों आदि की नियुक्ति राष्ट्रपति ही करता है। वहीं लोकसभा की बहुमत प्राप्त दल के नेता को प्रधानमंत्री के रूप में नियुक्ति भी करता है। यदि किसी दल का स्पष्ट बहुमत नहीं होता है तो ऐसी स्थिति में वह स्वयं विवेक से किसी किसी भी ऐसे व्यक्ति को प्रधानमंत्री नियुक्ति कर सकता है, जो स्पष्ट बहुमत प्राप्त करने में सक्षम हो।
3- राज्यों के शासन पर नियंत्रण— राष्ट्रपति राज्यों के शासन की भी देखभाल करता है। 

(2) विधायिनी अधिकार

राष्ट्रपति भारतीय संसद का एक अभिन्न अंग है। अनुच्छेद 79 के अनुसार संघ के लिए एक सांसद होगी, जो राष्ट्रपति तथा दोनों सदनों-राज्यसभा और लोकसभा—से मिलकर बनेगी।"
     राष्ट्रपति के व्यवस्थापन क्षेत्र के अंतर्गत निम्नलिखित अधिकार है—

(१) संसद के कुछ सदस्यों को मनोनीत करने का अधिकार—राष्ट्रपति को राज्यसभा के लिए 12 सदस्य मनोनीत करने का अधिकार है जिन्होंने कला, विज्ञान, समाज सेवा तथा साहित्य में विशेष योग्यता अर्जित की हो। इसकी अतिरिक्त वह लोकसभा में दो एग्लो इंडियन समुदाय के व्यक्तियों को भी मनोनीत कर सकता है।

(२) अध्यादेश जारी करने का अधिकार— संसद का अधिवेशन ना होने की स्थिति में राष्ट्रपति को अध्यादेश जारी करने का अधिकार प्राप्त होता है। इस प्रकार के अध्यादेश संसद के कानून के समान ही प्रभावशाली होते हैं। संसद का अधिवेशन शुरू होने के 6 सप्ताह तक इस प्रकार के अध्यादेश जारी रह सकते हैं।

(३) अधिवेशन संबंधी अधिकार— संसद के दोनों सदनों की बैठक बुलाने एवं बैठकों का समय निश्चित करने का कार्य भी राष्ट्रपति के द्वारा ही किया जाता है। वह संसद के सत्रों को स्थगित भी कर सकता है। आवश्यकता पड़ने पर वह बैठक को समय से पहले भी बुला सकता है। इसकी अतिरिक्त वह किसी भी सदन में भाषण दे सकता है। वर्ष के प्रथम अधिवेशन का प्रारंभ उसके ही भाषण से होता है।

(४) विधेयकों का प्रस्तुतीकरण व उनकी स्वीकृति — वित्त संबंधी विधेयक राष्ट्रपति की स्वीकृति के पश्चात ही कानून बनता है। राष्ट्रपति संसद द्वारा पारित विधेयक को पुनर्विचार के लिए संसद को वापस भेज सकता है तथा और स्वीकार भी कर सकता है। वित्त विधेयक राष्ट्रपति की पूर्ण स्वीकृत की पाश्चात्य प्रस्तुत किए जा सकते हैं। 

(3) राष्ट्रपति के विशेष अधिकार

राष्ट्रपति को कार्यपालिका का प्रधान होने के नाते कुछ विशेष अधिकार भी दिए जाते हैं। उसके कार्यकाल की अवधि में उसके ऊपर कोई दण्डात्मक कार्यवाही नहीं की जा सकती। दीवानी मामले में भी उसको दो मास का नोटिस देना आवश्यक है।

राष्ट्रपति के संकटकालीन अधिकार (आपातकालीन घोषणा) 

संकटकाल अथवा आपातकाल से संबंधित परिस्थितियों तथा इसके संदर्भ में राष्ट्रपति के संकटकालीन अधिकारों का संक्षिप्त वर्णन कुछ इस प्रकार है— 

(1) युद्ध या बाह्य आक्रमण अथवा सशस्त्र विद्रोह के कारण उत्पन्न संकटकालीन अवस्था तथा संकटकाल की घोषणा (अनुच्छेद 352) 

यदि अपने राष्ट्र पर कोई बाह्य आक्रमण हो जाए, तो राष्ट्रपति संकटकाल के घोषणा करके संपूर्ण देश या संकटग्रस्त क्षेत्र का शासन भर अपने हाथ में ले सकता है। उल्लेखनीय है कि संविधान संशोधन 44 के पूर्व ‘सशस्त्र विद्रोह’ के स्थान पर ‘आंतरिक अशांति’ वाक्यांश का प्रयोग होता था। राष्ट्रपति संकटकाल की घोषणा उसे समय करेगा, जब मंत्रिमंडल लिखित रूप में राष्ट्रपति को ऐसा परामर्शित दे। इस प्रकार की घोषणा भारत में तीन बार हो चुकी है।

(2) राज्यों में संवैधानिक तंत्र के असफल हो जाने से उत्पन्न स्थिति में संकट काल की घोषणा करना (अनुच्छेद 356) 

भारत एक संघात्मक राज्य है, किंतु संघ के सभी राज्यों के लिए एक सी शासन व्यवस्था एवं एक ही संविधान है। अतः यदि किसी राज्य में संविधान के अनुसार शासन का संचालन कर पाना संभव हो जाए तो राष्ट्रपति वहां आपातकाल की घोषणा करके वहां की शासन व्यवस्था की बागडोर अपने हाथ में ले लेता है और शासन व्यवस्था को वहां के राज्यपाल को सौंप दे देता है। इसके लिए यह आवश्यक नहीं है कि राष्ट्रपति आपातकालीन स्थिति की सूचना राज्यपाल से प्राप्त करने पर ही आपातकालीन घोषणा करें। यह सूचना वह अन्य साधनों से भी प्राप्त कर सकता है। यदि किसी राज्य का राज्यपाल संवैधानिक तंत्र के सफल होने की सूचना राष्ट्रपति को प्रेषित न करे तो भी राष्ट्रपति अपने विवेक से उसे राज्य में आपातकालीन स्थिति की घोषणा करके राष्ट्रपति शासन आरोपित कर सकता है।

(3) वित्तीय संकटकाल की घोषणा (अनुच्छेद 360) 

यदि राष्ट्रपति को विश्वस्त सूत्रों से ज्ञात हो जाए की संपूर्ण देश या देश के किसी भाग विशेष की आर्थिक स्थिति या साक खतरे में है तो संविधान के अनुच्छेद 360 के अनुसार वह आर्थिक संकट की घोषणा कर सकता है। यह घोषणा भी ऊपर युक्त दोनों घोषणाओं के समान संसद द्वारा स्वीकृत होनी आवश्यक होती है। 

महत्वपूर्ण अति लघु उत्तरीय प्रश्न उत्तर 

भारत का राष्ट्रपति कौन होता है?

भारत का राष्ट्रपति देश की संघीय कार्यपालिका का सर्वोच्च वैधानिक प्रधान होता है। संविधान के अनुच्छेद 52 के अनुसार, “भारत का एक राष्ट्रपति होगा” व संविधान के अनुच्छेद 53 के अनुसार, “संघ की कार्यपालिका शक्ति राष्ट्रपति में निहित होगी।

भारत के राष्ट्रपति का निर्वाचन कौन करता है?

भारत के राष्ट्रपति का निर्वाचन संसद (लोकसभा अध्यक्ष राज्यसभा) द्वारा किया जाता है।

भारत के प्रथम राष्ट्रपति कौन थे?

भारत के वर्तमान राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद थे।

भारत के राष्ट्रपति के अधिकार एवं शक्तियां कौन कौन से हैं?

भारत के राष्ट्रपति के अधिकार एवं शक्तियां - राष्ट्रपति को संविधान द्वारा अनेक प्रकार के अधिकार या शक्तियां प्रदान किए गए हैं। वास्तव में संघ की समस्त कार्यपालिका शक्तियां वैधानिक रूप से उसके ही हाथ में रहती है। राष्ट्रपति के अधिकारों अथवा शक्तियों को दो भागों में विभाजित किया जा सकता है — 1- सामान्य कालीन अधिकार, 2- संकटकालीन अधिकार। अधिक जानकारी के लिए पूर्ण आर्टिकल पढ़ें।

भारत के राष्ट्रपति का निर्वाचन किस देश से लिया गया है?

भारत के राष्ट्रपति का चयन भारतीय संसद के दोनों सदनों (लोकसभा तथा राज्यसभा) तथा राज्य विधायकों द्वारा किया जाता है, जिसे हम अनुच्छेद 55 के अनुसार अनुपातित प्रतिनिधित्व प्रणाली के एकल संक्रमणीय मत पद्धति कहते हैं। इस प्रक्रिया में, चुनावी मतों का एक संग्रहण होता है और इस गणना करके राष्ट्रपति का चयन किया जाता है।

भारत की प्रथम महिला राष्ट्रपति कौन थी?

भारत की प्रथम महिला राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल थी।

भारत की पहली आदिवासी महिला राष्ट्रपति कौन है?

भारत की पहली आदिवासी महिला राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुर्मू है।

भारत की प्रथम महिला राष्ट्रपति कब बनी थी?

भारत की प्रथम महिला राष्ट्रपति 2007 में प्रतिभा पाटिल बनी थी।

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