आदर्श नागरिक (ideal citizen)
आदर्श नागरिक ; राज्य के स्थायित्व तथा सुदृढ़ता के लिए आदर्श नागरिक का होना बहुत आवश्यक है। राज्य आदर्श नागरिक पर ही पूर्ण रूप से विश्वास कर सकता है कि वह संकटकालीन परिस्थितियों में अपने राष्ट्र की तन, मन और धन से पूर्ण रूप से सुरक्षा करेगा। अतः राज्य में ऐसी परिस्थितियों का सृजन किया जाता है जो आदर्श नागरिक के निर्माण में सहायक होती हो। आदर्श नागरिक ही राष्ट्रवाद की भावना से प्रेरित होता है। प्लेटो तथा अरस्तू ने श्रेष्ठ अथवा आदर्श नागरिकों के गुणों की चर्चा की है।
आदर्श नागरिक के तत्व या आदर्श नागरिक के गुण
(1) उत्तम स्वास्थ्य
उत्तम स्वास्थ्य आदर्श नागरिकता के लिए अति आवश्यक शर्त है। इसलिए यह कहावत सर्वथा सत्य है कि, “स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मस्तिष्क का वास होता है।” अतः आदर्श नागरिक के लिए पूर्ण रूप से स्वस्थ होना बहुत अधिक महत्वपूर्ण है।
(2) नागरिक का उच्च चरित्र का होना
मनुष्य के व्यक्तिगत और सामाजिक जीवन में उच्च चरित्र का बहुत अधिक महत्व होता है। क्योंकि चरित्रवान व्यक्ति ही आदर्श नागरिक बन सकता है। चारित्रिक गुना के आधार पर ही व्यक्ति अपने व्यक्तित्व का सर्वांगीण विकास कर सकता है तथा जटिल से जटिल परिस्थितियों में भी अपने कर्तव्यों का पालन कर सकते में सामर्थ्यशील हो सकता है। इसके विपरीत चरित्रहीन व्यक्ति समाज को खोखरा कर देते हैं और वह कभी भी आदर्श नागरिक नहीं बन सकते हैं। इस प्रकार आदर्श नागरिक में उच्च चरित्र का होना आवश्यक है। अरस्तु के अनुसार, “विधान की सफलता मनुष्यों के चरित्र पर निर्भर करती है, अतः नागरिकों के लिए चरित्रवान होना परम आवश्यक है।”
(3) नागरिक का शिक्षित होना
शिक्षा आदर्श नागरिक के जीवन की एक नींव है। शिक्षा द्वारा ही व्यक्ति का आज्ञा रुपया अंधकार दूर होता है तथा शिक्षा ही व्यक्ति को उधर विचारों वाली बनता है। इसलिए गांधी जी ने कहा था कि, “शिक्षा, जो आत्मा का भजन है, स्वस्थ नागरिकता की प्रथम शर्त है।” वास्तव में, शिक्षा ही ज्ञान रूपी अंधकार का विनाश करती है और ज्ञान का प्रकाश करती हैं। अशिक्षित नागरिक कभी भी आदर्श नागरिक नहीं बन सकते हैं। नागरिक जीवन में शिक्षा के महत्व पर प्रकाश डालते हुए डॉक्टर बेनी प्रसाद ने लिखा है कि, “शिक्षा श्रेष्ठ नागरिक जीवन के वृत्त खंड की आधारशिला है—शिक्षा समान अवसर लाती है, जो नागरिक जीवन का मूल तत्व है।”
(4) नागरिक को परिश्रमशीलता होना
परिश्रमशीलता का गुण व्यक्तिक विकास और सामाजिक प्रगति की दृष्टि से परम आवश्यक है। इससे व्यक्ति में स्वावलंबन की भावना उत्पन्न होती है। दूसरों की परिश्रम पर निर्भर रहने वाला व्यक्ति कभी भी आदर्श नागरिक नहीं बन सकता है। परिश्रमी व्यक्ति ही आदर्श नागरिक बनकर अपना, समाज का और अपने देश का कल्याण कर सकता है।
(5) व्यक्ति का कर्तव्य परायण होना
श्रेष्ठ सामाजिक जीवन के लिए कर्तव्य परायणता की भावना का विकास भी अति आवश्यक है। वस्तुत: कर्तव्य परायणता आदर्श नागरिक के जीवन की कुंजी है। इसी संबंध में जॉन रस्किन ने लिखा है, “जब व्यक्ति अन्य व्यक्तियों के प्रति उसके जो कार्य हैं, निरंतर उन्हें करता रहता है, तब उसे अपनी शक्तियों एवं विशिष्ट गुणों का पता लग जाता है और दूसरों की सहायता के लिए वह उन्हें सुदृढ़ बना लेता है। वास्तव में प्रत्येक नागरिक को राज्य की आज्ञा का निष्ठा पूर्वक पालन करना चाहिए।”
(6) ‘वसुधैव कुटुंबकम्’ की भावना
एक आदर्श नागरिक में अंतरराष्ट्रीय ताकि भावना का भी होना अति आवश्यक है। उसे समस्त विश्व के प्रति प्रेम तथा सहानुभूति का भाव प्रतिशत करना चाहिए तथा उसे ‘सबै भूमि गोपाल की’ के आदर्श में ही आस्था रखनी चाहिए।
(7) नागरिक में आज्ञा पालन तथा अनुशासन होना
एक आदर्श नागरिक में आज्ञा पालन और अनुशासन की भावना का होना भी अत्यंत आवश्यक है क्योंकि तभी वह राज्य द्वारा निर्मित कानून एवं आदेशों का निष्ठा पूर्वक पालन कर सकेगा और दूसरों को भी ऐसा करने की प्रेरणा दे सकेगा, जिससे राज्य में अनुशासन बना रहेगा। राज्य की परिभाषा का विवेचन करते हुए गार्नर ने व्यक्ति की आज्ञाकारिता की भावना को राज्य के एक आवश्यक तत्व के रूप में भी स्वीकार किया है।
(8) नागरिक में निस्वार्थता की भावना
आदर्श नागरिक को स्वार्थपरता से दूर रहना चाहिए तथा उसका अंत:करण जनकल्याण के उच्च आदर्शो से प्रेरित होना चाहिए। स्वार्थी व्यक्ति समाज के लिए अभिशाप सदृश होते हैं। वह अपने स्वार्थ की पूर्ति हेतु समाज के वातावरण को दूषित बना देते हैं। अतः आदर्श नागरिक को निस्वार्थ रहकर अपने सामाजिक जीवन को सफल बनाना चाहिए।
(9) मताधिकार का उचित प्रयोग करना
आधुनिक लोकतांत्रिक युग में सभी वयस्क स्त्री पुरुषों को मताधिकार प्राप्त है। इस अधिकार का उचित प्रयोग करना प्रत्येक नागरिक का प्राथमिक कर्तव्य है। इस अधिकार का प्रयोग निष्पक्षता के साथ करना चाहिए, क्योंकि इस अधिकार की अनुचित प्रयोग से शासन में भ्रष्टाचार अधिक व्याप्त हो जाता है और शासन सत्ता ऐसे अयोग्य व्यक्तियों के हाथ में पहुंच जाती है जो स्वार्थ वस देश को पतन के मार्ग में धकेल देते हैं।
(10) नागरिक में जागरूकता एवं प्रगतिशीलता
आदर्श नागरिक के लिए यह आवश्यक है कि वह अपने अधिकारों और कर्तव्यों के प्रति हमेशा जागरूक रहे। आदर्श नागरिक को अपने परिवार, ग्राम, प्रांत तथा राष्ट्र के हितों की चिंता करनी चाहिए और उनके प्रति अपने कर्तव्यों का पालन करना चाहिए। लॉर्ड एक्नट के अनुसार, “निरंतर जागरूकता स्वतंत्रता का मूल्य है।” आदर्श नागरिक सामाजिक रूढ़ियों एवं कुरीतियों की उपेक्षा कर प्रगतिशील विचारों के अनुकूल आचरण करें।
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