ताम्रपाषाण कालीन संस्कृति की 7 प्रमुख विशेषताएं | chalcolithic culture

ताम्र पाषाण कालीन संस्कृति

ताम्र पाषाण संस्कृति से हमारा अभिप्राय है संस्कृति से है जिसमें पत्थरों के साथ-साथ पहली बार किसी धातु अर्थात तांबे या ताम्र का प्रयोग किया गया था। ऐसे कल को ताम्र पाषाण काल की संज्ञा दी जाती थी। इस संस्कृत का विकास समस्त भारत में एक साथ लगभग 2000 ईसा पूर्व से 500 ईसा पूर्व तक हुआ था। यह संस्कृति यद्यपि एक ग्रामीण संस्कृति थी, फिर भी इस काल में कृषि व पशुपालन आदि को प्रमुखता प्रदान की गई थी। 

ताम्र पाषाण कला संस्कृति का विस्तार 

ताम्र पाषाण काल के विषय में हमें केवल ध्वंसावशेषों से कुछ सूचना प्राप्त होती है। अध्ययन की सुविधा की दृष्टि से हम ताम्र पाषाण कालीन स्थलों को दो भागों में बांट सकते हैं— 

  1. परवर्ती हड़प्पा स्थल जो अपनी प्रकृति में ताम्र पाषाण कालीन ही थे।
  2. अन्य ताम्र पाषाण कालीन संस्कृतियां।

  इसके अलावा कुछ अन्य संस्कृतियों है जैसे उदाहरण के लिए चित्रित धूसर मृतभाण्ड संस्कृति तथा उत्तरी काली पॉलिशदार मृदभांड संस्कृति। विदेश में ताम्र पाषाण संस्कृति का विकास लगभग 6000 ईसा पूर्व से 3000 ईसा पर्व माना जाता है क्योंकि इस समय तक तांबे का प्रयोग अफ्रीका एशिया तथा यूरोप के देशों में किया जाता था। तकनीकी दृष्टि से ताम्र पाषाण अवस्था को प्रयोग हड़प्पा से पूर्व की संस्कृतियों के लिए होता है। 

ताम्रपाषाण कालीन संस्कृति की 7 प्रमुख विशेषताएं | chalcolithic culture
ताम्रपाषाण कालीन संस्कृति

ताम्र पाषाण कालीन संस्कृति की विशेषताएं

(1) औजार व अस्त्र-शस्त्र

ताम्र पाषाण कालीन संस्कृति की प्रथम विशेषता इस संस्कृति के औजार व अस्त्र-शस्त्र हैं जो कि हमें इस कल की संस्कृति के क्षेत्र की खुदाई से प्राप्त हुए हैं। इस कल के हथियारों व औजारों में कुलहड़ियां, बरछे, चाकू, मछली पकड़ने के कांटे आदि प्रमुख थे। इस काल में पत्थर के छोटे-छोटे हथियार बनाने की प्रथा थी जिन्हें लघु पाषाणिक कहा जाता था। यह हथियार अपने पूर्व संस्कृतियों के हथियारों को औजारों से घटक और नुकीले होते थे।

(2) पशुपालन

ताम्र पाषाण कालीन संस्कृति की दूसरी मुख्य विशेषता इस सभ्यता के लोगों द्वारा पशुपालन की एक व्यवसाय के रूप में अपनाना भी था। यह लोग गाय, भेड़, बकरी, भैंस, सूअर आदि का पालन करते थे इसके अतिरिक्त ऊंट तथा गधों के भी अवशेष भी इसकी खुदाई के दौरान प्राप्त हुए हैं। 

(3) कृषि 

ताम्र पाषाण कालीन संस्कृति एक ग्रामीण संस्कृति थी और लोग सामान्यतः गांव में ही निवास करते थे। नवपाषाण काल में खेती के आरंभ होने के कारण ताम्र पाषाण काल में भी वे गेहूं व चावल के साथ-साथ बाजार मटर, राजी, असली सहित अनेक दालों की खेती भी करने लगे थे। अनाज के संग्रहण के साथ-साथ उनका व्यापार भी होता था। ताम्र पाषाण काल में खेती के विकास के साथ-साथ औद्योगिक विकास भी हुआ था। धन और गेहूं को पीसने वाले यंत्रों के उपयोग के खाद्य प्रसंस्करण की प्रक्रिया और आसान हुई। 

(4) भोजन 

ताम्र पाषाण कालीन संस्कृति की एक अन्य और मुख्य विशेषता यह थी कि लोगों द्वारा अपने भोजन में गेहूं एवं चावल के साथ-साथ विभिन्न दालों मांस आदि का प्रयोग भी होता था। खुदाई से प्राप्त मछली के कांटों से यह ज्ञात होता है की ताम्र पाषाण काल मानव मछली खाने के भी शौकीन थे। ताम्र पाषाण काल में अनाज (धान, गेहूं, बाजरा आदि) खाद्य के रूप में मुख्य थे। धान का उत्पादन और खेती के तरीके इस काल के लोगों की मुख्य आजीविका स्रोत थे। तो हमारे पाषाण काल में अनाज में धान गेहूं बाजरा आदि

(5) आवास या रहन-सहन

ताम्र पाषाण कालीन लोगों के आवास कच्ची ईटों, पत्थरों और गारे के साथ मिलकर बनाए जाते थे। घरों के ऊपर छप्पर डालने की भी संकेत मिले हैं। महाराष्ट्र के एक गांव इनामदार से प्राप्त एक बड़े मकान के अवशेष से यह पता चलता है कि इसमें संभव तो हो एक संयुक्त परिवार रहता था जिसके कैमरे आयताकार तथा गोलाकार थे। कमरों में चुगल के चिन्ह भी पाए गए हैं जिससे यह पता चलता है कि इन लोगों को खाना पकाने की भी जानकारी थी।

(6) धार्मिक आस्था और विश्वास

ताम्र पाषाण कालीन लोगों के दाह संस्कार की विधि से यह पता चलता है कि इनमें धार्मिक आस्था का विकास हो चुका था और अपने लोगों का संस्कार वे लोग पूरी रीती-रिवाज से करते थे। कुछ लोग सवो को अस्ति कलश में रखकर उत्तर दक्षिण दिशा की ओर जलते थे। 

(7) वस्त्र आभूषण

ताम्र पाषाण कालीन लोगों को वस्त्र की भी जानकारी थी जिसका प्रमाण हम खुदाई के दौरान प्राप्त चारको तकली एवं धागों से लगा सकते हैं। हुए वेस्टन पर चित्रकारी नक्काशी आदि भी करते थे। इसके अतिरिक्त यह लोग कटाई एवं बनाई भी जानते थे क्योंकि इसके भी अवशेष प्राप्त हुए हैं। ताम्र पाषाण कालीन लोगों को आभूषण पहनने का भी शौक था।


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ताम्र पाषाण काल स्थल?

ताम्र पाषाण काल स्थल तकनीकी दृष्टि से ताम्र पाषाण अवस्था को प्रयोग हड़प्पा से पूर्व की संस्कृतियों के लिए होता है। इस युग के स्थान दक्षिण पूर्वी राजस्थान, महाराष्ट्र के दक्षिण की ओर, और भारत के दक्षिण और पूर्व की ओर पाई गई हैं।

ताम्र पाषाण काल किसे कहते हैं?

ताम्र पाषाण संस्कृति से हमारा अभिप्राय है संस्कृति से है जिसमें पत्थरों के साथ-साथ पहली बार किसी धातु अर्थात तांबे या ताम्र का प्रयोग किया गया था। ऐसे कल को ताम्र पाषाण काल की संज्ञा दी जाती थी।

ताम्र पाषाण काल की अवधि?

ताम्र पाषाण काल की अवधि- इस संस्कृत का विकास समस्त भारत में एक साथ लगभग 2000 ईसा पूर्व से 500 ईसा पूर्व तक हुआ था।

ताम्र पाषाण कालीन संस्कृति की विशेषताएं?

ताम्र पाषाण कालीन संस्कृति की विशेषताएं - (1) औजार व अस्त्र-शस्त्र (2) पशुपालन (3) कृषि (4) भोजन (5) आवास या रहन-सहन (6) धार्मिक आस्था और विश्वास (7) वस्त्र आभूषण।

ताम्र पाषाण कालीन कला का विस्तार बताइए?

ताम्र पाषाण काल के विषय में हमें केवल ध्वंसावशेषों से कुछ सूचना प्राप्त होती है। अध्ययन की सुविधा की दृष्टि से हम ताम्र पाषाण कालीन स्थलों को दो भागों में बांट सकते हैं— (1) परवर्ती हड़प्पा स्थल जो अपनी प्रकृति में ताम्र पाषाण कालीन ही थे। (2) अन्य ताम्र पाषाण कालीन संस्कृतियां।

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