सन् 1948 की क्रांति
सन् 1948 की क्रांति; सन् 1848 ई० की क्रांति का मुख्य कारण लुई फिलिप की आंतरिक और बाह्य नीतियां थी जिनके कारण उसका शासन फ्रांस में अलोकप्रिय हो गया। सन 1848 में जो क्रांति फ्रांस में हुई वह केवल फ्रांस तक ही सीमित नहीं रही बल्कि इस क्रांति की चपेट में संपूर्ण यूरोप आ गया था। इस प्रकार क्रांति को नष्ट कर पुरातन व्यवस्था को लड़ने का मैटरनिख का स्वप्न चकनाचूर हो गया और हर जगह नवीन शासन की स्थापना हुई।
सन् 1948 की क्रांति के कारण
या 1848 की फ्रांसीसी क्रांति के कारण
यूरोप में सन 1848 में 1, 2 नहीं बल्कि 17 छोटी बड़ी क्रांतियां हुई। इसीलिए यूरोप के इतिहास में सन 1848 का वर्ष क्रांतियां का वर्ष माना जाता है। और 1848 की क्रांति के कारण कुछ इस प्रकार थे —
(1) सन् 1830-1848 के बीच हुए आर्थिक परिवर्तन
इस काल में औद्योगीकरण तीव्रता से हो रहा था। यातायात के साधनों के विस्तार ने विशाल पैमाने पर औद्योगिक उत्पादन को और अधिक बढ़ा दिया था और अंतरराष्ट्रीय व्यापार एक नवीन पूंजीवादी व्यवस्था को जन्म दे चुका था। मजदूरों की संख्या बढ़ाने के साथ-साथ उनकी संस्थाएं और आवश्यकताएं भी बढ़ती जा रही थी। सन् 1838 से 1839 तथा सन् 1846 से 1847 में यूरोप में आर्थिक संकट आई जिसे जनता के कष्टों में मूल्य वृद्धि के कारण और अधिक बढ़ोतरी होती रही।
(2) समाजवाद का प्रसार
सन् 1848 की क्रांति का एक अन्य प्रमुख कारण इस समय तक समाजवाद का व्यापक प्रसार था। औद्योगिकरण में पूंजीवाद को जन्म दिया और पूंजीवाद के परिणाम स्वरुप समाजवाद नामक विचारधारा ने जन्म लिया। श्रमिकों की दशा सुधारने के लिए आंदोलन होने लगे। समाजवादियों ने देश के कल कारखानों का राष्ट्रीयकरण करने की जबरदस्त मांग करनी प्रारंभ कर दी। मजदूर संघो की स्थापना जगह-जगह होने लगी। श्रमिक नेता मताधिकार विस्तृत करने की मांग करने लगे।
(3) लुई फिलिप की दुर्बल नीतियां
लुइ फिलिप की आंतरिक और बाह्य दोनों ही नीतियां क्रांति का महत्वपूर्ण कारण बनी। उसने केवल मध्यम वर्ग को महत्व दिया और अन्य वर्गों की पूर्ण उपेक्षा की। इसी प्रकार आवश्यकता से अधिक शांतिप्रिय विदेश नीति ने उसे फ्रांस में दब्बू शासन के रूप में स्थापित किया। जिसे फ्रांसीसी कभी स्वीकार नहीं कर सकते थे। बेल्जियम के मामले में तो वह बहुत अधिक झुका ही नहीं बल्कि दब गया था। नेपोलियन के गौरवपूर्ण कल देखने के पश्चात फ्रांस की जनता दुर्बल शासन को अपना स्वामी स्वीकार नहीं कर सकी और उसने शासन को उखाड़ फेंका।
(4) खिजों की नीतियां
लुइ फिलिप का मंत्री खिजों भी रूढ़िवाद और परिवर्तनशील विचारधारा का कट्टर समर्थक था। वह किसी भी प्रकार के परिवर्तन एवं सुधार को खतरनाक समझता था। उसने फ्रांस की प्रत्येक आंदोलन को स्वार्थ का साधन बताकर उसकी अवहेलना ही नहीं की बल्कि घोर दमन भी किया। उसकी इन अपरिवर्तन निषेधात्मक नीतियों से फ्रांस की क्रांतिकारी बड़े असंतुष्ट हो गए।
(5) बुद्धिजीवी और श्रमिकों का शक्तिशाली हो जाना
औद्योगिकरण ने समाज के नए प्रभावशाली तत्व, बुद्धिजीवियों एवं श्रमिक वर्ग की ओर अधिक विकसित किया। प्रथम वर्ग ने उदारवादी शक्तियों को आत्म बल प्रदान किया तो दूसरी वर्ग की आर्थिक शोषण के कारण सामाजिक एवं आर्थिक संतोष को तीव्रता मिली। परिणाम स्वरुप सन् 1848 की क्रांति का विस्फोट हो गया।
(6) गौरवशाली विदेश नीति का परित्याग
फ्रांसीसी गौरव से सादा पूर्ण रहे हैं। उन्हें लुई फिलिप की तुष्टिकरण और शांति की विदेश नीति बिल्कुल पसंद नहीं आई। फ्रांस के क्रांतिकारी चाहते थे कि फ्रांस विदेश के क्रांतिकारियों की मदद करें परंतु लॉय फिलिप्स ने यूरोप की क्रांतिकारी की मदद तो की ही नहीं बल्कि अपने देश तक क्रांतिकारियों की बातों पर पूर्ण ध्यान नहीं दिया।
(7) शासन पर मध्यम वर्ग का प्रभाव होना
लुइ फिलिप्पे के शासन पर मध्यम वर्ग का विशेष प्रभाव था और यह भी लुई फिलिप के भाग्य की विडंबना थीं कि इस प्रभावशाली वर्ग ने उसे सत्ता से अलग कर दिया। मतदान की प्रणाली इस प्रकार रखी गई थी कि राष्ट्र की प्रतिनिधि सभा में मध्यम वर्ग का धनवान व्यक्तियों का ही बहुमत रहा। फल स्वरुप अन्य वर्गों की उपेक्षा होती रही जिसका परिणाम क्रांति के रूप में सामने आया।
1848 की क्रांति के परिणाम
या 1848 की फ्रांसीसी क्रांति के परिणाम
सन् 1848 का वर्ष एक चमत्कारी वर्ष था। इस वर्ष यूरोप के विभिन्न राज्यों में क्रांतियां प्रारंभ हुई। ऑस्ट्रिया, जर्मनी, इंग्लैंड, इटली तथा स्विट्जरलैंड आदि सभी देश इस क्रांति से प्रभावित हुए।
(1) ऑस्ट्रिया पर प्रभाव
जब सन 1848 की क्रांति सफलता का समाचार ऑस्ट्रेलिया की राजधानी पहुंचा तो वहां के देशभक्ति नवीन उत्साह से संचालित हो गए। 18 मार्च को उन्होंने संगठित होकर एक विशाल जुलूस निकाला जिसमें विद्यार्थी, अध्यापक, कारीगर, दुकानदार तथा मजदूर आदि सभी सम्मिलित थे। जुलूस की भीड़ ने मेटरनिख के घर को घेर लिया और उसके विरुद्ध नारे लगाएं। मेटरनिख को विवश होकर अपने पद से त्यागपत्र देना पड़ा और इंग्लैंड भाग जाना पड़ा। वास्तव में सन 1848 की क्रांति ने मेटरनिख के प्रतिक्रियावादी शासन का अंत कर दिया।
(2) स्विट्जरलैंड पर प्रभाव
फ्रांस की क्रांति से प्रेरित होकर स्विस लोगों ने धनवानो की प्रभुता के विरुद्ध संघर्ष प्रारंभ कर दिया। उन्होंने संगठित होकर प्रतिक्रियावादी कैथोलिक संघ पर आक्रमण कर उसे प्राप्त किया एवं स्विट्जरलैंड के लिए एक नया संविधान बनकर उदारवादी शासन की स्थापना की।
(3) इंग्लैंड पर क्रांति का प्रभाव
फ्रांस की सन् 1840 की क्रांति से इंग्लैंड भी बच नहीं सका था। 1832 का सुधार अधिनियम केवल मध्यम वर्ग के लोगों को ही संतुष्ट कर सका था, मजदूर किसानों को नहीं। सन 1840 की क्रांति के फल स्वरुप इंग्लैंड में चार्टिस्ट आंदोलन ने जोर पकड़ा।
(4) प्रसा पर क्रांति का प्रभाव
जब जर्मन वासियो को मेटरनिख के पतन का जांच हुआ तो वह प्रसन्न हो उठे। क्रांतिकारियों ने जुलूस निकालकर राजा के महल को घेर लिया। रक्षकों द्वारा गोलियां चलने पर क्रांतिकारी भड़क उठे। राजा को विवश होकर संविधान लोकतंत्र पर आधारित बनाया गया।
(5) हंगरी पर क्रांति का प्रभाव
हंगरी की अधिकांश जनता मघपार जाति की थी। वे आस्ट्रिया की अधीनता से मुक्त होना चाहता थे। जब उन्हें वियना की क्रांति का समाचार मिला तो उन्होंने भी क्रांति का झंडा खड़ा कर दिया। सम्राट को भयभीत होकर क्रांतिकारियों से समझौता करना पड़ा। परंतु आगे चलकर ऑस्ट्रेलिया ने रूस का सहारा लेकर क्रांति को विफल कर दिया।
(6) आयरलैंड पर प्रभाव
फ्रांस की क्रांति से प्रेरणा लेकर आयरलैंड की जनता ने इंग्लैंड के विरुद्ध सशस्त्र विद्रोह किया । यद्यपि यह आंदोलन सफल नहीं हो सका क्योंकि आयरलैंड की जनता को फ्रांस की सहायता की उम्मीद थी जो कि नहीं मिल सकी।
1848 की क्रांति के परिणाम
मध्य यूरोप में क्रान्ति , जिसका प्रारंभ बड़े महत्वपूर्ण एवं आशाजनक ढंग से हुआ था , थोड़े ही दिनों में शांत हो गई । किंतु यह आश्चर्य की बात नहीं थी, क्योंकि क्रांति मुख्यकर नगरों तथा मध्यम वर्ग का ही कार्य था । गाँवो की जनता अमूर्त भावात्मक स्वतंत्रता की अपेक्षा अपने परंपरागत रीति - रिवाजों के प्रति अधिक आसक्त थी । सन 1850 में उदारवाद तथा राष्ट्रीयता की प्रगतिशील शक्तियांँ मध्य-यूरोप में प्रतिक्रिया की शक्ति के सामने पराजित हुई और प्रतिक्रिया पूर्णरूप से विजई हुई ।मैटरनिख के स्थान पर श्वाजेनवर्ग चांसलर बना। ऑस्ट्रिया का संविधान रद्द हो गया, हंगरी का गणतंत्र नष्ट हो गया , स्लाव राष्ट्रीयता कुचल दी गई और समस्त साम्राज्य पर फिर से हात्सबुर्ग- वंश का एकछत्र निरंकुश शासन हो गया तथा लोम्बार्डी एवं बेनीशिया फिर से ऑस्ट्रिया की अधीनता में पहुंच गये। सार्डीनिया के राजा के राष्ट्रीय एकीकरण के प्रयत्न निष्फल हुए और फ्रेंच तलवार के बल पर पोप फिर निरंकुश हो गया । जर्मनी फिर सन् 1815 की स्थिति में पहुंच गया।
परन्तु फिर भी यह नहीं कहा जा सकता है की क्रांति पूर्णतया असफल रही। प्रतिक्रियावादियों की अनेक सफलताओं के बीच भी कुछ लाभ बचे रहे। ऑस्ट्रिया के साम्राज्य में अर्ध दास व्यवस्था, जिसे क्रांति ने नष्ट कर दिया था , पुनः जीवित नहीं की गई। सार्डीनिया ,स्विट्जरलैंड, हॉलैंड ,डेनमार्क तथा प्रशा में किसी न किसी रूप में संवैधानिक शासन बना रहा। इससे भी महत्वपूर्ण बात यह थी कि उदारवाद एवं राष्ट्रीयता की जिन भावनाओं का परिणाम यह क्रांति थी उनका अस्तित्व नष्ट नहीं किया जा सकता था।
महत्वपूर्ण अति लघु उत्तरीय प्रश्न
यूरोप में 1848 की क्रांति क्यों हुई?
सन् 1848 ई० की क्रांति का मुख्य कारण लुई फिलिप की आंतरिक और बाह्य नीतियां थी जिनके कारण उसका शासन फ्रांस में अलोकप्रिय हो गया। सन 1848 में जो क्रांति फ्रांस में हुई वह केवल फ्रांस तक ही सीमित नहीं रही बल्कि इस क्रांति की चपेट में संपूर्ण यूरोप आ गया था।
सन् 1948 की क्रांति कहा हुई थी?
सन् 1948 की क्रांति फ्रांस में हुई थी।
सन् 1848 की क्रांति के कारण क्या थे?
सन् 1848 की क्रांति के कारण - (1) सन् 1830-1848 के बीच हुए आर्थिक परिवर्तन (2) समाजवाद का प्रसार (3) लुई फिलिप की दुर्बल नीतियां (4) खिजों की नीतियां (5) बुद्धिजीवी और श्रमिकों का शक्तिशाली हो जाना (6) गौरवशाली विदेश नीति का परित्याग (7) शासन पर मध्यम वर्ग का प्रभाव होना।
1848 की फ्रांसीसी क्रांति के परिणाम क्या थे?
1848 की क्रांति के परिणाम - मध्य यूरोप में क्रान्ति , जिसका प्रारंभ बड़े महत्वपूर्ण एवं आशाजनक ढंग से हुआ था , थोड़े ही दिनों में शांत हो गई । किंतु यह आश्चर्य की बात नहीं थी, क्योंकि क्रांति मुख्यकर नगरों तथा मध्यम वर्ग का ही कार्य था । गाँवो की जनता अमूर्त भावात्मक स्वतंत्रता की अपेक्षा अपने परंपरागत रीति - रिवाजों के प्रति अधिक आसक्त थी।
यूरोप में सन 1848 में कितनी क्रांतियां हुई?
यूरोप में सन 1848 में 1, 2 नहीं बल्कि 17 छोटी बड़ी क्रांतियां हुई। इसीलिए यूरोप के इतिहास में सन 1848 का वर्ष क्रांतियां का वर्ष माना जाता है।
1848 की क्रांति का जिम्मेदार कौन था?
1848 ई० की क्रांति का मुख्य जिम्मेदार व्यक्ति लुई फिलिप था, उसकी आंतरिक और बाह्य नीतियां थी जिनके कारण उसका शासन फ्रांस में अलोकप्रिय हो गया।
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