इटली के एकीकरण में बाधाएं से संबंधित आपके संदेहों को दूर करेंगे कि इटली के एकीकरण के सामने कौन-कौन सी मुख्य बाधाएं थी। क्या रोम का पोप मात्र ही एक मात्र बाधा थी या उसके अलावा भी अन्य बाधाएं थी? इन सारे प्रश्नों का हाल आपको नीचे दिए गए लेख में मिल जाएगा।
इटली के एकीकरण में मुख्य बाधाएं क्या थी?
इटली के एकीकरण की बाधाएं
इटली पर नेपोलियन के शासन के पश्चात वहां एक संगठित वह एक रूप शासन स्थापित हो गया जैसे इटली के लोगों में राष्ट्रीय एकता की भावना का संचार हुआ। वियना कांग्रेस ने राष्ट्रीयता की भावना की अवहेलना करके इटली के पुराने राजवंशों को पुनः प्रतिष्ठित कर दिया और इटली को फिर से छोटे राज्यों में विभाजित कर दिया। अतः मेटरनिख ने विभाजित इटली को ‘भौगोलिक अभिव्यंजना मात्र’ कहकर उसकी निंदा की। इटली के देशभक्ति मैजिनी ने सन् 1815 ई० में इटली की दाहिनी दिशा के संबंध में कहा था कि “हमारा न कोई ध्वज है न राजनीतिक नाम है और न ही यूरोप के राष्ट्रों के मध्य हमारा कोई स्थान है यहां प्रचलित आठ प्रकार की मुद्राएं भी हमारे विभाजन करती हैं।”इटली के एकीकरण में बाधाएं
यद्यपि इटली में राष्ट्रीयता की भावना में विकास होना प्रारंभ हो गया था परंतु फिर भी उसकी एकीकरण के मार्ग में अनेक बाधाएं थी।(1) इटली के विभिन्न राज्य
इटली के एकीकरण में सबसे बड़ी बाधा उसका विभिन्न राज्यों में विभाजन था। उत्तरी इटली के लंबार्डी एवं विनेशिया के राज्यों पर ऑस्ट्रिया का अधिकार था। तस्कनी, फार्मा, सीडेन पर भी ऑस्ट्रिया के राजकुमार का अधिकार था। दक्षिण इटली के नेपिल्स तथा सिसली राज्यों पर बूर्बो वंश के शासको का शासन था। रोम का राज्य पोप के अधीन था। इनमें परस्पर एकता का अभाव था। मेटरनिख ने इटली के संदर्भ में एक बार कहा था कि “इटली के प्रांत परस्पर विरोधी थे। नगर नगरों के विरुद्ध, परिवार परिवारों के विरुद्ध थे और आदमियों के विरुद्ध आदमी थे।”(2) पोप की समस्या
रोम का पाप भी इटली की एकीकरण के मार्ग में बाधक था। वह संपूर्ण यूरोप में कैथोलिक जनता का निर्विवाद नेता था। अतः उसके राज्य पर विजय प्राप्त करना दुष्कारी कार्य था और रोम को विजय किए बिना इटली का एकीकरण होना संभव नहीं था और उसे पर आक्रमण करने का अर्थ समस्त कैथोलिक जनता से संबंध बिगड़ना था और रोम का पोप भी इटली के एकीकरण के प्रति कोई रुचि नहीं रखता था। वस्तुत: इटली के विभिन्न प्रांतो के शासक व्यक्तिगत स्वार्थ को त्यागने में रुचि नहीं रखते थे।
(3) इटली के लोगों में राष्ट्रीयता की भावना का अभाव
निसंदेह नेपोलियन महान ने इटली की जनता को नया उत्साह प्रदान किया था और पोप के राज्य का अंत करके इटली के विभिन्न राज्यों को विदेशी शासन से मुक्त करने में विशिष्ट योगदान प्रदान किया था। साथी नेपोलियन प्रथम ने इटली के राज्यों को संगठित करके गणतंत्र की स्थापना में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की थी। इससे इटली के लोगों में राष्ट्रीयता की भावना का प्रचार व प्रसार हुआ परंतु उसे सार्वजनिक रूप प्रदान नहीं हो सका। परस्पर मित्रता के कारण इटली के राज्यों में एकता की स्थापना कभी नहीं हो सकी, जो उसके एकीकरण के मार्ग में एक बड़ी बाधा सिद्ध हुई।
(4) इटली के विभिन्न राजनीतिक दल
इटली में विभिन्न राजनीतिक दल जो अपने-अपने दल की नीति व सिद्धांतों के अनुसार सरकार स्थापना के इच्छुक थे तथा अपनी पद्धति से ही इटली का एकीकरण करने में विश्वास करते थे। इस समय के तीन प्रमुख राजनीतिक दल यह थे—
(क) गणतंत्र वादी दल
इस दल का प्रमुख नेता मैजिनी था जो युद्ध के माध्यम से इटली के राज्यों को ऑस्ट्रिया के प्रभुत्व से मुक्ति दिलाना चाहता था और सैनिक बल के द्वारा इटली के निरंकुश राजाओं का अंत करके देश के एकीकरण करने में विश्वास करता था। यह इटली में गणतंत्र आत्मक सरकार स्थापित करने का इच्छुक था।
(ख) पोप समर्थक दल
इटली का दूसरा महत्वपूर्ण दल पोप के समर्थकों का था। पोप यूरोप के कैथोलिक धर्मिवलम्बियो का धर्मगुरु था। अतः पोप के समर्थकों का मानना था कि यदि इटली का एकीकरण किया जाना है तो वह केवल पोप की अध्यक्षता में किया जाए तथा वहां पर संवैधानिक शासन प्रणाली की स्थापना की जानी चाहिए।
(ग) कैवूर का दल
इस दल का नेता सार्डीनिया का प्रधानमंत्री कैवूर था। उसकी मान्यता थी कि सार्डीनिया-पीडमाण्ड के अतिरिक्त इटली के अन्य सभी राज्यों में विदेशी शासन है। अतः केवल पीडमाण्ड के शासक के अधीन एकीकरण किया जाना चाहिए क्योंकि वह मूलत: इटली का निवासी है तथा उसके अपने राज्य में पहले ही उदारवादी संविधान लागू कर दिया है। अतः उसी के अनुसार संपूर्ण इटली में एक प्रकार का संविधान लागू किया जाना चाहिए ताकि इटली में सीमित राजतंत्र स्थापित किया जाए। इटली की राजेश संयुक्त होकर ऑस्ट्रिया को इटली से बाहर कर दें। अंततः इसी दल को एकीकरण में सफलता भी प्राप्ति हुई।
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