कार्ल मार्क्स का वर्ग-संघर्ष सिद्धान्त, परीभाषा तथा आलोचना | theory of class struggle

 कार्ल मार्क्स के वर्ग-संघर्ष का सिद्धांत से संबंधित कुछ महत्वपूर्ण बिंदुओं को स्पष्ट करेंगे जैसे-

कार्ल मार्क्स का वर्ग-संघर्ष सिद्धान्त, परीभाषा तथा आलोचना | theory of class struggle

कार्ल मार्क्स का वर्ग-संघर्ष का सिद्धांत
theory of class struggle by karl marx

आज हम बात करेंगे मार्क्स के वर्ग-संघर्ष के सिद्धांत के बारे में कि मार्क्स किस प्रकार के समाज के बारे में बात कर रहा है, और वह किस प्रकार का समाज चाहता है जो हर किसी के लिए सही सिद्ध हो। अगर सीधी और सरल भाषा में बात करें तो कार्ल मार्क्स का मत ही हो है कि उसको ऐसा समाज चाहिए जो वर्ग हीन हो मतलब सभी लोग समान हो ना कोई गरीब हो ना कोई अमीर हो, और उसका कहना है कि‌व्यक्ति को उसकी क्षमता के अनुसार कार्य मिलना चाहिए और योग्यता के अनुसार वेतन मिलना चाहिए। चलो आगे चलकर इसके बारे में पूर्ण विस्तार से समझे। 

मार्क्स का वर्ग संघर्ष का सिद्धांत

कार्ल मार्क्स का मत है कि समाज में वर्ग-संघर्ष सदैव से ही होते चले आए हैं। ‘साम्यवादी घोषणा पत्र’ में यह कहा गया है कि, “अब तक के समस्त सामाजिक जीवन का इतिहास वर्ग संघर्ष का इतिहास है।” वर्ग संघर्ष का आशय है कि समाज में दो वर्गों का अस्तित्व है तथा इन वर्गों के हित, एक दूसरे के विपरीत है। इस कारण इनमें संघर्ष से चलता रहता है। उसका कथन है कि वर्ग संघर्ष आधुनिक युग में पूंजी पत्तियों और श्रमिकों के बीच मुख्य रूप से पाया जाता है और इस संघर्ष के परिणाम स्वरुप है समाज मानवीय आशाओं के अनुरूप उन्नति नहीं कर पता है, इसलिए वर्ग संघर्ष से ही राज्य तथा समाज की एक महत्वपूर्ण समस्या है। यह वर्ग संघर्ष सैनिक प्रकार के राजनीतिक और सामाजिक समस्याओं को जन्म देता है।

वर्ग-संघर्ष का आधार (basis of class struggle)

कार्ल मार्क्स अपने वर्ग-संघर्ष के सिद्धांत को ऐतिहासिक आधार पर सत्य मानता है। उसका मत है कि इतिहास में आदिम साम्यवादी व्यवस्था की अतिरिक्त कोई भी ऐसा युग नहीं रहा, जबकि दो वर्गों के बीच संघर्ष की स्थिति ना रही हो। इस संबंध में कार्ल मार्क्स का मत है कि वर्तमान समाज धनवानो और निर्धनों में विभाजित है। यह धनवान वर्ग और निर्धन वर्ग, पूंजीपति वर्ग तथा श्रमिक वर्ग कहलाते हैं। इन दोनों वर्गों में कभी कोई सहयोग नहीं हो सकता, इसलिए सभी समाजवादियों को एक साथ मिलकर ऐसा प्रयास करना चाहिए कि वर्ग संघर्ष की समाप्ति हो जाएगा और वर्ग हीन समाज की स्थापना हो जाए। मार्क्स अपने वर्ग शंकर से के सिद्धांत को निम्नलिखित आधारों पर सत्य मानता है— 

  1. मार्क्स इस बाद में विश्वास करता है कि आदिम साम्यवादी व्यवस्था की अतिरिक्त प्राचीन काल से ही इतिहास में विरोधी वर्गों का अस्तित्व देखने को मिलता है।
  2. प्रत्येक व्यक्तियों के अलग-अलग स्वार्थ होते हैं, इसलिए उनमें मतभेदों का जन्म होना प्राकृतिक है।
  3. सभी लोग अपनी क्षमता और कार्य कुशलता में समान नहीं होते हैं, इसलिए भी समाज में वर्ग संघर्ष पाया जाता है।
  4. मार्क्स का विचार है कि विश्व में महायुद्ध की उत्पत्ति का एकमात्र कारण पूंजीवाद है और युद्ध में एक प्रबल वर्ग निम्न वर्ग के अधिकारों का हनन करता है जिसके परिणाम स्वरुप समाज में इस अंतर विरोध के कारण क्रांति का जन्म होता है।
  5. मार्क्स और एंजिल्स का मत है कि राज्य की उत्पत्ति वर्ग भेद के कारण ही हुई है।

वर्ग-संघर्ष के सिद्धांत का विश्लेषण

 मार्क्स का मत है कि जब समाज में पूंजीपतियों का उत्पादन के साधनों पर एकाधिकार स्थापित हो जाएगा, तब समाज धनिक वर्ग और निर्धन वर्ग में विभाजित हो जाएगा। इधर पूंजीवादी युग में श्रमिकों के दुखों में वृद्धि निरंतर होती रहती है। श्रम के अधिक शोषण करने तथा निरंतर घाटी मजदूरी के कारण श्रमिक निरंतर दुखों तथा कठिनाइयों के दबावों में रहते हैं जिसके कारण उनका स्वास्थ्य भी निरंतर गिरता चला जाता है और वह इस स्थिति में नहीं रहते हैं कि अब और अधिक परिश्रम कर सके। पूंजीवादी युग मानवीय संवेदनाओं को समाप्त कर देता है। पूंजीपति श्रमिकों को पशुओं के रूप में देखता है। वह कम मजदूरी देकर अधिक कार्य लेना चाहते हैं। उसके लिए मार्क्स उसे ‘आपदाओं का बढ़ता हुआ सिद्धांत’ का नाम देता है। उसका कहना है कि एक दिन यह स्थिति ही क्रांति को जन्म देगी, जब दुनिया की मजदूर संगठित होकर पूंजीवाद के विरुद्ध क्रांति करके उसको समाप्त कर देंगे और एक वर्ग विहीन समाज की स्थापना होगी। मार्क्स इसी प्रकार की क्रांति को वर्ग संघर्ष की संज्ञा प्रदान करता है और वर्ग संघर्ष को ही पूंजीवाद के विनाश का कारण मानता है।

वर्ग-संघर्ष के उपरांत समाज की स्थिति

मार्क्स का मत है कि जब श्रमिक वर्ग पूंजीवाद का उन्मूलन कर लेगा तब समाज में सर्वहारा वर्ग का अधिनायक तंत्र स्थापित होगा। उत्पादन के सभी साधनों पर श्रमिकों का सामूहिक अधिकार होगा और ऐसा समाज वर्ग हीन समाज होगा, जिसमें प्रत्येक व्यक्ति को उसकी क्षमता के अनुसार कार्य और योग्यता के अनुसार वेतन मिलेगा। उस समाज में प्रत्येक व्यक्ति को जरूरी रूप से कार्य करना होगा और फिर उसमें साहित्य, संस्कृति व कला का पूर्ण रूप से विकास होगा। 

वर्ग संघर्ष की परिभाषा

मार्क्स द्वारा इतिहास की व्याख्या व सामाजिक परिवर्तन के संदर्भ में वर्ग संघर्ष की धारणा का प्रमुखता से प्रतिपादन किया गया है। मार्क्स का वर्ग संख्या सिद्धांत समाज में उत्पादन तथा वितरण पर आधारित दो वर्गों को मानकर चलता है। उसका मानना है कि समाज में दो वर्ग पाए जाते हैं —

  1.  उत्पादक वर्ग अर्थात इसका संसाधनों पर स्वामित्व होता है
  2. सर्वहारा या श्रमिक वर्ग अर्थात यह केवल सेवा व श्रम करता है। 

    मार्क्स के अनुसार इन दोनों वर्गों के मध्य सदैव असंतोष व तनाव व्याप्त रहता है। इसे वह संघर्ष की संज्ञा देता है। इनमें प्रथम वर्ग बिना श्रम के दूसरे वर्ग के शोषण से लाभ उठाता है। पूंजीपति उत्पादन के साधनों पर स्वामित्व रखकर अपना जीवन निर्वाह करता है और श्रमजीवी वर्ग अपना श्रम बेचकर। दोनों वर्गों के हितों के टकराव रहता है। यही वर्ग संघर्ष सामाजिक परिवर्तन को प्रेरित हुआ चलायमान बनाए रखना है।

वर्ग-संघर्ष के सिद्धांत की आलोचना 

मार्क्स का वर्ग संघर्ष का सिद्धांत आलोचना की विषय वस्तु रहा है। इस संबंध में आलोचकों ने निम्नलिखित मतों को व्यक्त किया है—

(1) मार्क्स का वर्ग संघर्ष का सिद्धांत कल्पनावादी सिद्धांत कहा जाता है।

(2) मार्क्स अपनी वर्ग संघर्ष के सिद्धांत में केवल श्रमिक वर्ग तथा पूंजीपति वर्ग का ही वर्णन करता है और वह समाज में पाए जाने वाले मध्यम वर्ग की अपेक्षा करता है।

(3) मार्क्स वर्ग संघर्ष को ही सभी सामाजिक संकटों का एकमात्र कारण मानता है, किंतु आलोचकों का मत है कि उसकी यह विचारधारा ब्रह्म पूर्ण है, क्योंकि सामाजिक संकट वर्ग संघर्ष के अतिरिक्त युद्ध आदि कारणों से भी उत्पन्न हो सकते हैं।

(4) संघर्ष ही सामाजिक जीवन का मूल तत्व नहीं है बल्कि समाज में संघर्ष की अपेक्षा सहयोग अधिक पाया जाता है।

(5) मार्क्स का यह विश्वास भी आलोचकों को मान्य नहीं है कि वर्ग संघर्ष के कारण ही समाज में पूंजीवाद का अंत हो जाएगा। उनका तर्क है कि सर्दियों से पूंजीपति वर्ग तथा निर्धन वर्ग में संघर्ष की स्थिति बनी हुई है, किंतु आज तक भी श्रमिक वर्ग पूंजीपति वर्ग का विनाश करने में सफल नहीं हुआ है।

(6) मार्क्स की हो विचारधारा भी मान्य नहीं है कि वर्ग संघर्ष से श्रमिकों का हित होगा, क्योंकि संघर्ष से कभी किसी का हित नहीं होता है। संघर्ष तो विघठन को जन्म देता है।

निष्कर्ष conclusion 

यद्यपि आलोचकों ने ने मार्क्स के वर्ग संघर्ष के सिद्धांत की कटु आलोचना की है, किंतु इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है कि मार्क्स का वर्ग संघर्ष का सिद्धांत श्रमिकों के हित में ही रहा है। इस वर्ग संघर्ष के सिद्धांत से भयभीत होकर पूंजीपति देश में श्रमिकों को अनेक प्रकार की सुविधा प्रदान की जा रही है। अमेरिका, इंग्लैंड, भारत आदि देशों में श्रमिकों की दशा में निरंतर सुधार हो रहा है, इसलिए कहा जा सकता है कि मार्क्स का वर्ग संघर्ष का सिद्धांत आधुनिकता की ओर एक पहला कदम है।

Post a Comment

और नया पुराने
Join WhatsApp